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September 25, 20201min00

सैंडविच बहुत ही आसानी से बनने वाली डिश है. इसे कई तरह से बनाया जाता है, लेकिन आज हम इसे शिमला मिर्च के साथ बनाएंगे जो खाने में काफी स्वादिष्ट होती है.

 

एक नज़र

रेसिपी क्विज़ीन : इंडियन

कितने लोगों के लिए : 1 – 2

समय : 5 से 15 मिनट

मील टाइप : वेज, ब्रेकफास्‍ट

 

आवश्यक सामग्री

6 ब्राउन ब्रेड
1 प्याज
1 शिमला मिर्च
1 टमाटर
1/2 टीस्पून चाट मसाला
1/2 नमक
1/2 टीस्पून काली मिर्च पाउडर
1 टेबलस्पून टोमैटो केचप
1 टेबलस्पून मेयोनीज

 

विधि

– सबसे पहले एक कटोरी में प्याज, शिमला मिर्च और टमाटर को बारीक काट लें.
– इसमें मेयोनीज, टोमैटो केचप डालकर मिला लें.
– अब काली मिर्च पाउडर, चाट मसाला और नमक मिलाएं.
– मिश्रण का एक चम्मच ब्रेड के ऊपर लगाएं और इसे दूसरी ब्रेड से कवर कर दें.
– मीडियम आंच पर तवे पर हल्का तेल डालकर गर्म करें.
– इसपर ब्रेड रखकर दोनों तरफ से सेंक लें.
– तैयार है वेज-शिमला मिर्च सैंडविच. गरमागरम सर्व करें.


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September 22, 20204min00

टूटते-झड़ते और कमजोर बालों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए लोग पानी की तरह पैसा बहा देते हैं. इसके बावजूद उन्हें इस समस्या से राहत नहीं मिलती है. बॉलीवुड एक्ट्रेस रवीना टंडन ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो अपलोड किया है. इस वीडियो में उन्होंने फैंस को बालों से जुड़ी समस्या से निजात पाने का अचूक फॉर्मूला (Tips for healthy hair) बताया है.

रवीना ने इंस्टाग्राम पर अपलोड वीडियो में कहा, ‘आजकल सभी लोगों को बाल झड़ने की शिकायत हो रही है. टेंशन, स्ट्रेस, गलत शैम्पू का इस्तेमाल, पानी में कैमिकल की मिलावट इस समस्या का कारण हो सकते हैं. बालों को बेहतर और मजबूत बनाने के लिए आंवला (Amla for hair) से बेहतर कुछ नहीं है. बालों के लिए आंवला बहुत अच्छी चीज है.’

 

बालों की जड़ों में लगाएं आंवला पेस्ट

रवीना ने फैंस से कहा कि अगर आपके बाल कमजोर है तो आपको रोज आंवला खाना चाहिए. आप चाहें तो इसे अपने बालों में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. करीब 6 आंवला एक कप दूध में उबाल लीजिए. फिर इसके बीज निकालकर अच्छे से पेस्ट बनाएं और इसे बालों की जड़ों में लगाएं. गर्म पानी से बालों को धोने से पहले 15 मिनट तक पेस्ट को बालों में लगा रहने दें.

 

 


 

हफ्ते में दो बार करें इस्तेमाल

आंवला में मौजूद तत्व ना सिर्फ बालों की जड़ों से गंदगी को साफ करते हैं, बल्कि उन्हें सिल्की और चमकदार भी बनाते हैं. बालों के लिए इसे सप्ताह में कम से कम दो बार इस्तेमाल करें. कुछ महीनों के भीतर ही आपके बाल जड़ों से एकदम मजबूत हो जाएंगे.


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September 19, 20201min00

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने आयोडीन से कोरोना को खत्म करने का दावा किया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, नाक और मुंह को आयोडीन से साफ किया जाए तो कोरोना को रोका जा सकता है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट स्कूल ऑफ मेडिसिन ने इसे अपनी रिसर्च में समझाया है। रिसर्च कहती है, 0.5 फीसदी कंसंट्रेशन वाले आयोडीन सॉल्यूशन में जब कोरोना छोड़ा गया तो 15 सेकंड में खत्म हो गया।

रिसर्चर्स का कहना है, आयोडीन से सफाई करके वायरस से बचाव किया जा सकता है और कोरोना को फेफड़ों तक पहुंचने से रोका जा सकता है। ऐसा करते हैं तो मरीज की हालत नाजुक होने से बच सकती है।

 

कैसे वायरस को खत्म करेगा आयोडीन

रिसर्चर्स का कहना है, इंसान की नाक में सबसे ज्यादा ACE2 रिसेप्टर्स होते हैं, जो कोरोना को संक्रमण फैलाने में मदद करते हैं। ज्यादातर मामलों में वायरस की एंट्री नाक या मुंह से ही होती है। वायरस को यहीं रोकने के लिए क्लीनिकल ट्रायल में नाक और मुंह की सफाई पर फोकस किया गया है।

