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adminFebruary 22, 20231min00

प्रसिद्ध मलयालम अभिनेत्री सुबी सुरेश का आज 22 फरवरी २०२३ को सुबह 10 बजे लीवर फेल होने के कारण निधन हो गया। सुरेश ने वर्ष 2006 में एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म उद्योग में अपनी शुरुआत की और बाद में विभिन्न मलयालम फिल्मों में दिखाई दिए। उन्होंने टेलीविजन धारावाहिकों में भी काम किया था और वर्ष 2008 में सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार के लिए केरल राज्य फिल्म पुरस्कार जीता था।
अभिनेत्री को 28 जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और लीवर से संबंधित बीमारियों का इलाज चल रहा था। पिछले कुछ दिनों में उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ गई थी, और उन्हें आगे के इलाज के लिए गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में स्थानांतरित कर दिया गया था। दुर्भाग्य से, मेडिकल टीम के बेहतरीन प्रयासों के बावजूद, उसे बचाया नहीं जा सका और आज उनकी मृत्यु हो गई।
उनके असामयिक निधन की खबर ने फिल्म उद्योग में उनके प्रशंसकों और सहयोगियों को झकझोर कर रख दिया है, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदना व्यक्त की है। उनमें से कई ने उनके अभिनय कौशल की सराहना की और उन्हें एक प्रतिभाशाली और मेहनती कलाकार के रूप में याद किया। फिल्म उद्योग ने एक होनहार अभिनेत्री को खो दिया है, और उनके प्रशंसक उन्हें बहुत याद करेंगे।
अंत में, सुबी सुरेश का आकस्मिक निधन मलयालम फिल्म उद्योग के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके आगे उनका उज्ज्वल भविष्य था और फिल्म उद्योग में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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adminJuly 12, 20211min00

गुरु पूर्णिमा को भारत में बहुत ही श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा पुण्य फलदायी होती है। परंतु हिंदी पंचांग का चौथा माह आषाढ़, जिसके पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। व्यास जी को प्रथम गुरु की भी उपाधि दी जाती है क्योंकि गुरु व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व इस वजह से मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं पूजा-विधि और गुरु पूर्णिमा के महत्व के बारे में।

शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- शुक्रवार 23 जुलाई को सुबह 10:34 बजे
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त- शनिवार 24 जुलाई को सुबह 08:06 बजे

पूजा विधि
प्रातःकाल सुबह-सुबह घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। किसी साफ सुथरे जगह पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यासजी, शुक्रदेवजी, शंकराचार्यजी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा का महत्व
भारतीय सभ्यता में गुरुओं का विशेष महत्व है। भगवान की प्राप्ति का मार्ग गुरु के बताए मार्ग से ही संभव होता है क्योंकि एक गुरु ही है, जो अपने शिष्य को गलत मार्ग पर जाने से रोकते हैं और सही मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस वजह से गुरुओं के सम्मान में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?
भारत में गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने का इतिहास काफी प्राचीन है। जब पहले के समय में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली हुआ करती थी तो इसका महत्व और भी ज्यादे था। शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के समतुल्य बताया गया है, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में गुरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर कई अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कारण तथा सारी मान्यताएं प्रचलित है, परंतु इन सभी का अर्थ एक ही है यानी गुरु के महत्व को बताना।

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता
ऐसा माना जाता है कि यह पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन आज से लगभग 3000 ई. पूर्व हुआ था और क्योंकि उनके द्वारा ही वेद, उपनिषद और पुराणों की रचना की गयी है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का यह दिन उनकी समृति में भी मनाया जाता है। सनातन संस्कृति में गुरु सदैव ही पूजनीय रहें है और कई बार तो भगवान ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि गुरु स्वंय ईश्वर से भी बढ़कर है। एक बच्चे को जन्म भले ही उसके माता-पिता देते है लेकिन उसे शिक्षा प्रदान करके समर्थ और शिक्षित उसके गुरु ही बनाते हैं। पुराणों में ब्रम्हा को गुरु कहा गया है क्योंकि वह जीवों का सृजन करते हैं उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्यों का सृजन करते हैं। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने सप्तिर्षियों को योग विद्या सिखायी थी, जिससे वह आदि योगी और आदिगुरु के नाम से भी जाने जाने लगे।

बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
कई बार लोग सोचते है भारत तथा अन्य कई देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा गुरु पूर्णिमा का पर्व क्यों मनाया जाता है। इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है क्योंकि आषाढ़ माह के शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध ने वर्तमान में वाराणसी के सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश दिया था। यहीं पांच भिक्षु आगे चलकर ‘पंच भद्रवर्गीय भिक्षु’ कहलाये और महात्मा बुद्ध का यह प्रथम उपदेश धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना गया। यह वह दिन था, जब महात्मा बुद्ध ने गुरु बनकर अपने ज्ञान से संसार प्रकाशित करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का पर्व इतने धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
हिंदू तथा बौद्ध धर्म के साथ ही जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस दिन को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा को लेकर यह मत प्रचलित है कि इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने गांधार राज्य के गौतम स्वामी को अपना प्रथम शिष्य बनाया था। जिससे वह ‘त्रिनोक गुहा’ के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ होता है प्रथम गुरु। यही कारण है कि जैन धर्म में इस दिन को त्रिनोक गुहा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

