इस समझौता एक्सप्रेस का तो एक्सीडेंट होना ही नहीं था..!

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जब जम्मू कश्मीर में सत्ता के लिए भाजपा और पीडीपी में समझोता यानि गठबन्धन हुआ था उसी वक्त राजनैतिक पंडितों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि गठबन्धन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी,दोनों का बेमेल विवाह हुआ है तलाक हो के रहेगा इनकी नीति और नीयत जुदा-जुदा है इनमें निभ ही नहीं सकती।

और गठबन्धन पर सबसे रोचक टिप्पणी यह थी कि यह वो समझौता एक्सप्रेस है जिसे चलाने वाले जिसमें सवार होने वाले सभी जानते थे कि इसका एक्सीडेंट होना तय है फिर भी यह एक्सप्रेस चली और अब नतीजा सबके सामने है।
दरअसल गठबन्धन सरकार से जम्मू कश्मीर की सीएम बनीं महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी की पाकिस्तान परक मानसिकता को जानकर भी भाजपा ने नहीं नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने उन्हें समर्थन दिया।इस निर्णय पर भाजपा व देश में भी खूब बवाल हुआ,खूब आलोचना हुई लेकिन मोदी-शाह करे सो सही पार्टी ने भी माना देश ने भी सह लिया।

यह मान भी लिया जाय कि कश्मीर में अपनी ताकत बढ़ाने और आतंक को खत्म करने के लिए सत्ता में आना या साथ रहना जरूरी समझा गया हो लेकिन इस प्रयोग को तीन साल तक असफल होते क्यों देखते रहे,जो महबूबा चुनाव के बाद पाकिस्तान और आतंकवादियों का आभार मानती हो उससे वहां आतंकवाद के खात्मे व पाकिस्तान के दखल को खत्म करने की क्या उम्मीद हो सकती थी महबूबा की कैसेट तो आज सरकार गिरने के बाद भी पाकिस्तान और आँकवादियों से संवाद करने पर अटकी हुई है।बीते 3 सालों में कश्मीर में भले ही 600 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराने के दावे हो रहे हो लेकिन इसी दौरान वहां हमारे सैनिकों के शहीद होने की संख्या भी बढ़ी है आम नागरिक भी मारे गए हैं। पत्थरबाजी तो मानो कश्मीर में रोज की बात हो गई।नापाक हरकतों को प्रश्रय मिलता रहा और राष्ट्रवाद मोन रहा समर्थन जारी रहा और तो और रमजान में सीज फायर की महबूबा की ज़िद को भी मान लिया गया,वे हमारे सैनिकों को मारते रहे और हम सीजफायर करते रहे।पत्रकार बुखारी की हत्या कर दी गई और महबूबा संवाद ही करने पर अड़ी रही।

महबूबा मेडम यह संवाद का नहीं संग्राम का समय है।भाजपा ने समर्थन वापस लेने में बहुत देर कर दी,बहुत कीमत चुकानी पड़ी।
अब प्रायश्चित यही है कि कश्मीर पर राजनीति को छोड़कर रण नीति से काम हो,आपरेशन आल आउट को इसके नाम के अनुरूप ही पूरा किया जाए। महबूबा की तरह कायर होने की बहुत कीमत चुका दी है अब एक्शन का समय है।हर समय हर परिस्थिति पर राजनीति करने की पृवत्ति को राजनैतिक दल त्याग देवें यह उनके लिए भी अच्छा है और देश के लिए भी।

कश्मीर में अब तो राष्ट्रपति शासन ही फिलहाल एकमात्र विकल्प है और 56 इंच के सीने की भी जरूरत है।

 

(ब्रजेश जोशी)




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