रिसर्चर्स ने इसे समझाने के लिए आयोडीन के तीन एंटीसेप्टिक सॉल्यूशंस (PVP-I) तैयार किए। इनमें आयोडीन की मात्रा 0.5%, 1.25% और 2.5% रखी गई। रिसर्च में सामने आया कि 0.5% वाले सॉल्यूशन में वायरस 15 सेकंड में ही खत्म हो गया।

इसके अलावा इन अलग-अलग सॉल्यूशन में 70 फीसदी एथेनॉल डालकर 15 सेकंड और 30 सेकंड बाद कोरोना पर असर देखा गया। प्रयोग में एथेनॉल कोरोना को पूरी तरह खत्म करने में कारगर साबित नहीं हुआ। रिसर्चर्स का कहना है, अगर कोरोना को आयोडीन के साथ रखते हैं तो वायरस को खत्म करने के लिए 15 सेकंड काफी हैं।

 

एयरोसॉल और ड्रॉपलेट्स कंट्रोल किए जा सकेंगे

रिसर्चर्स का कहना है, डॉक्टर्स मरीजों को आयोडीन सॉल्यूशन से नाक को धोने का सही तरीका बताएं ताकि वे इसका इस्तेमाल कर सकें। ऐसा किया जाता है तो मुंह या नाक से निकलने वाले कोरोना के एयरोसॉल या ड्रॉपलेट्स के जरिए होने वाले संक्रमण का खतरा कम किया जा सकता है।


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September 16, 202010min00

सरसों का तेल, कनोला ऑयल, नारियल का तेल, एवेकाडो ऑयल, मूंगफली का तेल, ऑलिव ऑयल, अलसी का तेल, पामोलीन ऑयल…

लिस्ट बहुत लंबी है. खाना-पकाने के लिए तेल के बहुत सारे विकल्प हैं. मगर, कौन सा तेल सेहत के लिए सबसे अच्छा है?

खाने और सेहत को लेकर फ़िक्रमंद लोग अक्सर इस सवाल से दो चार होते हैं.

खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले तेल अक्सर उसके फल, पौधे, बीज या नट से तय होते हैं.

इन्हें कुचलकर, दबाकर या प्रॉसेस करके निकाला जाता है.

 

पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड

तेल की सबसे बड़ी ख़ूबी ये होती है कि उसमें फैट की मात्रा काफ़ी होती है.

इसमें सैचुरेटेड फैट, मोनोसैचुरेटेड फैट और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड शामिल होते हैं.

कुछ वर्षों पहले तक नारियल के तेल को सेहत के लिहाज़ से सबसे अच्छा माना जाता था. कई लोगों ने तो इसे सुपरफूड घोषित कर दिया था.

कुछ लोगों का दावा था कि इस तेल के वसा के रूप में शरीर मे जमा होने की संभावना बेहद कम थी.

लेकिन, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च ने नारियल तेल को ‘विशुद्ध ज़हर’ क़रार दे दिया.

 

खाने का कौन-सा तेल सबसे सेहतमंद है?

 

सेहत की समस्याएं

इसकी वजह ये है कि इंसान का शरीर बहुत ज़्यादा फैट नहीं पचा सकता और अधिक फैट हमारे शरीर में जमा होने लगता है.

जो दिल की बीमारियां और ब्लड प्रेशर जैसी सेहत की समस्याएं पैदा करता है.

ब्रिटेन में सरकार की गाइडलाइन कहती है कि किसी पुरुष को दिन भर में तीस ग्राम और महिला को बीस ग्राम से अधिक तेल नहीं खाना चाहिए.

इसकी वजह भी समझिए. तेल में जो फैट होता है, वो फैटी एसिड के कणों से मिलकर बनता है.

ये फैटी एसिड या तो सिंगल बॉन्ड से जुड़े होते हैं, जिन्हें सैचुरेटेड फैट कहते हैं.

 

सरसों के खेत

 

ख़ून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा

या फिर डबल बॉन्ड से जुड़े होते हैं, जिन्हें अनसैचुरेटेड फैट कहते हैं. जो फैटी एसिड छोटी श्रृंखला में बंधे होते हैं, वो ख़ून में सीधे घुल जाते हैं.

और शरीर की एनर्जी की ज़रूरत पूरी करते हैं. लेकिन, लंबी चेन वाले फैटी एसिड सीधे लिवर में जाते हैं.

इससे हमारे ख़ून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है.

नारियल के तेल को लेकर हुई रिसर्च कहती है कि इससे हमारे शरीर में लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (LDL) की मात्रा बढ़ जाती है.

LDL का सीधा संबंध दिल के दौरे से पाया गया है.

हालांकि नारियल के तेल से हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (HDL) भी मिलती है, जो ख़ून से LDL को खींच लेती है.

 

फैटी एसिड और विटामिन

वर्जिनिया की जॉर्ज मैसन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर टेलर वॉलेस कहते हैं कि, ‘HDL में लॉरिक एसिड नाम का केमिकल होता है, जिसे C12 फैटी एसिड कहा जाता है. ये लॉन्ग चेन वाला फैटी एसिड होता है, जो लिवर में जमा हो जाता है. इससे स्वास्थ्य की दिक़्क़तें पैदा होती हैं.’

