सक्सेस स्टोरी

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adminJune 26, 20211min00

कितनी अजीब और सोचने वाली बात है कि एक नौं साल का छोटा बच्चा एक विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर पढा रहा है,जहाँ पर लोगो के प्रोफेसर बनने में सालो लग जाते हैं वही वह छोटा बच्चा मात्र नौ साल की उम्र मे प्रोफेसर बन गया है। हुजूर माफी हो ऐसे जीनीयस शख्स को छोटा कहना बहुत गलत है.. इन जनाब का नाम है soborno Isaac bari प्यार से 21 वीं शताब्दी के आंइस्टीन कहे जाते है। और आज की छोटी जीवनी इन्हीं जनाब के ऊपर आधारित है।

बतौर इंटरनेट soborno bari बंग्लादेश के निवासी है, इनका जन्म 9 april 2012 को बंग्लादेश मे हुआ था। इनके पिता का नाम राशिदुल अधिकारी है जो कि पेशे से mathematician है,माता पिता साहिदा बारी है और वे ग्रहणी है।

Soborno के पिता बताते हैं कि soborno जब मात्र छह माह के ही थे तभी से बोलने लगे थे और दो साल के पूरे होने से तीसरी साल की शुरुआत में soborno Isaac bari physics और मैथ के equation हल करने मे सक्षम हो गए थे,

उनकी इस जबरदस्त प्रतिभा को देखते हुए soborno को उनके माता पिता उन्हें अमेरिका लेकर चले गए जहाँ पर soborno ने voice of America talent show मे हिस्सा लिया जहां इनकी अपार बौद्धिक क्षमता के आधार पर इन्हें महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन के नाम की पदवी मिली जिससे इनका नाम soborno Isaac bari हो गया।

Soborno ने अपनी पढाई न्यू यॉर्क स्कूल से पूरी की और फिलहाल इनको youngest professor internationally का तमगा मिला हुआ है।

जैसा कि मैने पहले ही बताया ये मात्र नौ साल के है और फिजिक्स के तो मानो मास्टर है। इनकी मातृभाषा as usual बंगाली है। soborno Issac bari की नेटवर्थ $3 मिलियन – $5 मिलियन के करीब है इनको global child prodigy award भी मिल चुका है यह अवार्ड दुनियाभर में टैलेंट को तवज्जो देता है जिसमे writing,painting,music, social work,आदि में।


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February 3, 20211min00

विकिपीडिया (Wikipedia), दुनिया का सबसे बड़ा वॉलेंटियर-मेड ऑनलाइन एनसाइक्लोपीडिया है। 55 मिलियन आर्टिक्ल्स के साथ, विकिपीडिया इंटरनेट पर 13 वां सबसे अधिक देखा जाने वाला स्थान है। बहुत से लोगों को यह पता नहीं है, लेकिन विकिपीडिया भी 300 अलग-अलग भाषाओं में उपलब्ध है, जिसमें अंग्रेजी के अलावा हिंदी भी शामिल है।

विडंबना यह है कि भले ही दुनिया में कुल 34.1 करोड़ हिंदी भाषी हैं, लेकिन विकिपीडिया पर हिंदी भाषा में केवल 1.4 लाख पेज ही उपलब्ध हैं। यही वो बात थी जो राजस्थान के जोधपुर के राजू जांगिड़ को अखर गई और उन्होंने विकिपीडिया (हिंदी) एडिटर बनने की ठानी, लेकिन उनका ये सफर इतना आसान नहीं था।

 

गरीबी से रहा नाता

राजू जांगिड़ राजस्थान में जोधपुर जिले के ठाडिया गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता बुजुर्ग किसान हैं और मां गृहणी है। मध्यम-वर्गीय परिवार में राजू की पांच बड़ी बहनें और दो भाई भी हैं। राजू ने कक्षा 10 वीं तक पढ़ाई की और बाद में परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उनका सपना क्रिकेटर बनने का था, लेकिन वो भी पैसों की कमी के कारण पूरा नहीं हो सका।

परिवार की आर्थिक मदद करने के लिये राजू पुणे में कारपेंटर की नौकरी करने के लिये चले गए। इसी के साथ उन्होंने विकिपीडिया पर हिंदी पेजों को एडिट करना शुरू किया। इतना ही नहीं, कारपेंटर की नौकरी के साथ विकिपीडिया पर पेज एडिट करते हुए राजू ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू की। उन्होंने 12 वीं पास करने के बाद बी. ए. पास किया।

विकिपीडिया से पहली मुलाकात विकिपीडिया पर अपनी शुरूआत के बारे बात करते हुए राजू  बताते हैं, “पहली बार मैंने बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के बारे में गूगल पर सर्च किया तो मुझे पहला लिंक विकिपीडिया का ही मिला। उसके बाद मैं जब भी किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु के बारे में सर्च करता तो मेरी सर्चिंग इसी पर खत्म होती, बस यहीं से मेरी दिलचस्पी इसमें और बढ़ने लगी। इसके बाद मैंने विकिपीडिया के इतिहास के बारे में, पेज क्रिएटर्स, कंट्रीब्यूटर्स, एडिटर्स आदि के बारे में अहम जानकारियां जुटाई।”

 

क्या थी चुनौतियां

राजू ने जब विकिपीडिया पर कंटेंट एडिटिंग की शुरूआत की तब वह महज दसवीं पास थे और बतौर कारपेंटर पुणे में नौकरी करते थे। हालाँकि, राजू का पेशा विकिपीडिया के प्रति उनकी रुचि को कम नहीं कर सका और उन्होंने इंटरनेट पर अपने गाँव के बारे में जानकारी साझा करने के लिए हिंदी में योगदान देने का निर्णय लिया, लेकिन उनके सामने दो बड़ी समस्याएं थीं।

पहला, राजू के पास कोई कंप्यूटर या लैपटॉप नहीं था। वह अपने की-पैड वाले फोन से रिसर्च करते, पढ़ते और टाइप करते थे, जो कि कठिन और समय लेने वाला काम था।

दूसरा, अपनी जानकारी का समर्थन करने के लिए उनके पास कोई रेफ्रेंस नहीं था, उनके आर्टिकल जो उन्होंने अपने गाँव के बारे में लिखे थे, विकिपीडिया के एडिटर्स द्वारा हटा दिए जाते थे।

कड़ी मशक्कत के बावजूद राजू ने हार नहीं मानी और अपनी कोशिशें लगातार जारी रखी। उन्होंने अपने आर्टिकल्स को अपलोड करने के लिए दो साल तक बार-बार प्रयास किए लेकिन असफल रहे और यहां तक कि इस प्रक्रिया में उन्हें तीन बार एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा ब्लॉक भी कर दिया गया।

इन प्रयासों के बीच, राजू ने यह जान लिया कि आर्टिकल्स को निष्पक्ष रखने के लिए कोट्स और रेफ्रेंसेज की भी आवश्यकता होती है और उसके बाद ही वह उन्हें अपलोड कर सकते हैं।

चीजें सीखने के बाद, राजू ने साल 2015 में एक नया अकाउंट बनाया, और उन्होंने सभी कम्यूनिटी गाइडलाइंस का पालन करते हुए अपने सफर की शुरूआत की, तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 

विकिपीडिया पर हासिल की ये उपलब्धियां

22 वर्षीय राजू साल 2015 से विकिपीडिया के लिये एडिटिंग कर रहे हैं और वे अब तक लगभग 1900 पेज क्रिएट कर चुके हैं और करीब 57000 से ज्यादा पेज एडिट कर चुके हैं। क्रिकेट के प्रति अपने जुनून को पूरा करते हुए उन्होंने WikiProject Cricket के तहत अब तक 650+ पेज क्रिएट किए हैं, जिनमें क्रिकेट खिलाडियों और इस खेल से संबंधित तमाम जानकारी उपलब्ध है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को वे अपना फेवरेट क्रिकेटर बताते हैं और ‘माही’ का “हेलीकॉप्टर शॉट” उन्हें बेहद पसन्द हैं।

राजू ने विकिपीडिया पर आयोजित 100WikiWomensDay चैलेन्ज को पूरा करते हुए, प्रति दिन एक महिला का पेज बनाते हुए 100 दिन में 100 महिलाओं के पेज क्रिएट किये हैं। वे जोधपुर से सबसे ज्यादा विकिपीडिया पेज एडिट करने वाले शख्स हैं।

दिलचस्प बात यह है कि 8000 से ज्यादा पेज राजू ने मोबाइल फोन से एडिट किये हैं और इनमें से 3000 से ज्यादा तो उन्होंने पुराने की-पैड वाले फोन से एडिट किये हैं, यह विकिपीडिया और हिंदी के प्रति उनके लगाव और जुनून को दर्शाता है।

 

मेहनत से मिली पहचान

साल 2016 में पुणे, महाराष्ट्र में एक हिंदी विकिपीडिया कॉन्फ्रेंस में भाग लेने का अवसर मिलने के बाद राजू के लिए चीजें वास्तव में बदल गईं।

राजू बताते हैं, “दो कम्यूनिटी मेंबर्स को मेरी कमजोर आर्थिक स्थिति के बारे में पता था और उन्होंने वहां मौजूद दूसरे मेंबर्स के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की। उन्होंने मुझे एक लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन दिलाने के लिए फंड रेज़ कैंपेन चलाने का सुझाव दिया। छह महीने बाद, दिसंबर में, मुझे दोनों चीजें मिल गईं।”

साल 2017 में, राजू ने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए कारपेंटर की अपनी नौकरी छोड़ दी और कंटेंट राइटिंग को अपना कैरियर चुना

आज, राजू विकिपीडिया पर एडिटर से रिव्यूअर बन गए हैं।

राजू ने साबित किया कि निरंतरता और दृढ़ संकल्प के साथ सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता है। यह हिंदी भाषा और उनके जुनून के लिए उनका प्यार था जिसने उन्हें आगे बढ़ाया और उन्होंने सफलता हासिल की। राजू की कहानी हमें यह सीख देती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न हो, अगर आप अपने काम के प्रति लगातार मेहनत करेंगे तो एक-न-एक दिन सफलता आपके कदम चुमेगी।


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January 6, 20211min00

जाइल्स फुक्स अपने ए-लेवल के नतीजों में फेल हो गए थे और पहले की तरह ही उस रात उनका पूरा परिवार खाने की मेज़ पर डिनर कर रहा था.

