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adminFebruary 3, 20211min00

अमेज़ॅन के फाउंडर जेफ बेजोस ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का पद छोड़ने का ऐलान किया है. उनकी जगह पर अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ की जिम्मेदारी दी जाएगी. 

 

अमेज़ॅन के फाउंडर जेफ बेजोस ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का पद छोड़ने का ऐलान किया है. एक स्टार्टअप को दुनिया की सबसे अधिक मूल्यवान कंपनी के रूप में खड़ा करने वाले जेफ बेजोस इस साल के आखिरी तक सीईओ पद छोड़ देंगे. उनकी जगह पर अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ की जिम्मेदारी दी जाएगी.

अमेज़ॅन में हिस्सेदारी के आधार पर दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति जेफ बेजोस ने कहा कि वह तीसरी तिमाही में सीईओ पद छोड़ देंगे. अमेज़ॅन वेब सर्विसेज के चीफ एंडी जेसी को सीईओ बनाया जाएगा. यह खबर तब आई जब अमेज़ॅन के मुनाफे में रिकॉर्ड स्तर की बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि कोरोना काल में लोगों ने सबसे अधिक ऑनलाइन खरीदारी की.

अमेज़ॅन के कर्मचारियों को लिखी एक चिट्ठी में जेफ बेजोस ने कहा कि वह महत्वपूर्ण अमेज़ॅन पहलों में लगे रहेंगे, लेकिन अब वह अपने परोपकारी पहलों जैसे अपने वन डे फंड और बेजोस अर्थ फंड के अलावा अंतरिक्ष अन्वेषण और पत्रकारिता समेत अन्य व्यावसायिक उपक्रमों पर ध्यान देंगे.

57 साल के जेफ बेजोस ने 1994 में अपने गैराज में अमेज़ॅन की स्थापना की और इसे एक ऐसे वेंचर में विकसित किया जो ऑनलाइन रिटेल पर हावी है, जिसमें स्ट्रीमिंग म्यूजिक और टेलीविजन, किराने का सामान, क्लाउड कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बहुत कुछ है. उनके अन्य व्यवसायों में द वाशिंगटन पोस्ट अखबार और निजी स्पेस फर्म ब्लू ओरिजिन शामिल है.

जेफ बेजोस की जगह सीईओ बनने वाले एंडी जेसी ने 1997 में अमेज़ॅन बतौर मार्केटिंग मैनेजर ज्वाइन किया और 2003 में कंपनी के क्लाउड सर्विसेज डिवीजन AWS की स्थापना की. जेफ बेजोस ने कहा कि एंडी को कंपनी में हर कोई जानता है और वह अमेज़ॅन में काफी समय से काम कर रहे हैं, वह बेहतरीन लीडर होंगे, मुझे भरोसा है.


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adminJanuary 29, 20213min00

सैन्य ताक़त में असाधारण बढ़ोतरी से लेकर ख़ुद को एक संपन्न देश बनाने और दुनिया का मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनने तक का सफ़र चीन ने रॉकेट की रफ्तार से तय किया है. 1979 में अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलने और आर्थिक सुधार लागू करने के महज़ 40 सालों में चीन के आर्थिक और सैन्य सुपरपावर बनने के सफ़र को पूरी दुनिया ने हैरत भरी नज़रों से देखा है.

साल 2019 के आख़िर में चीन ने दुनिया को तब फिर चौंका दिया जब उसके एक शहर वुहान से ख़तरनाक कोरोना वायरस फैलना शुरू हो गया.

जब तक कोई समझ पाता कोविड-19 वायरस पूरी दुनिया में पैर पसार चुका था. इस एक वायरस ने पूरी दुनिया को लाचार और पंगु बना दिया और अगला पूरा एक साल इस महामारी से जंग में कटा. अभी भी यह लड़ाई जारी है.

इस दौरान आम लोगों से लेकर पश्चिमी दुनिया के दिग्गज देशों तक सब की आमदनी और अर्थव्यवस्थाएं धराशायी हो गईं. अभी भी दुनिया इस महामारी के असर से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने की कोशिशों में लगी हुई हैं.

हालांकि, इस मामले में भी चीन ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. जब पूरी दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं नकारात्मक ग्रोथ या कॉन्ट्रैक्शन (अर्थव्यवस्थाओं का संकुचन या सिकुड़ना) का सामना कर रही हैं या फिर मामूली ग्रोथ के लिए भी संघर्ष कर रही हैं, उस वक्त पर चीन ने ग्रोथ के बढ़िया आंकड़ों से दुनिया को हैरत में डाल दिया है.

चीन की इकनॉमी जिस रफ्तार से बढ़ रही है वह कोरोना से जूझ रहे दूसरे देशों के लिए कल्पना से भी ज्यादा है.

क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी मानते हैं कि कोरोना पर जल्द कंट्रोल पाने की वजह से चीन अपनी आर्थिक ग्रोथ को रिकवर करने में सफल रहा है.

डी के जोशी कहते हैं, “सबसे पहले महामारी चीन में शुरू हुई और उन्होंने ही सबसे जल्दी इस पर क़ाबू पा लिया. पूरी समस्या की जड़ ही कोविड-19 है. ऐसे में अगर आप कोविड-19 पर कंट्रोल कर सकते हैं तो आप आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ा सकते हैं. इसी वजह से केवल एक तिमाही में ही चीन की ग्रोथ नेगेटिव हुई और उसके बाद इसमें धीरे-धीरे तेजी आने लगी.”

 

आईएमएफ़ का अनुमान, 2021 में 7.9 फ़ीसद रफ़्तार से बढ़ेगा चीन

 

चीन

 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने 2021 के लिए चीन की ग्रोथ का पूर्वानुमान घटाकर 7.9 फ़ीसद कर दिया है.

 

पहले आईएमएफ़ का अनुमान था कि 2021 में चीन की अर्थव्यवस्था 8.2 फ़ीसद की रफ्तार से आगे बढ़ेगी.

ग्रोथ फोरकास्ट को घटाने के बावजूद 7.9 फ़ीसद का आंकड़ा ऐसा है जिसे हासिल करना शायद दुनिया के दूसरे किसी भी देश के लिए मुमकिन नहीं है.

 

क्या हैं चीन के आंकड़ें?

पिछले साल चीन की अर्थव्यवस्था 2.3 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ी है. 2020 की शुरुआत में कोविड-19 के शटडाउन की वजह से पैदा हुई सुस्ती के बावजूद चीन ग्रोथ करने में कामयाब रहा है.

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास, व्यापार, निवेश और टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता रखने वाले नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डिवेलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफ़ेसर डॉ. प्रबीर डे कहते हैं कि अगर कोविड के दौर को देखें तो पिछले साल फ़रवरी से इस साल जनवरी तक के दौर में चीन ही दुनिया की एकमात्र ऐसी बड़ी इकनॉमी है जो लगातार पॉज़िटिव ग्रोथ से बढ़ रही है.

हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था पिछले चार दशकों में पहली बार 2020 में सबसे सुस्त रफ्तार से बढ़ी है.

लेकिन, डॉ. डे कहते हैं, “चीन की जीडीपी का साइज़ मौजूदा प्राइस के हिसाब से क़रीब 10 लाख करोड़ डॉलर का है. ऐसे में इसमें अगर 1 फ़ीसदी की भी बढ़ोतरी होती है तो इससे भी एक बड़ा असर पैदा होता है.”

2020 की आख़िरी तिमाही यानी अक्तूबर से दिसंबर के बीच चीन की ग्रोथ 6.5 फ़ीसद रही है जो कि एक ज़बरदस्त आंकड़ा है.

इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट यू सु के मुताबिक़, “जीडीपी आंकड़ों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था तकरीबन सामान्य हो चुकी है. यह रफ्तार जारी रहेगी, हालांकि उत्तरी चीन के कुछ प्रांतों में कोविड-19 के मौजूदा मामलों के चलते अस्थाई रूप से इसमें उतार-चढ़ाव आ सकता है.”

जुलाई से सितंबर के क्वॉर्टर में चीन की ग्रोथ पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 4.9 फ़ीसद रही थी.

2020 के पहले तीन महीनों में पूरे देश में फ़ैक्टरियों और मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स के शटडाउन के चलते चीन की ग्रोथ नेगेटिव 6.8 फ़ीसद रही थी.

दूसरी तिमाही में चीन की ग्रोथ 3.2 फ़ीसद रही और इस तिमाही से ही चीन रिकवरी की राह पर चल पड़ा.

ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि चीन ने यह ग्रोथ एक ऐसे वक़्त में हासिल की है जबकि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलने को लेकर चीन को लेकर ग़ुस्सा था और चीन के साथ कारोबार न करने के मंसूबे दुनियाभर में बनाए जा जा रहे थे.