इसीलिए, जानकार कहते हैं कि जिस तेल में सैचुरेटेड फैट की मात्रा कम हो उसे खाना बेहतर होता है. और इसे भी कम मात्रा में ही खाना चाहिए.

पॉलीअनसैचुरेटेड फैट और ओमेगा-3,6 फैट वाले तेल खाना बेहतर होता है. इससे ख़ून में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है.

और शरीर को ज़रूरी फैटी एसिड और विटामिन मिल जाते हैं.

 

जैतून

दिल की बीमारियों की आशंका

पॉलीअनसैचुरेटेड और मोनोसैचुरेटेड फैट वाले फैटी एसिड कई तेलों में पाए जाते हैं. इनकी मात्रा पौधे और तेल निकालने की प्रक्रिया पर निर्भर करती है.

एक सर्वे में पाया गया है कि ऑलिव ऑयल का ज़्यादा इस्तेमाल दिल की बीमारियों की आशंका को पाँच से सात प्रतिशत तक कम कर देता है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टीएच चैन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ की वैज्ञानिक मार्टा गॉश फेरे ने 24 साल तक एक लाख लोगों पर एक स्टडी की.

उन्होंने पाया कि जो हर तरह के ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं, उनमें दिल की बीमारियों की आशंका 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है.

 

ऑलिव ऑयल

जैतून के तेल के फ़ायदों की बड़ी वजह उसमें पाए जाने वाले मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड हैं.

जिनमें विटामिन, मिनरल्स, पॉलीफेनॉल्स और पौधों में पाए जाने वाले दूसरे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं.

मार्टा कहती हैं कि ऑलिव आयल का इस्तेमाल करने से हमारे खाने से जुड़े अन्य नुक़सानदेह फैटी एसिड से भी छुटकारा मिलता है.

जैतून को फोड़ कर उनके गूदे से ऑलिव ऑयल को निकाला जाता है. इसे सबसे सेहतमंद तेल कहा जाता है.

जो हमारे पेट में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के लिए भी अच्छा होता है. इससे दिल की बीमारियां कम होने की बातें कही जाती हैं.

ऑलिव आयल खाने से कैंसर और डायबिटीज़ से बचाव के दावे भी किए जाते हैं.

 

खाद्य तेल

 

मेडिटेरेनियन डाइट का अटूट हिस्सा

स्पेन की वैलेंशिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फ्रांसिस्को बार्बा कहते हैं कि, ‘जैतून के तेल में मिलने वाले फैटी एसिड और दूसरे तत्व हमें असंक्रामक बीमारियों से भी बचाते हैं. क्योंकि इसमें वो तत्व होते हैं, जिनकी हमारे शरीर की ज़रूरत होती है.’

भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग ऑलिव ऑयल का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. इसे मेडिटेरेनियन डाइट का अटूट हिस्सा कहा जाता है.

और मेडिटेरेनियन डाइट को विश्व की सबसे हेल्दी डाइट माना जाता है.

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस डाइट के हेल्दी होने की सबसे बड़ी वजह, जैतून का तेल ही है.

लेकिन, मार्टा का कहना है कि, ‘दुनिया के दूसरे इलाक़ों के मुक़ाबले भूमध्य सागर के इर्द गिर्द के खान पान में नट्स हैं, फल हैं और सब्ज़ियों की मात्रा भी ज़्यादा होती है.’

तो, हेल्थ के पैमानों पर मेडिटेरेनियन डाइट के अच्छा साबित होने के पीछे केवल ऑलिव ऑयल नहीं, बल्कि पूरा खान-पान है.

 

खाने का कौन-सा तेल सबसे सेहतमंद है?

 

तेल कम मात्रा में खाना ही ठीक

रिसर्चरों ने पाया है कि अन्य क्षेत्रों के मुक़ाबले, भूमध्य सागरीय क्षेत्र की डाइट लेने से ख़ून में ग्लूकोज़ का लेवल कम होता है.

कुछ लोग ये दावा करते हैं कि एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल लेना और भी सेहतमंद है.

मगर, हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि भले ही इसमें एंटी ऑक्सिडेंट और विटामिन ई की मात्रा ज़्यादा हो. पर, ये बहुत कम तापमान पर गर्म हो जाता है. इससे इस तेल के कई पोषक तत्व गर्म करने पर नष्ट हो जाते हैं. तो, इसे कच्चा लेने पर ही सेहत को फ़ायदा होगा.

 

नारियल का तेल

 

2011 में यूरोपीय फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने ऑलिव ऑयल बनाने वालों को इस बात की इजाज़त दे दी थी कि वो इस तेल से ऑक्सिडेटिव तनाव कम करने का दावा कर सकते हैं. इसी तरह एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल को भी कम आंच पर गर्म करके पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.

हालांकि, तेल कोई भी हो, कम मात्रा में खाना ही ठीक होगा.

