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September 11, 20181min00

पिछले कुछ सालों से समुद्र में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा है और यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है। अरबों टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष महासागरों में जमा हो जाता है। विषैले रसायनों के रोज़ाना मिलने से समुद्री जैव-विविधता भी प्रभावित हो रही है।

इसे साफ करने के लिए विश्व का सबसे बड़ा ‘ओशन क्लीनअप’ अभियान लॉन्च किया जा रहा है। इस अभियान की शुरुआत करने वाले हैं डच नागरिक बोयान स्लाट।

पृथ्वी 71 फीसदी हिस्सा जल आवरण से ढंका हुआ है। पृथ्वी पर उपलब्ध पूरे जल का 96 फीसदी हिस्सा समुद्रों में पाया जाता है। वैसे तो यह पानी पीने योग्य नहीं होता लेकिन ये पानी काफी उपयोगी होता है। जीवन के विभिन्न रूपों को संजोकर रखने वाले निकाय हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। पिछले कुछ सालों से समुद्र में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा है और यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है। अरबों टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष महासागरों में जमा हो जाता है। विषैले रसायनों के रोज़ाना मिलने से समुद्री जैव-विविधता भी प्रभावित हो रही है।

इसे साफ करने के लिए विश्व का सबसे बड़ा ‘ओशन क्लीनअप’ अभियान लॉन्च किया जा रहा है। इस अभियान की शुरुआत करने वाले हैंडच नागरिक बोयान स्लाट। वे जब सिर्फ 18 साल के थे तभी उन्होंने इस संस्था की शुरुआत की थी। उनकी कहानी दिलचस्प है। बोयान बताते हैं कि 8 साल पहले वह जब 16 साल के थे तब उन्होंने समुद्र मार्ग से ग्रीस की यात्रा की थी। उन्होंने कहा, ‘ग्रीस जाने के दौरान समुद्र में मुझे मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक नजर आ रहा था। इससे मुझे दुख पहुंचा। विगत 8 साल से मैं इस पर काम कर रहा हूं कि समुद्र से अधिक से अधिक प्लास्टिक कैसे निकाला जा सके।’

इस वक्त उनकी संस्था में 80 लोग स्वैच्छिक तौर पर काम कर रहे हैं। बोयन और उनकी टीम का कहना है कि समुद्र को प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त बनाकर इसे समुद्री जीवों के लिए सुरक्षित रखने के लिए हम ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ काम करना चाहते हैं। शनिवार को 2000 फुट के यू आकार वाले कलेक्शन सिस्टम को लॉन्च किया जाएगा। इसके जरिए कैलिफॉर्निया से हवाई तक के समुद्र क्षेत्र 600,000 में से कचड़े को निकालकर पानी को साफ करना है। बोयान की टीम का लक्ष्य है कि हर साल समुद्र से 50 टन के करीब कचड़ा निकाला जा सके। साथ ही प्लास्टिक और समुद्र से निकाले गए कचड़े को रीसाइकल करने की भी योजना है।

 
समुद्र को साफ करने के लिए लगी मशीन
 

कैसे होता है समुद्र में प्रदूषण

समुद्र में प्रदूषण के कई कारण होते हैं। सबसे ज्यादा प्लास्टिक और रसायन से समुद्र को हानि पहुंचती है। समुद्र के जल के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण है प्रदूषित नदियों के जल का समुद्र में मिलना। खेतों से नदियों और फिर समुद्र में पहुंचने वाले पानी में यूरिया घुल जाने से अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है और इससे फिर पानी में आक्सिजन की कमी हो जाती है। आक्सीजन की कमी से समुद्र में रहने वाले जीवों की श्वसन प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे उनकी मौत हो जाती है।

इसके अलावा अनुपयोगी प्लास्टिक का बढ़ता ढेर भी समुद्र में बहा दिया जाता है। कई बार दुर्घटना के कारण जहाजों का ईंधन समुद्र में फैल जाता है। यह तेल दूर-दूर तक समुद्र में फैल जाता है और समुद्र के पानी पर एक परत बना देता है। इसके कारण पानी में रहने वाले अनगिनत जीव-जंतु मर जाते हैं।

अगर हमें समुद्र को बचाना है तो सबसे पहले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगनी चाहिये। इसके अलावा समुद्री जीवन को हानि पहुंचाकर निर्मित की गई वस्तुओं का बहिष्कार कर उनके निर्माण को हतोत्साहित किया जाना चाहिये। यह काम किसी एक व्यक्ति से नहीं हो सकता इसके लिए पूरी दुनिया के लोगों को आगे आना होगा। 

 

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September 11, 20182min00

अमेरिका के आविष्कारक एलायस होवे ने ही दुनिया की पहली सिलाई मशीन का आविष्कार किया था. साल 1846 में आज ही के दिन उन्होंने सिलाई मशीन का पेटेंट कराया था. जरा सोचकर देखिए अगर होवे सिलाई मशीन का आविष्कार नहीं करते तो हम कभी इतने खूबसूरत और फैशनेबल कपड़े नहीं पहन पाते. सुई धागा का कोई अस्तित्व नहीं होता. आइए जानते हैं इस शख्स के बारे में ..

 

इस शख्स ने दी थी पहली सिलाई मशीन, फिर चला 'सुई-धागा'
 

एलायस होवे का जन्म साल 1819 में 9 जुलाई को हुआ था. उन्होंने साल 1835 में अमेरिका की एक टेक्सटाइल कंपनी में बतौर ट्रेनी अपने करियर की शुरुआत की.

