ये SCO क्या है, जिसकी बैठक में हिस्सा लेने राजनाथ सिंह रूस गए हैं

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस की राजधानी मास्को गए हैं. क्यों? शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए. तीन दिवसीय दौरे में वो रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू समेत संगठन के सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. आतंकवाद, उग्रवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बातचीत होगी. ये बैठक भारत-चीन के बीच लद्दाख में जारी तनाव के बीच हो रही है. दोनों ही देश इस संगठन के सदस्य हैं और बैठक में चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग भी शामिल होंगे. हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक, राजनाथ सिंह के साथ उनकी मुलाकात तय नहीं है.

इस बीच सवाल है कि शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) क्या है? इसका काम क्या है? कौन से देश इस संगठन के सदस्य हैं? इससे भारत को क्या फायदा है?

 

SCO और उसके सदस्य देश

दुनियाभर के कई देश कूटनीतिक मसलों में एक-दूसरे की मदद करते हैं या ऐसा करने का वादा करते हैं. आपसी सहयोग के लिए उन्होंने संगठन बना रखे हैं. अलग-अलग समय पर इन देशों के मुखिया या उनके प्रतिनिधि आपस में मिलते हैं. बतियाते हैं. सुझाव देते हैं. भविष्य को लेकर करार करते हैं. ऐसा ही एक संगठन है- शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) या शंघाई सहयोग संगठन.

शंघाई चीन का शहर है. 15 जून, 2001 को यहां शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) बनाने का ऐलान किया गया. तब इसमें छह देश थे- किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. 2017 में इसमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हो गए.

 

अब आठ देश इसके स्थायी सदस्य हैं.

मुख्य तौर पर सदस्य देशों के मुखिया SCO समिट में मिलते हैं. 2019 में किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में SCO समिट हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्सा लिया था. इसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शामिल हुए थे, लेकिन दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी.

 

2019 में किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों का SCO सम्मेलन. फाइल फोटो: India Today

 

कहां-कहां हैं ये देश?

इन आठ देशों की लोकेशन की वजह से इस संगठन को यूरेशियाई देशों का संगठन कहा जाता है. यूरेशिया मतलब यूरोप प्लस एशिया. रूस एशिया और यूरोप, दोनों का हिस्सा है. पांच देश- किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया में हैं. चीन पूर्वी एशिया में है. भारत और पाकिस्तान, दोनों दक्षिण एशिया में हैं. इन्हें नक्शे में देखिए-

 

मध्य एशिया में पांच देश आते हैं- कज़ाकिस्तान, किरगिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान. (फोटो: गूगल मैप्स

 

संगठन का काम क्या है?

SCO का मकसद राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य मामलों में के देश एक-दूसरे की मदद करना है. इन्होंने जो लक्ष्य तय किए हैं, वो ये हैं-

– सदस्य देशों के बीच आपसी भरोसा मजबूत करना
– जो सदस्य पड़ोसी हैं, उनके बीच पड़ोसी की भावना बढ़ाना
– राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, रिसर्च, तकनीक और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में असरदार सहयोग
– शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण से जुड़े मुद्दों में भी आपसी सहयोग बढ़ाना
– शांति, सुरक्षा और स्थिरता का माहौल बनाए रखने के लिए पारस्परिक हिस्सेदारी
– लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत राजनीतिक और आर्थिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की कोशिश

 

स्थायी सदस्यों के अलावा SCO के साथ कौन है?

शंघाई सहयोग संगठन के चार ऑर्ब्जवर देश हैं. ये चारों हैं- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया. ये देश सदस्य देशों के आस-पास हैं और इस पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और लिंकेज के हिसाब से अहम हैं. इनके अलावा SCO में छह डायलॉग पार्टनर भी हैं- अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका.

 

भारत के लिए SCO की अहमियत क्या है?

पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध अच्छे नहीं हैं. चीन से लद्दाख में झगड़ा चल ही रहा है. मगर इन दोनों के अलावा SCO के दूसरे सदस्यों के साथ भारत की अच्छी बनती रही है. खासकर रूस और मध्य एशियाई देशों से.