खाने के दौरान उनके पिता ने उनसे कुछ नहीं कहा. जब प्लेटें हटा ली गईं तो उन्होंने अपने बेटे से कहा, ‘जाइल्स, मैं उम्मीद करता हूं कि तुम मेहनत कर सकते हो.’

ख़राब नतीजों के बाद भी अगले दिन मिस्टर फुक्स ने नॉर्थैम्पटनशायर की सबसे बड़ी एस्टेट एजेंट चेन का दरवाज़ा नौकरी मांगने के लिए खटखटाया.

उस किशोर ने मैनेजर से कहा, ‘मैं सबसे बढ़िया मोल-तोल करूंगा.’ जवाब मिला, ‘तुम सोमवार से आ सकते हो?’

52 साल के जाइल्स फुक्स अब अरबपति हैं. वह ‘ऑफिस स्पेस इन टाउन’ (ओसिट) के सह-संस्थापक और बॉस हैं. वह बताते हैं कि ईस्ट मिडलैंड्स में एस्टेट एजेंसी में तीन साल के काम से उन्हें बेशकीमती अनुभव मिला.

 

सालाना राजस्व 166 करोड़ रुपये

वह बताते हैं, ‘मैंने सीखा कि लोगों से कैसे बात करनी है और कैसे बेचना है.’

1987 में जाइल्स 21 साल के थे, जब उन्होंने एक दोस्त के साथ एस्टेट एजेंट्स की अपनी कंपनी शुरू की.

उनका बिजनेस कामयाब रहा. इसके बाद उन्होंने मुनाफ़ा देने वाले कई काम शुरू किए, जिनमें एक डिज़ास्टर रिकवरी कंपनी भी शामिल थी.

फिर 2010 आया, जब उन्होंने अपनी बहन निकी के साथ मिलकर ‘ओसिट’ कंपनी शुरू की. सिर्फ सात साल में ओसिट का सालाना राजस्व 20 मिलियन पाउंड्स यानी 166 करोड़ रुपये है.

उनकी कंपनी की कीमत 1665 करोड़ रुपये (200 मिलियन पाउंड्स) से ज़्यादा आंकी गई है. लंदन में उनकी छह और बाकी ब्रिटेन में चार इमारतें हैं.

 

मां के नक्श-ए-क़दम पर

जाइल्स फुक्स और उनकी बहन का ओसिट शुरू करने का फैसला अपने परिवार की परंपरा के नक्शे-कदम पर चलने जैसा ही था. 1979 में उनकी मां ने ब्रिटेन में ऐसा पहला बिजनेस शुरू किया था. बाद में उसे निकी चलाने लगी थीं और फिर जाइल्स फुक्स भी उनके साथ आ गए थे. लेकिन 2005 में आख़िर कंपनी बेच दी गई.

भीड़ से अलग दिखने के लिए ओसिट की हर इमारत को अलग तरीके से डिज़ाइन किया गया है. जाइल्स कहते हैं, ‘इससे हर इमारत को अनूठा किरदार और व्यक्तित्व मिल गया है.’

चूंकि ये मलिकाना हक़ वाली इमारतें हैं, इसलिए ओसिट के लिए बाल काटने का सैलून, जिम, कैफ़े, बार जैसी अतिरिक्त सुविधाएं जोड़ना भी आसान हो गया.

 

आज मां-पिता ख़ुश हैं

जाइल्स ब्रेग्ज़िट के पक्के समर्थक हैं और मानते हैं कि ब्रिटेन काफ़ी अच्छा कर रहा है. वह कहते हैं, ‘लंदन में इस वक़्त पैसों की दीवार पहुंच रही है.’

ओसिट में जाइल्स चीफ़ एग्जीक्यूटिव हैं और उनकी बहन मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.

काम का बंटवारा बताते हुए वह कहते हैं, ‘निकी रोज़ाना के बिजनेस चलाने का काम-काज देखती है. मैं फाइनेंस जुटाने, इमारतें खोजने और नीति बनाने का काम करता हूं.’

भले ही जाइल्स फुक्स ए लेवल की परीक्षाओं में अच्छा नहीं कर पाए, लेकिन आज उनके पिता उनसे बहुत ख़ुश हैं. वह बताते हैं, ‘हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व करते हैं.’


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December 29, 20201min00

2008 में, इंफाल स्थित रागेश कीशम का परिवार कर्ज के पहाड़ के तले दब गया था और उन्हें अपनी गोद ली हुई बहन के इलाज के लिए लगभग सब कुछ बेचना पड़ा। हालांकि, वह अंततः ल्यूकेमिया से अपनी लड़ाई हार गई।

मणिपुरी परिवार के साथ रागेश को एक रास्ता खोजने की जरूरत थी। उन्होंने विभिन्न व्यवसायों में अपने हाथ आजमाए, जिसमें डेटा डिजिटलीकरण और उत्तराखंड में बांस के पौधे की आपूर्ति शामिल थी, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।

उन्हें एक ऐसे वेंचर की आवश्यकता थी जो महत्वपूर्ण आय उत्पन्न करे। लेकिन किसी भी व्यवसाय को बिजली की आवश्यकता होती है क्योंकि यह इस क्षेत्र में एक दिन में केवल तीन से चार घंटे ही उपलब्ध होती है।

रागेश ने देखा कि एकमात्र संभव आउटलेट कृषि था। यह इन विकट परिस्थितियों में था कि वह लेमनग्रास से चाय बनाने के लिए एक आउट-ऑफ-द-बॉक्स विचार के साथ आये थे।

2011 में, उन्होंने पेरेंट कंपनी SuiGeneris Agronomy, जिसे उन्होंने 2010 में स्थापित किया, के तहत CC Tea ब्रांड लॉन्च किया।

वह YourStory को दिए एक इंटरव्यू में, बात करते हुए कहते हैं, “मैंने खुद चाय के 200 पैकेट बनाए और CC Tea लॉन्च किया। पांच मिनट के भीतर, सभी 200 पैकेट स्थानीय रूप से बेचे गए। हमारा शुरुआती निवेश लगभग 5 लाख रुपये था। आज, हमारे लेमनग्रास चाय की लोकप्रियता के साथ, ब्रांड 2019-20 में बढ़ गया है और 8 करोड़ रुपये का कारोबार दर्ज किया है।“

 

लेमनग्रास क्यों?

जब रागेश एक कृषि उद्यम पर विचार कर रहे थे, तो उन्होंने एक एरोमेटिक वैज्ञानिक से संपर्क किया, जिसने लेमनग्रास उगाने का सुझाव दिया। वैज्ञानिक के अनुसार, उष्णकटिबंधीय पौधे से निकाले गए तेल के लिए एक संपन्न बाजार था।

इंडोनेशिया के एक दोस्त ने रागेश को लेमनग्रास के 10,000 पैकेट्स भेजे, और उन्होंने इम्फाल से लगभग 20 किमी दूर लीमाखोंग में एक एकड़ जमीन पर इसका प्रयोग करना शुरू कर दिया।

वे कहते हैं, “अगले एक-डेढ़ साल अनुसंधान, परीक्षण और त्रुटि में खर्च किए गए थे, और मैंने तेल निष्कर्षण के लिए उपकरण खरीदने के लिए किए गए लोन आवेदनों पर मंजूरी का इंतजार किया। यह हमारे घरेलू खर्चों पर चिंता और बढ़ती चिंताओं से भरा दौर था। कोई लोन नहीं मिलने के कारण, लेमनग्रास के वैकल्पिक उपयोग की तलाश मेरा एकमात्र विकल्प था।”

रागेश ने आगे के शोध के लिए इम्फाल में राज्य पुस्तकालय का दौरा किया और पढ़ा कि ब्राज़ील में बुखार को ठीक करने के लिए दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र में उबला हुआ लेमनग्रास कांकोपेशन बनाया गया था, क्योंकि लेमनग्रास को ‘फीवर ग्रास’ कहा जाता था।

इसने रागेश में एक विचार रखा कि वह वास्तविक स्वास्थ्य लाभ के साथ लेमनग्रास से एक पेय बना सकता है। विचार का परीक्षण करने के लिए, उन्होंने कुछ ताजी पत्तियां लीं, उन्हें कुचला, और अपने लिए चाय बनाई।

वे कहते हैं, “हालांकि यह हरे रंग की एक सुंदर छाया थी, चाय ने भयानक स्वाद लिया। लेकिन, मुझे पता चला कि खराब स्वाद और सुगंध सही सुखाने के प्रोटोकॉल का पालन नहीं करने का परिणाम थे। मैंने पत्तियों को ठीक से सुखाने के लिए एक उपाय निकाला, और खराब स्वाद को ठीक किया।”

लेमनग्रास चाय से संतुष्ट होकर, रागेश ने इम्फाल भर के स्कूलों, कॉलेजों, चर्चों और क्लबों में इसके संभावित स्वास्थ्य लाभों पर विशेष जोर देने के साथ इसकी मार्केटिंग शुरू की। वे कहते हैं, “इस बीच, मेरी पत्नी ने चाय के लिए पैकेजिंग सामग्री खरीदने में मेरी मदद करने के लिए अपने सभी गहने बेच दिए।”