 

क्या हैं वजहें?

वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था के दोबारा खड़े होने के पीछे दो-तीन वजहें हैं.

वे कहते हैं, “पहला तो चीन ने महामारी को बड़ी तेज़ी से कंट्रोल कर लिया. इसके बाद उन्होंने अर्थव्यवस्था को जल्दी ही खोल दिया. महामारी को कंट्रोल कर लेने के चलते चीन को दूसरे देशों जैसी दिक़्क़तों का सामना नहीं करना पड़ा.”

प्रो. कुमार कहते हैं कि चीन ने कोरोना वायरस को अपने यहां दूसरे इलाक़ों में फैलने नहीं दिया. उन्होंने इसे हुवेई प्रांत में ही कंट्रोल कर लिया. इस वजह से चीन अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी करने में सफल रहा.

 

एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग में रफ्तार

चीन का एक्सपोर्ट सेक्टर दिसंबर 2020 में भी तेज़ रफ्तार से बढ़ा है. दिसंबर में चीन का ट्रेड सरप्लस रिकॉर्ड पर पहुँच गया.

पूरी दुनिया में हेल्थकेयर उपकरणों और वर्क फ्रॉम होम की तकनीकों की माँग ने चीन के एक्सपोर्ट को बरक़रार रखा है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “ऐसा लग रहा था कि महामारी के चलते चीन का एक्सपोर्ट में बड़ी गिरावट आएगी, वैसा नहीं हुआ.”

“सोचा ये जा रहा था कि कोविड-19 फैलने के चलते बाक़ी देशों में माँग कमज़ोर होगी, लेकिन उल्टा ये हुआ कि दुनियाभर के देश चीन से सामान ख़रीदने लगे.”

वे कहते हैं कि लग रहा था कि चीन से नाराज़गी के चलते दूसरे देश वहां से सामान नहीं ख़रीदेंगे, लेकिन, ऐसा नहीं हुआ.

दिसंबर में चीन का निर्यात 18.1 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है. जबकि नवंबर में ये ग्रोथ 21.1 फ़ीसद थी.

क्रिसिल के डी के जोशी कहते हैं, “चीन की ग्रोथ बड़े तौर पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आ रही है. चीन का एक्सपोर्ट भी दमदार बना हुआ है. इसके अलावा, चीन की सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी बड़ा पैसा लगा रही है.”

अमरीका को एक्सपोर्ट भी दिसंबर में एक साल पहले के मुक़ाबले 34.5 फ़ीसद बढ़ा है. दूसरी ओर, अमरीकी सामानों का चीन में आयात भी 47.7 फ़ीसद बढ़ा है जो कि जनवरी 2013 के बाद सबसे ज्यादा है.

पूरे साल के लिए चीन का अमरीका से ट्रेड सरप्लस 317 अरब डॉलर रहा है जो कि 2019 के मुक़ाबले सात फ़ीसदी ज्यादा है.

पिछले साल सितंबर में चीन के एक्सपोर्ट के आंकड़ों से ही मज़बूत रिकवरी के संकेत मिलने लगे थे.

इस दौरान चीन का एक्सपोर्ट 2019 के सितंबर महीने के मुक़ाबले 9.9 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ा, जबकि आयात में 13.2 फ़ीसद की ग्रोथ दर्ज की गई.

फ़िलहाल ऐसा दिख रहा है कि चीन का मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर रिकवर हो चुका है. इंडस्ट्रियल आउटपुट में 7.3 फ़ीसद की ग्रोथ दिखाई दी है.

प्रो. डे कहते हैं कि चीन का अभी भी ज्यादातर देशों के साथ ट्रेड सरप्लस बना हुआ है. चीन ने अपने यहां बड़े पैमाने पर रिफॉर्म किए हैं और कारोबारी माहौल को अनुकूल बनाया है.

 

नक़दी डालना

साल 2020 की शुरुआत में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्रोथ और रोज़गार को सपोर्ट करने के क़दम उठाने शुरू कर दिए.

पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने पिछले साल फ़रवरी में रिवर्स रेपो के ज़रिए अर्थव्यवस्था में कुल 1.7 लाख करोड़ युआन (242.74 अरब डॉलर) की पूंजी डाली थी.

साल के अंत में यानी दिसंबर में चीन के केंद्रीय बैंक ने 950 अरब युआन (145 अरब डॉलर) मीडियम-टर्म लेंडिंग फ़ैसिलिटी के जरिए लगाए हैं.

दिसंबर ऐसा लगातार पाँचवां महीना था जबकि चीन ने इस टूल का इस्तेमाल करते हुए अर्थव्यवस्था में नकदी डाली है. साथ ही केंद्रीय बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज दरों को भी 2.95 फ़ीसद पर स्थिर रखा है.

पिछले एक साल में चीन में 2.44 लाख करोड़ युआन के नए लोन बांटे गए हैं. ख़ासतौर पर ये लोन छोटी कंपनियों को दिए गए हैं.

 

ट्रैवल बूम और घरेलू खपत पर ज़ोर

 

चीन

हालांकि, कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल पर भले ही प्रतिबंध हों, लेकिन चीन में घरेलू ट्रैवल ने अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने का काम किया है.

अक्तूबर में चीन में मनाए जाने वाले गोल्डन वीक में लाखों की संख्या में चीनी लोगों ने ट्रैवल किया. गोल्डन वीक के दौरान हर साल छुट्टियां होती हैं.

आठ दिन की इन छुट्टियों के दौरान चीन में 63.7 करोड़ ट्रिप्स हुईं और इनसे करीब 69.6 अरब डॉलर का रेवेन्यू पैदा हुआ.

चीन की अर्थव्यवस्था मूल रूप में निवेश और मैन्युफैक्चरिंग पर आधारित है. लेकिन, चीन इसे खपत और सर्विसेज आधारित बनाने पर फोकस कर रहा है.

प्रो. डे कहते हैं कि चीन ने अपने यहां इंफ्रास्ट्रक्चर समेत दूसरे सेक्टरों में भारी निवेश किया है और इसके चलते डिमांड पैदा की है.

डे कहते हैं कि 2009 ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद चीन ने इससे सबक लिया और अपनी इकनॉमी को एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग आधारित से घरेलू खपत और सर्विसेज मार्केट आधारित इकनॉमी पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया.

हालांकि, डी के जोशी कहते हैं कि चीन में घरेलू खपत ज्यादा नहीं बढ़ी है और चीन पहले की तरह से इंफ्रास्ट्रक्चर को बूस्ट करने के जरिए इसे बढ़ा रहा है. पहले चीन की खपत ज्यादा थी जिसमें अभी तक रिकवरी नहीं हुई थी.

चीन में घरेलू बचत दर पिछले 10 साल के ऐतिहासिक स्तर से भी ऊपर चल रही है. जोशी के मुताबिक, ऐसे में ग्रोथ की वजह चीन में खपत में बढ़ोतरी नहीं है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं कि चीन ने महामारी के दौरान अपने यहां खपत पर काफी फोकस किया है. वे कहते हैं, “दूसरे देशों में बेरोजगारी बढ़ने से खपत भी कम हो गई. ऐसे में चीन ने जो नीतियां अपनाईं, उससे चीन को तेजी से उबरने में मदद मिली.”

 

चीन को अलग-थलग करने की मुहिम फीकी पड़ी

कोविड-19 के चरम के वक्त दुनियाभर में चीन को लेकर जो ग़ुस्सा था वो भी अब दिखाई नहीं देता और हर देश चीन से सामान मंगा रहा है. फार्मा, मेडिकल और दूसरी सभी डिमांड चीन के पास जा रही है.

प्रो. डे कहते हैं चीन के आइसोलेशन की बातें बेमानी साबित हुई हैं. इसके अलावा, ऐसा भी हल्ला खूब मचा था कि कंपनियां चीन छोड़कर जाना चाहती हैं, लेकिन 30-35 कंपनियों को छोड़कर सारी कंपनियां वहीं रुकी हुई हैं. इसकी वजह यह है कि चीन निवेश करने वालों को हर मुमकिन सुविधा और सुरक्षा देता है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “चीन से सप्लाई पर कुछ प्रतिबंध लगाने के चलते भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर में दिक्कतें आ रही हैं. इसका नुकसान हमें ही हो रहा है.”

कंपनियों का अचानक चीन छोड़कर जाना आसान काम भी नहीं है. सप्लाई चेन जैसी चीजों को एक दिन में बदला नहीं जा सकता है. चीन की सप्लाई चेन बेहद मजबूत है और अगर कोई डायवर्सिफाई करना भी चाहता है तो उसमें वक्त भी लगता है और उसका खर्च भी बैठता है.