मध्य एशिया के देशों के लिए भारत की नीति है- कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी. इसके अलावा रूस, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान को मिला दें, तो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस और तेल का भंडार बनता है. तुर्कमेनिस्तान के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा और उज़्बेकिस्तान के पास आठवां सबसे बड़ा गैस भंडार है. कज़ाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के पास यूरेनियम भी है. अगर इनके साथ भारत का करार हो, तो कम लागत में हमें तेल और गैस की सप्लाई मिल सकती है.

 

मध्य एशिया से हमारे रिश्ते कैसे हैं?

SCO के पांच मध्य एशियाई देश भारत के विस्तृत पड़ोस का हिस्सा हैं. इनके साथ हमारे रिश्ते पुराने हैं. भारत के कुषाण साम्राज्य के राजा कनिष्क को वहां के लोग अपना पूर्वज मानते हैं. कनिष्क का राज भारत के अलावा मध्य एशिया में भी फैला था. इसी मध्य एशिया के सिल्क रूट की राह कई यात्री भारत आए. न केवल व्यापार, बल्कि धर्म और संस्कृति में भी कई कनेक्शन हैं. आज भी हिंदी फिल्में और इनके गाने मध्य एशियाई देशों में काफी पसंद किए जाते हैं.

 

सोवियत के दौर में इनसे कैसा संबंध था?

कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान- ये सब सोवियत का हिस्सा हुआ करते थे. सोवियत के साथ भारत के संबंध अच्छे थे. जब दुनिया के एक बड़े प्रभावी हिस्से ने सोवियत से दूरी बनाई हुई थी, उस दौर में भी मध्य एशिया के इन पांचों मुल्कों के साथ भारत के अच्छे ताल्लुकात थे. बल्कि 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग में संघर्ष-विराम होने के बाद दोनों देश समझौते के लिए उज़्बेकिस्तान की ही राजधानी ताशकंद में पहुंचे थे.

भारत बेहद गिने-चुने देशों में था, जिसका ताशकंद में अपना एक दूतावास हुआ करता था. सोवियत खत्म होने के बाद भारत और मध्य एशियाई देशों में थोड़ी दूरी आ गई. लेकिन अब ये देश प्राकृतिक संसाधनों के बल पर मजबूत हो गए हैं.

 

ताशकंद समझौते के समय की तस्वीर. लालबहादुर शास्त्री और अयूब खान, दोनों साथ खड़े हैं. इस तस्वीर के कुछ ही घंटों बाद शास्त्री की मौत हो गई. फाइल.

 

SCO से भारत को और क्या फायदे हैं?

मध्य एशिया से भारत की सीमा नहीं लगती. न ही उन तक पहुंचने के लिए समंदर का सीधा कोई रास्ता है. भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होकर जाता है. पाकिस्तान से हमारे रिश्ते ठीक नहीं हैं. दूसरा, अफगानिस्तान बेहद अस्थिर और असुरक्षित समझा जाता है. व्यापार और कारोबार के लिए बस लिंक और नेटवर्क नहीं, सुरक्षा भी चाहिए.

इसी की कमी के कारण TAPI (तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इंडिया) जैसी अहम गैस पाइपलाइन योजना लटकी हुई है. 1,814 किलोमीटर लंबी ये पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान से शुरू होकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए भारत तक पहुंचेगी. चारों देशों ने 2010 में इसके समझौते पर दस्तखत किए. 2020 में इसके शुरू होने की बात थी, मगर ये कब हो पाएगा, पता नहीं. अब SCO में चीन और पाकिस्तान दोनों हैं. दोनों देशों से हमारी खटपट है. ऐसे में ये योजना कब भारत पहुंचेगी, ये फिलहाल कह पाना मुश्किल है. बातचीत से कोई रास्ता निकल पाए, तो भारत को काफी फायदा हो सकता है.




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