 

मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस

CC Tea स्थानीय खेतों से खरीदारी करती है, सैकड़ों वंचितों और बेरोजगारों को रोजगार देती है, और लेमनग्रास पैदा करती है। एक बार जब पत्तियों को काटा जाता है, तो उन्हें CC Tea कारखाने में भेजा जाता है, जहां बेहतरीन पत्तियों को बाकी हिस्सों से अलग किया जाता है।

फिर, तीन तरह से धोने की प्रक्रिया होती है, जिसके बाद पत्तियों को सुखाने के लिये शेड में भेजा जाता है। मौसम की स्थिति के आधार पर पत्तियों को 24 से 48 घंटों के लिए वहां छोड़ दिया जाता है।

रागेश कहते हैं, “इस प्रक्रिया के दौरान, नमी का स्तर 40 प्रतिशत पर आ जाता है। फिर, पत्तियों को गर्म हवा के धौंकनी पर भेजा जाता है, जहां उन्हें एक विशेष तापमान पर सुखाया जाता है जो पोषण मूल्य को नहीं मारता है।”

वे कहते हैं, “पत्ते कम तापमान पर सूख जाते हैं, हालांकि प्रक्रिया में थोड़ा समय लगता है क्योंकि पोषण मूल्य बरकरार रहता है। अधिकांश अन्य चाय उत्पादों में, पोषण मूल्य को जला दिया जाता है।”

एक बार जब पत्तियां ठीक से सूख जाती हैं, तो उन्हें काटने वाले विभाग में भेज दिया जाता है। अंतिम कट, एक और दो मिलीमीटर के बीच की माप, पैकेजिंग टीम को भेजे जाते हैं, जिसमें 100 ग्राम और 150 ग्राम ग्रेन्युल पैकेट होते हैं। पाउडर को टी बैग मशीन में भेजा जाता है, जहां हाथ से थैली बनाई जाती है।

CC Tea वर्तमान में 52 फुल-टाइम कर्मचारियों और 1500 पार्ट-टाइम कर्मचारियों के साथ काम करती है।

रागेश कहते हैं, “हम इस प्रक्रिया में बहुत कम ऑटोमेशन का उपयोग करते हैं क्योंकि हम स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा करने में विश्वास करते हैं। जैसा कि हम कहते हैं, हम अधिक से अधिक रोजगार पैदा करना जारी रखना चाहते हैं, लेकिन कुछ पॉइंट्स पर, हम एक सीमित सीमा तक ऑटोमेशन शुरू करने के इच्छुक हैं।”

CC Tea की पेरेंट कंपनी SuiGeneris इम्फाल में 350 एकड़ लेमनग्रास खेतों की मालिक हैं और उन्हें मैनेज करती है। इसने खेती के लिए अतिरिक्त 500 एकड़ का अधिग्रहण किया है, और वर्तमान में, CC Tea की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन का विस्तार कर रही है।

 

बाजार की रणनीति

रागेश कहते हैं, “हमारे ग्राहकों द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य दावों के बाद, हमने आईआईटी गुवाहाटी के साथ दीर्घकालिक अनुसंधान सहयोग में प्रवेश किया। हमने पाया कि CC Tea छह मानव कोशिका लाइनों पर किए गए एक अध्ययन में जन्मजात प्रतिरक्षा को बढ़ाता है। इसलिए, हमने दो वेरिएंट्स यानी ग्रैन्यूल्स और टी बैग्स में CC Tea की केवल एक प्रोडक्ट लाइन के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।”

100 चाय की थैलियों वाले CC Tea के एक पैकेट की कीमत 399 रुपये है, जबकि 40 चाय की थैलियों की कीमत 200 रुपये है। CC Tea के दानों के 100 ग्राम के पैकेट की कीमत 200 रुपये है, जबकि 150 ग्राम के पैकेट की कीमत 240 रुपये है।

वर्तमान में, CC Tea का बाजार पूर्वोत्तर भारत में केंद्रित है, विशेष रूप से मणिपुर में। प्रोडक्ट CC Tea की वेबसाइट पर ऑनलाइन बेचे जाते हैं और 25,000 से अधिक पिन कोड्स में डिलिवर किये जाते हैं, फाउंडर ने दावा किया हैं। एक स्लोवेनियाई साझेदार Rozle Tea के माध्यम से चाय को यूरोप में भी एक्सपोर्ट किया जाता है, और जापान, अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों में भी छोटी मात्रा में एक्सपोर्ट किया जाता है।

ब्रांड भारत भर में प्रमुख और मिनी महानगरों में विशेष वितरकों की तलाश में है। यह दक्षिण और पश्चिम भारत में वितरण को बढ़ावा देने के लिए भी बातचीत कर रहा है।

रागेश बताते हैं, “हम अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण समुदायों के लोगों को नियुक्त करते हैं। विश्वास के एक निश्चित स्तर के आधार पर, उन्हें क्रेडिट पर चाय की थैलियों और दानों के पैकेट दिए जाते हैं।”

उदाहरण के लिए, अगर वे 1,000 पैकेट बेचते हैं, तो उनका कमीशन 20 प्रतिशत होता है, जो एमआरपी पर लगभग 40,000 रुपये होता है। कमीशन के अलावा, हम उन्हें इन 1,000 पैकेटों को बेचने के लिए 25,000 रुपये का वेतन भी देते हैं। 500 पैकेट के लिए, कंपनी उन्हें 10,000 के वेतन का भुगतान करती है, जबकि कमीशन प्रतिशत समान रहता है।”

 

फंडिंग और ग्रोथ चैलेंज

2017 में, बिजनेस ने नीदरलैंड स्थित फंड C4D Partners से लगभग 550,000 डॉलर का निवेश प्राप्त किया। अब, यह नोंगपोक सेमकई गांव, जो इंफाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर है, में दूसरी फैक्ट्री शुरू करने के लिए दूसरे दौर की फंडिंग जुटाने की योजना बना रहा है।

CC Tea भारत में चाय के लिए एक बढ़ते बाजार में खेल रहा है। एक्सपर्ट मार्केट रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में, भारत में लगभग 1.1 मिलियन टन चाय की खपत हुई थी, और यह 2026 तक 1.4 प्रतिशत बढ़कर 1.4 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी।

हालांकि Teabox और Vadham Teas जैसे ब्रांड विभिन्न प्रकार की हर्बल चाय पेश करते हैं और उन्हें प्रतिस्पर्धा माना जा सकता है, लेकिन रागेश मानते हैं कि लेमनग्रास चाय के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रतियोगी नहीं हैं।

इसके बावजूद, रागेश और उनकी आला लेमनग्रास चाय के लिए दूसरे दौर की फंडिंग को जमीन पर उतारना आसान नहीं रहा। उनका मानना ​​है कि CC Tea निवेशकों के इंटरेस्ट से वंचित है क्योंकि यह नॉर्थ ईस्ट में स्थित है।

रागेश कहते हैं, “यह स्पष्ट है कि भारत में निवेश का प्रभाव उन जगहों को छोड़ देता है जहां गहरी गरीबी है, जहां लोग भूखे हैं, जहां बच्चे युवा मरते हैं और ऐसे स्थान जहां बाजार कुशल नहीं है। जब भी हम निवेशकों तक पहुंचते हैं, तो सौदा बहुत बड़ा होता है, बहुत छोटा, बहुत जल्दी, बहुत देर से या उनके लिए बहुत जोखिम भरा होता है। ”

अगर CC Tea जैसे इनोवेटिव प्रोडक्ट्स को मौका दिया जाए, तो निवेशकों को अलग-अलग कार्य करना चाहिए और इस तरह के व्यवसायों को बढ़ने में मदद करनी चाहिए।

रागेश यह भी बताते हैं कि COVID-19 महामारी के दौरान CC Tea कितनी लचीली थी। उन्होंने दावा किया कि छह महीने तक अपनी फैक्ट्री बंद रखने के बावजूद, कारोबार में कोई कमी नहीं आई। वे कहते हैं, “कंपनी के कर्मचारियों ने कई महीनों के लिए कम वेतन कमाकर अपनी वफादारी साबित की और हमें बचाए रखा।”

 


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December 12, 20201min00

सपने देखना बहुत अच्छा है लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए, हर किसी को बड़े पापड़ बेलने होते हैं।

बेहज़ाद खरस ने आर्किटेक्ट बनने के अपने सपने को पूरा करने के सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।

वह अपने पिता को बहरीन के वर्तमान राजा शेख हमद बिन ईसा अल-खलीफा के चीफ़ प्रोजेक्ट आर्किटेक्ट के रूप में देखते हुए बड़े हुए। बहुत कम उम्र में, जब बेहज़ाद छठी कक्षा में थे, तो उन्हें पहले खाड़ी युद्ध के कारण अपने माता-पिता को बहरीन में छोड़ना पड़ा और अपने दादा-दादी के साथ नासिक चले आए।

अपनी बारहवीं कक्षा की परीक्षा के बाद, बेहजडाद ने ईमानदारी से वास्तुकला (आर्किटेक्चर) को आगे बढ़ाना चाहा, हालांकि, अपनी प्रवेश परीक्षा में कम स्कोर करने के कारण, उन्हें बताया गया कि वह कभी भी आर्किटेक्ट नहीं बन सकते।

लेकिन, उन्होंने उम्मीद नहीं खोई।

बेहज़ाद ने परीक्षा के लिए फिर से आवेदन किया और इस बार, वह महाराष्ट्र राज्य प्रवेश परीक्षा में 56 वें स्थान पर रहे और मुंबई में स्कोलरशिप सीट प्राप्त की।

