पोलैंड. यूरोप का एक देश है. वहां पिछले दस दिनों से महिलाएं सड़क पर उतरी हुई हैं. जोरदार विरोध प्रदर्शन हो रहा है. किस बात पर?
पोलैंड के संवैधानिक कोर्ट ने एक हालिया फैसले के खिलाफ. इसमें कहा गया है कि अगर किसी गर्भवती महिला के पेट में पल रहे भ्रूण में कोई विकृति पाई जाती है, तब भी वह गर्भपात नहीं करा सकेगी. प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की इजाजत तभी होगी, जब वह रेप की वजह से हो या फिर उसके कारण मां की जिंदगी को खतरा हो.
इस ऑर्डर के बाद से ही पोलैंड में महिलाएं और अबॉर्शन से जुड़े अधिकारों के समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं. इन प्रदर्शनों को देखते हुए अब सरकार ने कदम पीछे खींच लिए हैं, और कोर्ट के इस फैसले को लागू करने में देरी कर दी है, जोकि आमतौर पर नहीं होता.
पोलैंड का ये प्रोटेस्ट पहला ऐसा प्रोटेस्ट नहीं है, जिसमें महिलाएं उतरीं और पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. इतिहास में कुछ ऐसे विरोध प्रदर्शन भी दर्ज हैं, जिनके बिना आज की दुनिया की तस्वीर कुछ और होती. उन पर बात करेंगे. लेकिन पहले ये समझ लीजिए कि पोलैंड में चल रहा ये विरोध इतना ख़ास क्यों है.
संवैधानिक कोर्ट का ये फैसला लागू होने का मतलब है कि पोलैंड में लगभग सभी गर्भपात गैरकानूनी हो जाएंगे. यूरोप में पोलैंड ऐसा देश है, जहां गर्भपात पर लगी रोक सबसे कड़ी है. अभी तक उन मामलों में ही गर्भपात की इजाजत थी, जिनमें प्रेग्नेंसी जारी रखने या बच्चे को जन्म देने पर बच्चे या मां की जान को खतरा था, या फिर भ्रूण में कोई विकृति थी. लेकिन कोर्ट की रूलिंग के बाद इस पर भी बैन लग जाएगा.
डॉक्टर्स का कहना है कि ये बैन पेशेंट्स को खतरे में डाल सकता है. यही नहीं, विकृत बच्चे के जन्म लेने पर वो किस तरह इससे डील कर पाएंगे, ये दर्द भी डॉक्टर्स को देखना होगा. वो खुद को इसके लिए मजबूर नहीं देखना चाहते.
इस रूलिंग के खिलाफ जिस तरह लाखों लोग सड़कों पर उतरे हैं, उससे सत्ताधारी पार्टी (PiS) भौंचक रह गई है. द गार्डियन की एक रिपोर्ट कहती है कि यही वजह है कि अब सरकार चाह रही है कि बैन में थोड़े बदलाव करके कानून लागू किया जाए. राष्ट्रपति ने सुझाव दिया है कि जान को खतरे में डालने वाली विकृतियों के मामले में अबॉर्शन करने देना चाहिए. डाउन सिंड्रोम के मामलों में अबॉर्शन की अनुमति नहीं देनी चाहिए.
जिस तरह पोलैंड की सरकार को इस विरोध ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया, वैसे ही कुछ प्रोटेस्ट्स के बारे में बताते हैं, जिनकी लीडर महिलाएं थीं और जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा:
1. मार्च 1911 में महिला कामगारों के लिए प्रदर्शन
25 मार्च 1911 को एक ब्लाउज फैक्ट्री में आग लग गई थी. ये फैक्ट्री न्यूयॉर्क के ग्रीनविच विलेज नाम की जगह पर थी. नाम था ट्राएंगल शर्टवेस्ट फैक्ट्री. आग लगने के बाद फैक्ट्री में काम कर रहे वर्कर्स ने भागने की कोशिश की. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया, क्योंकि फैक्ट्री मालिकों ने सीढ़ियों और दरवाजों पर ताले लगा रखे थे. कथित तौर पर ऐसा इसलिए था ताकि वर्कर बाहर न घूम सकें और कुछ चुराकर न भाग सकें.
नतीजा ये हुआ कि 146 कर्मचारी मारे गए. इनमें 123 महिलाएं थीं. इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए. एक लाख के करीब लोग मार्च करने पहुंचे. पढ़ने को मिलता है कि इसकी वजह से अमेरिका की सबसे बड़ी लेबर यूनियंस में से एक इंटरनेशनल लेडीज गारमेंट वर्कर्स यूनियन की मेम्बरशिप कई गुना बढ़ गई और ये सबसे ताकतवर यूनियन बन गई. यही नहीं, इस घटना के बाद न्यूयॉर्क में प्रशासन ने फैक्ट्रियों में काम करने की परिस्थितियों की जांच करने और उनमें सुधार के लिए कमीशन बनाया. इसकी रिपोर्ट आने के बाद लेबर लॉज़ में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए.
2. दक्षिण अफ्रीका के प्रेटोरिया में महिलाओं का मार्च
उस वक्त की बात है, जब दक्षिण अफ्रीका में श्वेत और अश्वेत लोगों के बीच भेदभाव काफी बढ़ा हुआ था. पास लॉ नाम का कानून चलता था. इसमें ब्लैक लोगों को अपने साथ एक पास लेकर चलना पड़ता था, जो एक तरह से अंतर्देशीय पासपोर्ट की तरह होता था. पहले ये सिर्फ पुरुषों पर लागू होता था. 1950 के आसपास इसे महिलाओं पर भी थोपने की बात हुई. लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ बगावत कर दी.