आदियोगी शिवजी की कथा
गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने को लेकर जो दूसरा मत प्रचलित है, वह योग साधना और योग विद्या से संबंधित है। जिसके अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव आदि गुरु बने थे, जिसका अर्थ प्रथम गुरु होता है। यह कथा कुछ इस प्रकार से है- आज से लगभग 15000 वर्ष पहले हिमालय के उपरी क्षेत्र में एक योगी का उदय हुआ। जिसके विषय में किसी को कुछ भी ज्ञात नही था, यह योगी कोई और नही स्वयं भगवान शिव थे। इस साधरण से दिखने वाले योगी का तेज और व्यक्तित्व असाधारण था। उस महान व्यक्ति को देखने से उसमें जीवन का कोई लक्षण नही दिखाई देता था। लेकिन कभी-कभी उनके आँखों से परमानंद के अश्रु अवश्य बहा करते थे। लोगो को इस बात का कोई कारण समझ नही आता था और वह थककर धीरे-धीरे उस स्थान से जाने लगे, लेकिन सात दृढ़ निश्चयी लोग रुके रहे। जब भगवान शिव ने अपनी आंखे खोली तो उन सात लोगों ने जानना चाहा, उन्हें क्या हुआ था तथा स्वयं भी वह परमानंद अनुभव करना चाहा लेकिन भगवान शिव ने उनकी बात पर ध्यान नही दिया और कहा कि अभी वे इस अनुभव के लिए परिपक्व नही है। हालांकि इसके साथ उन्होंने उन सात लोगो को इस साधना के तैयारी के कुछ तरीके बताये और फिर से ध्यान मग्न हो गये। इस प्रकार से कई दिन तथा वर्ष बीत गये लेकिन भगवान शिव ने उन सात लोगों पर कोई ध्यान नही दिया। 84 वर्ष की घोर साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति में दक्षिणायन के समय जब योगीरुपी भगवान शिव ने उन्हें देखा तो पाया कि अब वह सातों व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति के लिये पूर्ण रुप से तैयार है तथा उन्हें ज्ञान देने में अब और विलंब नही किया जा सकता था। अगले पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने इनका गुरु बनना स्वीकार किया और इसके पश्चात शिवजी दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गये और इन सातों व्यक्तियों को योग विज्ञान की शिक्षा प्रदान की, यही सातों व्यक्ति आगे चलकर सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध हुए। यही कारण है कि भगवान शिव को आदियोगी या आदिगुरु भी कहा जाता है।

पूर्णिमा पर क्या करेंं व क्या न करें…
भोजन : इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। जैसे मांस, मटन, चिकन या मसालेदार भोजन, लहसुन, प्याज आदि।

शराब : इस दिन किसी भी हालत में आप शराब ना पिएं क्योंकि इस दिन शराब का दिमाग पर बहुत गहरा असर होता है। इससे शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं।

क्रोध : इस दिन क्रोध नहीं करना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।

भावना : जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। अत: भावनाओं में बहें नहीं खुद पर नियंत्रण रखकर व्रत करें।

स्वच्छ जल : चांद का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। अत: इस दिन जल की मात्रा और उसकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।

अन्य सावधानियां : इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखें। यदि इस दिन उपवास नहीं रख रहे हैं तो इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करें तो ज्यादा बेहतर होगा। इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें।

शिष्य धर्म इस प्रकार है:

  • सदैव अपने गुरु की आज्ञा मानना
  • गुरु से उनका ज्ञान सीखने की पूरी कोशिश और उन्हें सहयोग देना।
  • गुरु की विपत्ति के समय रक्षा करना।
  • गुरु के सम्मान का सदैव ध्यान रखना, कभी उनके सामने उदंडता नही दिखानी, गुरु के सामने अपने ज्ञान का घमंड नही करना, गुरु का नाम लेने से पहले कानो को हाथ लगाना।
  • गुरु की पत्नी, कन्या, पुत्र को अपना परिवार का समझना, गुरु पुत्र को अपना भाई, गुरु कन्या को अपनी बहन, और गुरु माता को अपनी माता समान समझ कर व्यवहार करना।

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adminJune 26, 20211min00

कितनी अजीब और सोचने वाली बात है कि एक नौं साल का छोटा बच्चा एक विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर पढा रहा है,जहाँ पर लोगो के प्रोफेसर बनने में सालो लग जाते हैं वही वह छोटा बच्चा मात्र नौ साल की उम्र मे प्रोफेसर बन गया है। हुजूर माफी हो ऐसे जीनीयस शख्स को छोटा कहना बहुत गलत है.. इन जनाब का नाम है soborno Isaac bari प्यार से 21 वीं शताब्दी के आंइस्टीन कहे जाते है। और आज की छोटी जीवनी इन्हीं जनाब के ऊपर आधारित है।

बतौर इंटरनेट soborno bari बंग्लादेश के निवासी है, इनका जन्म 9 april 2012 को बंग्लादेश मे हुआ था। इनके पिता का नाम राशिदुल अधिकारी है जो कि पेशे से mathematician है,माता पिता साहिदा बारी है और वे ग्रहणी है।

Soborno के पिता बताते हैं कि soborno जब मात्र छह माह के ही थे तभी से बोलने लगे थे और दो साल के पूरे होने से तीसरी साल की शुरुआत में soborno Isaac bari physics और मैथ के equation हल करने मे सक्षम हो गए थे,