इस स्टोरी में वेस्टर्न डाइट और वहां के खान पान के रिसर्च को ही आधार बनाया गया है. भारत में लोग सरसों के तेल से लेकर मूंगफली और अलसी के तेल तक, खाना पकाने के लिए कई तरह के तेल इस्तेमाल करते हैं.

निष्कर्ष ये है कि आप तेल जो भी खाएं उसे बहुत अधिक न गर्म करें. बार-बार गर्म करके तेल को इस्तेमाल न करें. और संयमित होकर ही तेल का इस्तेमाल करें. यही सेहत के लिए अच्छा होगा.


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September 14, 20201min00

लंबे समय तक साथ रहने वाले कपल्स एक समय के बाद रिश्ते में पहले जैसा उत्साह नहीं महसूस करते हैं. खासतौर से सेक्स को लेकर पैशन बहुत कम हो जाता है. अब मनोवैज्ञानिकों ने इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की है. सैकड़ों लोगों पर की गई एक रिसर्च में कपल्स से पूछा गया कि उन्हें क्यों महसूस होता है कि उनके रोमांस में पहले वाला जोश नहीं रहा और उनकी सेक्स लाइफ अच्छी ना होने के पीछे क्या वजह है.

ये स्टडी इवोल्यूशनरी साइकोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी में वॉलंटियर्स से कई तरह के सवाल पूछे गए थे. इसमें से मनोवैज्ञानिकों को कुल 78 ऐसी वजहें पता चलीं जो कपल्स के यौन उत्साह को कम कर देती हैं. इनमें से सबसे पहली जो वजह है वो है उत्साह का खत्म हो जाना.

दूसरी जो सबसे बड़ी वजह समय की कमी पाई गई. इसके अलावा कई लोगों की शिकायत थी कि उनका पार्टनर हर समय उन पर नजर रखने की कोशिश करता है जिसकी वजह से वो एक तरह का दबाव महसूस करते हैं.

इस सूची में दसवें स्थान पर सेक्स के समय एक्स की याद आने का डर और पार्टनर से बोर होने जैसी वजहें थीं. स्टडी में कुछ लोग हर समय पार्टनर के साथ रहने वाले दोस्तों और रिश्तेदारों से भी परेशान पाए गए. पार्टनर के शराब पीने और जुआ खेलने जैसी आदतें भी सेक्स लाइफ को खराब करने की वजहें बताई गई हैं.

रिसर्च में मनोवैज्ञानिकों ने पाया कि शोध में पूछे गए प्रश्नों पर पुरुषों और महिलाओं की प्रतिक्रियाएं एक ही तरह की थीं, हालांकि ज्यादातर पुरूषों ने स्वीकार किया कि वो अपने रिश्ते को निभाने में या पार्टनर के प्रति वफादार रहने में असफल रहे. वहीं पुरुषों की तुलना में ज्यादातर महिलाओं ने ज्यादा देर तक काम करने को भी खराब सेक्स लाइफ की एक वजह बताया.

देर तक काम की वजह बताने वाले लोगों में पार्टनर के साथ सेक्स को लेकर तालमेल की कमी या असहमति जैसी बातें ज्यादा सामने आईं. इसके अलावा यौन इच्छा खत्म होने के पीछे पार्टनर का चरित्र और उसका बुरा बर्ताव जैसी वजहें भी सामने आईं हैं.

इस रिसर्च में सबसे हैरत की बात ये निकलकर आई कि धोखा मिलने की वजह से सेक्स ना करने की वजह सबसे नीचे पाई गई. यानी रिसर्च में ऐसे कपल्स की संख्या बहुत कम थी जिन्होंने पार्टनर से धोखा मिलने की वजह से सेक्स करना बंद कर दिया था.

ये रिसर्च साइप्रस के निकोसिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है. स्टडी के प्रमुख लेखक प्रोफेसर मेनेलेओस अपोस्टोलो The Mail को बताया, ‘रिश्तों में अंतरंगता होनी बहुत जरूरी है हालांकि कई लोगों को ऐसा करने में बहुत कठिनाई महसूस होती है. अंतरंगता की कमी की वजह से कई लोग भावनात्मक रूप से दर्द महसूस करते हैं.’


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September 12, 20201min00

Oxford University की Medical School and Nuffield Department of Primary Care Health Sciences ने एक खोज की है. इस रिसर्च के अनुसार, शहद को सर्दी-खांसी के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है.

हांलाकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब पश्चिमी देशों में भारतीय घरों में इस्तेमाल होने वाली कॉमन चीज़ों की खोज की गई है. इसके कुछ और उदाहरण भी हैं

 

1. घी 

अमेरिका की कई यूनिवर्सटीज़ द्वारा घी को सुपरफ़ूड बताया गया. रिसर्च में ये कहा गया कि घी में कई औषधीय गुण होते हैं, जो कि मक्खन का बेहतर विकल्प हैं.

 

2. नीम 

हिंदुस्तानियों के लिये नीम का इस्तेमाल आम बात है. नीम में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं, जिस वजह से ये इंसानों के लिये बहुत उपयोगी है. नीम की शुद्धता को लेकर रिसर्च में साबित किया गया.