विदेशी कंपनियों के चीन छोड़कर जाने के सवाल पर क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं, “ऐसा पहले से हो रहा है. चीन से लेबर इंटेंसिव कारोबार पहले से दूसरे देशों में जा रहे हैं. मसलन, टेक्सटाइल का कामकाज बांग्लादेश शिफ्ट हो चुका है. महामारी के वक्त इस तरह के कम मार्जिन वाले कामों के चीन से दूसरे देशों में शिफ्ट होने में तेजी आ गई है.”

वे कहते हैं, “चीन अब महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स आइटमों जैसे सेक्टरों पर ही फोकस कर रहा है.”

 

चीन का आरसीईपी की अगुवाई करना

चीन समेत एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र के 15 देशों ने नवंबर 2020 में ‘दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार संधि’ पर दस्तख़त किए हैं.

जो देश इस व्यापारिक संधि में शामिल हुए हैं, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था में क़रीब एक-तिहाई के हिस्सेदार हैं.

‘द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप’ यानी आरसीईपी में दस दक्षिण-पूर्व एशिया के देश हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी इसमें शामिल हुए हैं.

प्रो. डे कहते हैं कि इस एग्रीमेंट के लिए 12 साल से बातचीत चल रही थी. इसमें चीन का एक ही इंटरेस्ट है- कारोबार और ट्रेडिंग. ये एग्रीमेंट इसी रणनीति का हिस्सा है. आरसीईपी में चीन को छोड़कर जो 14 देश हैं उन सब के साथ चीन का ट्रेड सरप्लस है.

 

ईयू के साथ कारोबारी समझौता

इसके अलावा यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच एक बड़ी इनवेस्टमेंट डील पर भी सहमति बन गई है. अमरीका के नए बनने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन के ईयू को इस डील पर जल्दबाज़ी न करने की सलाह देने के बावजूद ईयू और चीन इस समझौते पर सैद्धांतिक रूप से राज़ी हो गए हैं.

इस डील को कॉम्प्रिहैंसिव एग्रीमेंट ऑन इनवेस्टमेंट (सीएआई) का नाम दिया गया है और इसके शुरुआती ड्राफ्ट को दोनों पक्षों की मंज़ूरी दिसंबर के आख़िर में मिल चुकी है.

डी के जोशी कहते हैं, “चीन के यूरोपीय यूनियन के साथ इनवेस्टमेंट डील और आरसीईपी समझौते ये दिखाते हैं कि महामारी का चीन के ऊपर कोई ख़ास असर नहीं हुआ है. यहां तक कि ईयू के साथ समझौते में तो चीन कई तरह की रियायतें और शर्तों को मानने के लिए भी राज़ी हो गया है.”

इस एग्रीमेंट के तहत यूरोपीय कंपनियों को चीन के बाज़ार में दाख़िल होने के ज्यादा मौक़े मिलेंगे और वे इलेक्ट्रिक कारों, निजी अस्पतालों, रियल एस्टेट, टेलीकाॉम क्लाउड सर्विसेज समेत कई सेक्टरों में निवेश कर पाएंगी.

चीन विदेशी कंपनियों से टेक्नोलाॉजी ट्रांसफ़र की ज़रूरत को भी ख़त्म करेगा और अपने यहां पारदर्शिता बढ़ाएगा.

माना जा रहा है कि इस डील के ज़रिए चीन यूरोपीय देशों का बड़ा निवेश अपने यहां हासिल करने में सफल रहेगा.

प्रो. डे कहते हैं कि यूरोप में भी चीन का तगड़ा निवेश है और हर तरह का सामान चीन मुहैया करा रहा है.

 

अमरीका, भारत और दूसरी अर्थव्यवस्थाएं क्यों पिछड़ीं?

बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत उन देशों में शामिल है जहां इकनॉमी को सबसे बड़ा झटका लगा है. इसके अलावा, अमरीका और दूसरे देश भी पहले से सुस्ती के दौर में बने हुए थे और कोविड-19 ने इन हालातों को और बुरा बना दिया.

प्रो. कुमार कहते हैं, “चीन के मुक़ाबले भारत को देखा जाए तो मेरे हिसाब से इस साल देश की इकनॉमी क़रीब 25 फ़ीसद संकुचित होगी. हमारे यहां असंगठित क्षेत्र को ग्रोथ के आंकड़ों में शामिल ही नहीं किया जाता. इस वजह से सही आंकड़े नज़र नहीं आते.”

प्रो. कुमार कहते हैं, “अमरीका में लोगों ने कोरोना को लेकर ज्यादा सतर्कता नहीं दिखाई. इन वजहों से वहां बार-बार लॉकडाउन लगाना पड़ा. इसके चलते यूएस में इकनॉमी रिकवर नहीं पाई. दूसरी ओर, चीन ने अपने यहां इसे सख्ती से कंट्रोल कर लिया, जबकि जिस तरह से चीन से यह वायरस फैलना शुरू हुआ था वहां सबसे ज्यादा मौतें होनी चाहिए थीं. लेकिन, चीन इसे रोकने में सफल रहा. अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में उन्हें इससे मदद मिली.”

हालांकि, क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं कि ग्रोथ के लिहाज़ से भारत की तुलना चीन से नहीं की जा सकती है. चीन एक अलग उदाहरण है. कोरोना को रोकने में भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले अच्छा काम किया है.

जोशी कहते हैं कि शुरुआत में भारत की ग्रोथ तेज़ी से गिरी, लेकिन बाद में इसमें उम्मीद से तेज़ रिकवरी भी हुई है.

 

पिछले 2-3 दशकों में चीन की ग्रोथ

चीन ने क़रीब 40 साल पहले आर्थिक सुधारों और कारोबारी उदारीकरण की नीतियां लागू कीं. उस वक़्त तक चीन एक बेहद ग़रीब, एक जगह रुका हुआ, केंद्रीय रूप से नियंत्रित और वैश्विक अर्थव्यवस्था से कटा हुआ देश था.

1979 में चीन ने अपने बाज़ारों को खोलने और विदेशी व्यापार को इजाज़त देने का फ़ैसला किया. इसके बाद देखते ही देखते चीन दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गया.

2018 तक चीन की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 9.5 फ़ीसदी के औसत से आगे बढ़ी है. विश्व बैंक ने इसे “इतिहास में किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ रफ्तार से टिकाऊ विस्तार” क़रार दिया था.

हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ कमज़ोर पड़ी है और यह 2007 में 14.2 फ़ीसद की रफ्तार से 2018 में घटकर 6.6 फ़ीसद पर आ गई है.

पिछले दो दशकों में चीन की औसत आर्थिक ग्रोथ क़रीब नौ फ़ीसद रही है. ऐतिहासिक तौर पर चीन एक मज़बूत ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ा है. 21वीं सदी के पहले दशक में चीन की ग्रोथ दहाई के अंक में रही है.


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adminJanuary 27, 20211min00

गूगल ने धमकी दी है कि अगर न्यूज़ पब्लिशर्स के साथ उसके रिश्तों को तय करने वाले नए क़ानूनों पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार आगे बढ़ती है तो वह वहां के बाज़ार को छोड़कर चली जाएगी.

ऐसे में लोग यह जानना चाहते हैं आखिर यह पूरा मसला क्या है?

 

गूगल ऑस्ट्रेलिया को क्यों छोड़ना चाहती है?

सरकार एक नया क़ानून ला रही है जिसमें लंबे वक्त से उठ रहे इस मसले को हल करने की कोशिश की गई है कि क्या टेक्नोलॉजी सेक्टर की दिग्गज कंपनियों को सर्च रिजल्ट या उनके प्लेटफॉर्म्स पर साझा की जाने वाली ख़बरों के लिए पैसे चुकाने चाहिए या नहीं?

प्रस्तावित कानून में यह अनिवार्य कर दिया गया है कि गूगल का सभी न्यूज़ ऑर्गेनाइजेशंस के साथ एक कर्मशियल एग्रीमेंट हो या फिर उसे जबरदस्ती इस तरह के आर्बिट्रेशन में दाखिल किया जाए. गूगल का कहना है कि यह चीज लागू किए जाने योग्य नहीं है.

सीधे तौर पर कहा जाए तो गूगल को अपने सर्च पर दिखने वाली ख़बरों के लिए न्यूज ऑर्गनाइजेशंस को पैसे चुकाने होंगे.

गूगल के रीजनल डायरेक्टर मेल सिल्वा के मुताबिक, “अगर इन प्रस्तावों को क़ानून बनाया गया तो हमारे पास ऑस्ट्रेलिया में गूगल सर्च को बंद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा.”

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने गूगल की प्रतिक्रिया पर कहा है, “हम धमकियों पर टिप्पणी नहीं करते.”