परीक्षा में टॉप किया और मास्टर्स के लिए तैयारी शुरू की। ऐसा लग रहा था कि उनके लिए आर्किटेक्चर की डिग्री प्राप्त करने और अपने पेशे से अच्छा जीवन यापन करने के लिए सड़क साफ थी, लेकिन जैसा वह चाहते थे वैसा नहीं हुआ।

उनके पिता को पक्षाघात (paralysis) हो गया, और समय के साथ घर में मुश्किल बढ़ रही थी, परिवार को भी आर्थिक गिरावट से गुजरना पड़ा। बेहज़ाद ने Etihad Airways के साथ एयरलाइन पर्सर बनने के लिए आर्किटेक्चर छोड़ने पर विचार किया, जिसे उसी समय के आसपास लॉन्च किया जाना था।

 

बातचीत में, उन्होंने कहा,

“हमें पैसे की जरूरत थी। मेरी माँ एकमात्र रोटी कमाने वाली थीं और मुंबई में काम कर रही थीं। मेरे पिताजी को पक्षाघात हो जाने के बाद, वह और मैं नासिक चले गए क्योंकि हमारा वहाँ एक बड़ा घर था और मेरी माँ मुंबई में ही रहती थीं। मैं नौकरी पाने और अपने परिवार का समर्थन करने के लिए बेताब था और एयरलाइन को आगे बढ़ाने का फैसला किया।”

बेहज़ाद ने इंडस्ट्री का विचार प्राप्त करने के लिए कई लोगों से बात की और यह तब था जब उन्होंने अपनी माँ के बॉस से बात की जिन्होंने उन्हें बताया कि वह हमेशा समस्याओं से दूर नहीं रह सकते।

“उन्होंने मुझे बताया ‘दुनिया बहादुरों की है’ और ये शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे,” वह याद करते हैं।

इसलिए, बेहज़ाद ने आर्किटेक्चर को नहीं छोड़ने का फैसला किया और अपने सपने को आगे बढ़ाने के लिए अथक परिश्रम किया।

वर्षों के संघर्ष, धैर्य और दृढ़ संकल्प के बाद, बेहज़ाद ने 2005 में The BNK Group की स्थापना की, और 15 वर्षों में, ऑर्गेनाइजेशन ने सालाना 20 करोड़ रुपये का कारोबार किया।

 

रोजी-रोटी की तलाश में दूर जाना

बेहज़ाद 25 साल के थे, जब उन्होंने अपने दोस्त के ऑफिस में एक छोटी सी मेज का उपयोग कर नासिक में शुरुआत की। उन्होंने किराए के बदले में अपने दोस्त के लिए ऑफिस की जगह डिजाइन की और अपनी आंत्रप्रेन्योरशिप की यात्रा शुरू की। उनके दोस्त ने उन्हें कुछ अन्य लोगों के पास भेजा, जिससे एक चीज़ दूसरे को मिली और उन्हें पुणे और मुंबई सहित आसपास के शहरों से प्रोजेक्ट्स मिलने शुरू हो गए।

अपनी एक व्यावसायिक यात्रा के दौरान, बेहज़ाद ने एक मारवाड़ी व्यक्ति से मुलाकात की, जिसे वह अपना गॉडफादर मानते हैं। बेहज़ाद कहते हैं,

“किसी तरह, मैं इस शख्स के संपर्क में आया। वह एक बड़े व्यापारी हैं और उनके पास रिसॉर्ट्स और अन्य वाणिज्यिक स्थान हैं। उनके पास पहले से ही एक बड़ा आर्किटेक्ट था, लेकिन उन्होंने मुझे अपने एक रिसॉर्ट को फिर से डिज़ाइन करने के लिए कहा, जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद था, तब भी जब वह निर्माणाधीन था। उन्होंने मुझे अपने सहयोगियों के बारे में बताना शुरू कर दिया और यह मेरी यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।”

बेहजाद को मुंबई में बेस ट्रांसफर करने के लिए कहा गया क्योंकि वह अधिक संभावित ग्राहकों को पा सकते थे, लेकिन वह अपने परिवार की स्थिति के कारण इस कदम के बारे में उलझन में थे।

उनकी पत्नी ने उन्हें अपने सपनों का पीछा करने और शहर जाने के लिए प्रेरित किया। बेहज़ाद ने इस अवसर को मील के पत्थर के रूप में लिया और 2007 में मुंबई में ट्रांसफर कर लिया, उसी मारवाड़ी व्यक्ति के लिए काम किया, जिसने उन्हें मुफ्त में अपने प्रोजेक्ट्स करने के बदले में केबिन की जगह की पेशकश की।

बेहज़ाद ने दो कर्मचारियों के साथ नौ महीने तक इस तरह काम किया। जैसे-जैसे उन्हें और अधिक प्रोजेक्ट मिलने लगे, वह छह कर्मचारियों के साथ एक चॉल में चले गए, और 10 कर्मचारियों के साथ एक मॉल में एक दुकान की ओर बढ़ गए। 2013 में, बेहज़ाद ने आखिरकार 40 कर्मचारियों के साथ मुंबई के एक व्यवसायिक जिले में अपना उद्यम स्थापित किया।

वह कहते हैं, “अपने बिजनेस के शुरुआती दिनों में, मैंने 36 घंटे के भीतर नासिक, पुणे और मुंबई के बीच यात्रा की और कभी-कभी सप्ताह में दो बार यह सुनिश्चित करने के लिए कि मैं अपने पिता के साथ-साथ अपने काम की भी देखरेख कर सकता था। यात्रा लंबी और कठिन थी।”

 

विश्व स्तर पर फैला है कारोबार

बेहज़ाद ने अपने ग्राहकों के लिए आवासीय और वाणिज्यिक स्थानों को डिजाइन करते हुए बिजनेस को सुचारू रूप से चलाना जारी रखा। हालांकि, उन्होंने ग्राहक को न खोने के लिए अपनी प्रोजेक्ट्स के मूल्य निर्धारण को कम रखा। वे कहते हैं, कि वर्षों से, उन्होंने अपने प्रत्येक ग्राहक के लिए स्वयं लेआउट तैयार किया था।

बेहज़ाद बताते हैं, “एक समय ऐसा आया जब मुझे एक बार में 30 प्रोजेक्ट मिले और मैंने महसूस किया कि विस्तार से मेरी सटीकता फीकी पड़ रही थी। इसके अलावा, अन्य चुनौतियां थीं जो इंटीरियर डिजाइनिंग बिजनेस के साथ-साथ मुख्य रूप से क्वालिटी वाले कच्चे माल और प्रोफिट-मेकिंग डेवलपमेंट कोस्ट प्राप्त कर रही थीं। मैंने अपनी कंपनी को डिज़ाइन कंसल्टेंसी के रूप में बदलने की कोशिश की, ताकि छोटे लोगों को संभालने के बजाय लक्ज़री टर्नकी प्रोजेक्ट्स को डेवलप किया जा सके।”

प्रोजेक्ट लागत (पांच से आठ प्रतिशत) की तुलना में परामर्श शुल्क काफी कम था। दूसरी ओर, कंपनी को सतत रहने के लिए और अधिक प्रोजेक्ट्स लेने की जरूरत थी।

बेहज़ाद ने महसूस किया कि बिजनेस मॉडल में एक दोष था, और वह ब्रांड की विश्वसनीयता को गिराने के लिए तैयार नहीं थे। इसने संपूर्ण स्वामित्व को लेने और concept से key तक प्रोजेक्ट को वितरित करने के लिए अधिक समझदारी की, जिसने एक बेहतर मनी कंट्रोल मॉडल के रूप में काम किया।

भारत में होम इंटिरियर्स और रेनोवेशन का बाजार 20-30 अरब डॉलर के बीच होने का अनुमान है और इंडस्ट्री के कई खिलाड़ी आवासीय सेगमेंट में टर्नकी प्रोजेक्ट नहीं लेते हैं। यह कॉन्सेप्ट नया था और ग्राहकों को कंपनी पर भरोसा नहीं था क्योंकि उनका मानना ​​था कि क्वालिटी के साथ समझौता होगा। लेकिन एक प्रोजेक्ट ने दूसरे को जन्म दिया और इसी तरह डिजाइन और निर्माण का दूसरा कार्यक्षेत्र पैदा हुआ।

 

बेहज़ाद के अनुसार, तीन कंसल्टेंसी प्रोजेक्ट एक टर्नकी प्रोजेक्ट के बराबर हैं। हालांकि इस विजन ने प्रोजेक्टस की संख्या कम कर दी, लेकिन एक सफल मॉडल बनाते समय बेहतर लाभप्रदता, डिजाइन और विस्तार पर ध्यान दिया गया।

The BNK Group स्थानीय क्षेत्रों से कच्चा माल लाता है। इंडस्ट्री में अन्य फर्मों के विपरीत, जो विक्रेताओं से फर्नीचर की खरीद पर मुख्य रूप से भरोसा करते हैं, बीएनके ग्रुप ने थर्ड-पार्टी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को कॉन्ट्रैक्ट दिया है, जिनमें से एक कंपनी के लिए खुद 90 प्रतिशत बनाती है।

The BNK Group ने अफ्रीका (6,000 वर्ग फुट विला), चीन, दुबई आदि में प्रोजेक्ट्स भी डेवलप किए हैं। भारत में कंपनी ने ताज विवांता, दिल्ली; वन अविघ्न, मुंबई; स्काई विला, मुंबई; आदि के लिये डिज़ाइन किया है।

 

चुनौतियां और प्रतियोगिता

इंटीरियर डिजाइन इंडस्ट्री में सबसे चुनौतीपूर्ण चीज उन ग्राहकों का विश्वास अर्जित करना है जो आमतौर पर क्वालिटी वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाली कंपनियों के बारे में उलझन में हैं, और यही कारण है कि बेहज़ाद का कहना है कि उन्होंने इस चुनौती को संबोधित करने के लिए टर्नकी प्रोजेक्ट्स को डेवलप करने पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।