 

3. हल्दी

2012 में The University of Texas चिकित्सीय लाभों के लिये ‘Turmeric’ को फ़ायदेमंद बताया. इस रिसर्च में ये भी साबित किया गया कि शारीरिक रूप से हल्दी के कई फ़ायदे हैं.

 

4. नारियल तेल 

सदियों से नारियल तेल का इस्तेमाल खाना पकाने और त्वचा की कोमलता के लिये किया जाता रहा है. 2015 में USA द्वारा की गई रिसर्च में नारियल तेल के कई फ़ायदे बताये गये.

 

5. शहद 

अदरक और शहद का सेवन सर्दी खांसी में आराम देता है. दादी-नानी सदियों से घेरलू उपचार में शहद का इस्तेमाल करती आई हैं. इसके अलावा BC Children’s Hospital, Canada द्वारा इसे साबित भी किया गया है.


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September 10, 20201min00

तुलसी के पत्ते, इसके रस और इसकी चाय को सही तरीके से इस्तेमाल में लाया जाए तो यह कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाने में मददगार हो सकता है.

 

तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए सामग्री

  1. तुलसी की 10-12 पत्तियां
  2. आधी लेमन ग्रास (हरे चाय की पत्ती)
  3. एक इंच अदरक का टुकड़ा (कद्दूकस कर लें)
  4. पानी 4 कप
  5. गुड़ 3 चम्मच या तीन छोटी डली

 

बनाने की विधि

– सबसे पहले तुलसी की पत्तियों और लेमनग्रास को अच्छी तरह धो लें.

– एक पैन में पानी डालकर मीडियम आंच पर उबलने के लिए रखें. – जब हलका गरम हो जाए तो इसमें तुलसी की पत्तियां, लेमन ग्रास और अदरक डालकर 4-5 मिनट तक उबालें.

– इसके बाद इसमें गुड़ डालकर आंच बंद कर दें. काढ़े को चम्मच से चलाते रहें ताकि गुड़ घुल जाए.

– 1-2 मिनट तक ठंडा होने के बाद कप में छानकर गर्मागर्म पीएं.

– आप चाहें तो तुलसी के काढ़े के में 2-3 कालीमिर्च भी डाल सकते हैं.

– अगर फ्लेवर चाहिए तो इसमें एक इलायची भी कूटकर डाल दें.

– लेमन ग्रास न मिले तो कोई बात नहीं. बिना इसके भी तुलसी का काढ़ा बना सकते हैं.


तुलसी का काढ़ा और इसकी पत्तियों के रस के फायदे

– बदलते मौसम की वजह से होने वाले सर्दी, जुकाम और गले में खराश से छुटकारा दिलाने में सबसे बढ़िया काम करता है यह तुलसी का काढ़ा.

– तुलसी के पत्ते के काढ़े में चुटकीभर सेंधा नमक मिलाकर पीने से फ्लू रोग जल्दी ठीक हो सकता है. वहीं हर्बल जानकार फ्लू के दौरान बुखार से ग्रस्त रोगी को तुलसी और सेंधा नमक लेने की सलाह देते हैं.

– पथरी निकालने में सबसे बेहतर है यह तुलसी का काढ़ा. यदि इस काढ़े में रोजाना एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित 6 महीने तक सेवन किया जाए तो पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल सकती है.

– देश के आदिवासी बहुल्य इलाकों में पानी को शुद्ध करने के लिए तुलसी के पत्ते का इस्तेमा बहुतायत में होता है. बर्तन में पानी भरकर इसमें तुलसी की पत्तियां डालकर एक-दो घंटे तक रख दिया जाता है. बाद में इसे छानकर पीया जाता है.

– बरसात और सर्दी के मौसम में त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसे में तुलसी की पत्तियों को त्वचा पर रगड़ने से संक्रमण खत्म हो सकता है. तुलसी में पाया जाने थाइमोल त्वचा रोगों में काफी राहत देता है.

जिन लोगों को दिल की बीमारी होती है उन्हें तुलसी का सेवन जरूर करना चाहिए. यह कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करती है. हार्ट अटैक के मरीजों को रोजाना तुलसी के रस का सेवन करना चाहिए. तुलसी और हल्दी के पानी का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है.

– चेहरे की चमक और रंगत बनाए रखने में तुलसी से बढ़िया कोई क्रीम नहीं हो सकती. तुलसी की पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलाकर रात को चेहरे पर लगाने से झाइयां खत्म हो जाती हैं. साथ ही चेहरे पर होने वाली फुंसियां भी खत्म हो जाती हैं.

– इसके नियमित सेवन से ‘क्रोनिक-माइग्रेन’ के निवारण में मदद मिलती है. प्रतिदिन में 4-5 बार तुलसी की 6-7 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने सकता है.

ऐसा माना जाता है कि आदिवासी लोग शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाते हैं इससे उस महिला को जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है.

