पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच अदावत कोई नई बात नहीं है. हाल में महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया था कि बीजेपी उनकी पार्टी को बैन कराना चाहती है. इस खबर का हमें इतना ही जिक्र करना था. दरअसल, हम इस सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं कि क्या केंद्र सरकार किसी पार्टी को बैन कर सकती है? लेकिन इससे पहले राजनीतिक पार्टी के गठन और उसकी राज्य या राष्ट्रीय मान्यता के बारे में जान लेते हैं.
नई राजनैतिक पार्टी बनाई कैसे जाती है?
हाल ही में आजाद समाज पार्टी और प्लूरल्स पार्टी जैसी नई पार्टियां चुनावी मैदान में दिखाई दी हैं. ये पार्टियां बनती कैसे हैं, कहां इनका रजिस्ट्रेशन होता है, कैसे होता है, और इस काम पर खर्चा कितना आता है? आइए जान लेते हैं.
किसी भी नई पार्टी को भारतीय निर्वाचन आयोग में रजिस्टर्ड कराना होता है. पार्टियां तीन तरह की होती हैं. राष्ट्रीय स्तर की पार्टी, राज्य स्तर की पार्टी और रजिस्टर्ड पार्टी. रजिस्ट्रेशन के लिए निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर जाकर एक आवेदन पत्र डाउनलोड करना होगा. यह आवेदन पत्र आयोग के काउंटर से भी मिल सकता है. डाक द्वारा भी मंगाया जा सकता है.
इसको भरने से पहले थोड़ी तैयारियों की जरूरत होती है. जैसे पार्टी का नाम क्या होगा? पार्टी का सिंबल क्या होगा? पार्टी का मुख्यालय कहां होगा? पार्टी के पदाधिकारी कौन-कौन होंगे? पार्टी के कुल सदस्य कितने होंगे? पार्टी का संविधान क्या रहेगा? ये सब बातें पहले से तय करनी होंगी.
अब इसके लिए कुछ नियम भी हैं. जैसे पार्टी का नाम और सिंबल मजहबी/धार्मिक पहचान वाला नहीं होना चाहिए. पार्टी में कम से कम 100 सदस्य होने चाहिए. पार्टी के गठन के बाद 30 दिन में अपना आवेदन निर्वाचन आयोग के सचिव को भेजना होगा. इस आवेदन के साथ पार्टी संविधान की कॉपी भी भेजनी होगी, जिसके हर पन्ने पर पार्टी के अध्यक्ष या महासचिव के हस्ताक्षर और मुहर होनी जरूरी है. आवेदन के साथ पार्टी का लैटर हैड भी लगाया जाएगा.
राज्य स्तरीय मान्यता पाने की शर्तें क्या हैं?
पार्टी तो बना ली, अब राज्य स्तर की मान्यता कैसे मिलेगी? इसके लिए पैमाना ये होता है कि राज्य की विधानसभा के लिए जो चुनाव होते हैं, उनमें या तो तीन सीटें पार्टी जीत जाए या फिर तीन प्रतिशत वोट मिल जाए. ऐसा होने पर पार्टी को राज्य स्तर की मान्यता मिल सकती है. इसके अलावा यदि आम चुनावों में पार्टी ने राज्य के लिए निर्धारित प्रत्येक 25 लोकसभा सीटों में से 1 पर भी जीत हासिल कर ली, तो भी उसे राज्य स्तर की पार्टी की मान्यता मिल जाती है. एक तरीका ये भी होता है कि लोकसभा या विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कुल वैध मतों के आठ प्रतिशत प्राप्त कर लिए हों. यदि इनमें से कोई एक शर्त भी पार्टी पूरा कर लेती है, तो वह राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी कहला सकती है.
राष्ट्रीय स्तर की मान्यता के लिए क्या शर्तें हैं?
किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का स्टेटस तभी दिया जा सकता है, जब वह पार्टी इनमें से किसी एक शर्त को पूरा करती हो-
1. पार्टी ने लोकसभा चुनावों में कम से कम 2% सीटें जीती हों, लेकिन ये सीटें कम से कम 3 अलग-अलग राज्यों की हों. लोकसभा में 545 सीटें हैं. इसलिए राष्ट्रीय स्टेटस पाने के लिए किसी भी पार्टी के पास कम से कम 11 सीटें होना जरूरी है. ये 11 सीटें कम से कम 3 राज्यों की होनी चाहिए. तब ही उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है.
2. पार्टी के पास 4 लोकसभा सीटें हों, और उसे कुल वोटों के कम से कम 6 प्रतिशत वोट मिले हों.
3. पार्टी के पास 4 लोकसभा सीटें हों, और उसे कम से कम चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में 6% से ज्यादा वोट मिले हों.
4. पार्टी को कम से कम चार राज्यों में ‘स्टेट पार्टी’ की मान्यता मिली हुई हो.
राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर की पार्टी होने के फायदे क्या हैं?
1. पहला फायदा ये है कि जिस पार्टी को जिस राज्य में राज्य स्तरीय दल की मान्यता मिली हुई है, वहां वो अपने उम्मीदवारों को पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा सकती है. यह सिंबल कोई और इस्तेमाल नहीं कर सकेगा.
2. अगर किसी पार्टी को नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल है, तो उसे पूरे भारत में अपने उम्मीदवारों को सुरक्षित चुनाव चिन्ह बांटने का अधिकार मिला हुआ होता है.
3. मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टी के उम्मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करते वक्त केवल एक प्रस्तावक की ही जरूरत होती है.
4. मतदाता सूचियों में संशोधन होता है तो इन्हें दो सेट फ्री में मिलते हैं. आम चुनावों में भी ऐसी पार्टी के उम्मीदवारों को मतदाता सूची का एक सेट फ्री मिलता है.
5. आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा भी मिलती है. यही नहीं ऐसी पार्टियां अपने स्टार प्रचारक भी नामित कर सकती हैं.
6. इन स्टार प्रचारकों की यात्राओं का खर्च उस उम्मीदवार के खर्च में नहीं जोड़ा जाता, जिसके लिए ये प्रचार करते हैं. मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल अधिकतर 40 स्टार प्रचारक बना सकता है. वहीं गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड पार्टी केवल 20 स्टार प्रचारक ही तय कर सकती है.
चुनाव आयोग के मुताबिक, किसी पार्टी को नेशनल या स्टेट पार्टी का स्टेटस मिल गया हो तो यह स्टेटस उसके पास दस साल तक बना रहेगा. यानी दो लोकसभा चुनावों तक. इसके बाद ही उस स्टेटस की समीक्षा की जाएगी. ऐसा नहीं है कि एक चुनाव में ही खराब प्रदर्शन हो जाने के बाद, ये स्टेटस छीन लिया जाए. पहले ये टाइम पीरियड 5 साल हुआ करता था यानी हर लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग पार्टियों के स्टेटस की समीक्षा करता था.
क्या केंद्र सरकार किसी राजनीतिक पार्टी को बैन कर सकती है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर सुनील चौधरी से बात की. उन्होंने कहा कि कोई सरकार किसी राजनीतिक दल को बैन नहीं कर सकती है. उनका कहना था,
“ये काम सरकार का नहीं है. कोई सरकार ऐसा नहीं कर सकती. भारतीय संविधान चुनाव आयोग को इसकी ताकत देता है, लेकिन वह भी तभी ऐसा कर सकता है, जब कोई पार्टी देश के हितों के खिलाफ काम कर रही हो और देशविरोधी साबित हो जाए. चुनाव आयोग किसी पार्टी को बैन कर सकता है, लेकिन उसके राजनीतिक मूवमेंट के बेसिस पर नहीं. “
दिल्ली विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर संगीत रागी ने कहा,
“केंद्र सरकार को किसी राजनीतिक दल को प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार नहीं है. ये राजनीतिक स्टेटमेंट लगता है. यदि कोई टेररिस्ट एक्टिविटी में इन्वॉल्व है, यदि कोई गलत काम में लगा है, तब उसे बैन किया जा सकता है. बिना किसी ठोस वजह के सरकार किसी पार्टी को बैन नहीं कर सकती.”