उनकी इस जबरदस्त प्रतिभा को देखते हुए soborno को उनके माता पिता उन्हें अमेरिका लेकर चले गए जहाँ पर soborno ने voice of America talent show मे हिस्सा लिया जहां इनकी अपार बौद्धिक क्षमता के आधार पर इन्हें महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन के नाम की पदवी मिली जिससे इनका नाम soborno Isaac bari हो गया।

Soborno ने अपनी पढाई न्यू यॉर्क स्कूल से पूरी की और फिलहाल इनको youngest professor internationally का तमगा मिला हुआ है।

जैसा कि मैने पहले ही बताया ये मात्र नौ साल के है और फिजिक्स के तो मानो मास्टर है। इनकी मातृभाषा as usual बंगाली है। soborno Issac bari की नेटवर्थ $3 मिलियन – $5 मिलियन के करीब है इनको global child prodigy award भी मिल चुका है यह अवार्ड दुनियाभर में टैलेंट को तवज्जो देता है जिसमे writing,painting,music, social work,आदि में।


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adminJune 26, 20211min00

क्‍या स्‍प्राउट्स को कच्‍चा खाना चाह‍िए? अंकुर‍ित मूंग या स्‍प्राउट्स के फायदों के बारे में हम सब जानते हैं पर इसे कच्‍चा खाने से कई समस्‍याएं हो सकती हैं जैसे- पेट में दर्द, पेट में ऐंठन, उल्‍टी, डायर‍िया आद‍ि। कच्‍चे स्‍प्राउट्स का सेवन करने से पहले आपको अपने डॉक्‍टर से सलाह जरूरी लेनी चाह‍िए। अगर आप स्‍प्राउट्स का सेवन कर रहे हैं तो कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाह‍िए जैसे स्‍प्राउट्स को फ्र‍िज में स्‍टोर करें, स्‍प्राउट्स को धोकर खाएं, केवल कुरकुरे स्‍प्राउट्स ही खरीदें। अगर स्‍प्राउट्स का रंग काला हो या उनसे स्‍मेल आ रही हो तो स्‍प्राउट्स का इस्‍तेमाल न करें।

कच्‍चे स्‍प्राउट्स के सेवन से क्‍यों बचना चाह‍िए?
अंकुर‍ित मूंग को गरम और ह्यूम‍िड तापमान म‍िलने के कारण उसमें बैक्‍टीर‍िया पनप जाते हैं इसल‍िए उन्‍हें कच्‍चा खाने की सलाह नहीं दी जाती है और हर चीज के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं इसल‍िए हम स्‍प्राउट्स से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। अकैडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स के शोध के मुताब‍िक स्‍प्राउट्स में नमी के कारण ई कोली, ल‍िस्‍टेर‍िया जैसे बैक्‍टीर‍िया मौजूद होते हैं और ये हमारे शरीर में बीमारी फैलाने का काम करते हैं। स्‍प्राउट्स में मौजूद साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया, टायफाइड का कारण बन सकता है। लिस्टीरिया बैक्‍टीर‍िया से क‍िडनी से जुड़ी समस्‍या हो सकती है वहीं ई कोली बैक्‍टीर‍िया से यूटीआई का खतरा रहता है।

स्‍प्राउट्स को पौष्‍ट‍िक से होने वाले नुकसान
अगर आप ज्‍यादा स्‍प्राउट्स खा लेंगे तो आपके पेट में दर्द हो सकता है। कच्‍चे स्‍प्राउट्स खाने से डायर‍िया हो सकता है। डॉ स्‍म‍िता सिंह ने बताया क‍ि कच्‍चे स्‍प्राउट्स खाने से कुछ लोग पेट में ऐंठन की श‍िकायत करते हैं। ज्‍यादा अंकुर‍ित मूंग खाने से उल्‍टी की समस्‍या हो सकती है। गैस्ट्रिक अल्सर के मरीज हैं तो आपको डॉक्‍टर से सलाह लेकर ही स्‍प्राउट्स का सेवन करना चाह‍िए। कुछ डॉक्‍टर्स मानते हैं क‍ि स्‍प्राउट्स खाने से फूड पॉइजन‍िंग हो सकती है। स्‍प्राउट्स खाने से फूड पॉइजन‍िंग होने पर आपको 12 से 72 घंटे में आपको डायर‍िया, पेट दर्द, उल्‍टी की श‍िकायत हो सकती है। छोटे बच्‍चे, गर्भवती मह‍िलाओं और बूढ़े लोगों को स्‍प्राउट्स को अच्‍छी तरह से पकाकर ही खाना चाह‍िए, अन्‍यथा अवॉइड करें।

स्‍प्राउट्स खाते समय कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाह‍िए
अगर आप मूंग स्‍प्राउट्स खा रहे हैं तो उसे अच्‍छी तरह से पका लें, ताक‍ि अंदर कोई बैक्‍टीर‍िया मौजूद न रहे। आपको ऐसे स्‍प्राउट्स नहीं खाने चाह‍िए जो द‍िखने में काले हों या ज‍िनसे स्‍मेल आ रही हो। कुरकुरे द‍िखने वाले स्‍प्राउट्स के दानों को खाने के ल‍िए चुनें। स्‍प्राउट्स का इस्‍तेमाल करने से पहले आपको हमेशा अपने हाथों को अच्‍छी तरह से साफ करना है ताक‍ि बैक्‍टीर‍िया आपके हाथों पर न च‍िपके। फ्र‍िज के तापमान पर रखे हुए स्‍प्राउट्स की बाजार से खरीदें और उन्‍हें लाकर भी आप फ्र‍िज में रख दें। स्‍प्राउट्स को खरीदकर ज्‍यादा समय के ल‍िए न रखें, इन्‍हें धोकर उबाल लें और जल्‍दी इस्‍तेमाल कर लें। स्‍प्राउट्स रखने के ल‍िए फ्र‍िज का तापमान 48 ड‍िग्री या 8 ड‍िग्री सेल्‍श‍ियस होना चाह‍िए। अगर स्‍प्राउट्स कुरकुरे न हों या उनकी एक्‍सपायरी डेट करीब हो तो उसे न खाएं।