9 अगस्त 1956 को लगभग 20,000 महिलाएं दक्षिण अफ्रीका के प्रधानमंत्री के पास पहुंचीं और याचिका दी कि इस पास कानून को खत्म किया जाए. उस समय शुरू हुआ विरोध अगले कई सालों तक चलता रहा. ये विरोध मार्च सबसे आइकोनिक प्रतीकों में से एक माना जाता है. पास कानून आखिरकार 1986 में खत्म हुआ. आज भी उनकी इस बहादुरी की याद में 9 अगस्त को वहां राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.
3. आइसलैंड विमेंस स्ट्राइक
1975 में आइसलैंड की महिलाओं ने भी ऐतिहासिक बंद का आयोजन किया था. उन्होंने घर में खाना बनाने से इनकार कर दिया. काम करने से इनकार कर दिया. बच्चों की देखभाल से इनकार कर दिया. 24 अक्टूबर को हुई इस हड़ताल में आइसलैंड की करीब 90 फीसदी औरतें शामिल हुईं. वे सड़कों-गलियों में निकल आईं. ये दिन आइसलैंड का ‘विमिन्स डे ऑफ’ कहा जाता है.
लोगों ने लिखा कि इस एक दिन ने उनकी आंखें खोल दीं. एक आंदोलन ने वहां महिलाओं को बराबरी हासिल करवाने में बहुत मदद की. 1980 में इसी आइसलैंड में एक तलाकशुदा सिंगल औरत राष्ट्रपति चुनाव जीत गई. नाम था विगडिस फिनबोगादोतिर. तीन पुरुष उम्मीदवारों को हराकर विगडिस इस मुकाम पर पहुंचीं. सिर्फ आइसलैंड की नहीं, बल्कि पूरे यूरोप की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं.
4. महिलाओं का वॉशिंगटन मार्च
ये मार्च साल 2017 में हुआ. अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर डॉनल्ड ट्रम्प के चुने जाने के विरोध में. रिपोर्ट्स की मानें तो तकरीबन 70 लाख लोगों ने पूरी दुनिया में मार्च किया था. सभी व्यक्तियों के लिए मानवाधिकारों, बराबरी और आज़ादी के लिए. इसे ऑर्गनाइज किया गया सोशल मीडिया के माध्यम से. ये अमेरिका का सबसे बड़ा एक दिन का प्रोटेस्ट भी बना. इस प्रोटेस्ट के दौरान गुलाबी रंग की टोपी खूब पॉपुलर हुई. इसे मार्च के दौरान लोगों ने पहना. इसे पुसीहैट कहा गया. ये प्रतीक माना गया डॉनल्ड ट्रम्प के अश्लील कमेंट्स के विरोध का, और महिलाओं के अधिकार का.
5. पूरी दुनिया में 8 मार्च 2018 को महिलाओं की स्ट्राइक
8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस होता है. 2018 में इसी दिन औरतों ने मिलकर एक स्ट्राइक कर दी. दुनिया के कई देशों की महिलाओं ने अपने-अपने अधिकारों के लिए हड़ताल की. अपनी तरह का ये पहली ‘महिला हड़ताल’ थी. इसका नारा था:
without us, the world stops.
(हमारे बिना दुनिया रुक जाती है.)
फ्रांस हो या इराक या दक्षिण कोरिया, या फिर स्पेन, ब्रिटेन और जर्मनी. 50 से ज्यादा देशों में औरतों ने इस बंद में हिस्सा लिया. स्पेन में तो ये हड़ताल इतनी बड़ी हो गई कि सैकड़ों ट्रेनें बंद करनी पड़ीं. काम रुक गया. इतने विरोध प्रदर्शन हुए कि गिनती नहीं. ये औरतें मांग क्या रही थीं? बहुत बुनियादी चीजें. जो उन्हें दी जानी चाहिए, मगर दी नहीं जातीं. बराबरी. समान काम के लिए समान वेतन. वगैरह वगैरह. जैसे ‘मीटू’ कैंपेन के हैशटैग दुनियाभर में छाए रहे थे, वैसा ही ग्लोबल प्रोटेस्ट. इस बंद का मतलब था पुरुषों को महिलाओं के होने की अहमियत का एहसास कराना. स्कूल मत जाओ, कॉलेज मत जाओ, दफ्तर मत जाओ, किसी दुकान से कुछ न खरीदो. महसूस कराओ औरों को कि औरतों के न होने से क्या होता है. इस स्ट्राइक ने लोगों की आंखें खोल दीं, और दिखाया कि अब भी कितना कुछ है, जो बदलना बाकी है.
पोलैंड में इस वक़्त चल रहा प्रदर्शन बानगी भर है. पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने अपने अधिकारों और एक बेहतर दुनिया के लिए लगातार आवाज़ उठाई है. इसमें उन्हें भरपूर साथ भी मिला है लोगों का. देखना ये है कि पोलैंड में महिलाओं का ये विरोध उनके अबॉर्शन के अधिकारों के लिए कितना काम आ पाता है.
दुनिया में कम ही लोग कुछ मज़ेदार पढ़ने के शौक़ीन हैं। आप भी पढ़ें। हमारे Facebook Page को Like करें – www.facebook.com/iamfeedy