वह बताते हैं, “केवल क्वालिटी पर कम कंट्रोल है जब तक कि हम केवल डिजाइन करते समय सुपरविजन के लिए 24×7 साइट पर उपलब्ध नहीं हैं। जब हम शुरू से अंत तक टर्नकी प्रोजेक्ट डेवलप करते हैं, तो हमारा पूरा कंट्रोल होता है। इस तरह से हम अपने ग्राहकों का विश्वास हासिल करने में सक्षम हैं।”

बेहज़ाद कहते हैं, प्रत्येक प्रोजेक्ट के लिए अद्वितीय मैक्रो और सूक्ष्म स्तर पर प्रत्येक स्थान को निजीकृत करना, और इस अनुकूलित समाधान को वितरित करने की क्षमता है। कंपनी का एक और यूएसपी लक्जरी इंटीरियर के लिए एक छत के भीतर डिजाइन और निष्पादन के लिए समर्पित टीम है।

एक बड़ी चुनौती बेहज़ाद का कहना है कि कंपनी अच्छी प्रतिभाओं का सामना कर रही है, उन्हें तैयार कर रही है, और उन्हें कारोबार में बनाए रखती है।

 

आगे का रास्ता

हालाँकि, महामारी ने इंडस्ट्री को पूरी तरह प्रभावित किया है, बेहज़ाद का कहना है कि The BNK Group लगातार चुनौतियों को पार करने में सक्षम था और पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में अधिक सौदे किए हैं।

वह आगे कहते हैं कि कंपनी के आवासीय टर्नकी सेगमेंट में HNI के लक्जरी घरों और रियल एस्टेट में बहुत अधिक रियायती मूल्य के लेनदेन के कारण वृद्धि देखी जा रही है।

भविष्य में, बेहज़ाद मुख्य रूप से अपने ग्राहकों के लिए एक अनुभव केंद्र खोलने और व्यवसाय का विस्तार करने के लिए एक इन-हाउस निर्माण स्थान स्थापित करने के लिए बाहरी फंड जुटाने के लिए तत्पर हैं।


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December 2, 20201min00

फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस हो या 3 इड‍ियट्स, लीड रोल में भले ही संजय दत्त और आमिर खान नजर आए लेक‍िन इनमें जो एक्टर दिल जीत गया वो थे बोमन ईरानी. 2 दिसंबर को बोमन अपना 61वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस खास मौके पर आइए बोमन के बारे में जानें कुछ दिलचस्प बातें.

बोमन को बचपन से ही फिल्मों का शौक रहा है. वे स्कूल के बाद फिल्म देखने जाया करते थे, लेक‍िन कभी सोचा नहीं था कि वे खुद ही सिनेमा जगत के स्टार बन जाएंगे. जन्म से पहले ही बोमन के पिता चल बसे थे. उनकी मां ने उन्हें पाल-पोषकर बड़ा किया. बोमन ने एक समय पर घर की बेकरी शॉप में भी काम संभाला है.

एक ईरानी जोरास्ट्र‍ियन पर‍िवार में जन्में बोमन ने सेंट मैरी स्कूल से अपनी स्कूलिंग की थी. इसके बाद उन्होंने मुंबई स्थ‍ित मीठीबाई कॉलेज से वेटर का पॉलिटेक्न‍िक डिप्लोमा कोर्स किया. कोर्स पूरा करने के बाद बोमन ने ताज महल पैलेस एंड टावर में एक वेटर के तौर पर काम करना शुरू किया.

यहां बोमन ने दो साल तक वेटर और रूम सर्व‍िस का काम संभाला. काम के प्रति उनकी लगन और ईमानदारी देख उन्हें प्रमोशन दिया गया. इसके बाद उन्होंने फ्रेंच रेस्टॉरेंट Rendezvous में भी वेटर का काम किया.

ताज पैलेस में काम करने के दौरान बोमन कस्टमर्स द्वारा दिए गए ट‍िप्स इकट्ठे करते रहते थे. इन पैसों से उन्होंने कैमरा लिया और स्कूल के क्रिकेट-फुटबॉल मैच की फोटोज लिया करते थे. वे इन फोटोज को 20-30 रुपये में बेचते थे. सात साल की कमाई जमा कर बोमन ने फैमिली वेकेशन का ट्र‍िप भी प्लान किया. वे अपने पर‍िवार को ऊटी लेकर गए थे, लेक‍िन कम पैसों की वजह से उन्हें छोटे-मोटे होटल में कमरा मिला.

वेटर का काम और फोटोग्राफी करने के बाद बोमन ने साल 2000 में फिल्मों की ओर रुख किया. उन्होंने फिल्म डरना मना है में छोटा सा रोल निभाया. इस फिल्म में बोमन को बहुत ही कम स्क्रीन स्पेस मिला लेक‍िन उनके काम को नोट‍िस किया गया और फिर बोमन के अच्छे दिन शुरू हो गए.

डरना मना है से पहले बोमन ईरानी, एवरीबडी सेज आई एम फाइन और लेट्स टॉक में नजर आए थे. इसके बाद 2003 में बूम में वे दोबारा दिखे. बूम के बाद बोमन को फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में डॉ. जेसी अस्थाना का रोल मिला. इस रोल में बोमन ने दर्शकों का दिल जीत लिया.

उन्हें इस फिल्म के लिए स्क्रीन वीकली में अवॉर्ड फॉर बेस्ट परफॉर्मेंस इन कॉम‍िक रोल से नवाजा गया. तीन साल बाद 2006 में आई लगे रहो मुन्नाभाई में भी बोमन नजर आए, जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट विलेन अवॉर्ड दिया गया.

2009 में आई फिल्म 3 इड‍ियट्स में भी बोमन का काम बेहद सराहा गया था. इस फिल्म में उन्होंने वीरु सहस्त्रबुद्धे उर्फ ‘वायरस’ का बेहतरीन किरदार निभाया था. इस रोल के लिए आज भी बोमन को याद किया जाता है. 3 इड‍ियट्स के लिए बोमन को 3 अवॉर्ड मिले. उन्हें स्टार स्क्रीन अवॉर्ड फॉर बेस्ट विलेन, फिल्मफेयर अवॉर्ड फॉर बेस्ट सपोर्ट‍िंग एक्टर और आईफा अवॉर्ड फॉर बेस्ट परफॉर्मेंस इन निगेट‍िव रोल से नवाजा गया.

बोमन कई हिट फिल्मों का हिस्सा रहे हैं. इनमे मैं हूं ना, लक्ष्य, वीर-जारा, पेज-3, वक्त-द रेस अगेन्स्ट टाइम, नो एंट्री, ब्लफमास्टर, डॉन, हनीमून ट्रैवल्स, हे बेबी, दोस्ताना आद‍ि शामिल है.

 


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November 19, 20201min00

आयुष बैद द्वारा 2018 में लॉन्च किया गया, Ellementry एक लाइफस्टाइल ब्रांड है, जो हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन बिक्री करता है। यह आयुष के पिता द्वारा संचालित दिलीप इंडस्ट्रीज का रिटेल ऑफशूट ब्रांड है। यहां बताया गया है कि इसका बिजनेस मॉडल कैसे काम करता है।

जयपुर स्थित इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर दिलीप बैद के पुत्र 24 वर्षीय आयुष बैद के लिए हैंडीक्राफ्ट्स में दिलचस्पी लेना स्वाभाविक था।

अपने पिता को, जो दिलीप इंडस्ट्रीज चलाते हैं, 175 करोड़ रुपये के टर्नओवर का कारोबार चलाते हुए देखते हुए, आयुष ने तीन दशकों तक भारतीय संस्कृति और कला के सार को समझा, जिसने हैंडीक्राफ्ट्स में कब्जा कर लिया था।

इसने उन्हें मुख्य रूप से 2018 में हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन बिक्री करने वाले एक लाइफस्टाइल ब्रांड एलिमेंट्री (Ellementry) शुरू करने के लिए प्रेरित किया। जयपुर स्थित कंपनी हाथ से बने घरेलू उत्पादों जैसे कि बरतन और परोसने के बर्तन बनाने के लिए कारीगरों को नियुक्त करती है।

बी 2 सी ब्रांड अब दिलीप इंडस्ट्रीज का रिटेल ऑफशूट ब्रांड बन गया है। ब्रांड ने 2019-20 में बिक्री में 12 करोड़ रुपये दर्ज करने का दावा किया है।

 

कैसा रहा सफर

आयुष का आंत्रप्रेन्योरशिप में प्रवेश तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने बी 2 बी को हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट के बिजनेस को बढ़ावा देने में मदद करना शुरू किया।

एक बार गर्मियों में, जब वह अपने पिता के बिजनेस के आंकड़ों का एनालिसिस कर रहे थे, तब आयुष को एक बिजनेस आइडिया आया। उन्होंने देखा कि इंडियन हैंडीक्राफ्ट्स को विदेशों में पहचाना और सराहा गया है।

लेकिन हैंडमेड होम प्रोडक्ट्स के लिए घरेलू बाजार अभी भी अनछुआ था, विशेष रूप से संगमरमर-कांच और टेराकोटा-लकड़ी के बरतन की आला श्रेणी में।

आयुष ने इन प्रोडक्ट्स को भारतीय उपभोक्ताओं के लिए भी उपलब्ध कराने की आवश्यकता महसूस की। आखिरकार, वे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि थे। आयुष ने सोचा कि अगर सही खुदरा रणनीति अपनाई गई तो ये प्रोडक्ट भारत को मिल जाएंगे।