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adminJune 26, 20211min00

हिन्दी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी व्रत होता है। इस वर्ष योगिनी एकादशी व्रत 05 जुलाई 2021 दिन सोमवार को पड़ रहा है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। उनको अक्षत्, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, पीली मिठाई, पंचामृत आदि अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग पूजा के समय योगिनी एकादशी व्रत की कथा का श्रवण भी करते हैं और भगवान विष्णु की आरती करते हैं। आइए जानते हैं योगिनी एकादशी ​तिथि, पारण समय और व्रत के महत्व के बारे में।

योगिनी एकादशी 2021 ति​थि
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 04 जुलाई दिन रविवार को शाम को 07 बजकर 55 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 05 जुलाई को रात 10 बजकर 30 मिनट पर होगा। एकादशी की उदया तिथि 05 जुलाई को प्राप्त हो रही है, इसलिए योगिनी एकादशी व्रत 05 जुलाई को रखा जाएगा।

योगिनी एकादशी 2021 पारण समय
जो लोग योगिनी एकादशी का व्रत रहेंगे, उनको अगले दिन 06 जुलाई मंगलवार को पारण करना है। उस दिन प्रात:काल 05 बजकर 29 मिनट से सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक पारण कर लेना है। पारण में इस बात का ध्यान रहे कि द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व तक पारण कर लें। द्वादशी तिथि का समापन 06 जुलाई को देर रात 01 बजकर 02 मिनट पर हो रहा है।

योगिनी एकादशी व्रत के नियम व पूजा विधि:-

  • योगिनी एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि को प्रातःकाल के बाद पूरा होता है।
  • यह व्रत करने से एक दिन पहले ही इसके नियम शुरू हो जाते हैं।
  • दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत रखने वाले व्यक्ति को तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।
  • दशमी तिथि की रात्रि से ही नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • एकादशी व्रत के दिन भी भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए व चावल का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।
  • योगिनी एकादशी व्रत के दिन प्रात:काल जल्दी उठे।
  • स्नान आदि कार्यो को करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद कलश स्थापना की करें, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें और उनकी पूजा करें और भोग लगायें। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। भगवान् विष्‍णु की पूजा करते समय तुलसी के पत्तों को अवश्‍य रखें। तुलसी के पत्ते एकादशी के दिन कभी नहीं तोड़ना चाहिए इसलिए पत्तों को दशमी के दिन ही तोड़ कर रख लें। इसके बाद धूप जलाकर श्री भगवान् विष्‍णु की आरती उतारें इसके बाद पीपल के पेड़ की पूजा करें।
  • योगिनी एकादशी की व्रत कथा अवश्य सुनें व घर में सब को सुनाये क्योंकि सुनने मात्र से भी इसका फल मिलता है।
  • इस दिन दान कार्य करना अति कल्याणकारी होता है। और पीपल के पेड़ की पूजा भी अवश्य करनी चाहिये।
  • व्रत की रात्रि में जागरण करें।
  • व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को प्रात:काल दान कार्यो को करें इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें। तब व्रत समाप्त होता है।
  • जो लोग यह व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन भोजन में चावल नहीं लेना चाहिए और जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद सदा बना रहता है।

योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, योगिनी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को कुष्ठ रोग या कोढ़ से मुक्ति मिलती है। योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को जीवन में सुख,समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। हमारे देश में इस व्रत का बहुत महत्त्व है। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने का फल, 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। तथा यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को इसका पुण्य अवश्य मिलता है। पद्म पुराण में बताया गया कि जो भी व्यक्ति योगिनी एकादशी के दिन अनुष्ठान का पालन करता है उसका स्वास्थ्य अच्छा होता है, तथा वह समृद्धि को प्राप्त करता है, और एक सुखी जीवन व्यतीत करता है। योगिनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसके सभी पाप भगवान् विष्णु की कृपा से नष्ट होते हैं और मनुष्य को मरने बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