 

ऑस्ट्रेलिया गूगल से किस चीज़ के लिए पैसे चुकाने को कह रहा है?

अभी तक यह तय नहीं है कि इस मसले के पीछे कितने पैसों का सवाल है.

प्रस्तावित क़ानून में सौदेबाजी और आर्बिट्रेशन का जिक्र है. इस तरह से इसमें गुंजाइश का विकल्प है. अगर गूगल किसी न्यूज संस्थान के साथ एग्रीमेंट नहीं कर पाती है तो कोई जज एक उचित सौदे को तय करेगा.

लेकिन, सरकार का कहना है कि वह चाहती है कि न्यूज संस्थानों को एक उचित भुगतान मिले.

पिछले 15 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में प्रिंट संस्थानों की विज्ञापन से होने वाली कमाई तीन-चौथाई से ज्यादा घटी है.

इसके उलट, इतने ही वक्त में गूगल और फेसबुक जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स की डिजिटल एडवर्टाइजिंग में भारी इजाफा हुआ है.

 

क्या विकल्प मौजूद हैं?

बाकी की दुनिया की तरह से ही ऑस्ट्रेलिया के सर्च इंजन मार्केट में भी गूगल की हिस्सेदारी करीब 90-95 फ़ीसद है.

सर्च के लिए माइक्रोसॉफ्ट बिंग और याहू के विकल्प भी मौजूद हैं. इसके अलावा, प्राइवेसी पर फोकस करने वाले डकडकगो जैसे सर्च इंजन भी मार्केट में हैं.

हालांकि, साइट एनालिसिस करने वाली कंपनी एलेक्सा की रैंकिंग में गूगल इंटरनेट पर सबसे ज्यादा विजिट की जाने वाली साइट है. याहू इस कतार में 11वें नंबर पर और बिंग 33वें पायदान पर है.

 

गूगल के जाने से लोगों पर वाकई कोई फर्क पड़ेगा?

2019 में वायर्ड मैगजीन के लिए एक लेखक ने तीन महीने केवल बिंग का इस्तेमाल करके देखा. इस लेखक का निष्कर्ष यह था कि तकरीबन हर बार बिंग ने अच्छा काम किया.

लेकिन, बेहद खास मामलों में, मसलन, पुराने आर्टिकल्स ढूंढने में उसे दिक्कत हुई क्योंकि गूगल का इस्तेमाल करके सर्च करने की जो तकनीक उन्होंने सीखी थी, वह बिंग पर कारगर साबित नहीं हुई.

गूगल महज एक सर्च इंजन नहीं है- इसकी सर्च टेक्नोलॉजी जीमेल, गूगल मैप्स और यूट्यूब समेत कई तरह की सर्विसेज भी देती है.

फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि अगर गूगल ऑस्ट्रेलियाई बाजार से निकल जाती है तो इसका लोगों पर क्या असर पड़ेगा.

इसके विकल्प जरूर मौजूद हैं, लेकिन इनका बेहद कम इस्तेमाल होता है और बड़े पैमाने पर लोग गूगल ऐप्स को जरूरी समझते हैं.

अमेरिकी रेगुलेटर्स के साथ रस्साकसी के बीच जब ख्वावे फोनों पर गूगल सर्विसेज मिलनी बंद हो गईं तो ख्वावे के लिए पश्चिमी देशों में अपने फोन्स बेचने में खासी दिक्कत होने लगी थी.

 

क्या यह कानून पूरी दुनिया में एक मिसाल बनेगा?

ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर रेक्स पैट्रिक ने गूगल से कहा, “ऐसा पूरी दुनिया में होने वाला है. क्या आप सभी बाज़ारों से निकल जाएंगे?”

लेकिन, गूगल और इस कानून से प्रभावित होने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां अमरीका में स्थित हैं.

और अमेरिकी सरकार – कम से कम इसके पिछले ट्रंप प्रशासन- ने ऑस्ट्रेलिया से अनुरोध किया है कि वे नए क़ानून लाने में जल्दबाजी न करें. उन्होंने चेताया है कि यह असाधारण है और इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं.

हालांकि, इस तरह का अभी तक कोई उदाहरण नहीं है जबकि स्थानीय कानूनों के चलते गूगल ने किसी देश को छोड़ा हो.

कथित चीनी हैकिंग के 2010 के विवाद के बाद से गूगल बड़े तौर पर मेनलैंड चीन में उपलब्ध नहीं है. तब इसने चीनी यूजर्स के लिए सर्च रिजल्ट्स को सेंसर करना बंद कर दिया था.

इससे थोड़ा सा अलग विवाद यूरोप में भी चल रहा है.

कॉपीराइट को लेकर यूरोपीय यूनियन का एक नया विवादित नियम कहता है कि सर्च इंजनों और न्यूज़ एग्रीगेटरों को लिंक्स के लिए न्यूज़ साइट्स को पैसे देने चाहिए.

फ्रांस में इस हफ्ते पब्लिशर्स ने इसे लागू करने के तरीकों पर गूगल के साथ एक डील पर सहमति जताई है.

लेकिन, इस तरह की चुनिंदा डील्स ही हो पाई हैं. और इस तरह से यह ऑस्ट्रेलिया के व्यापक पैमाने पर और ज्यादा सख्ती वाले कानूनों से काफी अलग है.

 

गूगल के लिए ऑस्ट्रेलिया कितना अहम है?

चीन के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया कहीं कम संभावनाओं वाला मार्केट है.

गूगल ऑस्ट्रेलिया ने 2019 में 3.7 अरब डॉलर का रेवेन्यू हासिल किया था. इसका ज्यादातर हिस्सा विज्ञापनों से होने वाली कमाई थी. लेकिन, सारे खर्च निकालकर भी गूगल ऑस्ट्रेलिया को 2019 में 13.4 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का मुनाफा हुआ था.

गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के पास 100 अरब डॉलर से ज्यादा की पूंजी है जिसके जरिए वह आमदनी में होने वाली किसी भी कमी की भरपाई कर सकती है.

लेकिन, मसला पैसे का नहीं है.

बड़ा मसला यह है कि क्या गूगल चाहती है कि एक आधुनिक पश्चिमी देश यह करके दिखाए कि कैसे गूगल के बिना उसके प्रतिस्पर्धियों के सहारे काम चलाया जा सकता है.

 

क्या ऑस्ट्रेलियाई लोग यूएस गूगल का इस्तेमाल नहीं कर सकते?

यह मुमकिन है कि गूगल ऑस्ट्रेलियाई लोगों को यूएस या किसी अन्य देश के गूगल के वर्जन पर भेज दे.

इससे लोकलाइज्ड सर्च रिजल्ट्स मिलने बंद हो सकते हैं, लेकिन गूगल की सर्विसेज चलती रहेंगी.

लेकिन, गूगल भौगोलिक लोकेशन (आईपी एड्रेस के जरिए) के आधार पर ऑस्ट्रेलियाई यूजर्स को ब्लॉक भी कर सकती है.

इसका एक आसान तरीका वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क या वीपीएन का इस्तेमाल हो सकता है. इसके जरिए यह लगेगा कि आपका कंप्यूटर कहीं और है. कई दफा तकनीकी जानकार दूसरे देशों में स्ट्रीमिंग सर्विसेज हासिल करने के लिए ऐसा करते हैं.

लेकिन, यह स्लो होती है और अच्छे प्रोवाइडर्स इसके लिए सब्सक्रिप्शन मांगते हैं. यह एक ऐसी दिक्कत है जिसमें एक मामूली का सर्च रिजल्ट हासिल करने के लिए कोई उलझना नहीं चाहेगा.

 

क्या पब्लिशर्स को इससे वाकई में फायदा होगा?

ऑस्ट्रेलिया में एक समृद्ध न्यूज इंडस्ट्री रही है. मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक यहीं पैदा हुए थे.

मर्डोक के न्यूज कॉर्प को इससे फायदा होगा. इसके अलावा, एबीसी न्यूज़ को भी फायदा होगा.

2014 से ही एबीसी की फंडिंग में करोड़ों डॉलरों की कटौती हुई है और इसके चलते इसे अपनी सेवाओं को कम करना पड़ा है.

स्थानीय अखबारों को भी विज्ञापन घटने से नुकसान हुआ है.

125 से ज्यादा न्यूज कॉर्प के मालिकाना हक वाले स्थानीय अख़बारों ने इस साल की शुरुआत में पूरी तरह से ऑनलाइन होने का फैसला किया है. इससे सैकड़ों की तदाद में नौकरियां खत्म हो रही हैं.


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adminJanuary 6, 20212min00

जहां कोरोना महामारी के दौर में कई लोगों के कारोबार घाटे में चले गए वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें ये महामारी पहले से भी ज़्यादा अमीर बना गई.

