श्रमिक सम्मान के अंतर्गत सबसे पहले बिहार के भागलपुर में एक तेल निकालने के यूनिट की स्थापना की जाएगी. इसके अलावा मुंबई और फ़रीदाबाद में मास्क बनाने का यूनिट, उत्तराखंड में महिलाओं के लिए सिलाई का काम आदि भी शुरू किया जायेगा.
बॉलीवुड अभिनेता मनोज बाजपेई ने प्रवासी मज़दूरों की सहायता के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बाजपेई एक संस्था के साथ जुड़े हैं और ऐसे लोगों को रोज़गार दिलाने में सहायता कर रहे हैं जिन्हें कोरोना पैंडमिक की वजह से अपने घर वापस लौटना पड़ा.
Happy to announce and support #ShramikSammaan, an initiative by #HelpingHandsCharitableTrust, to generate livelihood & employment for our Migrant worker friends. I look forward to your support & contribution. Our fund raiser is on Ketto
Let’s build lives together.@HHCTSM pic.twitter.com/qxQ3OgtnHa— manoj bajpayee (@BajpayeeManoj) August 12, 2020
मनोज ने अपनी पत्नी शबाना के साथ मिलकर, श्रमिक सम्मान लॉन्च किया और Helping Hands संस्था से जुड़े हैं.
अभी 74 प्रोजेक्ट्स हैं. मज़दूरों की हालत ने हम सभी को झकझोर दिया है. दुख की बात है कि उन्हें अभी भी अपना गुज़ारा चलाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इस Initiative की इस समय सबसे ज़रूरत है. ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मैनेज करने के लिए बनाया गया है. मैं फ़ंड्स इकट्ठा करने में भी सहायता करूंगा.
मनोज बाजपेई
श्रमिक सम्मान के अंतर्गत सबसे पहले बिहार के भागलपुर में एक तेल निकालने के यूनिट की स्थापना की जाएगी. इसके अलावा मुंबई और फ़रीदाबाद में मास्क बनाने का यूनिट, उत्तराखंड में महिलाओं के लिए सिलाई का काम आदि भी शुरू किया जायेगा.
‘पीपल बाबा’ ना सिर्फ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करते हैं, बल्कि वे अपने द्वारा लगाए गए हर एक पेड़ की देखभाल भी सुनिश्चित करते हैं।
प्रकृति से लगाव रखने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय तौर पर भाग लेने वाले कई नेक लोग आपको आज मिल जाएंगे, फिर भी दिल्ली के निवासी ‘पीपल बाबा’ की कहानी और उनकी प्रतिज्ञा सबसे अनूठी है। पीपल बाबा ने अपना जीवन ही पेड़-पौधों और प्रकृति को समर्पित कर दिया है।
बीते 44 सालों से चल रहा उनका यह सफर फिलहाल अनवरत जारी है और इस दौरान उन्होने 2 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए हैं। यही नहीं उनके इस संकल्प पर कोरोना महामारी भी ब्रेक नहीं लगा सकी है।
कब हुई थी शुरुआत?
बात है साल 1977 की जब पीपल बाबा यानी स्वामी प्रेम परिवर्तन महज 10 साल के थे, तब फौजी घर में जन्मे स्वामी प्रेम परिवर्तन ने अपने ही घर के सदस्यों से प्रेरणा लेते हुए 26 जनवरी 1977 को पहला पौधा लगाया था और यहीं से उनकी इस यात्रा की शुरुआत हुई।
शुरुआत में वो अपनी जेब खर्च से पौधे खरीदते और उन्हे स्कूल जाने और स्कूल से आने के दौरान रास्ते पर लगाया करते थे। पीपल बाबा के अनुसार उनके पिता आर्मी में थे और इसके चलते उन्हे कई राज्यों में भ्रमण करने और प्रकृति को और नजदीक से जानने का मौका मिला और कुछ इसी तरह उनका प्रकृति प्रेम एक जुनून में तब्दील हो गया।
नौकरी भी की
पीपल बाबा अंग्रेजी विषय में पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उन्होने 13 सालों तह कई कंपनियों में इंग्लिश एजुकेशन ऑफिसर के तौर पर नौकरी भी की, हालांकि इस दौरान भी उनके पेड़ लगाने का कार्यक्रम लगातार जारी ही रहा, लेकिन कुछ समय के बाद उन्होने पौधों के प्रति अपने इस जुनून को फुल टाइम करने का फैसला किया। ऐसे में वो अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए बच्चों को ट्यूशन क्लास देते रहे।
