EVM को लेकर ये नया बवंडर क्या है?

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आम चुनाव से पहले इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन EVM का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है. 21 राजनीतिक दलों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने आयोग से एक सीनियर अफसर नियुक्त करने के लिए कहा है. मामले में अगली सुनवाई 25 मार्च को होगी. विपक्षी दलों की मांग है कि लोकसभा चुनावों के नतीजों से पहले EVM के 50 फीसदी वोटों का मिलान VVPAT की पर्चियों से किया जाए. याचिका करने वाले दलों का कहना है कि EVM पर संदेह है. इसलिए चुनाव आयोग को ऐसे निर्देश दिए जाएं कि 50 फीसदी वोटों का मिलान वीवीपैट पर्चियों से किया जाए. EVM, VVPAT, 50 फीसदी वोटों का मिलान का ये कौन सा जाल है? इस पूरे मसले को कुछ सवालों के जरिए समझते हैं आसान भाषा में.

सवाल-1- इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी EVM क्या है?

आसान भाषा में कहें तो वोट डालने की मशीन. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यूं तो कभी विवादों से मुक्त नहीं रही. पर चुनाव आयोग ने हमेशा इसे सुरक्षित और सही बताया. ईवीएम के दो हिस्से होते हैं. एक हिस्सा होता है बैलेट यूनिट. जो कि मतदाताओं के लिए होता है. दूसरा होता है कंट्रोल यूनिट. जो कि पोलिंग अफ़सरों के लिए होता है. EVM के दोंनो हिस्से एक पांच मीटर लंबे तार से जुड़े रहते हैं. बैलेट यूनिट के नाम से ही जाहिर होता है कि इसी यूनिट के जरिए वोट डाला जाता है.

21 राजनीतिक दलों की याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. सांकेतिक तस्वीर.

सवाल-2- कैसे काम करती है EVM?
EVM इस तरह से बनाई गई है कि बिना पढ़े-लिखे वोटर भी चुनाव निशान के आगे लगे बटन को दबा कर वोट डाल सकें. EVM में अंतिम बटन ‘नोटा’ या ‘ऊपर दिए नामों में से को कोई नहीं’ का होता है. कंट्रोल यूनिट में वोट दर्ज होते हैं. ईवीएम का ये हिस्सा पोलिंग ऑफ़िसर के पास रहता है. किसी भी वोटर के वोट देने से पहले पोलिंग अफ़सर बैलट बटन दबाकर मशीन को वोट दर्ज़ करने के लिए तैयार करता है. हर बैलट बटन के पास एक स्पीकर भी होता है. जो हर वोट के सही ढ़ंग से दर्ज होने के बाद तेज़ आवाज़ करता है.

सवाल-3-ये VVPAT मशीन क्या होती है?
VVPAT यानी वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स एक तरह की मशीन ही होती है. जिसे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ जोड़ा जाता है. जैसे ही कोई ईवीएम पर वोट डालने की बटन दबाता है, वीवीपैट मशीन से एक पर्ची निकलकर आ जाती है. इसमें ये दर्ज रहता है कि वोटर ने किस उम्मीदवार और किस चुनाव निशान को वोट दिया है. ये इंतजाम इसलिए किया गया है ताकि ये पता चल सके कि वोट देने वाले को पता रहे कि उसका वोट सही जगह पड़ा है. इसे भेल ने साल 2013 में तैयार किया था. इसका पहली बार इस्तेमाल 2013 में नगालैंड के विधानसभा चुनाव में किया गया था. अभी चुनाव नतीजों के दौरान एक विधानसभा सीट पर एक ईवीएम के मतों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाता है. अब राजनीतिक दलों का कहना है कि इस दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

VVPAT मशीन को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ जोड़ा जाता है. फाइल फोटो.

सवाल-4-ये राजनीतिक दल क्या चाहते हैं?
अब ये राजनीतिक दल चाहते हैं कि VVPAT की पर्चियों का ईवीएम में दर्ज मतों से वेरिफिकेशन किया जाए. इससे चुनाव और ईवीएम को लेकर लोगों के मन में जो संदेह पैदा होता है, उसे खत्म किया जा सकेगा. इसी को लेकर 21 राजनीतिक दलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी.

सवाल-5-कौन से राजनीतिक दल हैं, जो चाहते हैं ईवीएम के वोटों को मिलान किया जाए?
याचिका दाखिल करने वाले नेताओं में एनसीपी के शरद पवार, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ. ब्रायन, लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव, सपा के अखिलेश यादव और बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा के नाम हैं. इनके अलावा द्रमुक के एमके स्टालिन, सीपीएम के टीके रंगराजन, राजद के मनोज कुमार झा और नेशनल कान्फ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला के नाम भी इस याचिका से जुड़े हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एसएस रेड्डी, जेडीएस के दानिश अली, रालोद के अजीत सिंह, एआईडीयूएफ के मोहम्मद बदरुद्दीन अजमल के नाम भी इस याचिका में हैं. याचिकाकर्ताओं में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और अरविंद केजरीवाल (आप) भी शामिल हैं.

सवाल-6-नेताओं की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने अभी चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया. बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस बाबत कोर्ट की सहायता के लिए चुनाव आयोग से एक वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च को होगी.

सवाल-7-विपक्षी दल ईवीएम पर क्यों सवाल खड़े कर रहे?
विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर बीते कई महीनों से अभियान चला रहे हैं. 4 फरवरी, 2019 को चुनाव आयोग को लिखे पत्र में विपक्षी पार्टियों ने ऐसी ही गुजारिश की थी. इस दौरान मांग की गई थी कि ऐसे चुनाव क्षेत्र में जहां जीत-हार का अंतर 5 फीसदी या इससे कम हो, वहां ईवीएम और वीपीपैट की पर्चियों का मिलान जरूरी किया जाए. विपक्षी दल दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ क्षेत्रों में मतों का मिलान न होने का मसला भी उठा रहे हैं. ये दल साल 2014 में जबसे मोदी सरकार बनी है तब से आरोप लगाते आ रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी अपने पक्ष में ईवीएम से छेड़छाड़ कर रही है. ये बात और है कि चुनाव आयोग हमेशा कहता रहा है कि ईवीएम की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग नहीं की जा सकती है.




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