फिल्म रिव्यू- दिल बेचारा

0


सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ देख ली गई है. स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म डिज़्नी+हॉटस्टार पर ये फिल्म फ्री में अवेलेबल है, जिसे बिना किसी सब्सक्रिप्शन के देखा जा सकता है. फिल्म के बारे में बाकी बातें डिसक्लेमर से शुरू करते हैं. आगे हम जो भी कहेंगे, वो सुशांत सिंह राजपूत के बारे में नहीं उनकी फिल्म ‘दिल बेचारा’ के बारे में होगा.

‘दिल बेचारा’ के रिव्यू नहीं लिखे जाएंगे, उसे देखने का अनुभव शेयर किया जाएगा. जिसे शॉर्ट में समेटना चाहें, तो हार्टब्रेकिंग कह सकते हैं.

 

 

जमशेदपुर में किज़ी बासु नाम की एक लड़की रहती है, जिसे थायरॉयड कैंसर है. हर जगह वो अपने साथ ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर घूमती है. उसे पता है कि उसके पास ज़्यादा समय नहीं है, इसलिए वो बस अपने दिन गिन रही है. ठीक इसी समय उसकी लाइफ में मुस्कुराता हुआ इमैनुएल राजकुमार जूनियर उर्फ मैनी एंट्री मारता है. मैनी को ऑस्टियोसारकोमा (एक किस्म का बोन कैंसर) था, जिसके ऑपरेशन के बाद वो अपना सपना खो चुका है. लेकिन उसकी खुशमिजाजी कहीं नहीं गई. दिल के सहारे किस्मत से हारे ये दो लोग मिलते हैं और प्यार में पड़ जाते हैं. दोनों को पता है कि उनकी लाइफ लंबी नहीं है, इसलिए वो उसे बड़ी बनाने में लग जाते हैं. इन खुशियों के बीच एक अनकहा सा दुख भी है कि कैंसर किसकी जान पहले लेता है. अगर आपने जॉन ग्रीन की नॉवल ‘द फॉल्ट इन आवर स्टार्स’ या उस पर बेस्ड उसी नाम से बनी हॉलीवुड फिल्म देखी है, तो आपको इस सवाल का जवाब और फिल्म का क्लाइमैक्स दोनों ही पता होगा.

 

अपना सपना छोड़ किज़ी के ख्वाब पूरे करने में लगा मैनी.

फिल्म में सुशांत ने मैनी का रोल किया है. सुशांत सिंह राजपूत हमेशा से मजबूत कैलिबर वाले एक्टर माने जाते रहे हैं. मानव से लेकर मैनी तक वो अपनी इसी इमेज को बरकरार रखे हुए हैं. लेकिन ये फिल्म उनके टैलेंट के साथ न्याय नहीं कर पाती. संजना सांघी किज़ी के किरदार में नज़र आई हैं. सुशांत की आखिरी फिल्म, संजना की पहली है. उनकी परफॉरमेंस बड़ी सटल (Subtle) है. किज़ी के कैरेक्टर के साथ कनेक्शन बनाने में आपको समय नहीं लगता. क्योंकि संजना आपको अपने आसपास नज़र आने वाली किसी आम लड़की की तरह लगती हैं. मैनी के दोस्त जेपी के रोल में हैं साहिल वैद. उस किरदार का कोई ओर-छोर नहीं है. बेसिकली वो हीरो का रेगुलर दोस्त है, जो दो-तीन लाफ्स पाने के लिए कुछ भी करता है. पिछली लाइन में ‘कुछ भी’ पर खास जोर दिया जाए. ‘पाताल लोक’ में दिखीं स्वास्तिका मुखर्जी ने फिल्म में किज़ी की मां का रोल किया है. उनके पास बहुत कुछ करने को नहीं है लेकिन उस किरदार के साथ स्वास्तिका ने जो किया है, वो फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा पार्ट है. ‘दिल बेचारा’ में सैफ अली खान ने गेस्ट अपीयरेंस किया है. उसके बारे में सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वो ‘डॉली की डोली’ वाले उनके पिछले कैमियो से कहीं बेहतर है. मतलब 1 मिनट की सीन में भी फट पड़ना कोई सैफ से सीखे.

 

अपनी आखिरी फिल्म के सबसे शानदार हिस्से में सुशांत सिंह राजपूत.

सुशांत के अलावा फिल्म की सबसे अच्छी बात है उसके तीनों लीड कैरेक्टर्स का पोट्रेयल. किज़ी, मैनी और जेपी तीनों शारीरिक रूप से बीमार लोग हैं. लेकिन उन्हें बीमार की तरह या नॉर्मल से अलग दिखाने की कोशिश नहीं की गई है. ये छोटी चीज़ें फिल्म की पॉज़िटिविटी में इज़ाफा करती हैं. फिल्म के अलग-अलग हिस्सों में कुछ सीन्स हैं, जो इसे डल या बोरिंग होने से बचाए रखते हैं. ए.आर. रहमान का म्यूज़िक अलग से सुनने में कुछ खास नहीं लगता लेकिन वो फिल्म का मूड सेट करने के काम आता है. खासकर टाइटल ट्रैक और तारे गिन. इन दोनों ही गानों के बोल अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे हैं.

 

मैनी सेे अपनी मुलाकात के दौरान किज़ी.  

 

‘दिल बेचारा’ क्लाइमैक्स तक पहुंचते-पहुंचते काफी ड्रमैटिक और फिल्मी हो जाती है. साफ दिखने लगता है कि आपको जान-बूझकर इमोशनल करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इसका सुशांत की डेथ से कोई लेना-देना नहीं है. क्योंकि ये फिल्म उससे काफी पहले बनकर तैयार हो चुकी थी. बस वो सिनेमैटिक टूल्स के शोषण जैसा लगता है. फिल्म के कुछ हिस्सों में आंखें भर जाती हैं फफक पड़ने का भी मन करता है. लेकिन वो मोमेंट्स फिल्म आपके लिए नहीं बुनती. एक गुज़र चुके एक्टर को आखिरी फिल्म में अपनी मौत की बातें करते सुनना अपने आप में काफी डिप्रेसिंग चीज़ है.

 

स्वास्तिका और सुशांत इससे पहले दिबाकर बैनर्जी डायरेक्टेड फिल्म ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ में भी साथ काम कर चुके हैं.

 

सुशांत के लिए ये फिल्म भले ही बड़ी संख्या में देखी जाए लेकिन मुकेश छाबड़ा की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म ‘दिल बेचारा’ औसत ट्रैजिक-रोमैंटिक फिल्म से ऊपर नहीं उठ पाती. ‘फॉल्ट इन आवर स्टार्स’ स्वीट फिल्म भले ही थी लेकिन उसे कभी बहुत शानदार फिल्म के लिए रूप में नहीं देखा गया. सुशांत के लिए सबसे बड़ा ट्रिब्यूट यही होगा कि ‘दिल बेचारा’ को एक आम फिल्म की तरह देखा जाए. सुशांत की आखिर फिल्म की तरह नहीं.




दुनिया में कम ही लोग कुछ मज़ेदार पढ़ने के शौक़ीन हैं। आप भी पढ़ें। हमारे Facebook Page को Like करें – www.facebook.com/iamfeedy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Contact

CONTACT US


Social Contacts



Newsletter