पीपल बाबा अपने भ्रमण के दौरान जब भी बच्चों से मिलते हैं तो उन्हे देश के अन्य राज्यों में भ्रमण करने और प्रकृति को नजदीक से जानने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
स्वामी प्रेम परिवर्तन ने जो 2 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए उनमें से करीब एक करोड़ से अधिक पेड़ नीम और पीपल के हैं। स्वामी प्रेम परिवर्तन एक बार राजस्थान के पाली जिले गए थे, जहां सूखे हुए कुएं से निजात दिलाने के लिए उन्होने निवासियों को वृक्षारोपण की सलाह दी और वहीं के सरपंच द्वारा ‘पीपल बाबा’ नाम से संबोधित किए जाने के बाद से यह नाम उनकी पहचान बन गया।
‘गिव मी ट्रीज़’
यह बात साल 2010 की है, जब बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम ने पीपल बाबा के काम को देखा और उन्होने खुद आगे आकर इस काम को बड़े स्केल पर ले जाने और उन्हे सोशल मीडिया से जुड़ने की सलाह भी दी। इस के साथ आगे बढ़ते हुए पीपल बाबा ने साल 2011 में ‘गिव मी ट्रीज़’ नाम की एक संस्था की स्थापना की।
आज पीपल बाबा अपने लगाए हुए सभी पेड़ों की ना सिर्फ देखभाल सुनिश्चित करते हैं, बल्कि पेड़ों का लेखा जोखा भी रखते हैं। पीपल बाबा रोज़ाना वृक्षारोपण सुनिश्चित करते हैं और ट्रस्ट के माध्यम से आज उनके पास वॉलंटियर्स भी हैं जो उनकी इस काम में मदद करते हैं। कोरोना काल में भी पीपल बाबा ने आठ हज़ार से अधिक पेड़ लगाए हैं।
लोगों को देते हैं प्रशिक्षण
पीपल बाबा प्रशिक्षण शिविरों का भी आयोजन करते हैं, जिसमें आज दुनिया भर के साथ से अधिक देशों से आए हुए लोग हिस्सा ले चुके हैं और वे प्रशिक्षण के बाद अपने देश वापस लौट कर वहाँ वृक्षारोपण का काम सक्रिय तौर पर करते हैं। आज सार्वजनिक जमीन पर पीपल बाबा ने बड़े पैमाने पर पेड़ लगातार ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से जूझ रही धरती को बचाने का सक्रिय प्रयास किया है, जो अनवरत जारी है।
सोनू सूद ने चित्तूर के गरीब किसान नागेश्वर राव के लिए एक ब्रैंड न्यू ट्रैक्टर भिजवाया है. आंध्रप्रदेश के दूरगामी गांव में रहने वाले नागेश्वर के घर पर इस ट्रैक्टर की डिलीवरी हुई है.
कोरोना काल में भले ही दुनिया ने तमाम तरह की परेशानियां देखी हों लेकिन देश के लोगों ने सोनू सूद का एक अलग ही रूप भी देखा है. लॉकडाउन में सोनू सूद हजारों लोगों की मदद के चलते जबरदस्त सुर्खियों में हैं. उन्होंने हाल ही में आंध्रप्रदेश के एक गरीब किसान के घर ट्रैक्टर भी भिजवा दिया है.
सोनू सूद ने चित्तूर के गरीब किसान नागेश्वर राव को ब्रैंड न्यू ट्रैक्टर भिजवाया है. आंध्रप्रदेश के दूरगामी गांव में रहने वाले नागेश्वर के घर पर इस ट्रैक्टर की डिलीवरी हुई है. नागेश्वर राव ने सोनू सूद के इस स्पेशल गिफ्ट को लेकर उनकी तारीफ की है. उन्होंने कहा कि रील लाइफ में सोनू भले ही विलेन हों लेकिन रियल लाइफ में वे हमारे लिए हीरो हैं. मैं और मेरा परिवार सोनू की इस मेहरबानी के लिए उन्हें नमन करता है.
This family doesn’t deserve a pair of ox 🐂..
They deserve a Tractor.
So sending you one.
By evening a tractor will be ploughing your fields 🙏
Stay blessed ❣️🇮🇳 @Karan_Gilhotra #sonalikatractors https://t.co/oWAbJIB1jD— sonu sood (@SonuSood) July 26, 2020
दरअसल राव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि नागेश्वर राव अपनी दो बेटियों से ही खेत जुतवा रहा है. उसके पास इतने पैसे ही नहीं है कि वो बैल किराए पर ले सके. वीडियो में लड़कियां जिस मेहनत से खेत को जोत रही हैं, ये देख सभी का दिल पिघल गया है. वही इस वीडियो को देखकर सोनू सूद ने अपने चिर परिचित अंदाज में इस फैमिली की मदद का ऐलान कर दिया था. खास बात ये है कि ये ट्रैक्टर नागेश्वर के पास पहुंच भी चुका है.