जल्द ही, उन्होंने उपभोक्ता जरूरतों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया और ब्रांडेड हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स की मांग का पता लगाने के लिए स्थानीय कारीगरों से मुलाकात की।

वे कहते हैं, “मैं फैमेली बिजनेस वाले परिवार में पला-बढ़ा, मैं नए बिजनेस आइडियाज के लिए हमेशा से ग्रहणशील था। मैंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) में अध्ययन किया, और मैंने सीखा कि ईकॉमर्स और डेटा एनालिटिक्स कैसे काम करता है।”

आयुष कहते हैं, “मैंने बाजार का गहन विश्लेषण किया और आवश्यक जमीनी कार्य किया। मैं अपने पिता के हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स को एक ई-कॉमर्स वेबसाइट के माध्यम से रिटेल करने के विचार के साथ आया था।“

 

एलिमेंट्री ब्रांड

जब आयुष ने एलिमेंट्री को शुरू किया, तो उसकी खास बात यह थी कि वह सबसे अच्छे हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स के अलावा कुछ भी नहीं बेचेंगे। हालांकि, इस तरह के विचार को एग्जीक्यूट करने के लिए बड़ी मात्रा में फंडिंग की आवश्यकता होती है।

वह कहते हैं, “हमने Bennett, Coleman and Company Limited (BCCL) को आइडिया दिया। हम बाजार के गहन शोध और समझ के साथ तैयार हुए। BCCL ने इस अवधारणा को पसंद किया और ब्रांड कैपिटल सौदे के रूप में 250 करोड़ रुपये का निवेश किया। बाकी आर्थिक सहायता हमारे परिवार की थी।”

आयुष का दावा है कि एलिमेंट्री एक प्रत्यक्ष, निर्माता-से-उपभोक्ता संबंध स्थापित करने वाले पहले भारतीय हैंडीक्राफ्ट ब्रांड्स में से एक है। यह भारतीय हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री में मानक के रूप में ऐजेंट्स का उपयोग नहीं करता है, ताकि प्रोडक्ट्स को बाजार में स्थानांतरित किया जा सके।

ब्रांड केवल भारतीय बाजार को पूरा करता है, जबकि दिलीप इंडस्ट्रीज सीधे रिटेल खरीदारों के साथ काम करके अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचती है।

फर्म ने पहले ईकॉमर्स ब्रांड के रूप में शुरुआत की और पहले साल में बाजार से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली। 2019-20 में, एलिमेंट्री ने बिक्री में 12 करोड़ रुपये दर्ज किए, और इसने ब्रांड को आठ फिजिकल स्टोर खोलने और दिल्ली, जयपुर, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में अपनी पहुंच का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया।

कंपनी के अनुसार, पहले से मौजूद चुनौती को हल करने के लिए ऑफलाइन उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। हैंडमेड होम प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन मांग की पहचान करने के बावजूद, ग्राहकों द्वारा किए गए खरीद निर्णय में स्पर्श और महसूस पहलू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ संभावित ग्राहक भी अपनी गुणवत्ता का कोई आश्वासन नहीं होने पर हर दिन उपयोग होने वाले हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स को खरीदने के लिए तैयार नहीं थे।

आयुष कहते हैं, “हमें ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट्स और उनकी क्वालिटी पर विश्वास करना था। भले ही हम रोजमर्रा के सामान जैसे बरतन बेच रहे थे, लोग उन्हें ऑनलाइन खरीदने के बारे में आशंकित थे। वे अब भी उन्हें खरीदने से पहले प्रोडक्ट्स को छूना और महसूस करना चाहते थे।”

टच-एंड-फील और क्वालिटी आश्वासन की चुनौती को दूर करने के लिए कुछ फिजिकल स्टोर खोलने के अलावा, BCCL के स्वामित्व वाले ‘The Times of India’ में विज्ञापन देकर एलिमेंट्री की वृद्धि को गति दी गई।

आयुष कहते हैं, “2020 में, हमने अब तक 6.5 करोड़ रुपये कमाए हैं।“

 

बिजनेस मॉडल

एलिमेंट्री एक बी 2 सी मॉडल को फॉलो करती है, और अपने प्रोडक्ट्स को अपनी वेबसाइट के माध्यम से और साथ ही Amazon, Myntra, Tata Cliq आदि पर बेचती है। यह ब्रांड पूरे भारत में हाई-एंड बुटीक स्टोर्स को सप्लाई करता है, और इसमें Foodhall, Project Eve, और Shoppers’ Stop के साथ शॉप-इन-शॉप एसोसिएशन है।

अंतिम उपभोक्ताओं के लिए ब्रांड के मूल्य प्रस्ताव के बारे में बताते हुए, आयुष कहते हैं, “हमने इस बात की खोज की है कि मुख्य रूप से बरतन और कुकवेयर सेगमेंट में सुंदर और उपयोगी प्रोडक्ट्स के लिए भारतीय बाजार खाली था। हमने अपने प्रोडक्ट्स को हाई रैंक और कार्यक्षमता में सुनिश्चित किया। जैसा कि हम दिलीप इंडस्ट्रीज के ऑफशूट हैं, हम अंतरराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने में सक्षम हैं।”

हैंडीक्राफ्ट्स मैन्युफैक्चरिंग के अपने वाइब्रेंट इकोसिस्टम के लिए जाना जाने वाला, एलिमेंट्री, दिलीप इंडस्ट्रीज के समान प्रोडक्शन लाइन का उपयोग करता है। एक बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन असेंबली लाइन पर बने प्रोडक्ट्स की तुलना में हैंडमेड प्रोडक्ट्स को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

आयुष कहते हैं, “यह दृष्टिकोण बहुत सारे रोजगार भी पैदा करता है। कुल मिलाकर, हमारे पास हमारे साथ काम करने वाले 4,000 से अधिक भारतीय कारीगर हैं।“

उनका मानना ​​है कि एलीमेंट्री की निर्माण क्षमताएं इसे प्रोडक्ट्स को प्रतिस्पर्धी रूप से कीमत देने, क्वालिटी कंट्रोल बनाए रखने और प्रोडक्शन में कम बदलाव का समय सुनिश्चित करने की अनुमति देती हैं।

आयुष बताते हैं, “हमें अनसोल्ड इन्वेंट्री से निपटने की ज़रूरत नहीं है। बाहर से प्रोडक्ट्स की खरीद के बजाय, हम उन्हें घर में मांग के अनुसार बनाते हैं। उदाहरण के लिए, इस महामारी के दौरान, घर से काम करना नया आदर्श बन गया। लोगों को घर के फर्नीचर, किचन प्रोडक्ट्स और होम प्रोडक्ट्स से अधिक काम की आवश्यकता होती है। हम इस आवश्यकता को जल्दी से समझने और पूरा करने में सक्षम थे। हम जल्द ही वर्क-फ्रोम-होम कलेक्शन शुरू करने जा रहे हैं।“

हालांकि, हैंडमेड प्रोडक्ट्स का निर्माण करने के लिए कारीगरों को रोजगार देने का मतलब है कि एलिमेंट्री के प्रोडक्ट्स थोड़े महंगे हैं। कारीगरों को पूरी निर्माण प्रक्रिया अपने हाथों से पूरी करनी होती है, जिसमें समय लगता है।

आयुष कहते हैं, “मशीनें हमारी कलाकार नहीं हैं – लोग हैं। हमारी प्रोडक्ट रेंज लगभग 290 रुपये से शुरू होती है।”

 

भविष्य की योजनाएं

लॉकडाउन के दौरान, रेस्टोरेंट्स का बंद होना एलिमेंट्री के लिए आशीर्वाद के रूप में आया। कई लोगों के लिए घर का खाना बनाना एक शौक बन गया है, आयुष ने देखा कि आकर्षक दिखने वाले बरतन की मांग बढ़ रही है।

वे कहते हैं, “हमारे इंस्टाग्राम पेज और ऑनलाइन मार्केटिंग के साथ, हम इन उपभोक्ताओं को अपने मौजूदा ग्राहकों के साथ टैप कर रहे हैं। घर के पके हुए भोजन की ओर यह बदलाव हमारे बरतन की मांग और परोसे जाने वाले प्रोडक्ट्स में काफी वृद्धि कर रहा है।”

आगे जाकर, एलिमेंटरी की योजना फ्रैंचाइज़ी मॉडल के तहत कुछ स्टोर खोलने की है। इसने लखनऊ, कोचीन, गुरुग्राम और बेंगलुरु में फ्रेंचाइजी के लिए योजना बनाई है।

विदेशों में एलिमेंट्री के प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग को देखते हुए, आयुष ने अपने प्रोडक्ट्स को संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान में बेचने की भी योजना बनाई है। ब्रांड SKUs की संख्या में वृद्धि करना चाहता है, और घर के सामान और डिजाइनर हार्डवेयर में वेंचर करता है।

आयुष कहते हैं, “इस तरह के पैमाने के विस्तार और विकास को डेटा और क्रिएटिविटी को इंटीग्रेट करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारे मौजूदा सामग्रियों के साथ प्रयोग करने के बाद, भविष्य के शोध cane/bamboo के साथ मजबूत प्रोडक्ट बनाने पर होंगे।”


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October 31, 20201min00

औरंगाबाद के बरौली गांव के रहने वाले अभिषेक कुमार मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थे। अच्छी-खासी सैलरी थी। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक उन्होंने शहर से गांव लौटकर खेती करने का प्लान बनाया। 2011 में गांव लौट आए। आज वो 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। धान, गेहूं, लेमन ग्रास और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। दो लाख से ज्यादा किसान देशभर में उनसे जुड़े हैं। सालाना 25 लाख रुपए का टर्नओवर है।