ये साल कई लोगों के लिए मुश्किलों भरा रहा है.

दुनिया भर में कोरोना के कारण 16 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और आर्थिक संकट के चलते कई कारोबार बंद हो गए और लाखों नौकरियां चली गईं.

लेकिन, कई अमीरों के लिए हालात इतने बुरे भी नहीं रहे हैं.

दुनिया के 60 प्रतिशत से ज़्यादा अरबपति साल 2020 में और अमीर हो गए हैं और इनमें से पांच वो लोग हैं जिनकी कुल दौलत 310.5 अरब डॉलर हो गई है. आपको बताते हैं कि ये लोग कौन हैं-

 

एलन मस्क, टेस्ला के सह-संस्थापक और सीईओ

स्पेस एक्स के संस्थापक और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की संपत्ति में साल 2020 में 140 अरब डॉलर और जुड़ गए हैं. ब्लूमबर्ग के मुताबिक पिछले सोमवार को उनकी कुल संपत्ति 167,000 मिलियन डॉलर (1 खरब 67 अरब डॉलर) तक पहुंच गई है.

इसके साथ ही एलन मस्क अरबतियों की सूची में कई पायदान ऊपर चढ़ गए हैं और नवंबर में बिल गेट्स को पीछे छोड़ दूसरे स्थान पर आ गए हैं. उनसे ऊपर पहले पायदान पर अमेज़न के संस्थापक जेफ़ बेज़ोस का नाम है.

फोर्ब्स के मुताबिक जब से पत्रिका ने दुनिया के अमीर लोगों की सूची बनानी शुरू की है तब से लेकर अब तक किसी अरबपति की एक साल में की गई ये सबसे ज़्यादा कमाई है.

एलन मस्क की कंपनी टेस्ला एक इलैक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी है. इस साल कंपनी में कारों की रिकॉर्ड बिक्री हुई है. वहीं, मस्क की दूसरी कंपनी स्पेस एक्स ने भी इस साल तरक्की की है और वो अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट लॉन्च करने वाली पहली निजी कंपनी बनी है.

 

 

जेफ़ बेज़ोस, अमेज़न के संस्थापक और सीईओ

जेफ़ बेज़ोस वो शख़्सियत हैं जिन्होंने साल 2020 की शुरुआत दुनिया के सबसे अमीर शख़्स बनकर की थी और उसका अंत भी इसी तरह किया है.

जेफ़ बेज़ोस सिर्फ़ ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म अमेज़न के संस्थापक ही नहीं है बल्कि इसके अलावा वो अमेरिकी अख़बार ‘द वॉशिगटन पोस्ट’ के मालिक भी है.

उन्होंने इस साल अपनी संपत्ति में 72 अरब डॉलर और जोड़े हैं. इसकी वजह है कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाइन खरीदारी का बढ़ना. लॉकडाउन में दुकाने बंद होने के कारण लोगों ने बढ़-चढ़कर ऑनलाइन खरीदारी की है.

कुछ महीनों पहले जेफ़ बेज़ोस की कुल संपत्ति 200 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गई थी. हालांकि, फिलहाल उनकी संपत्ति 187 अरब डॉलर है.

जेफ़ बेज़ोस सामाजिक कार्यों में भी अपना योगदान देते रहते हैं. फरवरी में उन्होंने 10 अरब डॉलर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दान दिए थे. नवंबर में 80 करोड़ डॉलर उन्होंने पर्यावरण पर काम करने वालीं संस्थाओं को दिए थे.

उनकी पूर्व पत्नी मैकेंज़ी स्कॉट ने इस साल कम से कम 5.8 अरब डॉलर गैर-सरकारी संस्थाओं को दान किए थे.

ज़ोंग शनशन, नों फू स्प्रिंग के संस्थापक

ब्लूमबर्ग के मुताबिक ज़ोंग शनशन की कुल संपत्ति 62.6 अरब डॉलर तक बढ़ गई है (मौजूदा 69 डॉलर).

जोंग सितंबर में चीन के सबसे ज़्यादा अमीर शख़्स बन गए थे. उनकी बोतलबंद पानी की कंपनी नों फू स्प्रिंग ने शेयर की सार्वजनिक बिक्री शुरू करने के बाद 1.1 अरब डॉलर से ज़्यादा की कमाई की थी.

नों फू स्प्रिंग की स्थापना 1996 में हुई थी जो एशिया में बोतलबंद पानी के बाज़ार के पांचवे हिस्से को नियंत्रित करती है. उनकी कंपनी का मूल्य 70 अरब डॉलर है.

66 साल के ज़ोंग कंपनी के 84 प्रतिशत से अधिक हिस्से के मालिक हैं, जिसकी शेयर वैल्यू लगभग 60 अरब डॉलर है.

इसके कारण ज़ोंग शनशन टेनसेंट्स के पोनी मा और अलीबाब के जैक मा जैसे अरबपतियों से आगे निकल गए हैं. वो हाल के महीनों में चीन के सबसे अमीर आदमी बन गए हैं. वह वैक्सीन निर्माता बीजिंग वॉन्टा बायोलॉजिकल फार्मेसी का स्वामित्व रखते हैं.

ये कंपनी कोविड-19 के लिए नाक से लिया जाने वाला स्प्रे बना रही है जो नवंबर में दूसरे फेज़ का ट्रायल कर रही थी.

बर्नार्ड आरनॉल्ट, एलवीएमएच ग्रुप के मालिक

फ्रांस के बर्नार्ड आरनॉल्ट अपने देश के सबसे अमीर व्यक्ति हैं और फोर्ब्स ने उन्हें अमीर लोगों की सूची में दूसरे नंबर पर रखा था. ब्लूमबर्ग ने उन्हें रैंकिंग में चौथे नंबर पर रखा था.

लग्ज़री सामानों की कंपनी एलवीएमएच के मालिक आरनॉल्ट की कुल संपत्ति इस साल के अंत तक 146.3 अरब डॉलर हो गई है. उनके लिए ये मुश्किल साल होने के बावजूद भी साल 2020 में आरनॉल्ट की संपत्ति 30 प्रतिशत तक बढ़ी है.

कोरोना महामारी के कारण एलवीएमएच ने टिफनी एंड कंपनी का अधिग्रहण करने की योजना अस्थायी तौर पर रोक दी थी. लेकिन, अक्टूबर में उन्होंने 15.8 अरब डॉलर में कंपनी के अधिग्रहण का समझौता किया जो कि इसके मूल प्रस्ताव से 40 करोड़ डॉलर कम है.

लग्ज़री उत्पादों की बिक्री में लगातार कमी आ रही है लेकिन एलवीएमएच ने इस मामले में सबको हैरान किया है. दक्षिण कोरिया और चीन में उनके कुछ उत्पादों की बढ़े स्तर पर बिक्री हुई है.

 

 

डैन गिलबर्ट, रॉकेट कंपनीज़ के अध्यक्ष

58 साल के गिलबर्ट एनबीए क्लीवलैंड कैवेलियर्स के मालिक हैं और ऑनलाइन मॉर्टेज कंपनी क्विकन लोन्स के सह-संस्थापक हैं. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक 2020 में उनकी कुल संपत्ति 28.1 अरब डॉलर तक बढ़ गई है. अब उनकी कुल संपत्ति 35.3 अरब डॉलर है.

इसकी वजह ये है कि क्विकन लोन्स की मूल कंपनी रॉकेट कंपनीज़ ने अगस्त में शेयर और अन्य वित्तीय साधनों की सार्वजनिक बिक्री शुरू की थी. गिलबर्ट के पास रॉकटे कंपनीज़ का 80 प्रतिशत से ज़्यादा मालिकाना हक है जिसका कुल मूल्य 31 अरब डॉलर से ज़्यादा है.

गिलबर्ट की कुल संपत्ति एक साल में छह गुना बढ़ी है जिसकी वजह है क्विकन लोंस का आईपीओ.


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adminDecember 29, 20201min00

साल 2020 ने सिर्फ लोगों के ज़हन पर ही नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी गहरी छाप छोड़ी है.

कोरोना वायरस महामारी ने ना सिर्फ बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट पैदा किया बल्कि वैश्विक मतभेदों और प्रतिस्पर्धाओं को भी और गहरा किया. इसका अमेरिका और चीन के रिश्तों पर भी गहरा असर रहा है.

साल 2020 में नागार्नो-काराबाख जैसे कुछ प्राचीन विवाद भी फिर उभर आए.

भारत और चीन की सीमा पर पैंतालीस सालों में सबसे भीषण तनाव भी हुआ.

लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ टकराव ही हुए हों. कुछ देश करीब भी आए और लंबे समय तक असर रखने वाले ऐतिहासिक समझौते भी हुए.