अब तक कई लोगों की मदद कर चुके हैं सोनू सूद
गौरतलब है कि सोनू सूद पिछले कुछ समय से मजदूरों, छात्रों से लेकर किसानों तक सभी की मदद को आगे आ रहे हैं. हाल ही में उन्होंने दशरथ मांझी के परिवार को भी आर्थिक सहायता देने की बात कही थी. इसके अलावा सोनू सूद विदेश में फंसे हजारों छात्रों की भी वतन वापसी करवा रहे हैं. फ्लाइट के जरिए सभी को हिंदुस्तान लाने का मिशन शुरू भी किया जा चुका है. इससे पहले उन्होंने लॉकडाउन में फंसे हजारों मजदूरों को बस दिलवाकर उन्हें होमटाउन पहुंचाया था. इससे पहले उन्होंने डॉक्टरों की भी सहायता की थी. सोनू अपने इन अनुभवों को एक किताब की शक्ल भी देने जा रहे हैं.
गौरतलब है कि एसयूवी बेंचने से पहले शहनवाज़ इसका उपयोग मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए कर रहे थे।
कोरोना वायरस ने देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले शहर मुंबई को बुरी तरह प्रभावित किया है। मुंबई में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल 69 हज़ार से अधिक मामले पाये गए हैं, जबकि 37 हज़ार से अधिक लोग इससे रिकवर भी हो चुके हैं।
बढ़ते मामलों के साथ स्वास्थ्य सेवाओं पर इस समय सबसे अधिक दबाव है और कई मामलों में मरीजों को उचित स्वास्थ्य सेवाएँ मिलने में समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। मरीजों को ऑक्सिजन सिलेन्डर तक की व्यवस्था करना इस समय मुश्किल हो गया है, हालांकि इन सब के बीच मदद को बढ़ रहे हाथ हमें संतोष जरूर देते हैं।
ऐसा ही कुछ काम मुंबई के मालाड में रहने वाले शहनवाज़ शेख ने भी किया, जिन्होने कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों को ऑक्सिजन सिलेन्डर की व्यवस्था करने के लिए अपनी एसयूवी कार बेंच दी।
शहनवाज़ इस समय अपने दोस्त अब्बास रिजवी के साथ मिलकर मरीजों की मदद के लिए आगे आए हैं। अब्बास यूनिटी एंड डिग्नटी फ़ाउंडेशन नाम का एनजीओ भी चलाते हैं, जो कोरोना संक्रमित मरीजों को फ्री में ऑक्सिजन सिलेन्डर उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रहा है।
यह तब शुरू हुआ जब रिजवी की एक रिश्तेदार ने ऑक्सिजन न मिल पाने के चलते अस्पताल के बाहर दम तोड़ दिया था। किसी और के साथ ऐसा ना हो इसके लिए दोनों दोस्तों ने खुद ही आगे आने का फैसला किया।
शहनवाज़ ने पैसे का इंतजाम करने के लिए अपनी एसयूवी बेंच दी, जिससे उन्हे 4 लाख रुपये मिले और दोनों ने मिलकर उस राशि से 60 ऑक्सिजन सिलेन्डर खरीदे। गौरतलब है कि शहनवाज़ अब तक 3 सौ से अधिक लोगों की मदद कर चुके हैं।
एसयूवी बेंचने से पहले शहनवाज़ इसका उपयोग मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए कर रहे थे। आज ये दोनों दोस्त जरूरतमंद लोगों को ऑक्सिजन सिलेन्डर उपलब्ध करा उनकी मदद की है।
इरफान पठान. इंडियन क्रिकेट टीम के लिए खेल चुके क्रिकेटर. पठान भारत में कोरोना फैलने के बाद से ही लगातार लोगों की मदद कर रहे हैं. अब पठान की एक और दिल छू लेने वाली कहानी सामने आई है. ‘ESPN क्रिकइंफो’ में काम करने वाले रौनक कपूर ने एक ट्वीट के जरिए ये कहानी बताई.
रौनक ने ट्वीट किया,
‘6 जून को मेरे साथियों- सौरभ और शशांक की एक स्टोरी पढ़ने के बाद इरफान पठान ने मुझे फोन किया. उन्होंने चेन्नई स्थित जूतों का काम करने वाले आर भास्करन के बारे में क्रिकेट मंथली पर पढ़ा था. भास्करन IPL के दौरान होने वाली कमाई के न होने से काफी परेशान हैं, मुश्किल से गुजारा कर पा रहे हैं.
