पाताल लोक: वेब सीरीज़ रिव्यू

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अगर आप कुत्ते से प्यार करते हैं तो आप अच्छे इंसान हैं, अगर कुत्ता आपसे प्यार करता है तो आप अच्छे इंसान हैं.

15 मई, 2020 को रिलीज़ हुई 9 एपिसोड की वेब सीरीज़ ‘पाताल-लोक’ में ये डायलॉग सिर्फ़ 2 बार आता है. लेकिन जब आप सवा छह घंटे के लगभग की इस सीरीज़ को पूरा देख चुकते हो तो आपके समझ आ जाता है कि स्क्रिप्ट में इस एक बात, इस एक चीज़ का कितना ज़्यादा महत्व था.

‘पाताल-लोक’ रिलीज़ तो केवल ‘अमेज़न प्राइम वीडियो’ पर हुई है. लेकिन इसका बज़ चारों दिशाओं में फैल चुका है. क्या ये सीरीज़ इतना बज़ डिज़र्व करती है. उत्तर है, बिलकुल.

 

कहानी-

हाथीराम चौधरी दिल्ली के आउटर यमुना पार थाने का इंस्पेक्टर है. ये इलाक़ा कैसा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से हो जाता है कि हाथीराम इसे दिल्ली का ‘पाताल लोक’ कहता है. स्वर्ग लोक तो उसके अनुसार ‘लुटियंस दिल्ली’ है. सालों से पुलिस विभाग में बिना तरक़्क़ी के सड़ रहे हाथीराम को लगभग अप्रत्याशित तौर पर एक हाई प्रोफ़ाइल केस मिल जाता है. इस केस में उसे अपने को सिद्ध करने के और प्रमोशन के चांसेज़ दिखते हैं. केस है एक न्यूज़ एंकर संजीव मेहरा की मर्डर कंसपीरेसी को सुलझाना. जिन चार लोगों को इस मर्डर के प्रयास के लिए पकड़ा गया है, उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. यूं प्रथम दृष्टया ये एक ओपन-एंड-शट केस लगता है. इसलिए ही तो ये हाथीराम जैसे ‘नाकारा’ इंस्पेक्टर को सौंपा गया है.

लेकिन बात इतनी आसान होती तो हाथीराम इस सीरीज़ का मेन लीड न होता. ये एक केस और चार अपराधी, हाथीराम के लिए अवसर नहीं, जी का जंजाल बन जाते हैं.

 

वर्क लाइफ़ बैलेन्स. न हाथीराम चौधरी इसका अर्थ जानता है, न उसके पास ये है.

 

दूसरा प्लॉट है, न्यूज़ एंकर संजीव मेहरा का. जो अतीत में हीरो हुआ करता था, लेकिन अब उसका करियर ढलान पर है. साथ ही उसने अपने ही कंपनी के मालिक के साथ भी पंगा लिया हुआ है.

तीसरी कहानी है, हाथीराम चौधरी की पर्सनल लाइफ़. जहां उसका बेटा सिद्धार्थ उसकी नहीं सुनता. बीवी रेनू के साथ उसकी रोज़ की खटपट है. साला उसका, उसकी बीवी को नई-नई स्कीम से ठगते रहता है.

चौथी, पांचवी, छठी और सातवीं कहानी है कथित अपराधियों का पास्ट. जो स्टोरी को कभी दिल्ली से पंजाब तो कभी चित्रकूट तक लेकर जाती है. इन चार अपराधियों में चित्रकूट के ‘त्यागी’ की कहानी को सबसे ज़्यादा स्क्रीन-टाइम और महत्व दिया गया है. यूं उसे ‘पाताल-लोक’ के मुख्य किरदारों में से एक माना जा सकता है.

इसके अलावा, हाथीराम चौधरी के साइड किक, सब इंस्पेक्टर इमरान अंसारी की कहानी भी साथ में चलती है. मज़े की बात ये कि उम्र से लेकर एटिट्यूड तक में उल्टा हाथीराम चौधरी, इमरान अंसारी का साइड किक लगता है.

पाताल लोक में इतने ढेर कैरेक्टर्स और उनकी इतनी ढेर सारी कहानियां हैं, लेकिन देखने वालों को न तो ये कनफ़्यूज करती हैं, न ही किसी भी स्टोरी का अंत अधूरा लगता है. साथ ही सारे प्लॉट्स, सब-प्लॉट्स ऐसे एक-दूसरे से गुंथे हुए हैं कि एक भी किरदार, एक भी कहानी, मिसप्लेसड नहीं लगती. अधिक नहीं लगती.

