इंडिया टुडे ग्रुप ने कार्वी के साथ मिलकर एक सर्वे किया है जिसमें भारत के अंदरूनी मामलों के साथ-साथ सरकार के लिए गए फैसलों पर भी सवाल पूछे गए. सर्वे का नाम है ‘मूड ऑफ़ द नेशन’. ये सर्वे साल में दो बार कराया जाता है. सर्वे के कुछ सवाल और उनपर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार रही:
सबसे ज्यादा भ्रष्ट कौन?
सर्वे में भारत में भ्रष्टाचार पर सवाल पूछा गया. सवाल था कि देश में सबसे भ्रष्ट कौन है?
पहले तीन जवाब थे नेता, पुलिस और अफसर. 12,166 लोगों पर किए गए सर्वे में करीब 48 फीसदी ने नेताओं को सबसे ज्यादा भ्रष्ट बताया. 23 फीसदी ने पुलिस और 7 फीसदी ने अफसरों को भ्रष्ट कहा. अगस्त 2018 में किए गए सर्वे में भी पुलिस और नेताओं को लगभग इतने ही लोगों ने भ्रष्ट बताया था लेकिन इस बार अफसरों को करीब 6 फीसदी ज्यादा लोगों ने भ्रष्ट कहा.
उत्तर और दक्षिण भारत में नेता और पुलिस के भ्रष्ट होने में भी काफी अंतर देखा गया. दक्षिण भारत में 58 फीसदी लोग नेताओं को भ्रष्ट मानते हैं और केवल 11 फीसदी पुलिस को भ्रष्ट मानते हैं. जबकि उत्तर भारत में ये स्थिति एक दम उलट है. उत्तर में 37 फीसदी ने नेताओं और 33 फीसदी ने पुलिस को सबसे ज्यादा भ्रष्ट माना. सर्वे में देश के किसी भी हिस्से में पुलिस भ्रष्ट होने के मामले में नेताओं को ओवरटेक नहीं कर सकी है.
नोटबंदी कितनी फायदेमंद?
दूसरा सवाल था नोटबंदी पर. क्या नोटबंदी ने आम जनता को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है?
सर्वे बेस में से करीब 72 फीसदी ने कहा कि नोटबंदी से उन्हें नुकसान हुआ है. अगस्त 2018 के सर्वे में भी 73 फीसदी लोगों ने नोटबंदी को लोगों के नुकसान में बताया था.
क्या जीएसटी से नुकसान हुआ?
नोटबंदी के साथ-साथ जीएसटी पर भी सवाल किया गया. सवाल था कि व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को जीएसटी से फायदा हुआ या नहीं?जवाब में 40 फीसदी लोगों का मानना था कि उन्हें जीएसटी से व्यक्तिगत स्तर पर नुकसान हुआ.
अगस्त 2018 में हुए सर्वे में भी 39 फीसदी लोगों ने जीएसटी को खुद के लिए अच्छा नहीं कहा था. देश में एक भी ऐसा व्यवसाय नहीं है जिससे जुड़े लोगों ने जीएसटी को फायदे का सौदा बताया हो.
पटेल की मूर्ति बननी चाहिए थी कि नहीं बननी चाहिए थी?
सरकार ने 3000 करोड़ रुपये खर्च करके सरदार पटेल की भव्य मूर्ति बनाई है. लोगों से सवाल किया गया कि क्या ये मूर्ति बनाई जानी चाहिए थी या नहीं?
50 फीसदी लोगों ने सरकार के फैसले को गैरज़रूरी बताया. बाकी बचे 50 फीसदी में से भी केवल 38 फीसदी सरकार के इस फैसले के पक्ष में थे. 12 फीसदी लोग अभी भी तय नहीं कर पा रहे हैं.
सीबीआई पर भरोसा है कि नहीं?
लोगों से सीबीआई के बारे में भी सवाल किया गया. पूछा गया कि क्या आपको अभी भी सीबीआई पर उतना ही भरोसा है जितना पहले था?
इसके जवाब में करीब 43 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें सीबीआई पर कभी भरोसा नहीं था या अब कम हो गया है. 41 फीसदी मानते हैं कि सीबीआई पर उनका भरोसा बढ़ा है.
आरबीआई की आज़ादी छिन गई है?
सीबीआई के साथ-साथ एक दूसरी संस्था आरबीआई के बारे में लोगों से पूछा गया कि क्या एनडीए सरकार के साथ हालिया विवाद के बाद आरबीआई को अपनी संप्रभुता से समझौता करना पड़ा है?
43 फीसदी लोगों ने इसका जवाब हां में दिया है. 34 फीसदी मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है. जबकि 23 फीसदी अभी तक तय नहीं कर पाए हैं.
कर्ज मिलने में आसानी है क्या?
सर्वे में लोगों से कर्ज मिलने की आसानी पर भी सवाल किया गया. पूछा गया कि क्या उन्हें उन्हें पर्सनल और बिज़नस की ज़रूरतों के लिए स्थानीय बैंकों से उचित ब्याज दर पर कर्ज मिल जाता है?
करीब 40 फीसदी लोगों ने इसका जवाब ना में दिया. 22 फीसदी ऐसे थे जिन्होंने कभी लोन के लिए अप्लाई ही नहीं किया और 31 फीसदी ऐसे भी थे जिन्हें लगता है कि उन्हें सही ब्याज दर पर कर्ज मिल जाता है. लोन मिलने में सबसे ज्यादा दिक्कत बेरोजगारों, किसानों और व्यापारियों को आती है.
सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं?
लोगों से पूछा गया कि क्या उन्हें सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं मिल रही हैं मसलन गैस सब्सिडी, विधवा पेंशन, टॉयलेट और घर बनाने के लिए पैसे आदि.
सरकारी सुविधाएं मिलने के सवाल पर 51 फीसदी लोगों ने ‘हां’ में जवाब दिया. 34 फीसदी लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रहीं. सर्वे के मुताबिक गांव की बजाय शहरों में लोगों को सरकारी सुविधा लेने में ज्यादा आसानी रहती है.
दुनिया में कम ही लोग कुछ मज़ेदार पढ़ने के शौक़ीन हैं। आप भी पढ़ें। हमारे Facebook Page को Like करें – www.facebook.com/iamfeedy