 

1. अमेरिका का तालिबान के साथ समझौता

अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के आक्रमण के 18 साल बाद राष्ट्रपति ट्रंप उसी तालिबान से समझौता करने में कामयाब रहे जिसकी सरकार को अमेरिका ने उखाड़ दिया था. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरीकी सैनिकों को वापस लाना ट्रंप के साल 2016 के चुनावी वादों में शामिल था.

अफ़ग़ानिस्तान-अमेरिका युद्ध की मानवीय क़ीमत भी बहुत भारी रही है. अनुमान के मुताबिक 157000 से अधिक लोग मारे गए हैं जिनमें 43 हज़ार से अधिक आम नागरिक हैं. अब 25 लाख अफ़ग़ान नागरिक शरणार्थी भी बन गए हैं.

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भी भारी क़ीमत चुकाई है. अमेरिका के 2400 से अधिक सैनिक मारे गए जबकि नेटो सहयोगियों के 1100 से अधिक सैनिकों ने अफ़ग़ानिस्तान में जान गंवाई. अनुमान के मुताबिक अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान युद्ध पर दो अरब डॉलर से अधिक ख़र्च किए हैं.

साल 2020 में अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना को वापस बुलाने के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच अहम समझौता हुआ. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के अलावा इस समझौते के तहत तालिबान और अफ़ग़ान सरकार के बीच भी वार्ता होनी है.

विश्लेषकों के मुताबिक तालिबान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की ओर से दिए जा रहे संकेतों को पढ़ने में कामयाब रहा और मौके को भुना लिया.

साल 2016 से 2018 तक पेंटागन में अफ़ग़ानिस्तान मामलों को निदेशक रहे जेसन कैंपबेल को इस समझौते की कामयाबी पर शक है हालांकि वो मानते हैं कि आज का तालिबान पहले के मुकाबले अधिक व्यवहारिक है.

कैंपबेल के मुताबिक आज का तालिबान पश्चिमी देशों और अमेरिका के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है ख़ासकर व्यापार और विकास के मामलों में. वो कहते हैं, ‘वो 1990 के दौर में वापस नहीं लौटना चाहते हैं जब वो एक नाकाम राष्ट्र थे.’

 

2. इसराइल का बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के साथ रिश्ते बनाना

अगस्त और सितंबर 2020 के बीच संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इसराइल के साथ रिश्ते सामान्य करने की घोषणा की. ये पहले अरब देश हैं जिन्होंने पिछले 25 सालों में यहूदी देश इसराइल के साथ रिश्तों को मान्यता दी है.

इससे पहले मिस्र ने 1979 में और जोर्डन ने 1994 में इसराइल को मान्यता दी थी. इन समझौतों को मध्य पूर्व में इसराइल की बदलती भूमिका के तौर पर भी देखा जा रहा है. अब इसराइल पहले से अधिक सुरक्षित स्थिति में है.

इसराइल और मध्य पूर्व के दो देशों के बीच हुए समझौतों का डोनल्ड ट्रंप ने खुला समर्थन किया. लेकिन इनके पीछे कुछ और भी कारण थे. इनमें से एक है ईरान के प्रति इन देशों का डर.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार रियान बोह्ल के मुताबिक अरब देश इसराइल के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ़ अनौपचारिक ब्लॉक बना रहे हैं. अगर अमेरिका मध्य पूर्व से बाहर निकलकर एशिया की तरफ़ बढ़ता है तो मध्य पूर्व में इसराइल के अमेरिका की जगह लेने की संभावना है

 

3. यूरोपीय संघ ने तोड़ी धारणाएं

कोरोना वायरस संक्रमण यूरोपीय संघ के लिए गंभीर परीक्षा रहा है. हालांकि अब ये संकट यूरोपीय संघ को और मज़बूत करने में भी अहम साबित हो सकता है.

जुलाई में चार दिन चली बैठक के बाद यूरोपीय संघ के देश कोरोना संकट से निबटने के लिए 860000 मिलियन डॉलर का फंड बनाने पर तैयार हो गए थे. ये उन सदस्य देशों की मदद के लिए है जिन पर कोरोना संकट का गहरा असर हुआ है.

इसमें से 445000 मिलियन डॉलर मदद के तौर पर बाकी 41000 मिलियन डॉलर कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ के तौर पर दिए जाएंगे. ये पहला कार्यक्रम होगा जिसके तहत यूरोपीय संघ के देश साझा तौर पर क़र्ज़ ले पाएंगे.

विश्लेषकों का मानना है कि ये रिकवरी फंड यूरोपीय संघ के भीतर सहयोग को और मजबूत करेगा.

 

4. आरसीईपी यानी दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता

नवंबर में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों ने दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे रीजनल कंप्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी कहा गया है. इस समझौते में शामिल देशों में दुनिया की एक तिहाई आबादी रहती है.

इसमें दक्षिण एशिया के दस देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी शामिल हैं. भारत इस आर्थिक समझौते का हिस्सा नहीं है. इस समझौते के यूरोपीय संघ और मेक्सिको-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते से भी बड़ा माना जा रहा है.

आरसीईपी को सबसे पहले चीन ने साल 2012 में बढ़ावा दिया था लेकिन इसमें अहम प्रगति पिछले तीन सालों में ही हुई. माना ये भी जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की परोक्ष मदद से ही ये समझौता अंजाम तक पहुंचा है.

साल 2017 में ट्रंप ने अमेरिका को ट्रांस-पेसिफिक पार्टनर्शिप (टीपीपी) से अलग कर लिया था. इस समझौते में शामिल कुछ देश अब आरसीईपी का हिस्सा हैं. माना जा रहा है कि इस आर्थिक समझौते से सबसे ज़्यादा फ़ायदा चीन को ही होगा.

 

5. ब्रेग्जिट

31 जनवरी 2020 को इतिहास में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के दिन के तौर पर याद किया जाएगा. जून 2016 में हुए जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले को अंजाम तक पहुंचाते हुए ब्रिटेन की सरकार ने ब्रेग्जिट को मंज़ूरी दे दी थी.

इस दिन ब्रिटेन और यूरोपीय संघ एक दूसरे को अलग होने के लिए 11 महीने का समय देने के लिए तैयार हुए थे. इस दौरान दोनों पक्षों ने भविष्य में रिश्तों की शर्तों को लेकर वार्ताएं की. ब्रेग्जिट ने 1973 में बनी साझेदारी को तोड़ दिया. तब ब्रिटेन ने यूरोपीय आर्थिक कम्युनिटी से हाथ मिलाया था.


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adminDecember 25, 20201min00

तुर्की का एक तटीय इलाका है, जिसे मर्मरा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. यहां का बिल्सीक प्रदेश इस वक्त सुर्ख़ियों में है. क्यों? क्योंकि यहां सोने का खजाना मिला है. कितना सोना है? करीब 99 टन. इसकी मौजूदा कीमत करीब 600 करोड़ डॉलर आंकी जा रही है. भारतीय रुपये में हिसाब लगाएं तो ये करीब 44,000 करोड़ रुपये बैठती है. यह रकम कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है. इन देशों में फिजी, मालदीव, लाइबेरिया, भूटान आदि कई देश शामिल हैं.

मर्मरा की जिस खनिज साइट से यह सोना मिला है, वह फ़र्टिलाइज़र प्रोड्यूसर कंपनी गुब्रेतास के अधीन है. गुब्रेतास के चेयरमैन फ़हरेतीन पोयराज ने तुर्की की न्यूज़ एजेंसी अनादोलू से बातचीत के दौरान खजाना मिलने की जानकारी दी. इसके बाद कंपनी के शेयर में करीब 28 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई है. पोयराज ने बताया कि उनकी गुब्रेतास उर्वरक कंपनी ने साल 2019 में कोर्ट के फैसले के बाद एक दूसरी कंपनी से इस जगह का नियंत्रण हासिल किया था.

पोयराज ने दावा किया कि ये नई खदान दुनिया की टॉप पांच सोने की खदान में से एक है. अगले दो साल में इस खदान से सोने को निकाला लिया जाएगा. इससे तुर्की की इकॉनमी को बड़ा बूस्ट मिलेगा. तुर्की के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्री फेथ डॉनमेज ने बताया कि सितंबर में तुर्की ने 38 टन सोने का उत्पादन करके रिकॉर्ड तोड़ा था. अगले पांच साल में गोल्ड के सालाना उत्पादन को 100 टन पहुंचाने का लक्ष्य है.

