कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा बेगम की सरकार क्या गिरी वह इतना बोरा गई है कि जुबान से कैसे बोल निकाल रही है। महबूबा ही नहीं देश के अन्य नेताओं के भी बोल इतने कड़वे हो गए हैं कि लगता है इनके लिए सत्ता और सियासत ही सब कुछ हो गई है। देश के तो कोई मायने ही नहीं है, हर दिन कोई न कोई नेता विवादित बयान दे ही देता है, कोई राजनैतिक दल अछूता नहीं है जिसके नेता कड़वे बोल न बोल रहे हों। इन बड़बोले नेताओं को न देश की चिंता है न अपनी पार्टी की। इन्हें तो बस कुछ भी बोल कर मीडिया की लाइम लाइट में आना है,अपनी टीआरपी बढ़ाना है। अपने वजूद को चाहे बदनाम होकर ही सही बस बनाए रखना है।
कांग्रेस की बात करें तो इस पार्टी को भाजपा से ज्यादा अपने ही बड़बोले नेताओं के कड़वे बोल से खतरा है। राहुल गांधी दिन-रात मेहनत कर पार्टी की वापसी के लिए खून-पसीना एक कर रहे हैं और उनके नेता दिग्विजयसिंह, शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद विवादित बयान देकर करे कराए पर पानी फेर देतें हैं।
यही आलम भाजपा में भी है। नरेंद्र मोदी को कभी अपने मंत्री गिरिराजकिशोर, तो कभी सांसद साध्वी निरंजना के कड़वे वचनों से आहत हो कर अपने नेताओं को जुबान पर लगाम लगाने की नसीहत देना पड़ती है।
लेकिन कश्मीर की अपदस्त मुख्यमंत्री ने तो सारी हदें ही पार कर दी। अपनी पार्टी में हो रही तोड़-फोड़ के लिए भाजपा पर आरोप लगाना तो ठीक है, पर अपनी सियासत के लिए सलाउद्दीन और यासीन मलिक जैसे दुर्दांत आतंकवादियों के फिर से पैदा होने की धमकी देकर महबूबा ने साबित कर दिया है कि वे सत्ता व सियासत के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। वैसे मुख्यमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान और आतंकवादियों का आभार मानने वाली महबूबा से इससे भी ज्यादा गिरने की उम्मीद की जा सकती है, जो हमेशा आतंकियों की ही भाषा बोलती आई है।
इन बड़बोले और जहरीली जबान बोलने वाले नेताओं को यह जरूर सोचना चाहिए कि जनता सब देख रही है,सुन रही है और समझ भी रही है।
(ब्रजेश जोशी)
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