– संतरे के छिलकों को सुखाकर पाउडर बना लें. फिर इसमें थोड़ा तुलसी का पानी और गुलाब जल मिलाकर शरीर पर लगाने से घमौरियों से तुरंत आराम मिल सकता है.


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August 31, 20201min00

यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछ लें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.

1. मुंह से बदबू आना.

2. दांत पीले पड़ने लगना.

3. रिसीडिंग गम्स. यानी मसूड़े पीछे की तरफ जाने लगते हैं. जैसे बालों के साथ होता है. आपके हेयरलाइन पीछे की तरफ जाने लगती है. नतीजा माथा चौड़ा होने लगता है. ठीक वैसे ही कुछ दांतों के साथ होता है. खैर.

4. चौथी प्रॉब्लम है कैविटीज़. यानी दांतों में गड्ढे.

5. टेढ़े दांत.

ये बहुत ही कॉमन ओरल प्रॉब्लम्स हैं. तो हमने सोचा क्यों न कुछ डेंटिस्टस से इन प्रॉब्लम्स के बारे में बात करें. तो सबसे पहले जानते हैं कि ये पांचों डेंटल प्रॉब्लम्स होती क्यों है.

 

क्यों आती है मुंह से बदबू?

-हमारे मुंह के अंदर कुछ माइक्रोऑर्गैनिस्म होते हैं. जब भी हम खाना खाते हैं तो उनकी एक्टिविटी बढ़ती है. वो कुछ एसिड रिलीज़ करते हैं. अगर हम दांतों की सफ़ाई ढंग से नहीं करते तो मुंह से बदबू आती है. हम जीभ को ढंग से साफ़ नहीं करते. दांतों के बीच में सफ़ाई नहीं करते.

-कुछ इंटरनल फैक्टर्स भी होते हैं मुंह से बदबू आने के. जैसे डाईजेस्टिव सिस्टम में प्रॉब्लम होना. किडनी डिजीज़. डायबिटीज़. प्रेग्नेंसी में भी कभी-कभी मुंह से बदबू आती है.

 

दांत पीले क्यों पड़ने लगते हैं?

-दांतों के पीला पड़ने की बड़ी वजहें चाय, कॉफ़ी, शराब और तंबाकू हैं. तंबाकू और शराब का सेवन तो वैसे भी हानिकारक है.’

 

हमारे मुंह के अंदर कुछ माइक्रोओर्गानिस्म होते हैं. जब भी हम खाना खाते हैं तो उनके एक्टिविटी बढ़ती है.

 

क्यों होते हैं रिसीडिंग गम्स?

– मसूड़ों के नीचे बैठने के कारण क्या होता है कि जब हम सफ़ाई नहीं करते तो मसूड़ों और दांतों के बीच में माइक्रोऑर्गेनिस्म की कॉलोनी इकट्ठी हो जाती हैं. ये वो बैक्टीरिया होते हैं जो हमारी बोन को डैमेज करते हैं. ब्लीडिंग होती है और धीरे-धीरे हमारा दांत निकल जाता है.

 

क्यों होती हैं कैविटीज़?

-कीड़े लगने का कारण शुगर-बेस्ड फ़ूड, एसिड-बेस्ड फ़ूड जो मुंह में बैक्टीरिया से एसिड रिलीज़ करवाते हैं. ये एसिड हमारे दांतों के आउटर मोस्ट लेयर को डैमेज करते हैं.

 

क्यों निकलते हैं टेढ़े दांत?

-टेढ़े-मेढ़े दांत बच्चों में अंगूठा चूसने के कारण, फीडर बोतल का ज़्यादा समय तक उपयोग करने के कारण होते हैं. एक ख़ास समय होता है बच्चों में जब दूध के दांत जो कि डेसीडूअस टीथ कहलाते हैं. ये छह साल की उम्र से लेकर 13 साल की उम्र तक चेंज होते हैं. परमानेंट टीथ आने के लिए. अब अगर वो दांत जल्दी निकल जाता है तो एक फ्री स्पेस मिलता है बराबर के दांतों को, वो उसे माइग्रेट करते हैं. ये तो हुई वजहें. अगर जड़ पता हो तो इलाज में आसानी रहती है. इसलिए उम्मीद है आपको काफ़ी मदद मिलेगी. चलिए अब जानते हैं इन प्रॉबलम्स के ट्रीटमेंट के बारे में.

 

मुंह से बदबू न आए इसका क्या इलाज है?

-इसका इलाज ये है कि आप मुंह की सफ़ाई करें, अच्छे से टंग को साफ़ करें, और शरीर में पानी और जिंक की कमी न होने दें

 

पीले दांतों से बचने के लिए क्या करें?

-गंदे दांत पान, तंबाकू, गुटखे के वजह से हो जाते हैं. या कुछ लोगों में जन्मजात होते हैं. डेंटल हाइपोप्लेसिया भी जिसे कह सकते हैं. या पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा की वजह से हो सकते है. दांतों की सफ़ाई रखें. अगर पान, गुटखे से दांत गंदे हुए हैं तो उनकी ब्लीचिंग करवा सकते हैं. अगर हाइपोप्लेसिया है तो आप उसपर विनीयेर्स या क्राउन लगवा सकते हैं.

