बच्चों को फेसबुक, इंस्टा से दूर रखने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया?

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आपने तमाम ऐसे छोटे बच्चे देखे होंगे, जो फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर एक्टिव रहते हैं. कुछ भी पोस्ट करते रहते हैं. कुछ को तो इतनी भी समझ नहीं होती कि उनकी पोस्ट की गई किस इन्फॉर्मेशन के जरिए उन्हें निशाना बनाया जा सकता है. साइबर अपराधी ऐसे बच्चों को आसानी से शिकार बना लेते हैं. उन्हें डरा-धमकाकर ऐसे-ऐसे काम करा लेते हैं, जो बच्चों के लिए ही नहीं, उनके पैरंट्स के लिए भी मुसीबत बन जाते हैं. ऐसे ही केसों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है. मांग की गई है कि नाबालिगों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबंदियों का खाका तैयार किया जाए. ये पाबंदियां ऐसी हों, जो वाकई कारगर हों.

 

याचिका में कहा गया है कि भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए मिनिमम उम्र का कोई कानून नहीं है.

 

ये याचिका हाल में चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के सामने आई. अदालत ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है. इस याचिका में कहा गया है कि भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए मिनिमम उम्र का कोई कानून नहीं है. इस वजह से सोशल मीडिया पर नाबालिगों की पहुंच बढ़ी है. इसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाया जाए. यूजर्स के प्रोफाइल को वेरिफाई किया जाए. सोशल मीडिया से आपत्तिजनक कंटेंट हटाने का भी निर्देश दिया जाए.

सोशल मीडिया रेग्युलेट करने का कानून नहीं

भारतीय कानून के मुताबिक, जिस व्यक्ति की उम्र 18 साल पूरी हो चुकी है, वह बालिग कहलाएगा, और 18 साल से कम के बच्चे नाबालिग. लेकिन सोशल मीडिया यूज करने के लिए उम्र का कोई कानून नहीं है. भारत के उलट अमेरिका जैसे देशों में चिल्ड्रेंस ऑनलाइन प्राइवेसी एक्ट है, जिसके तहत 13 साल से कम उम्र के बच्चों से जुड़ी जानकारियां इकट्ठा करते समय उनके पैरंट्स की सहमति ली जाती है. हालांकि फेसबुक ने अकाउंट खोलने वालों के लिए 13 साल या उससे ज्यादा उम्र वालों की सीमा तय कर रखी है. लेकिन अक्सर बच्चे इस नियम को बाईपास करके अकाउंट खोल लेते हैं. छोटी उम्र में बहुत से बच्चों को प्राइवेसी जैसी बातों की जानकारी नहीं होती. और वे ऑनलाइन शोषण, साइबर गुंडागर्दी, धमकी, वसूली और बाल अपराधों के भी शिकार हो जाते हैं.

 

छोटी उम्र में बहुत से बच्चों को प्राइवेसी जैसी बातों की जानकारी नहीं होती जिससे खतरा और बढ़ जाता है.

 

बॉम्बे हाई कोर्ट के वकील दीपक डोंगरे कहते हैं,

भारत में सोशल मीडिया को रेग्युलेट करने के लिए वैसे तो साल 2000 में इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट बना है. इसके साथ सोशल मीडिया से जुड़े अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 में भी सजा के प्रावधान हैं. लेकिन सोशल मीडिया को रेग्युलेट करने और इसके उपयोग को लेकर कोई अलग से कानून नहीं है.

आईटी एक्ट क्या कहता है?

#IT Act, 2000 के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति के डिजिटल डॉक्यूमेंट्स के साथ छेड़छाड़ की जाती है तो धारा-65 के तहत 3 साल जेल और 2 लाख रुपए जुर्माना हो सकता है.

#अगर कोई इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी या बच्चों के अश्लील चित्र या वीडियो अपलोड करता है तो इसी कानून की धारा-64B के तहत 3 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है.

#किसी दूसरे के नाम से अकाउंट बनाना और उसका फोटो इस्तेमाल करना भी गैरकानूनी है. ऐसा करने पर धारा-66C के तहत 3 साल जेल और 5 लाख तक जुर्माना भरना पड़ सकता है.

#किसी दूसरे के अकाउंट के साथ छेड़छाड़ करना और उसका अकाउंट हैक करना IT Act की धारा-67 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. 3 साल तक की जेल हो सकती है.

IPC में कितनी सजा का प्रावधान है?.

अगर कोई संस्था या व्यक्ति किसी भी तरह की गलत खबर या आपत्तिजनक समाचार दिखाकर अशांति फैलाता है तो उसे IPC, 1860 की धारा-468 और 469 के तहत 7 साल जेल और जुर्माना हो सकता है. कोई अगर जानबूझकर किसी धर्म के बारे में आपत्तिजनक बातें सोशल मीडिया पर फैलाता है तो धारा-295A के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है. दोषी पाए जाने पर 3 साल की जेल हो सकती है.




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