33 साल के अभिषेक की पढ़ाई नेतरहाट स्कूल से हुई। उसके बाद उन्होंने पुणे से एमबीए किया। 2007 में HDFC बैंक में नौकरी लग गई। यहां उन्होंने 2 साल काम किया। इसके बाद वे मुंबई चले गए। वहां उन्होंने एक टूरिज्म कंपनी में 11 लाख के पैकेज पर बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर ज्वाइन किया। करीब एक साल तक यहां भी काम किया।

 

2016 में पीएम मोदी ने अभिषेक को कृषि रत्न सम्मान से नवाजा था।
2016 में पीएम मोदी ने अभिषेक को कृषि रत्न सम्मान से नवाजा था।

 

अभिषेक कहते हैं, ‘मुंबई में काम करने के दौरान मैं वहां की कंपनियों में तैनात सिक्योरिटी गार्ड से मिलता था। वे अच्छे घर से थे, उनके पास जमीन भी थी, लेकिन रोजगार के लिए गांव से सैकड़ों किमी दूर वे यहां जैसे-तैसे गुजारा कर रहे थे। उनकी हालत देखकर अक्सर मैं सोचता था कि कुछ करूं ताकि ऐसे लोगों को गांव से पलायन नहीं करना पड़े।

वो कहते हैं, ‘2011 में मैं गांव आ गया। पहले तो परिवार की तरफ से मेरे फैसले का विरोध हुआ। घरवालों का कहना था कि अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर गांव लौटना ठीक नहीं है। गांव के लोगों ने मजाक उड़ाया कि पढ़-लिखकर खेती करने आया है, लेकिन मैं तय कर चुका था। मैंने पिता जी से कहा कि एक मौका तो दीजिए, फिर उसके बाद जो होगा वो मेरी जिम्मेदारी होगी।’

अभिषेक का फैमिली बैकग्राउंड खेती रहा है। उनके दादा और पिता खेती करते थे। खेती की बेसिक चीजें उन्हें पहले से पता थीं। कुछ जानकारी उन्होंने फार्मिंग से जुड़े लोगों से और कुछ गूगल की मदद से जुटाई। उन्होंने एक एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत की।

पहली बार एक लाख की लागत से जरबेरा फूल लगाया। इससे पहले ही साल चार लाख की कमाई हुई। इसके बाद उन्होंने लेमन ग्रास, रजनीगंधा, मशरूम, सब्जियां, गेहूं जैसी दर्जनों फसलों की खेती शुरू की।

 

अभिषेक ने 2011 में खेती शुरू की। उनके साथ देश के 2 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं।
अभिषेक ने 2011 में खेती शुरू की। उनके साथ देश के 2 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं।

 

आज अभिषेक 20 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। 500 से ज्यादा लोगों को उन्होंने रोजगार दिया है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। बिहार सरकार की तरफ से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने तेतर नाम से एक ग्रीन टी की किस्म तैयार की है। जिसका पेटेंट उनके नाम पर है। इस चाय की काफी डिमांड है। पूरे भारत में इसके ग्राहक हैं।

अभिषेक के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। 2011 में ही वो सड़क हादसे का शिकार हो गए थे। इसके बाद बैसाखी के सहारे कई महीनों तक उन्हें चलना पड़ा था। वो कहते हैं- खेती को लाभ का जरिया बनाया जा सकता है। इसके लिए बेहतर प्लानिंग और अप्रोच की जरूरत है।

जो टमाटर सीजन में 2 रुपए किलो बिक रहा है, उसे ऑफ सीजन में बेचा जाए तो 50 रुपए से ज्यादा के भाव से बिकेगा। इतना ही नहीं अगर उसे प्रोसेसिंग करके स्टोर कर लिया जाए तो अच्छी कीमत पर ऑफ सीजन में बेचा जा सकता है।

वो बताते हैं कि रजनीगंधा की खेती काफी फायदेमंद है। रजनीगंधा की पूरे देशभर में काफी डिमांड है। एक हेक्टेयर में रजनीगंधा फूल की खेती करने में लागत करीब डेढ़ लाख रुपए आएगी। इससे एक साल में पांच लाख तक की आमदनी हो सकती है।

 

अभिषेक कहते हैं कि खेती को लाभ का जरिया बनाया जा सकता है। इसके लिए बेहतर प्लानिंग और अप्रोच की जरूरत है।
अभिषेक कहते हैं कि खेती को लाभ का जरिया बनाया जा सकता है। इसके लिए बेहतर प्लानिंग और अप्रोच की जरूरत है।

 

अच्छी खेती के लिए जरूरी स्टेप्स

1. क्लाइमेट कंडीशन : हम जहां भी खेती शुरू करने जा रहे हैं, वहां के मौसम के बारे में अध्ययन करना चाहिए। उस जमीन पर कौन-कौन सी फसलें हो सकती हैं, इसके बारे में जानकारी जुटानी चाहिए।

2. स्टोरेज : प्रोडक्ट तैयार होने के बाद हमें उसे स्टोर करने की व्यवस्था करनी होगी ताकि ऑफ सीजन के लिए हम उसे सुरक्षित रख सकें।

3. मार्केटिंग और पैकेजिंग : यह सबसे अहम स्टेप हैं। प्रोडक्ट तैयार करने के बाद हम उसे कहां, बेचेंगे, उसकी जगह के बारे में जानकारी जरूरी है। इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है, वहां की लोकल मंडियों में जाना, लोगों से बात करना और डिमांड के हिसाब से समय पर प्रोडक्ट पहुंचना। इसके अलावा सोशल मीडिया भी मार्केटिंग में अहम रोल प्ले करता है।


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October 26, 20201min00

कई उद्यमी तकनीकी क्रियाओं के बारे में भ्रमित हो जाते हैं और इसलिए हमने यहां उनके शुरुआती चरण के लिए इसे सरल बनाने की कोशिश की है। इस आर्टिकल में, हमने सीड फंडिंग बढ़ाने के तरीकों के बारे में बाताया और यह भी बताया कि बाकी फंडिंग राउंड से यह कैसे अलग होता है।

आपने सीड फंडिंग, अर्ली-स्टेज फंडिंग, लेट-स्टेज फंडिंग आदि शब्द सुने होंगे। लेकिन शायद इन शब्दों को लेकर आपके दिमाग में थोड़ा भ्रम होगा। हम इन शब्दों को लेकर ये भ्रम दूर करेंगे और इसी कड़ी में आज का मुख्य विषय है सीड-फंडिंग।

 

क्या होती है सीड-फंडिंग

साधारण: बिजनेस शुरू करने के लिए फंड्स जुटाने को ही सीड-फंडिंग कहा जाता है। बिजनेस के शुरूआती चरण में उठाया गया फंड (ज्यादातर जब बिजनेस मॉडल में लाभप्रदता नहीं होती है) अर्ली-स्टेज फंड कहलाता है। और आप जिस फंड को बढ़ाते हैं, उसे लेट-स्टेज फंडिंग कहा जाता है।

यदि आप उन बिजनेस करने का इरादा रखते हैं और एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसके पास एक यूनिक बिजनेस आइडिया है, लेकिन उस पर काम करने के लिए पर्याप्त फंड्स नहीं है, तो सीड-फंडिंग निश्चित रूप से आपके लिए है। हालांकि, यह उतना सरल नहीं है जितना दिखता है। सीड फंडिंग में भी कुछ पूंजी लगती है, जिसे प्री-सीड फंडिंग कहा जाता है। अब, प्री-सीड फंड क्या है? हम इसे सरल उदाहरण से समझेंगे।

 

सीड-फंडिंग के लिये कैसे करें तैयारी

मान लीजिए कि आप बी 2 बी फूड वेंडर सर्विसेज ऐप लॉन्च करने जा रहे हैं। आपके पास एक बेहद अच्छा आइडिया है, सही बिजनेस मॉडल और यहां तक ​​कि मुनाफा कमाने की योजना भी है। लेकिन आप किसी इनवेस्टर को अपना आइडिया कैसे बताएंगे? क्या एक अनुभवी और व्यस्त इनवेस्टर के सामने कहानी सुनाना ज्यादा काम करेगा, या आपको पहले एक प्रोटोटाइप और पिच-डेक का निर्माण करना चाहिए? ठीक है, प्रोटोटाइप बनाने से आपको अपने बिजनेस मॉडल के प्रैक्टिकल पॉइट्ंस को इनवेस्टर को दिखाने में मदद मिलेगी।

ऐसा करने के लिए, आपको एक बड़ी टीम, ऑफिस बनाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन इसके लिए आपको समय की आवश्यकता होगी, कम से कम एक सीटीओ, एक डेटा ऐनालिसिस सिस्टम, और इसके रिकॉर्ड ताकि आप इनवेस्टर के सामने अपना बेस्ट दे सकें।

इन चीजों के लिए कुछ अमाउंट की आवश्यकता होगी जो आप या तो अपनी बचत से निवेश कर सकते हैं या अपने भरोसेमंद इनवेस्टर्स जैसे दोस्तों, परिवार, सहकर्मियों से पैसे उधार लेकर कर सकते हैं। इसलिए, एक बार जब आप इस प्री-सीड फंडिंग को प्राप्त कर लेते हैं, तो आप प्रोटोटाइप पर काम करने में सक्षम होंगे और सीड फंडर को प्रोटोटाइप दिखा सकते हैं।

अब जब, आपने पहले ही प्रोटोटाइप बना लिया है, तो आप सीधे प्रोडक्ट को अंतिम रूप क्यों नहीं देते हैं और इसे बाजार में लॉन्च क्यों नहीं करते हैं? अब इस सीड फंडिंग का उद्देश्य क्या है? वे सभी सॉर्स क्या हैं? आइए जानते हैं क्यों।

चूंकि आपने अभी एक कच्चा प्रोडक्ट बनाया है, यह एंड-यूज़र की सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। आपको प्रोपर मार्केटिंग प्लान की आवश्यकता होगी। आपको क्लाइंट सेटिस्फेक्शन यूनिट बनानी होगी। आपको बिजनेस की कानूनी शर्तों से निपटना होगा। और, विस्तार के लिए एक बड़ी टीम की आवश्यकता होगी क्योंकि एक ही व्यक्ति सभी डिपार्टमेंट्स को बहुत लंबे समय तक नहीं संभाल सकता है।

इसलिए हमें उम्मीद है कि अब तक आप सीड-फंडिंग की आवश्यकता को समझ गए होंगे। अब सवाल यह है कि इनवेस्ट कौन करेगा?