इरफान ने मुझसे भास्करन का नंबर मांगा. उन्होंने बताया नहीं कि क्यों चाहिए और मैंने पूछा भी नहीं. मैंने शशांक से नंबर लिया और तुरंत इरफान को फॉरवर्ड कर दिया. बाद में एक घंटे से ज्यादा बीतने के बाद उन्होंने मुझे मैसेज किया कि वो कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भास्करन से बात नहीं हो पाई. मैंने अगले दिन वो मैसेज पढ़ा और रिप्लाई करना भूल गया.
आज मुझे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में वेंकट कृष्णा के आर्टिकल से पता चला कि इरफान पठान ने भास्करन को 25 हजार रुपये भेज दिए थे. IPL के दौरान भास्करन लगभग 25 हजार रुपये कमा लेते थे. इरफान ने इस बात का शोर नहीं मचाया, न क्रेडिट की इच्छा जताई. शुरुआत में उन तक पहुंचने में मिली नाकामी के बाद भी उन्होंने कोशिश जारी रखी. ये वही आदमी है, जिसे राइट विंग के लोग और आईटी सेल लगातार गालियां देते हैं, ट्रोल करते हैं.’
# मामला क्या था?
दरअसल क्रिकेट मंथली ने 5 जून को एक स्टोरी छापी थी. इसमें IPL से जुड़े उन लोगों से बात की गई थी, जिन पर अभी लोगों का ध्यान कम है. इसमें चियरलीडर्स, युवा क्रिकेटर्स के साथ भास्करन भी थे. खुद को चेपॉक का ऑफिशल Cobbler कहने वाले भास्करन कई साल से स्टेडियम के बाहर बैठते हैं. वे प्लेयर्स के जूतों, पैड, ग्लव्स इत्यादि की मरम्मत कर अपना जीवन-यापन करते हैं.
1993 से आज तक भास्करन ने चेपॉक में हुआ एक भी इंटरनेशनल मैच मिस नहीं किया है. पिछले 12 साल से वे चेन्नई सुपरकिंग्स प्लेयर्स के जूते, पैड, ग्लव्स, हेलमेट इत्यादि रिपेयर करने वाले ऑफिशल बंदे हैं. आम दिनों में वे चिदंबरम स्टेडियम के ठीक बाहर बैठते हैं.
With very little about humanity & acts of kindness to cheer you up these days, @IrfanPathan redeems some hope. pic.twitter.com/0PyPKtmhjC
— Raunak Kapoor (@RaunakRK) June 15, 2020
मैच और ट्रेनिंग वाले दिनों में वह ड्रेसिंग रूम के पास अपने साजो-सामान के साथ बैठते हैं. भास्करन बताते हैं कि एक दिन के काम के लिए तमिलनाडु क्रिकेट असोसिएशन (TNCA) उन्हें 1000 रुपये देता है. इसके अलावा प्लेयर्स उन्हें अलग से पैसे देते हैं. बाकी दिनों में भास्करन 300 से 500 रुपये रोज कमा लेते हैं. भास्करन ने बताया था कि पिछले IPL से उन्होंने 25,000 रुपये कमाए थे. यही आर्टिकल पढ़ने के बाद इरफान ने बिना किसी को बताए भास्करन को 25,000 रुपये भेज दिए.
# ट्रोल्स का मामला
रौनक ने जिन ट्रोल्स का ज़िक्र किया, वो आए दिन इरफान की टाइमलाइन पर देखने को मिल जाते हैं. हाल ही में उन्होंने रेसिज्म के बारे में ट्वीट किया था. इरफान ने लिखा था,
‘रेसिज्म चमड़ी के रंग तक ही सीमित नहीं है. दूसरे मज़हब के लोगों को किसी सोसाइटी में घर न खरीदने देना भी रेसिज्म है.’
इस ट्वीट को लेकर उन्हें खूब ट्रोल किया गया था. लेकिन इरफान ट्रोल्स से डरे नहीं. उन्होंने साफ किया कि वो एक भारतीय हैं और अपने मन की बात करने से पीछे नहीं हटेंगे.
मौक़ा कोई भी हो. सिख समुदाय ने हमेशा मदद का हाथ आगे बढ़ा कर इंसानियत का परिचय दिया है. George Floyd की हत्या के बाद दुनियाभर में नस्लवाद को लेकर विरोध हो रहा है. वहीं अमेरिका में चल रहे विरोध के बीच सिख समुदाय ने प्रदर्शनकारियों के लिये लंगर आयोजित किया है.