 

पाताल लोक के हर एपिसोड के नाम भी बड़े इंट्रेस्टिंग हैं. जैसे ‘ब्लैक विडो’, ‘स्वर्ग का द्वार’.

 

परफ़ॉर्मेंसेज़-

‘पाताल लोक’ में किरदारों की एक्टिंग से पहले कास्टिंग की बात कर लेनी चाहिए. जैसे फ्योदोर दोस्तोवस्की अपने नॉवल में किसी किरदार को इंट्रड्यूस करते हुए उसका पूरा खाका खींच देते थे. यूं कि आपके सामने किरदार की छवि बन जाती थी. वैसे ही ‘पाताल-लोक’ की कास्टिंग की ख़ूबसूरती ये है कि आपको हर किरदार की एंट्री से ही उसके बैकग्राउंड का काफ़ी हद तक अंदाज़ा हो जाता है. चाहे वो हाथीराम जैसा कोई मध्यमवर्गीय पुलिसवाला हो या फिर संजीव मेहरा जैसा अपर क्लास अधेड़ शख़्स. चाहे वो त्यागी जैसा दुर्दांत अपराधी हो या अंसारी सरीखा आईएएस आकांक्षी.

हाथीराम चौधरी के किरदार में जयदीप अहलवात, हर सीन में चमके हैं. चाहे वो कॉमिक सीन्स हों, जैसे जब उनका किरदार रेनु से थप्पड़ खाता है. या फिर वो टेंस सीन्स हों या एंग्री ओल्ड मेन वाले एक्शन सीन. जयदीप अपनी एक्टिंग, एक्सप्रेशन और हाव भाव से हाथीराम के प्रफ़ेशनल और पर्सनल ज़िंदगी के फ़्रसटेशन को काफ़ी ख़ूबसूरती से स्क्रीन पर उतारने में सफल रहते हैं.

सर आधी ज़िंदगी बाप के सामने **या बना रहा, बाक़ी आधी ज़िंदगी बेटे के सामने **या नहीं बनना चाहता.

जयदीप इतने कनविसिंग तरीक़े से इस बात को कहते हैं कि हाथीराम का पूरा व्यक्तित्व सारगर्भित हो जाता है. आपको आस-पास के कई पिता-पुत्र संबंध एक साथ याद आने लगते हैं.

 

संजीव मेहरा, ग़लत है या सही? आप निश्चित तौर पर नहीं कह सकते. ये ज़रूर कह सकते हैं कि वो रियलटी के काफ़ी क़रीब है.

 

नीरज क़बी ने एक टीवी एंकर संजीव मेहरा का रोल निभाया है. अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश करता संजीव मेहरा बदलते वक्त के साथ अपनी निष्ठाओं और नैतिकताओं को फ़ाइन ट्यून कर रहा है. वो कहता है-

ये शहर अपने विलेंस को बहुत जल्दी भुला देता है, और अपने हीरोज़ को तो और भी ज़ल्दी.

नीरज क़बी कहानी की शुरुआत में अपने उम्दा अभिनय से संजीव मेहरा के लिए दर्शकों की ख़ूब सहानुभूति बटोरते हैं. लेकिन ये अभिनय तब और इंटेस हो जाता है जब इस किरदार में ढेरों शेड्स आने लगते हैं.

विशाल त्यागी का किरदार काफ़ी ‘एजी’ है. इसे अभिषेक बैनर्जी ने प्ले किया है. नेटफ़्लिक्स की सीरीज़ ‘टाइपराइटर’ में भी वो लगभग ऐसा ही किरदार निभा चुके हैं. कोल्ड ब्लडेड मर्डरर के रूप में उन्होंने अपनी आंखों और पोकर फ़ेस का बखूबी इस्तेमाल किया है. त्यागी एक पत्थर दिल क्रिमिनल है जो कुत्तों से बहुत प्यार करता है. उसका पास्ट भी उसके क्रिमिनल बन जाने का ज़िम्मेदार है. ऐसे किरदारों के साथ उसके कई वीभत्स कृत्यों के बावज़ूद दर्शकों को सहानुभूति होने लगती है. जैसे वॉकीन फीनिक्स के ‘जोकर’ वाले किरदार से या नेटफ़्लिक्स की वेब सीरीज़ ‘यू’ के मुख्य किरदार से. सीरीज़ की कास्टिंग भी अभिषेक के ज़िम्मे थी. उन्होंने अपने लिए ये रोल चुनकर सही निर्णय लिया.

 

विशाल त्यागी का किरदार निभाने ने लिए अभिषेक बैनर्जी ने शब्दों से ज़यदा एक्सप्रेशन्स और बॉडी लैंग्जवे का सहारा लिया है.