योगिनी एकादशी की व्रत कथा

यह बात महाभारत के समय की है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से सभी एकादशियों के व्रत का महिमा सुन रहे थे। जब आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी की बारी आई तो युधिष्ठिर ने भगवान् से पूछा की हे भगवन इस एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा की हे राजन यह एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस धरती पर जो भी व्यक्ति इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है और प्रभु की पूजा करता है उसके सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं। तथा अंत काल में उसे मोक्ष प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी का उपवास तीनों लोकों में बहुत प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के बारे थोड़ा विस्तार से बताइये। तब भगवान श्री कृष्ण कहा की पुराणों में एक कथा प्रचलित है वही तुम्हें सुनाता हूँ। इसे ध्यानपूर्वक सुनना। स्वर्गलोक के अलकापुरी नगर में कुबेर नामक एक राजा था। वह भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर परिस्थिति में भगवान् शिव की नियमित पूजा किया करता था। हेम नामक एक माली था जो राजा के लिए फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज राजा को पूजा से पहले फूल देकर आता था। एक दिन हेम ने फूल तोड़ने के बाद सोचा कि अभी तो पूजा करने में काफी समय है, और अपनी पत्नी के साथ घूमने लगा। इधर, कुबेर हेम की प्रतीक्षा कर रहा था। पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प नहीं पहुंचने की वजह से व्याकुल हो रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं आया तो राजा कुबेर को क्रोध आया और उसने अपने सैनिकों से हेम को लाने को कहा जब हेम राजा के समक्ष पहुँचा तो राजा ने क्रोधवश हेम को पत्नी वियोग का श्राप दे दिया। और साथ ही, उसे कोढ़ (कूबड़) ग्रस्त होकर धरती पर विचरण का श्राप भी दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली दुखी था वह कई वर्षों तक धरती पर इधर-उधर भटकता रहा। एक दिन संयोगवश वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि के पूछने पर हेम ने उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। और ऋषि ने हेम को कहा की आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। यदि तुम इस व्रत को पुरे विधि-विधान, और श्रद्धा भाव से करोगे तो तुम्हें इस श्राप से मुक्ति अवश्य मिलेगी। हेम ने बहुत ही श्रद्धा पूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से हेम माली को श्राप से मुक्ति मिली तथा उसका कोढ़ समाप्त हो गया और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा। उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।


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adminJune 23, 20211min00

सनातन धर्म में पूर्णिमा तथा अमावस्या की तिथि का विशेष महत्व होता है। हिंदी पंचांग के प्रत्येक माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा की होती है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, अतः इस दिन पूजा एवं व्रत करना शुभ फलदायी होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार पूर्णिमा की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विधान है। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 24 जून को पड़ रही है।इस दिन साल 2021 का आखिरी सुपरमून दिखेगा। इस बार की ज्येष्ठ पूर्णिमा पर विशेष संयोग बन रहा है। हिंदी पंचाग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि 24 जून, दिन गुरुवार को पड़ रही है। गुरुवार या बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होने के कारण ज्येष्ठ पूर्णिमा विशेष फलदायी है। इसके अतिरिक्त ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन सूर्य,मिथुन राशि में तथा चंद्रमा के वृश्चिक राशि में होने के कारण विशिष्ट संयोग का निर्माण हो रहा है। पूर्णिमा की तिथि 24 जून को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ हो कर 25 जून को रात्रि 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी। पूर्णिमा का व्रत 24 जून को रखा जाएगा तथा पारण 25 जून को होगा। शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान विष्णु को समर्पित करते हुए व्रत एवं पूजन करने का विधान है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना विशेष रूप से फलदायी होता है। परन्तु कोरोना महामारी के कारण नदियों में जा कर स्नान करना संभव न हो, तो नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर नहाने से भी गंगा स्नान का पुण्य मिलता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्थान सात विशेष पूर्णिमा में आता है इस दिन भगवान विष्णु का व्रत करने से सभी कष्ट एवं संकट समाप्त होते हैं तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।


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adminJune 23, 20211min00

सेहत के लिए ड्राई फ्रूट्स खाना काफी फायदेमंद साबित होता है। सेहत के लिहाज से शहद और किशमिश को स्वस्थ आहार माना गया है। इन दोनों का सेवन एक साथ करने से शरीर को मिलने वाले फायदे दुगने हो जाते हैं। इन दोनों में ही कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं। इससे आपकी शरीर में होने वाले कैंसर की भी आशंका काफी कम हो जाती है। यही नहीं इनका सेवन एक साथ करने से शारीरिक कमजोरी दूर होने के साथ ही शरीर का दुबलापन भी दूर होता है। यह आपके ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के साथ ही आपकी हड्डियों के लिए भी किसी औषधि से कम नहीं है। इनका सेवन पुरुषों की सेक्शुअल समस्याएं दूर करने के लिए भी काफी कारगर माना जाता है। किशमिश आपकी शरीर में आयरन की मात्रा को भी पूरा करता है। चलिए जानते हैं किशमिश और शहद साथ में खाने से होने वाले कुछ फायदों के बारे में।

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करे
ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए किशमिश और शहद दोनों को ही काफी फायदेमंद माना जाता है। इन दोनों में ही पोटैशियम की मात्रा पाई जाती है। आप जितना पोटैशियम खाते हैं उतना ही सोडियम आप यूरीन के जरिए निकालते हैं। पोटैशियम आपके ब्लड वेसल्स में तनाव को कम करता है, जिससे आपका ब्लड प्रेशर कम होता है। साथ ही शहद में एंटी ऑक्सीडेंट्स की मात्रा भी पाई जाती है, जो आपका ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में सहाय क माने जाते हैं।

आयरन लेवल बढ़ाए
किशमिश आयरन का बहुत अच्छा स्त्रोत है। साथ ही इसमें कॉपर, विटामिन बी 6, मैगनीशियम और पोटैशियम की मात्रा पाई जाती है, जो खून बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती है। वहीं बात करें अगर शहद की तो इसमें आयरन, कॉपर और मैंगनीज पाया जाता है। जो आपका हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मददगार होता है। इसलिए किशमिश और शहद एक साथ खाने से आपको एनीमिया का खतरा कम होता है। इससे आपकी शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है।