 

कैसे मिलेंगे इनवेस्टर

हमारे पहले इनवेस्टर हमारे परिचित व्यक्ति थे, और इसलिए उन्हें आपके और आपके प्रोडक्ट में कम ब्याज पर अधिक भरोसा होना चाहिए, और इसीलिए उन्होंने इसमें इनवेस्ट किया।

लेकिन अब, आपको उन व्यक्तियों से निपटना होगा जो आपके बारे में नहीं जानते हैं, जो यहां पैसा लगाने के लिए हैं, केवल अच्छे रिटर्न की उम्मीद करते हैं। उन्हें समझाना इतना कठिन है कि आप सैकड़ों सर्वे में पाएंगे कि कुल मिलाकर 99% स्टार्टअप अपने फंड फंडिंग राउंड में इनवेस्ट बढ़ाने में असफल रहते हैं।

तो फंड-रेज़र्स के उस 1% के बीच होने के लिए, आपको अब प्रजेंटेशन स्टेज पास करनी होगी। आगे हम बता रहे हैं कि इसे कैसे पास करना है।

 

प्रजेंटेशन स्टेज

शॉर्ट पिच-डेक बनाना हमेशा एक बड़ी फ़ाइल बनाने की तुलना में सबसे अच्छा विचार है जो प्रजेंटेशन के समय इनवेस्टर द्वारा पढ़ा नहीं जा रहा है। आपका पिच-डेक एक ही समय में जानकारीपूर्ण और संक्षिप्त होना चाहिए। इसमें आपका बिजनेस मॉडल, आपको अलग दिखाने वाली बातें, आपका मार्केट कैप और निश्चित रूप से वर्तमान और साथ ही आवश्यक टीम का विवरण शामिल होना चाहिए। इसके बाद, सभी जानकारी के टुकड़े, इनवेस्टर के सवालों के जवाब देने के लिए तैयार रहें।

वे शायद वे डिटेल्स 2-3 बार पूछ सकते हैं और फिर बहुत ही मूल लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछते हैं जैसे कि केवल आप ही क्यों, और वे यह सुनिश्चित करेंगे कि आपने वास्तविक समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है और न कि केवल कमाने का एक काल्पनिक तरीका।

यदि आप उन्हें जवाब देने में सक्षम होते हैं, तो आपने स्टार्टअप के सबसे महत्वपूर्ण चरण को पार कर लिया है।

 

कैसे काम करती है सीड-फंडिंग

सीड-फंडिंग मुख्य रूप से इक्विटी सौदे पर काम करती है। इनवेस्टर आपके बिजनेस में एक निश्चित प्रतिशत इक्विटी लेते हैं, और इसलिए जब आपका बिजनेस बढ़ता है, तो वे अधिक लाभ के लिए अपना हिस्सा बेच सकते हैं। यह प्रक्रिया आपको ब्रांड का मूल्यांकन करने में भी मदद करती है।

उदाहरण के लिए, यदि इनवेस्टर एक करोड़ रुपये के निवेश के बदले में आपके ब्रांड के 10% शेयर लेता है, तो आपके ब्रांड को अंततः दस करोड़ मूल्य की कंपनी की वैल्यू मिलती है। हालांकि, वास्तविक दस करोड़ आपके पास नहीं हैं, इसलिए वैल्युएशन और रियल कैपिटल दो अलग-अलग शब्द हैं। सीड फंडिंग को क्राउडफंडिंग इवेंट्स, वेंचर कैपिटलिस्ट्स द्वारा, एंजेल इनवेस्टर्स द्वारा, और उन व्यवसायियों को पिच डेक भेजकर भी उठाया जा सकता है, जिनके बारे में आपको लगता है कि आपके बिजनेस मॉडल में दिलचस्पी हो सकती है।

यह भी सुनिश्चित करें कि आप ईमेल पर स्पैमिंग शुरू नहीं करें क्योंकि यह आपकी इमेज लोंग-टर्म के लिये खराब कर सकता है।

हमें आशा है कि हम आपके साथ फंडिंग सिस्टम पर कुछ जानकारीपूर्ण बिंदुओं को साझा करने में सक्षम हुए…. तो बस अपने सपनों का बिजनेस शुरू करने के लिए तैयार हो जाएं!


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October 17, 20201min00

आईआईएफएल वेल्थ और हुरुन इंडिया ने हाल ही में 40 और उससे कम उम्र वाले सेल्फ मेड अमीरों की लिस्ट को जारी की। इस लिस्ट में एकमात्र महिला हैं 39 साल की देविता सराफ। वह इस सूची में 16वें स्थान पर हैं। देविता वीयू ग्रुप की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उनका नाम फॉर्च्यून इंडिया (2019) की भारत की सबसे ताकतवर 50 महिलाओं में भी आ चुका है। इंडिया टुडे ने 2018 में बिजनेस वर्ल्ड में 8 सबसे ताकतवर महिलाओं में देविता सराफ को जगह दी थी। उनकी कुल दौलत करीब 1200 करोड़ रुपए है।

देविता सराफ ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। वो जेनिथ कंप्यूटर्स के मालिक राजकुमार सराफ की बेटी हैं। हालांकि, वो हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थीं। इसलिए फैमिली बिजनेस नहीं संभाला। 2006 में जब टेक्नोलॉजी में तेजी से बदलाव हो रहा था और अमेरिका में गूगल और एपल जैसी कंपनियां मोबाइल और कम्प्यूटर के बीच के गैप को खत्म करने की जद्दोजहद में थीं, उस समय देविता ने कुछ नया करने की ठानी। इसके लिए उन्होंने टीवी कारोबार को चुना। उन्होंने VU टीवी की शुरुआत की। जो टीवी और सीपीयू का मिलाजुला रूप था।

उनकी कंपनी लेटेस्ट तकनीक में अच्छा काम कर रही है। देविता की कंपनी एडवांस TV बनाती है। इस टीवी पर यू-ट्यूब और हॉट स्टार जैसे ऐप को भी आसानी से चलाया जा सकता है। मतलब ये टीवी कम कंप्यूटर होते हैं। इनके जरिए आप मल्टी टास्किंग कर सकते हैं। साथ ही कंपनी एंड्रॉयड पर चलने वाले हाई डेफिनेशन टीवी भी बनाती है। बड़ी स्क्रीन के साथ कंपनी के पास कॉरपोरेट यूज की भी टीवी है।

देविता ने जब कंपनी शुरू की थी तब उनकी उम्र महज 24 साल ही थी। शुरुआत में उन्हें दिक्कत आईं, लेकिन करीब 6 साल बाद 2012 में उनकी कंपनी प्रॉफिट में आ गई। 2017 में कंपनी का टर्नओवर करीब 540 करोड़ पहुंच गया था। उसके बाद से लगातार यह बढ़ता ही गया। आज देविता के पास पूरे भारत में करीब 10 लाख से ज्यादा कस्टमर्स हैं। कंपनी दुनिया के 60 देशों में अपनी टीवी बेचती है।

 

लड़की समझ कर सीरियसली नहीं लेते थे लोग

देविता के लिए कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचाना आसान नहीं था। एक इंटरव्यू में देविता ने कहा था कि जब वो बिजनेस के सिलसिले में किसी डीलर या मैन्युफैक्चरर से मिलती थीं, तो लोग उन्हें लड़की समझकर सीरियसली नहीं लेते थे। कुछ लोगों को लगता था कि ये लड़की है और इतना बड़ा बिजनेस संभाल कैसे सकती है। देविता के मुताबिक, जब आपको आगे बढ़ाना होता है तो ऐसी चीजों के बारे में ध्यान नहीं देते हैं। हालांकि उनका मानना है कि अब लोगों की सोच बदल रही है। उन्हें देखकर बहुत से लोगों को लगता है कि उनकी बेटियां भी अपना बिजनेस खड़ा कर सकती हैं।

 

पीएम मोदी भी कर चुके हैं तारीफ

 

साल 2017 में पीएम मोदी ने अपने भाषण में देविता के आइडिया का जिक्र भी किया था।
साल 2017 में पीएम मोदी ने अपने भाषण में देविता के आइडिया का जिक्र भी किया था।

 

साल 2017 में देविता ने यंग सीईओ के साथ पीएम मोदी की हुई बैठक में हिस्सा लिया था। इसमें न्यू इंडिया के लिए इन सीईओज से अपने आइडिया देने को कहा गया था। देविता ने इस कार्यक्रम में मेक इन इंडिया पर अपने विचार रखे। बाद में पीएम मोदी ने अपने भाषण में उनके आइडिया का जिक्र भी किया।

 

हार्डवर्किंग ही सफलता का मूलमंत्र

एक इंटरव्यू में देविता सराफ ने कहा कि वह हार्डवर्किंग और युवा महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वह देश की तमाम युवा महिलाओं को प्रोत्साहित करने का काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि उन्हें अब इस बात का भरोसा हो गया है कंपनियों के सीईओ भी किसी सेलेब्रिटी से कम नहीं हैं। देविता कहती है कि महिलाओं को सिर्फ उनकी सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि उनके टैलेंट के लिए भी सराहा जाना चाहिए।



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