Queens गांव स्थित गुरुद्वारे में 30 रसोइयों द्वारा 10 हफ़्तों में 145,000 से ज़्यादा Meals बना कर खिलाए चुके हैं. इसके साथ ही लोगों को हज़ारो पानी और सोडा की बोतल भी मुहैया कराई जा चुकी हैं. प्रदर्शनकारियों को दिये जा रहे Meal Box में मटर-पनीर, राजमा-चावल और थोड़ी सी खीर शामिल है.
खाना वितरित करते समय सिख समुदाय द्वारा साफ़-सफ़ाई और सामाजिक दूरी का पूरा ध्यान रखा गया है. इसके अलावा खाना मॉस्क लगा कर दिया जा रहा था. सिख समुदाय का ये प्रयास उन लोगों के लिये जो महामारी के दौरान संघर्ष कर रहे हैं. इस बारे में World Sikh Parliament के कॉ-आर्डिनेटर हिम्मत सिंह का कहना है कि सुमदाय शांतिपूर्ण तरीके से किये जा रहे प्रदर्शन का समर्थन करता है. इसलिये जहां भी शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन हो रहा है, वो वहां जा रहे हैं. वो इसका समर्थन करते हैं. इसके साथ ही उन्हें न्याय की तलाश है.
According to Guru Sahib’s command, service is in their lap whom God makes his servant. It is a great service to put yourself in the forefront to serve others, regardless of your life in this tough phase.
Donate https://t.co/TNjM0NpyuK#UNITEDSIKHS #COVID19 #CoronavirusNewYork pic.twitter.com/l7EwsKOndT— UNITED SIKHS (@unitedsikhs) March 23, 2020
धन्य है सिख समुदाय जिसे किसी महज़ब नहीं, बल्कि इंसानियत का दर्द दिखाई देता है. वो लोगों की मदद के लिये कहीं भी पहुंच जाते हैं और हमेशा अपनी दरियादिली का सबूत देते हैं. बता दें कि बीते 25 मई को George Floyd की मिनियापोलिस में पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी. इसके बाद Floyd का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें पुलिस ने उनकी गर्दन पर पैर रखा हुआ था. जिस कारण सांस रुकने की वजह उनकी मौत हो गई और दुनियाभर में नस्ल भेदभाव को लेकर विरोध शुरू हो गया.
सुनील दत्त, नरगिस जी दोनों जाने-माने एक्टर्स रहे. आज के जमाने में जब प्रेम करने वालों के खिलाफ पूरा ज़माना हो रहा है और प्रेम की राह मुश्किल होती जा रही है, नरगिस और सुनील दत्त की ये कहानी प्रेरित करती है.
ये कहानी वहां से शुरू होती है जब सुनील दत्त सीलोन रेडियो में बतौर रेडियो जॉकी काम किया करते थे. तब एक्टिंग से उनका कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन यहीं पर उनका नरगिस से पहली बार मिलना हुआ. उन्हें रेडियो के लिए नरगिस का इंटरव्यू लेने का काम सौंपा गया. तब वे भारत की बहुत बड़ी एक्ट्रेस हो चुकी थीं. राज कपूर के साथ उनकी जोड़ी फिल्मों में बहुत हिट थी. इंटरव्यू के दौरान अपने सामने नरगिस को देखकर सुनील दत्त इतने नर्वस हो गए कि उनसे एक भी सवाल नहीं पूछ पाए. हालत ये हुई कि सुनील दत्त की नौकरी जाते-जाते बची.
दूसरी बार नरगिस और सुनील दत्त की मुलाकात बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ के सेट पर हुई. नरगिस वहां बिमल रॉय से मिलने आई थीं और सुनील दत्त वहां काम की तलाश में पहुंचे थे. सुनील को देखते ही नरगिस को पिछला वाकया याद आ गया. वो उन्हें देखकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गईं. इसके बाद महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में सुनील दत्त को नरगिस के बेटे का रोल मिला.
शूटिंग के दौरान सुनील बार-बार नरगिस के सामने नर्वस हो जाते थे और एक्टिंग नहीं कर पाते थे. लेकिन नरगिस ने इस दौरान उनकी काफी मदद की जिससे वो सहज होकर एक्टिंग कर सके. नरगिस की इस दरियादिली की वजह से सुनील दत्त को उनसे बहुत लगाव सा हो गया.