हड्डियों के लिए अच्छा
किशमिश और शहद साथ में खाने से आपकी हड्डियों से जुड़ी समस्याएं भी दूर हो सकती हैं। किशमिश में एक अलग तरह का कैल्शियम पाया जाता है, यह दूध में पाए जाने वाले कैल्शियम से अलग होता है इसका नाम बोरोन है। यह बोन हेल्थ बढ़ाने में काफी मददगार होता है। इससे ओस्टियोपोरोसिस के खतरे को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। वहीं शहद खाने से एनर्जी मिलने के साथ ही शरीर की थकान भी दूर होती है। शहद और किशमिश एक साथ खाने से आपकी शारीरिक कमजोरी काफी हद तक कम हो जाती है।

वजन बढ़ाने में मददगार
वजन बढ़ाने के लिए किशमिश और शहद का सेवन साथ में करना एक बेहतर विकल्प है। किशमिश में अधिक मात्रा में कैलोरी होती है, जो वजन बढ़ाने में मददगार होती हैं। वहीं शहद में भी शुगर की अधिक मात्रा पाई जाती है, जिससे आपकी भूख बढ़ती है और धीरे-धीरे वजन में भी वृद्धि होती है। 100 ग्राम किशमिश में लगभग 250 से 300 कैलोरी पाई जाती है। किशमिश और शहद साथ में खाने से आप कुछ ही समय में अपने दुबले शरीर को एक आकर्षक लुक दे सकते हैं।

कमजोरी दूर करे
अगर आप शरीर में कमजोरी महसूस करते हैं तो किशमिश और शहद का सेवन कर सकते हैं। इनका सेवन साथ में करने से आपकी शारीरिक कमजोरी आसानी से दूर हो सकती है। शहद में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं, जो आपको इंसटेंट एनर्जी प्रदान करता है। वहीं किशमिश में ग्लूकोज और प्राकृतिक फ्रुक्टोज पाया जाता है, जिसका सेवन आपको सारा दिन उर्जावान बनाए रखने में मदद करता है। इसलिए आप कमजोरी दूर करने के लिए इसका सेवन रोजाना भी कर सकते हैं।

प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम करे
केवल किशमिश ही नहीं बल्कि शहद में भी कैंसर रोधी मौजूद होते हैं, जो पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को काफी हद तक कम करते हैं। इसपर हुए एक शोध की मानें तो किशमिश के साथ शहद का सेवन करने से प्रोस्टेट कैंसर से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है। इसलिए आप भी चिकित्सक की सलाहनुसार इनका सेवन कर सकते हैं।

कैसे करें सेवन

  • किशमिश और शहद को खाने के लिए आपको कुछ खास मेहनत करने की जरूरत नहीं है।
  • सबसे पहले किशमिश को अच्छे से साफ कर लें। आप चाहें तो भीगे हुए किशमिश का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • इनकी मात्रा के लिए आप किसी डायटीशियन से सलाह ले सकते हैं।
  • इसे खाने के लिए आप किसी बर्तन में जरूरत के अनुसार शहद लें और इसमें किशमिश डाल दें।
  • अब इसे अच्छे से मिला लें। यह दोनों अपने आप में पोषक तत्वों से समृद्ध हैं, इसलिए इसमें कुछ अलग से मिलाने की आवश्यकता नहीं है।
  • अब आप इसका सेवन कर सकते हैं।

किशमिश और शहद का सेवन साथ में करने से आप कई समस्याओं से राहत पा सकते हैं। अगर आप इसका सेवन प्रोस्टेट कैंसर या किसी गंभीर बीमारी से बचने के लिए कर रहे हैं तो एक बार चिकित्सक की सलाह जरूर लें।


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adminJune 22, 20211min00

दुनिया में पैसा सब कमाते हैं लेकिन कुछ लोग ज्यादा कमाते तो कुछ लोग कम कमाते हैं। कई लोगों के साथ होता है कि बहुत पैसा कमाने के बाद भी घर में उनके पैसा नहीं होता है। पैसा बहुत कमाने के बाद भी पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती है। पैसों में वस्तुशास्त्र भी वजह होती है। बता दें कि घर में कुछ गलतियों की वजह से भी धन की हानि होती है और घर का माहौल खराब होने लगता है।

इन गलतियों की वजह से घर में नकारात्मकता का वास हो जाता है, जिस वजह से तरक्की में रुकावट आ जाती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में बंद घड़ी की वजह से नकारात्मकता आती है। घर में बंद पड़ी घड़ी नहीं रखनी चाहिए। अगर आपके घर में भी बंद पड़ी घड़ी है तो उसे तुरंत ठीक करवा लें या घर से बाहर कर दें।

• घर में सूखे पौधे होने की वजह से
• घर में पानी की बर्बाद न होने दें
• घर में साफ- सफाई का ध्यान रखें


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adminFebruary 8, 20211min00

आपने नाख़ून रगड़ने के बारे में ज़रूर सुन रखा होगा. मेट्रो में, बस में, शॉपिंग मॉल में कई लोगों को भी आपने अपने नाख़ून रगड़ते हुए देखा होगा. हो सकता है आप भी उन लोगों में से हों जो ऐसा करते हैं. आपने साथ में ये भी सुना होगा कि ऐसा करने से बाल काले होते हैं मज़बूत होते हैं और बालों का झड़ना कम होता है. हां, ये सच है और इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. आइये आपको बताते हैं कैसे काम करता है ये.