पाकिस्तान की न्यूज़ वेबसाइट ने दावा किया है कि जहां सोने की खदान मिली है, वहीं एर्तुगरुल ग़ाज़ी को जहां दफ़नाया गया था. सोशल मीडिया पर भी कई लोगों ने ऐसे दावे किए हैं. यह सच है कि एर्तुगरुल ग़ाज़ी को बिल्सीक प्रदेश के सोगात इलाके में दफ़नाया गया था, और सोने की ये खदान भी बिल्सीक प्रदेश में ही मिली है.

 

जाते-जाते एर्तुगरुल ग़ाज़ी को जानते जाइए

एर्तुगरुल ग़ाज़ी ऑटोमन साम्राज्य के संस्थापक उस्मान के पिता थे. एर्तुगरुल ग़ाज़ी  को एक सेनानी के तौर पर जाना जाता है. एर्तुगरुल नाम से नेटफ्लिक्स पर एक शो भी है, जिसकी कई सीरीज़ आ चुकी हैं. इस शो को दुनियाभर में खूब सराहा गया है.


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December 12, 20201min00

इंसान एक बार फिर चांद पर कदम रखने की तैयारी में है. NASA अपने आर्टेमिस चंद्रमा-लैंडिंग प्रोग्राम के तहत एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर भेजने वाला है. और इसके लिए NASA ने 18 एस्ट्रोनॉट्स को सेलेक्ट भी कर लिया है. इन 18 में से 9 एस्ट्रोनॉट्स महिलाएं हैं. ये सभी साल 2024 में चांद पर जाएंगे. चांद पर पहली बार कोई महिला कदम रखेगी. इन नौ महिला एस्ट्रोनॉट्स के नाम हैं- केयला बेरन, कैट रूबिन्स, क्रिस्टीना कुक, जसिका मियर, एन्ने मेक्लेन, स्टेफनी विल्सन, निकोल मैन, जसिका वाटकिन्स और जेज़्मीन मोगबेली. इसके अलावा इस टीम के नौ मेल एस्ट्रोनॉट्स में एक भारतीय मूल के एस्ट्रोनॉट भी शामिल हैं. नाम है राजा चारी.


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December 10, 20201min00

बॉलीवुड के लीजेंड दिलीप कुमार और राज कपूर के पाकिस्तान में पुश्तैनी घरों की कीमत सरकार ने तय कर दी है. दिलीप कुमार के घर की कीमत 80 लाख 56 हज़ार रूपये लगायी गयी है. वहीं राज कपूर की पुश्तैनी हवेली की कीमत 1 करोड़ 50 हज़ार रूपये आंकी गई है. ऐसा क्यों किया गया है, आइए बताते हैं.

 

क्या है पूरा मामला?

पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक है खैबर पख़्तूनख्वा. यहां सरकार ने पेशावर में मौजूद दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को नेशनल हेरिटेज का दर्जा दे रखा है. ये मकान जर्जर अवस्था में हैं. 2018 में पाकिस्तान की सरकार ने  ऋषि कपूर की अपील पर कपूर हवेली को म्यूज़ियम बनाने का फैसला किया था. इसी साल सितंबर में सरकार ने इन ऐतिहासिक धरोहरों को खरीदकर संरक्षित करने का निर्णय लिया. लेकिन एक समस्या थी.

ये दोनों मकान प्राइम लोकेशन पर हैं. इनके मालिक इन्हें तुड़वाकर उनकी जगह कमर्शियल प्लाजा बनवाना चाहते थे. लेकिन आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट इनके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इन्हें संरक्षित करना चाहता था. कपूर हवेली के मालिक अली क़ादर ने सरकार से कहा कि वह इसके लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार 200 करोड़ रूपये देकर उनके नुकसान की भरपाई करे. सरकार ने मांग ख़ारिज कर दी.

अब पेशावर के डिप्टी कमिश्नर मुहम्मद अली असगर ने दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों की कीमत तय की है. दिलीप कुमार के पांच मार्ला में बने घर का रेट 50,259 यूएस डॉलर तय किया गया. राज कपूर के 6 मार्ला में बने घर की कीमत 62,699 आंकी गयी.

अब आप सोच रहे होंगे कि मार्ला क्या होता है. मार्ला दरअसल ब्रिटिश काल में भारत, बांग्लादेश में ज़मीन मापने की एक इकाई थी. जैसे आज स्क्वायर मीटर, एकड़ वगैरह होता है. 1 मार्ला 272. 25 वर्ग फ़ीट या 25. 2929 वर्ग मीटर के बराबर होता है.

किस इलाके में हैं ये घर

राज कपूर का पुश्तैनी घर  ‘कपूर हवेली’ के नाम से मशहूर है. ये पेशावर के क़िस्सा ख़्वानी इलाके में है. राज कपूर के दादा दीवान बशेस्वरनाथ कपूर ने इसे 1918 से 1922 के बीच बनवाया था. इसी घर में राज कपूर और उनके चाचा त्रिलोक कपूर का जन्म हुआ था.

इसी इलाके में दिलीप कुमार का भी घर है. उसे 2014 में तत्कालीन नवाज़ शरीफ सरकार ने नेशनल हेरिटेज घोषित किया था.


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December 3, 20204min00

सिंगापुर के लोग अब वैसा मांस खा सकेंगे जिसके लिए जानवरों को मारना नहीं पड़ेगा. इसे ‘क्लीन मीट’ कहा जा रहा है. सिंगापुर ने इसकी मंज़ूरी दे दी है और इस मामले में वो दुनिया का पहला देश बन गया है.

सिंगापुर के इस फ़ैसले से सैन फ़्रांसिस्को स्थित ईट जस्ट स्टार्टअप के लिए रास्ता साफ़ हो गया है.

ईट जस्ट कंपनी लैब में चिकन का मांस तैयार कर बेचने की तैयारी कर रही है. पहले ये मांस नगेट्स के तौर पर मिलेंगे लेकिन कंपनी ने अभी बताया नहीं है कि ये कब से उपलब्ध होंगे. स्वास्थ्य, पर्यावरण और जानवरों के बचाव की चिंताओं के कारण रेग्युलर मांस के विकल्प की मांग बढ़ी है.

फ़ाइनैंशियल सर्विस कंपनी बार्कली के अनुसार वैकल्पिक मांस का बाज़ार अगले दशक में 140 अरब डॉलर का हो सकता है. यानी यह 1.4 ट्रिलियन डॉलर की मांस इंडस्ट्री का 10 फ़ीसदी हिस्सा होगा. सुपरमार्केट और रेस्तरां के मेन्यू में बीऑन्ड मीट के साथ इम्पॉसिबल फूड जैसे प्लांट बेस्ड मीट उत्पादकों के मांस की मांग बढ़ी है.

प्लांट बेस्ड मीट वैसे मांस को कहते हैं जिन्हें तैयार किया जाता है. ये मांस की तरह ही होते हैं और स्वाद भी वैसा ही होता है. ये बर्गर पैटी, नगेट्स और टुकड़ों के रूप में मिलते हैं. लेकिन ईट जस्ट का उत्पाद अलग है क्योंकि यह प्लांट बेस्ड नहीं है. यहां मांस जानवरों की मांसपेशियों की कोशिकाओं से लैब में तैयार किए जाएंगे.

 

अहम खोज

कंपनी का कहना है कि वैश्विक फूड इंडस्ट्री के लिए यह एक अहम खोज है और उसे उम्मीद है कि बाक़ी के देश भी सिंगापुर की तरह इसकी मंज़ूरी देंगे.

पिछले दशक में दर्जनों स्टार्टअप्स की ओर से बाज़ार में संवर्धित मांस लाने की कोशिश की गई. इन्हें उम्मीद है कि ये पारंपरिक मांस खाने वालों का भरोसा अपने इस वादे पर जीत लेंगे कि उनका उत्पाद ज़्यादा असली है.

इसराइल स्थित फ़्यूचर मीट टेक्नॉलजी और बिल गेट्स से जुड़ी कंपनी मेमफिश मीट्स भी लैब में बना मांस बाज़ार में उतारने की कोशिश कर रही हैं. इनका कहना है कि उत्पाद लोगों की जेब पर भारी नहीं पड़ेगा और स्वाद के मामले में भी अव्वल होगा. सिंगापुर की कंपनी शिओक मीट्स लैब में जानवरों के मांस बनाने पर काम कर रही है.

कई लोगों का कहना है कि इससे पर्यावरण को फ़ायदा होगा लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि विशेष परिस्थितियों में यह जलवायु परिवर्तन के लिए और घातक साबित होगा.

चुनौतियां अभी बाक़ी हैं

बीबीसी न्यूज़ सिंगापुर की मारिको ओई के मुताबिक़ ईट जस्ट ने कहा है कि यह फूड इंडस्ट्री के लिए मील का पत्थर साबित होगा लेकिन चुनौतियां अभी बाक़ी हैं. प्लांट-बेस्ट मांस उत्पादों की तुलना में लैब में तैयार किया गया मांस बहुत महंगा होगा. ईट जस्ट ने पहले कहा था कि लैब में तैयार चिकन नगेट्स 50 डॉलर में मिलेगा.