कहा जाता है कि इसमें जो रोल सुनील दत्त को मिला था वो इससे पहले दिलीप कुमार को ऑफर किया गया था. लेकिन दिलीप कुमार ने इस रोल को करने से मना कर दिया क्योंकि वो नरगिस के बेटे का रोल नहीं करना चाहते थे. दिलीप ने कहा कि नरगिस तो मेरी हीरोइन है, मैं उसके बेटे का रोल कैसे कर सकता हूं. हालांकि डायरेक्टर महबूब खान ने दिलीप कुमार को डबल रोल ऑफर किया. उन्होंने कहा था कि बाप और बेटे दोनों का रोल आप कर लीजिए लेकिन दिलीप कुमार नहीं माने.
फिर एक घटना घटी जिसने हमेशा के लिए सुनील दत्त और नरगिस को करीब ला दिया. ये हुआ था गुजरात के बिलिमोर गांव में. ‘मदर इंडिया’ का सेट था. वहां एक सीन को फिल्माए जाने के लिए चारों ओर पुआल बिछाए गए थे. सीन को फिल्माने के लिए पुआलों में आग लगाई गई. देखते-देखते आग चारों ओर फैल गयी. नरगिस सीन करने के दौरान आग में फंस गईं. सुनील दत्त अपनी जान पर खेलकर नरगिस को बचाने के लिए आग में कूद पड़े. उन्होंने नरगिस को बचा लिया लेकिन खुद काफी जल गए. वो इतने ज़्यादा जल गए थे कि बार-बार बेहोश होने लगे. अस्पताल में भर्ती कराया गया.
नरगिस रोज़ अस्पताल जाकर उनकी देखभाल करतीं. आग वाले हादसे के बाद नरगिस का नज़रिया सुनील दत्त की ओर से पूरी तरह बदल गया था.
इसी बीच सुनील दत्त की बहन बीमार पड़ गईं. वे बंबई में किसी डॉक्टर को नहीं जानते थे. बिना सुनील दत्त को बताए नरगिस उनकी बहन को लेकर अस्पताल चली गईं और इलाज करवाया. सुनील दत्त पहले से ही नरगिस को चाहते थे लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने तय कर लिया कि जिंदगी बितानी है तो उन्हीं के साथ. फिर वो नरगिस को प्रपोज़ करने से खुद को रोक नहीं पाए. नरगिस को उन्होंने प्रपोज़ किया और नरगिस ने उसे स्वीकार भी कर लिया. उसके बाद दोनों ने शादी कर ली.
नरगिस की लाइफ के कुछ और किस्से भी जानते हैंः
1. अपने बेटे संजय की डेब्यू फिल्म नहीं देख पाईं:
संजय दत्त की पहली फिल्म ‘रॉकी’ 1981 में अप्रैल-मई में रिलीज़ होने वाली थी. नरगिस तब बीमार चल रही थीं. उन्हें कैंसर था. वो संजू की फिल्म देखने को बेचैन थीं. बेटे संजू से उन्होंने कहा था कि उनकी तबीयत खराब रही और स्ट्रेचर पर भी ले जाना पड़ा, तब भी वो फिल्म ज़रूर देखेंगी. फिल्म 8 मई को रिलीज़ होनी थी लेकिन 3 मई को ही नरगिस की मौत हो गई. जिस दिन फिल्म का शो था उस दिन एक सीट नरगिस के लिए खाली रखी गई थी.
2. डॉक्टर्स ने सुनील दत्त को दी नरगिस को मारने की सलाह:
नरगिस को कैंसर की बीमारी थी. उनकी पूरी बॉडी में बहुत दर्द रहता था. डॉक्टर्स ने इसीलिए सुनील दत्त को सलाह भी दी कि वो नरगिस का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा दें. लेकिन सुनील दत्त ने ऐसा करने से मना कर दिया. वे आखिरी पल तक उनके साथ रहे.
3. जब नाराज होकर मास्को टूर छोड़कर भारत आ गईं:
अपनी लोकप्रिय फिल्मों से राजकपूर और नरगिस की जोड़ी काफी मशहूर हो चुकी थीं. रूस में भी इनकी फिल्में काफी मशहूर थीं. एक बार नरगिस, राजकपूर के साथ मास्को गईं. लेकिन लोगों ने उन्हें स्वतन्त्र रूप से महत्व न देकर राजकपूर की हीरोइन जितनी ही तवज्जो दी. पूरा सम्मान न पाकर नरगिस को बुरा लगा और वो बीच में ही मास्को से इंडिया लौट आईं.