 

रिसीडिंग गम्स का क्या तोड़ है?

-जो ब्रश आपके हार्ड हैं उसके बदले सॉफ्ट ब्रश ले लीजिए. और पायरिया का इलाज करवा सकते हैं. इलाज में गम सर्जरी करवा सकते हैं. ब्रशिंग का तरीका भी ठीक करें. लाइट फ़ोर्स के साथ ब्रश करें तो ये प्रॉब्लम ठीक हो जाएगी.

 

माइक्रोऑर्गैनिस्म हमारी बोन को डैमेज करते हैं. ब्लीडिंग होती है और धीरे-धीरे हमारा दांत निकल जाता है.

 

कैविटीज़ का क्या किया जाए?

-इसका इलाज ये है कि आप दांतों में प्लाक न जमने दें. सफ़ाई रखें. अच्छे से ब्रश करें. प्रॉपर ब्रशिंग टेक्निक सीखें. अगर छेद हो गया है तो उसकी फिलिंग करवा लें. अगर दर्द है या ज़्यादा छेद है तो रूट कैनाल ट्रीटमेंट करवा लें.

 

टेढ़े दांतों से कैसे पाएं छुटकारा?

-मिल्क टीथ की प्रॉपर देखभाल करें. उनका ख़याल रखें. डेंटिस्ट के पास जाएं और बच्चों का इलाज करवाएं. अगर टेढ़े-मेढ़े हो गए हैं. जुवेनाइल स्टेज में हैं तो उनको ब्रेसेस लगवाएं.

हमेशा की तरह इन बातों को लिख लीजिए. आपके बड़े काम आयेंगी एंड होपफुली आपको आपकी परेशानी से निजात भी दिलवाएंगी.


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August 29, 20201min00

बीते दिनों मेरे कई दोस्तों ने ये बात कही कि वो कुछ महीनों से पेट और सीने में जलन महसूस कर रहे हैं. उन्हें एसिडिटी बहुत ज्यादा हो रही है. क्या इसका लेना-देना लॉकडाउन से है? कोविड के चलते बाहर जाने का ज़्यादा कोई स्कोप है नहीं. अब इतने महीने घर में बंद रहने के कई नुकसान हैं. इनमें से एक है. आपके पेट की सेहत. वैसे घर पर रहना उतना बड़ा कारण नहीं है, घर पर रहना और एक्सरसाइज़ न करना इसका ज्यादा बड़ा कारण है. दूसरा, इस सिचुएशन में स्ट्रेस तो बढ़ा है. और उससे निपटने के लिए क्या आपने पेटपूजा का रास्ता चुना? क्योंकि ये गलती तो मुझसे भी हुई है. स्ट्रेस में आकर घर में जो कुछ खाने को मिल गया खा लिया. न वक़्त देखा. न इस बात पर ध्यान दिया कि पेट भी बचाओ बचाओ चिल्ला रहा है. और इसका नतीजा क्या? सीने में जलन और गंदी एसिडिटी.

 

कोरोना काल में क्यों ज़्यादा हो रही है एसिडिटी, सीने में जलन?

ये जानने के लिए हमने बात की डॉक्टर शंकर झंवर से. जानिए उन्होंने क्या बताया:

-एसिडिटी उन लक्षणों का समूह है जिसमें पेट के ऊपरी हिस्से में डिसकम्फर्ट होता है.

– हो सकता है पेट में जलन हो

– पेट फूला हुआ महसूस हो, डकारे आएं, या जी मचले

– अगर आपके पेट में इन्फेक्शन या छाले हों तो आपको एसिडिटी का एहसास हो सकता है

– खाने की नली और पेट के बीच वॉल्व ढीले होने से हार्ट बर्न होता है

– इसमें छाती के बीच जलन होती है या खट्टा पानी ऊपर आने का अहसास

 

पर ऐसा हो क्यों रहा है?

डॉक्टर झंवर ने बताया कि लॉकडाउन में बदली हुई लाइफ स्टाइल की वजह से ये चीज़ें बढ़ रही हैं. पहले दोपहर के खाने के बाद हम फौरन लेटते नहीं थे, ऑफिस में होते थे. वर्क फ्रॉम होम में हम खाने के तुरंत बाद लेट जाते हैं. ये एक वजह हो सकती है. इसके अलावाः

– हमारी शारीरिक सक्रियता कम है

– लॉकडाउन में स्ट्रेस है जिसकी वजह से भी एसिडिटी बढ़ रही है

-देर रात तक जागना, देर रात खाना खाना, कम सोना. सोने-जागने का समय बदलेगा तो एसिडिटी होगी ही.

-अत्यधिक तेल मसाले वाले खाने खाना

-अत्यधिक विटामिन सी खाने से भी एसिडिटी बढ़ती है

 

अब ये जानते हैं कि इससे निपटने के लिए क्या कर सकते हैं:

-मसाले और ज्यादा तेल वाला खाना अवॉइड करें.