एक्यूप्रेशर के बारे में आपने ज़रूर सुना है. एक्यूप्रेशर के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पूरा शरीर जुड़ा हुआ है. शरीर के एक हिस्से में दबाव डालने से दूसरे हिस्से में प्रभाव पड़ता है. शरीर में कुल ऐसे एक हजार ऐसे बिंदु हैं, इनको एक्यूप्वाइंट कहा जाता है.

चाइनीज़ एक्यूप्रेशर की माने तो हमारी उंगलियों की नसें खोपड़ी से जुड़ी हुई होती है. जब नाख़ून को रगड़ा जाता है तो उंगलियों की नसें खोपड़ी की नसों में दबाव डालती हैं. जिससे रक्त का प्रवाह तेज़ हो जाता है जिससे बाल मज़बूत होते हैं और बालों का झड़ना रुकता है. यह बालों को काला बने रखने में मदद करता है.

हालांकि इसका असर तुरंत दिखना नहीं शुरू होगा. इसके लिए आपको कम से कम 3-6 महीनों का समय देना होगा. इसकी मदद से बालों से सम्बंधित और भी परेशानियां जैसे बालों में डैंड्रफ होने जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिल सकता है.

योग में भी इस बात का ज़िक्र है. इसे बालायाम यानी बालों का व्यायाम कहा जाता है. अगर आपको डायबिटीज़, हृदय रोग है या आप गर्भवती महिला हैं तो इसे करने से आपको बचना चाहिए क्योंकि यह रक्तचाप को बढ़ा सकता है. ये आपको दिन भर नहीं करना है. आप इसे  दिन में 5-10 मिनट ही करेंगे तो भी बहुत होगा.

अब बस रोज़ाना 5-10 मिनट तक करिये बालायाम और बनाइये अपने बालों को मज़बूत.


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adminFebruary 8, 20211min00

“असफलता सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है,” यह कथन कभी भी गलत नहीं हो सकता। ऐसे उदाहरण हैं जहां लोग कई बार असफल हुए हैं, केवल कड़ी मेहनत करने और सफलता प्राप्त करने के लिए।

आईआरएस अधिकारी रोहित मेहरा का जीवन अलग नहीं रहा है। “द ग्रीन मैन ऑफ इंडिया” जिनकी स्थिरता के मिशन ने भारत में लाखों लोगों को प्रेरित किया है, वास्तव में वे ग्रेड 12 परीक्षा में असफल रहे। हालांकि, उन्होंने दृढ़ता से काम किया और न केवल अपनी बोर्ड परीक्षाओं को पास करने के लिए, बल्कि 2004 में सिविल सेवाओं को भी पास किया। कई वर्षों तक एक सिविल सेवक के रूप में काम करने के बाद, रोहित ने अपने जीवन के एक हिस्से को स्थिरता और पर्यावरण के लिए काम करने का निर्णय लिया।

“मैं समाज में बदलाव लाना चाहता था। मेरा विजन है कि प्रतिक्रिया करने के बजाय, हमें कार्य करने की आवश्यकता है। अगर मुझे कुछ गलत दिखाई देता है, तो मैं एक बदलाव करना चाहता हूं, “आईआरएस अधिकारी कहते हैं, जिन्हे “द ग्रीन मैन ऑफ इंडिया” भी कहा जाता है।

रोहित कहते हैं कि बचपन में, उनके दादाजी ने उन्हें पौधे उगाने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उन्होंने बहुत रुचि के साथ गतिविधि नहीं की। 2016 में, रोहित के बेटे ने उन्हें बताया कि “प्रदूषण” की वजह से उनका स्कूल से एक दिन का अवकाश था। वे लुधियाना में रह रहे थे, जिसके पास उस समय बहुत अधिक AQI था। रोहित यह जानकर हैरान रह गये कि माता-पिता के रूप में, वह अपने बच्चे के लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चित नहीं कर सकते। “मुझे पता था कि इसे तुरंत ठीक करने की जरूरत है और इस पर काम करना शुरू कर दिया है।”

अपने परिवार के साथ रोहित मेहरा अपनी पत्नी गीतांजलि और अपने बच्चों की मदद से, उन्होंने लुधियाना, अमृतसर, बड़ौदा, दिल्ली, कोलकाता सहित अन्य शहरों को विकसित करने के लिए पांच अलग-अलग परियोजनाओं पर काम करना शुरू कर दिया और उन्हें रहने के लिए हरियाली वाली जगहें बना दीं।

केवल 4.5 वर्षों में, रोहित ने प्लास्टिक की बोतलों के साथ वर्टिकल गार्डन बनाए, डंप यार्ड में हरे-भरे जंगलों का निर्माण किया, और ‘ग्रीन मैन ऑफ इंडिया’ के रूप में सही नाम कमाया। रोहित के प्रयासों को मुख्य रूप से उनकी पत्नी और बच्चों, और अन्य जो समर्थन में विश्वास करते हैं, द्वारा समर्थित हैं। जब भी वह किसी स्थान पर जाते हैं, तो वह लोगों को अपने हरे मिशन के लिए योगदान करने के लिए और उन्हें अपने “हरे दोस्त” बनाकर परिवर्तित करने का प्रबंधन करते हैं, जिससे देने और प्राप्त करने का एक चक्र बनता है।

 