4. राजकपूर से 20 साल बाद जब मुलाकात हुई:
सुनील दत्त से शादी होने के बाद नरगिस अपनी ज़िन्दगी में पूरी तरह व्यस्त हो गईं. पहले उन्होंने राज कपूर के साथ ‘आवारा’, ‘श्री 420’ और ‘बरसात’ जैसी करीब 16 फिल्में की थीं. लेकिन बाद में वे राज कपूर से नहीं मिलीं. फिर करीब 20 साल बाद जब राज कपूर ने बेटे ऋषि कपूर की सगाई के बाद बंबई के देवनार बंगले पर पार्टी दी तो उसमें नरगिस को भी बुलाया. इस तरह 20 साल बाद दोनों की मुलाकात हुई. सुनील दत्त और संजय दत्त भी इस पार्टी में मौजूद थे.
कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से कई लोगों को खाने-पीने की कमी हो गई. ऐसे में उन्हें जहां और जैसे खाना मिल रहा है, वैसे वे भूख मिटा रहे हैं. भूख मिटाने के लिए चोरी की घटनाएं भी सामने आई हैं. ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र के यवतमाल जिले का है. यहां एक व्यक्ति चोरी से खाने की दुकान में घुस गया. वहां उसने भूख मिटाई और फिर चला गया. दुकान मालिक को चोरी का पता लगा. लेकिन उसने पुलिस में शिकायत नहीं की.
समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के अनुसार, मामला 27 मई की रात का है. यवतमाल के गांधी चौक में झुनका भाकर के नाम से खाने की दुकान है.
सीसीटीवी में कैद हुआ मामला
30 मई को एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि एक आदमी दरवाजा तोड़कर दुकान में घुसा. फिर वह किचन में गया. यहां उसने झुनका भाकरी और सेव भाजी खाई. खाने के बाद वह कैश काउंटर के पास गया. इसमें 200 रखे थे. इन्हें वह ले गया. दुकान में लगे सीसीटीवी कैमरे में पूरा मामला दर्ज हो गया.
दुकानदार ने क्या कहा
दुकान के मालिक का नाम राजेश मोर है. उन्होंने पीटीआई से कहा कि वह आदमी भूखा था. साथ ही जितने पैसे वह लेकर गया वह ज्यादा नहीं थे. इसलिए उन्होंने पुलिस में शिकायत नहीं की.
बता दें कि इस तरह का मामला पिछले दिनों गुजरात में भी हुआ था. यहां पर जूनागढ़ के एक होटल में 12-13 मई की रात कुछ लोग घुसे. उन्होंने किचन का ताला तोड़ा और अपने लिए खाना बनाया, खाया और बिना कुछ लिए चले गए. यहां पर भी मालिक ने पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया.
‘सोनू सूद सर प्लीज़ हेल्प. ईस्ट यूपी में कहीं भी भेज दो सर. वहां से पैदल अपने गांव चले जाएंगे.’
‘पैदल क्यों जाओगे दोस्त? नबंर भेजो.’
पिछले कई दिनों से बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद लॉकडाउन की वजह से फँसे मज़दूरों को घर पहुंचाने में उनकी हरसंभव मदद कर रहे हैं. वो उनके लिए बसों से लेकर खाने-पीने की चीज़ों तक का इंतज़ाम कर रहे हैं.
सोनू सूद के इस कदम की वजह से हर ओर उनकी तारीफ़ें हो रही हैं और ट्विटर पर #SonuSood सबसे ऊपर ट्रेंड कर रहा है. लोग उन्हें ‘लॉकडाउन का हीरो’ बता रहे हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई को कुछ दिनों पहले दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनसे मज़दूरों का दुख देखा नहीं जा रहा है और वो उन्हें घर पहुंचाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे.
कोरोना संकट के बीच जारी लॉकडाउन की वजह से हज़ारों प्रवासी मज़दूर देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे हुए हैं.
लॉकडाउन के पहले चरण के ऐलान के बाद से ही अंतरराज्यीय और रेल सेवाएं बंद कर दी गई थीं. इसकी वजह से बड़ी संख्या में मज़दूर पैदल ही अपने घरों को जाने से के लिए मजबूर हो गए थे.
ऐसी संकट की घड़ी में सोनू सूद मज़दूरों के लिए बड़ी राहत बनकर उभरे हैं.उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से ख़ास अनुमति लेकर प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचाने के लिए कई बसों का इंतज़ाम करवाया. इससे पहले उन्होंने कर्नाटक के कई मज़दूरों को घर पहुंचाने के लिए बसों का इंतज़ाम कराया था.
उन्होंने कहा, “ये मेरे लिए एक बेहद भावुक सफ़र रहा है. सड़कों पर पैदल चलकर अपने घर जाते मज़दूरों को देखकर मुझे बहुत कष्ट होता है. मैं तब तक उन्हें घर पहुंचाने में मदद करता रहूंगा जब तक आख़िरी मज़दूर अपने परिवार से न मिल जाए.”