– ज़्यादा चाय, कॉफ़ी का सेवन न करें.

 

अगर एसिडिटी की दिक्कत रहती है तो मसालेदार खाने से दूर ही रहिए.

 

-लंच और डिनर बिल्कुल स्किप न करें.

-खाना खाने के कम से कम 3 घंटे तक सोना नहीं चाहिए

-सोते समय सिर को 4 से 6 इंच शरीर से ऊपर रखकर सोइए

-पेनकिलर और स्टेरॉयड एसिडिटी बढ़ाती हैं

-एक्सरसाइज करिए

-शराब, तंबाकू से बचिए

-एंग्जायटी और स्ट्रेस से भी एसिडिटी होती है

बढ़िया. तो ये ट्रिक्स ज़रूर ट्राई करिए. बहुत हेल्प मिलेगी.


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August 21, 20201min00

अब हुआ क्या कि कल मम्मी से बात हुई. बताने लगीं कि पापा से महायुद्ध चल रहा है. हमने पूछा क्यों? तो बोलीं आम को लेकर. और मुझे पूरा यकीन है ये कलेश अकेले हमारे घर में नहीं होता. दरअसल पापा को है डायबिटीज. पर पापा का पहला प्यार है आम. मम्मी को डर है कि लो जी आम खा रहे हैं शुगर बढ़ जाएगी. वैसे आम को लेकर ये डर बहुत आम है. बेचारे डायबिटीज वालों की नाक के नीचे से छीन लिया जाता है. तो क्या वाकई डायबिटीज वालों को आम नहीं खाना चाहिए?

सबसे पहले तो डायबिटीज का थोड़ा सिर-पैर समझ लेते हैं.

 

ये डायबिटीज आख़िर होता क्या है?

डायबिटीज बोले तो हाई ब्लड शुगर. हमारे शरीर में एक हॉर्मोन होता है. इंसुलिन नाम का. बड़े काम का होता है. इसका काम होता है आपके खून से शुगर चुराकर आपके सेल्स में पहुंचाना. एक बार ये शुगर वहां पहुंच गई. सेल्स इन्हें अपने पास जमा कर लेते हैं. एक बैंक की तरह. यहां ये शुगर तब्दील होती है एनर्जी में. ये जो आप रोज़ दिन भर ऑफिस का काम कर पाते हैं. चल-फिर पाते हैं. आजकल दिन भर बर्तन धो पाते हैं. सब इस एनर्जी की बदौलत. अब डायबिटीज में शरीर इंसुलिन हॉर्मोन नहीं बना पता. अगर बनता भी है तो उसे सही तरह इस्तेमाल नहीं कर पता. नतीजा सारी शुगर आपके खून में जमा हो जाती हैं. इसीलिए कहते हैं कि जी फलां-फलां को हाई ब्लड शुगर है. अब हाई ब्लड शुगर होने का नुकसान क्या है? जवाब है इसका असर पड़ता है आपकी आंखों, किडनी, तंत्रिकाओं यानी नर्व्स पर. कुल-मिलाकर ये आपके शरीर के कई अंगो को नुकसान पहुंचाता है.

अब आप पूछेगें ये शुगर आख़िर आई कहां से? तो ये जो आप मिठाईयां, पराठे, चावल बड़े चाव से खाते हैं न. वहां से. ज़्यादातर खाना जो हम खाते हैं उसमें शुगर होती है.

 

अब मुद्दा ये कि अगर आपको डायबिटीज है तो आप कौन से फल खा सकते हैं?

हमने बात कि डॉक्टर रितेश गुप्ता से और हनी खन्ना से. उन्होंने बताया:

• डायबिटीज में शुगर सेल के अंदर नहीं जा पाती. क्योंकि इंसुलिन होता नहीं है या कम असर करता है.

• डायबिटीज में ज़्यादातर फल खा सकते हैं. आम भी खा सकते हैं, लेकिन लिमिटेड मात्रा में.

• तरबूज़, खरबूज़, पपीता तो खा ही सकते हैं.

• एक आम का आधा हिस्सा आप खा सकते हैं.

 

अब जानिए हनी टंडन जो कि एक डायटीशियन हैं, उन्होंने क्या बताया:

• डायबिटीज में आपके ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ जाती है. वजह है असंतुलित खाना और लाइफस्टाइल.

• आप जो भी खाते-पीते हैं वो शरीर में जाकर ग्लूकोस में बदल जाता है.

• इससे आपके सेल्स को काम करने की ऊर्जा मिलती है.

• असंतुलन के कारण ये सेल्स उस ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं.

• नतीजा शुगर की मात्रा बढ़ जाती है.

• डायबिटीज के मरीज़ हर तरह का फल खा सकते हैं. लेकिन लिमिटेड मात्रा में.

• पर खाने के साथ फल न खाएं.

• स्नैक टाइम में, या दो मील्स के बीच में फल खाएं. आम भी खा सकते हैं लेकिन एक फांक.

तो डायबिटीज वालों, अगली बार कोई आम आपसे छीने तो उसे ये बात ज़रूर बता देना!



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