सुंदरता और सुरक्षा के लिए वर्टिकल गार्डन

पहली परियोजनाओं में से एक रोहित ने दो प्रमुख चिंताओं को संबोधित किया – स्वच्छ हवा और प्लास्टिक मुक्त वातावरण की आवश्यकता। और इसके लिए, उन्होंने एक उत्कृष्ट संसाधन के रूप में एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक की बोतलों को पाया।

रोहित कहते हैं, “हमने विभिन्न पौधों के लिए प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल कंटेनर के रूप में किया और देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग 500 वर्टिकल गार्डन बनाए।” वास्तव में, लुधियाना के ऋषि नगर में आयकर विभाग के परिसर में एक वर्टिकल गार्डन को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा देश में सबसे बड़ा माना गया था। वर्टिकल गार्डन में लगभग 17,000 प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया गया है।

प्लास्टिक की बोतलों को स्कूल के छात्रों, स्क्रैप डीलरों और अन्य स्थानों से इकट्ठा किया जाता है। “हम छात्रों से अपने घरों से कम से कम दो प्लास्टिक की बोतलें लाने के लिए कहते हैं। इसलिए, 300 छात्र हमें 600 बोतलें दे सकते हैं।”

उन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में, रेलवे स्टेशनों, पुलिस स्टेशनों, न्यायिक परिसरों और यहां तक कि कुछ आईआईटी – इन सभी को पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक की बोतलों से बनाया है। पंजाब के स्थानों के अलावा, रोहित के बगीचे पूरी दिल्ली, गुरुग्राम, सूरत, वडोदरा, जम्मू, मुंबई, कोलकाता और ओडिशा के कुछ हिस्सों में भी हैं। इन सभी परियोजनाओं को निशुल्क किया गया है। रोहित अपने प्रयासों को धरती माता को वापस देने का एक तरीका मानते हैं।

 

हर जगह सीड बॉल

रोहित ने “सीड बॉल” की अवधारणा भी पेश की है – इसके विकास के लिए पोषण से समृद्ध मिट्टी में लिपटे हुए बीज बनाए जाते हैं। जहां कहीं भी खाली स्थान उपलब्ध हो, वहां इन्हें फेंक दिया जाता है ताकि वे पौधों में अंकुरित हो सकें।

रोहित और उनके परिवार ने उन्हें लंगर, रथयात्राओं और कई कार्यक्रमों में वितरित किया है। रोहित कहते हैं, ‘हम टोल प्लाजा पर खड़े होते थे, इन सीड बॉल को मुफ्त में बांटते थे और लोगों को पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित करते थे।’

 

अच्छे के लिए सोशल मीडिया

“कई संपर्कों वाले व्यक्ति के रूप में, मुझे कहना होगा कि मुझे दैनिक आधार पर कुछ ‘सुप्रभात संदेश’ प्राप्त होते हैं। इन संदेशों को साफ करते हुए काफी थकाऊ है, इसने मुझे एक विचार दिया, ” रोहित कहते हैं। “मैंने हर उस व्यक्ति से पूछा, जो सुबह मुझसे पांच पेड़ लगाने की कामना करता है, और मुझे इसके साथ एक तस्वीर भेजता है।

130 अजीब लोगों में से कम से कम 92 ने अनुपालन किया और वास्तव में पेड़ लगाए।“, वह कहते हैं जब भी कोई उन्हें तस्वीर भेजता, वह उसे अपने सोशल मीडिया हैंडल पर अपलोड करते हैं और उन्हें टैग करते हैं। इसे देखकर, अधिक लोगों ने पेड़ लगाने के बाद तस्वीरें साझा करना शुरू कर दिया। रोहित का कहना है कि इस गतिविधि में अब तक लगभग एक हजार लोग लगे हुए हैं, जिनमें एक बुजुर्ग व्यक्ति भी शामिल है, जो 76 वर्ष की आयु में भी एक महान कार्य में भाग लेना चाहते थे।

 

जंगलों का निर्माण

रोहित और उनकी टीम ने डंप यार्ड्स को खाली करने और उन्हें वृक्षयर्वेद, या ‘प्लांट लाइफ के विज्ञान’ का उपयोग करके हरे-भरे जंगलों में बदलने का फैसला किया। प्रक्रिया में पौधों का पोषण शामिल है और किसी भी रसायनों के उपयोग के बिना पौधों के रोगों के नियंत्रण की अनुमति देता है। उन्होंने खाली और अनुपयोगी भूखंडों को भी जंगलों में बदल दिया।

रोहित कहते हैं, “इस पहल को शुरू करने के एक साल के भीतर, हमने देखा कि पेड़ 17 फीट से अधिक की ऊंचाई तक बढ़ते हैं। वास्तव में, आप इससे गुजर भी नहीं सकते। यह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) जैसे संगठनों के ध्यान में आया, जिन्होंने मुझे एक अन्य परियोजना के लिए सवार किया। हम बुद्ध नाला नदी को एक और हरे जंगल में परिवर्तित कर रहे हैं।” (बुद्ध नाला नदी पंजाब के मालवा क्षेत्र से होकर बहती है और कहा जाता है कि यह देश के सबसे जहरीले पानी में से एक है।

एनजीटी ने सफाई का जिम्मा लिया है और स्थायी समाधान के लिए अनुरोध किया है।) चार वर्षों की अवधि में, रोहित ने 83 से अधिक ऐसे जंगलों का निर्माण किया है, जिनमें से कम से कम अमृतसर, लुधियाना, कोलकाता, बड़ौदा, जगराओं और मुल्लानपुर में 50 हरे रंग की क्यारियाँ हैं।



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