46 वर्षीय सोनू सूद ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों के मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने में मदद की है.
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इससे पहले उन्होंने पंजाब के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 1,500 पीपीई किट भी दान किया था. इतना ही नहीं उन्होंने मुंबई का अपना होटल स्वास्थ्यकर्मियों को रहने के लिए भी दिया है.
सोनू सूद रमज़ान के महीने में भिवंडी इलाके में हज़ारों ग़रीबों और प्रवासी मज़दूरों को खाना भी खिला रहे हैं.
उनकी एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वो नारियल फोड़कर मज़दूरों को बस से विदा करते नज़र आ रहे हैं.
उनकी यह दरियादिली पूरे ट्विटर और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर छाई हुई है. लोग उनकी तारीफ़ में पोस्ट कर रहे हैं, मीम्स और तस्वीरें शेयर कर रहे हैं.
लोग कह रहे हैं कि कोरोना वायरस की वैक्सीन का तो पता नहीं मगर सोनू सूद ने हज़ारों प्रवासी मज़दूरों के लिए वैक्सीन का काम किया है!
घर जाना है? ई-पास आवेदन के लिए लिंक पर क्लीक करे –http://iamfeedy.com/घर-जाना-है-ई-पास-के-लिये-ऐसे/
ट्विटर यूज़र्स ये भी कह रहे हैं कि फ़िल्मों में अमूमन खलनायक की भूमिका निभाने वाले सूद असल ज़िंदगी में हीरो हैं.
मनीष ने लिखा है, “इस वक़्त सोनू सूद सबसे अच्छे केंद्र और राज्य सरकार हैं.”
इतना ही नहीं, लोग उन्हें ‘भगवान’ तक बता रहे हैं और महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी कर रहे हैं.
लाखों प्रवासी मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर रहे हैं, ताकि घर पहुंच सकें. हर दिन सोशल मीडिया और मीडिया में ऐसी तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं, जो रुला देने वाले हैं. हालांकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का दावा है कि मजदूरों के घर लौटने के लिए ट्रेन और बसें चलाई जा रही हैं. लेकिन सबको ये सुविधा नसीब नहीं हो रही है.
आंध्र प्रदेश में फंसे प्रवासी मजदूर भी ट्रेन और बस नहीं मिलने के कारण पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े हैं. 15 मई को कुछ मजदूर पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर घर जा रहे थे. चेन्नई-कोलकाता हाइवे पर इनकी मुलाकात आंध्र प्रदेश की चीफ सेक्रेटरी नीलम साहनी से हुई. उन्होंने इन मजदूरों के घर जाने और खाने-पीने का इंतजाम किया.
क्या है मामला?
हर दिन की तरह आंध्र प्रदेश की चीफ सेक्रेटरी नीलम साहनी सीएम जगनमोहन रेड्डी से मीटिंग के लिए उनके घर गई थीं. मीटिंग खत्म करने के बाद वो लौट रही थीं. रास्ते में उन्होंने देखा कि प्रवासी मजदूरों का एक ग्रुप चेन्नई को कोलकाता से जोड़ने वाले हाइवे पर पैदल ही चला जा रहा है. उन्होंने अपनी सिक्योरिटी को काफिला रोकने को कहा. कार से उतरीं और बिना अपनी पहचान उजागर किए उन्होंने मजदूरों से बात की. उनकी समस्या सुनी.
मजदूरों ने बताया कि पैसा खत्म हो गया है, इसलिए वो पैदल ही चेन्नई से बिहार जा रहे हैं. ये जानने के बाद उन्होंने तुरंत गुंटूर जिले के संयुक्त कलेक्टर और कृष्णा जिले के कलेक्टर को श्रमिकों के घर जाने और उनके खाने-पीने की व्यवस्था करने को कहा. उन्होंने ये भी आदेश दिया कि अगली ट्रेन से इन मजदूरों को बिहार भेजा जाए.
आईएएस अधिकारी नीलम साहनी नवंबर में आंध्र प्रदेश की मुख्य सचिव बनी थीं. वह विभाजित आंध्र प्रदेश की पहली महिला मुख्य सचिव हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएम ने उनके कार्यकाल को बढ़ाने की मांग केंद्र से की है. 1984 बैच की आईएएस अधिकारी नीलम इससे पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के सचिव पद पर तैनात थीं. नीलम के पति अजय साहनी भी आईएएस अधिकारी हैं.