अब लागत में कमी आई है तो क़ीमत भी कम होगी लेकिन अब भी आम लोगों की जेब से बाहर का सौदा है. दूसरी चुनौती है कि कंपनी के उत्पाद पर उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया क्या होगी.

लेकिन ईट जस्ट के उत्पाद को लेकर सिंगापुर की मंज़ूरी के बाद दूसरे प्लेयर भी सामने आएंगे और अपना ऑपरेशन शुरू करेंगे. इसके साथ ही दूसरे देश भी इसे लेकर मंज़ूरी देने पर विचार कर सकते हैं.

कितना सुरक्षित

सिंगापुर फूड एजेंसी (एसएफ़ए) ने कहा है कि एक एक्सपर्ट वर्किंग ग्रुप ने ईट जस्ट के डेटा की समीक्षा की है. इसमें मैन्युफैक्चरिंग कंट्रोल और संवर्धित चिकन कितना सुरक्षित है की जाँच की गई.

एसएफ़ए ने कहा है कि जाँच में यह सुरक्षित पाया गया है और सिंगापुर में इन्ग्रीडीअन्ट के तौर पर नगेट्स बेचने की मंज़ूरी दी गई है.

एजेंसी का कहना है कि एक रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क बनाया गया है जो इस बात पर नज़र रखेगा कि संवर्धित मांस और अन्य वैकल्पिक प्रोटीन उत्पाद सुरक्षा मानदंडों का पालन कर रहे हैं या नहीं.

ईट जस्ट के सह संस्थापक जोश टेट्रिक ने सिंगापुर के फ़ैसले पर कहा है, ”यह सिंगापुर से शुरुआत है और आने वाले दिनों में उनके लैब के मांस को पूरी दुनिया के लोग पसंद करेंगे.”

ईट जस्ट का कहना है कि मांस तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में एंटिबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. कंपनी के मुताबिक़ पारंपरिक चिकन की तुलना में उनके लैब में बने चिकन के मांस में माइक्रोबायोलॉजिकल तत्व बहुत कम होंगे.

ईट जस्ट ने कहा है, ”सिंगापुर में मिली मंज़ूरी से कॉमर्सियल लॉन्चिंग का रास्ता साफ़ हो गया है. हम उच्च गुणवत्ता का मांस सीधे जानवरों की कोशिका से लैब में तैयार करेंगे और यह इंसानों के लिए बिल्कुल सुरक्षित होगा.”


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November 27, 20202min00

साल 1968 में एक फिल्म रिलीज हुई थी. नाम था 2001: A Space Odyssey. फिल्म में इंसान का इवोल्यूशन यानि विकास दिखाया गया था. और ये संभव होता है एक खंबेनुमा आकृति (मोनोलिथ) की मदद से. ये जो खंबेनुमा आकृति है इसको हाल ही में आई सुपरहिट वेब सीरीज ‘मार्वल- एजेंट्स ऑफ शील्ड’ में भी देखा गया था. यही नहीं दर्जनों फिल्मों और उपन्यासों में इस तरह के मोनोलिथ का जिक्र मिलता है. हम आपको ये सब इसलिए बता रहे हैं क्योंकि अमेरिका के एक बियाबान इलाके में एक ऐसा ही मोनोलिथ मिला है.

 

मोनोलिथ क्या होता है?

आपको पूरा वाकया बताएंगे लेकिन उससे पहले जान लीजिए कि साइंस की भाषा में मोनोलिथ किसे कहते हैं. बेहद आसान शब्दों में कहा जाए तो मोनोलिथ एक तराशी हुई बड़ी चट्टान या बड़ा खंबा होता है. कई बार ये प्रकृति निर्मित होता है और कई बार मानव निर्मित होता है. जैसे स्टोनहेंज के बड़े-बड़े पत्थर. या फिर मीनारें. ऐसी चट्टानें जो प्राकृतिक रूप से मीनारों जैसी होती हैं. इनको कुछ लोग ऑब्लिस्क (Obelisk) भी कहते हैं. बहुत से पुराने ऑब्लिस्क शिलालेख जैसे भी होते हैं. खैर, अब आपको बताते हैं कि अमेरिका में क्या मिला है.

 

ये किस धातु का बना है, इसकी जांच की जा रही है. फोटो- AP

 

अमेरिका में क्या मिला?

उत्तरी अमेरिका में एक राज्य है जिसका नाम है ऊटा (Utah). ऊटा के एक ओर नेवाडा है, दूसरी ओर कोलाराडो है. ऊटा एक बेहद बियाबान किस्म का इलाका है, जहां कई-कई किलोमीटर तक कुछ नहीं है सिवाय चट्टानों और जंगली जानवरों के. यहां हरियाली कम है और जो पहाड़ हैं उन्हें देख कर लगता है जैसे मंगल ग्रह पर आ गए हों. तो हुआ ये कि Utah Department of Public Safety अपने हेलीकॉप्टर से भेड़ गिन रहा था. इसी दौरान उन्होंने एक चमकीली चीज देखी.

ये एक तिकोना खंबे जैसा था. DPS कर्मचारी उसके पास पहुंचे. वीडियो बनाया. ये वीडियो अब यूट्यूब से लेकर हर जगह पर वायरल है. इस वीडियो में धातु का चमचमाता खंबा दिख रहा है. ये करीब 10 से 12 फीट ऊंचा है. इसका एक सिरा जमीन में गहराई तक धंसा हुआ है. कोई जंग नहीं लगी है. कुछ लिखा नहीं है. अब ये कहां से आया, किसका है, कौन यहां गाड़ गया, कुछ नहीं पता. पता है तो केवल एक सवाल और वो ये कि बेहद बियाबान इलाके में किसी ने ऐसा क्यों किया होगा?

 

इंटरनेट पर लोग इसके बारे में अलग-अलग थ्योरी बता रहे हैं. फोटो- AP

 

चश्मदीद ने क्या कहा?

हेलीकॉप्टर उड़ा रहे पायलट ब्रेट हचिंग्स ने लोकल न्यूज़ चैनल KSL TV से कहा,

“मैंने इससे पहले कभी कोई ऐसी चीज नहीं देखी. एक बायोलॉजिस्ट ने इसे देखा और फिर हम तुरंत इसके ऊपर पहुंच गए. वो बोला- वोआ, पीछे मुड़ो. और मैं बोला- क्या? उसने कहा कि वो पीछे जो चीज़ है, हमें उसे देखना चाहिए. हम वहां पहुंचे. हम हंस रहे थे कि क्या होगा अगर हम में से कोई अचानक गायब हो जाए.”

उसने कहा कि हमें लगा शायद ये नासा का होगा या फिर किसी आर्टिस्ट ने कलाकारी की होगी. या फिर कोई 1968 वाली साइंस फिक्शन Space Odyssey का फैन होगा. DPS ने अब इसकी वीडियो और तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर पोस्ट की हैं.

यूएस ब्यूरो ऑफ लैंड मैनेजमेंट इस जमीन का मालिक है. मंगलवार 24 अक्टूबर को मीडिया ने जब उससे इस बारे में बात करनी चाही तो उसने इंकार कर दिया. हालांकि उसकी ओर से कुछ ट्वीट किए गए हैं जिनमें उसने कहा है कि अगर आप इस मोनोलिथ को देखने के लिए यहां आना चाहते हैं तो ना आएं, क्योंकि ये इलाका वाहनों के लिए अच्छा नहीं है.

 

अपने ऑफिशियल स्टेटमेंट में BLM (ब्यूरो ऑफ लैंड मैनेजमेंट) ने कहा,

“जांच जारी है लिहाजा हम इस पर कुछ नहीं कहेंगे लेकिन इतना बता दें कि बिना इजाजत पब्लिक लैंड को इस्तेमाल करना, कब्जा करना, कुछ भी बनाना, अवैध है. भले ही आप किसी भी ग्रह से आए हों.”

वैसे आपको बता दें कि दुनिया इस धातु के खंबे में इतनी इंटरेस्टेड है कि Department of Public Safety की वेबसाइट (dpsnews.utah.gov) भारी ट्रैफिक के कारण क्रैश हो गई है. इस खंबे को लेकर यूट्यूब समेत सारे सोशल मीडिया पर इतनी थ्योरी तैर रही हैं कि आने वाले वक्त में इस पर एक दो फिल्में तो पक्का बनेंगी. खैर, अगर इसके मालिक का कुछ पता चलेगा तो हम वो भी आपको बता देंगे. जानकारी आप तक पहुंचती रहे उसके लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर लें और फेसबुक पेज को लाइक कर लें.



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