 

बंगाली सिनेमा की ऐक्ट्रेस स्वास्तिका मुखर्जी ने एक अपर क्लास बंगाली महिला डॉली का किरदार निभाया है. वो संजीव मेहरा की पत्नी हैं. जब डॉली को अपने पति के एक्स्ट्रा मैरिटयल अफ़ेयर के बारे में पता चलता है तो वो बदला लेने के लिए उसी रास्ते पर चल पड़ती है, जिस रास्ते से उसका पति गुज़रा था. लेकिन आधे में ही घबराकर वापस लौट आती है.

ये किरदार कितना वल्नरेबल है, इसका पता सिर्फ़ इसी एक सीन से ही नहीं, कई अन्य चीज़ों से भी चलता है. जैसे 40 साल की उम्र में मां बनने की इच्छा का जागना, या एक स्ट्रीट डॉग में अपने अकेलेपन का सहारा ढूंढना, या अपने पति में पॉज़िटिव ऊर्जा लाने के लिए घर में मंत्रोच्चार करवाना, या अपने पति पर हुए अटैक की ख़बर सुनने के बावज़ूद भी अपने डिप्रेशन को लेकर चिंतित रहना.

हाथीराम की पत्नी रेनु का किरदार गुल पनाग ने निभाया है, उनके कुछ पक्ष अच्छे जान पड़ते हैं. जैसे किसी मध्यम वर्गीय मां का बात-बात में अंग्रेज़ी के टूटे-फूटे शब्दों का इस्तेमाल करना.

 

‘पाताल-लोक’ की कास्टिंग भी इसका एक बहुत बड़ा प्लस पॉईंट है. सारे कलाकार मंझे हुए होते भी किसी स्टीरियोटाइप में क़ैद नहीं हैं. और अगर हैं तो उन्हें वैसा ही किरदार दिया गया है.

 

डीसीपी भगत का रोल विपिन शर्मा ने निभाया है. उन्हें आप कई बार ऐसे रोल निभाते हुए देख चुके हैं. यूं उन्हें इस दौर का इफ़्तेखार अहमद शरीफ़ कहा जा सकता है.

इश्वाक सिंह एक मुस्लिम पुलिस इंस्पेक्टर इमरान अंसारी बने हैं. आप पूछेंगे, हमने पुलिस इंस्पेक्टर के साथ ‘मुस्लिम’ क्यूं स्पेसिफ़ाई किया. तो वो इसलिए क्यूंकि यहां इश्वाक सिंह का किरदार समाज के एक पूरे तबके को रेप्रेज़ेंट करता है. उसके धर्म को ठीक उसी तरह रेखांकित किया गया है जैसे विदेशी फ़िल्मों में अक्सर अफ़्रीकन अमेरिकन किरदारों के नस्लीय पक्ष को किया जाता है. इश्वाक अपने अभिनय से इमरान अंसारी के किरदार के सभी पक्षों को उकेरने में सफल रहते हैं.

इस इंटेंस ड्रामा के बीच अनूप जलोटा को देखकर आपका रिदम टूटता है. उन्होंने एक ब्राह्मण नेता बाजपेयी का किरदार निभाया है, जो दिखाने के लिए दलितों का मसीहा है. उन्हें देखकर लगता है कि शायद वे एक्टिंग की विधा में भी सुर संभाल सकते हैं. हालांकि उनके हिस्से में एक फनी वन लाइनर और एक छोटे से चुनावी भाषण से अलावा ज़्यादा कुछ नहीं आया है.

 

अनूप जलोटा, ‘पाताल लोक’ में भजन गाते नहीं, भाषण देते दिखते हैं.

 

और अंत में-

अगर आप ऑनलाइन कंटेंट देखके के शौक़ीन हैं तो लॉकडाउन में आप इतना कुछ देख रहे होंगे कि आपने ‘बढ़िया कंटेंट’ का बार थोड़ी नीचे पर सेट कर दिया होगा, या अपने अपने आप सेट हो गया होगा. ‘पाताल-लोक’ देखिए ताकि वो ‘बार’, वो पैरामीटर फिर से रीसेट हो जाए. थोड़ा और ऊपर.

दोस्तों हम समझते हैं कि किसी ऑडियो विज़ुअल कंटेट में समीक्षाधीन सिर्फ़ एक्टिंग और स्टोरी ही नहीं होती. तो इस सीरीज़ से जुड़े 12 ऐसे पॉईंट्स हमने एक दूसरी स्टोरी में कंपाइल किए हैं, जिनको पढ़कर आपको यक़ीन हो जाएगा कि ये सीरीज़ मिस करने लायक़ बिलकुल नहीं है.




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