 

इस शख्स ने दी थी पहली सिलाई मशीन, फिर चला 'सुई-धागा'
 

साल 1846 में उन्हें सिलाई मसीन से लॉकस्टिच डिजाइन के लिए पहले अमेरिकी पेटेंट पुरस्कार से नवाजा गया था.

 

इस शख्स ने दी थी पहली सिलाई मशीन, फिर चला 'सुई-धागा'
 

अमेरिका में कोई भी शख्स इस मशीन को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुआ. होवे के भाई ने ब्रिटेन तक का सफर तय कर इसे 250 पाउंड में बेचा.
 

 

इस शख्स ने दी थी पहली सिलाई मशीन, फिर चला 'सुई-धागा'
 

उन्होंने साल 1851 में जिपर (पेंट में लगने वाली चेन) का आविष्कार कर उसे पेटेंट कराया. सिलाई मशीन सिलाई की प्रथम मशीन ए. वाईसेन्थाल ने 1755 ई. में बनाई थी.

इसकी सूई के मध्य में एक छेद था तथा दोनों सिरे नुकीले थे. साल 1790 में थॉमस सेंट ने दूसरी मशीन का आविष्कार किया. भारत में भी उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक मशीन आ गई थी.

भारत में 1935 में कोलकाता (कलकत्ता) के एक कारखाने में उषा नाम की पहली सिलाई मशीन बनाई गई. मशीन के सारे पुर्जें भारत में ही बनाए गए थे. बताया जाता है एलायस होवे के सपने के कारण ही सिलाई मशीन का आविष्कार हुआ था.

 

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September 10, 20185min00

डॉनल्ड ट्रंप यानि दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान. थोड़ा ज़्यादा हो गया, लेकिन ताकत के हिसाब से अमेरिका सबसे आगे है, तो ट्रंप भी ताकतवर हुए. हां, नॉर्थ कोरिया कभी-कभी अमेरिका को धप्पा कर देता है!

ट्रंप को दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी माना जाता है, लेकिन इस आदमी के बारे में एक सच कोई नहीं जानता.

 

 

ट्रंप दुनिया के सबसे बड़े एक्टर हैं. उनमें इतने एक्सप्रेशन्स हैं, कि अगर वो अपने एक्सप्रेशन अर्जुन रामपाल, कटरीना कैफ़, जॉन अब्राहम, नरगिस फाखरी को दान भी कर दें तो बहुत से एक्सप्रेशन्स बचेंगे.

चलिए मिलवाते हैं एक्सप्रेशन्स के राजा, डॉनल्ड ट्रंप से:

 

शक करते हुए डॉनल्ड ट्रंप.

 

गुस्सा करते अमेरिकन प्रेसिडेंट.

 

 

तारीफ़ सुनकर इतराते ट्रंप.

 

 

ट्रंप अपने प्रतिद्वंदी को चिढ़ाते हुए.

 

 

तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई! कहने की कोशिश करते ट्रंप.

 

 

सुनों गांव वालों, अगर मेरी बात नहीं मानी तो….

 

 

फ़ाइनली मैं इंडिया पहुंच गया.

 

 

अरे यार, तुम तो बुरा मान गए…

 

 

ये वाला तो बिलकुल Blushing Emoji से मेल खाता है.

 

 

यू 2 रुपीज़ पीपल.

 

 

मां मुझे आईसक्रीम खानी है…

 

 

लगता है दांतों में कुछ फंस गया है…

 

 

Duck Lips वाला पोज देते ट्रंप.

 

 

क्या कहा, एक बार फिर से कहना…

 

 

किसी मसले पर गंभीरतापूर्वक सोचते ट्रंप.

 

 

अपनी बुराई सुनने के बाद…

 

 

मुझे नहीं लगता मैं कुछ ग़लत कर रहा हूं…

 

 

हूं न मैं किसी बच्चे जितना मासूम.

 

 

दिल ख़ुश कर दिया…

 

 

ये उनके लिए जो मुझसे जलते हैं…

 

 

अमेरिका की तरफ़ बुरी नज़र डाली तो…

 

 

बेस्ट एक्सप्रेशन्स का अवॉर्ड आप डोनल्ड ट्रंप को देना चाहेंगे कि नहीं?

 

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September 10, 20181min00

चीन के सबसे अमीर शख्स और 2639 अरब रुपये की संपत्ति के मालिक जैक मा ने कंपनी छोड़ने का ऐलान किया है. वे अगले वर्ष ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के कार्यकारी चेयरमैन पद से सेवानिवृत्त होंगे. अलीबाबा के संस्थापक के पद छोड़ने के बाद कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डेनियल झांग (46) उनके उत्तराधिकारी होंगे.

 

चीन के सबसे अमीर शख्स छोड़ देंगे कंपनी, ये बनेंगे उत्तराधिकारी
 

54 साल के जैक मा ने सोमवार को कंपनी छोड़ने की घोषणा की. जैक की ओर से सभी कर्मचारियों को लिखे पत्र के अनुसार, झांग को 10 सितंबर 2019 को कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन के पद पर पदोन्नत किया जाएगा. जैक मा कंपनी के निदेशक मंडल के निदेशक और अलीबाबा पार्टनरशिप के स्थाई सदस्य बने रहेंगे.

 

चीन के सबसे अमीर शख्स छोड़ देंगे कंपनी, ये बनेंगे उत्तराधिकारी

कंपनी की ओर से कहा गया है कि “सुलभ और सफल” बदलाव सुनिश्चित करने के लिये जैक मा एक वर्ष की अवधि के लिये कार्यकारी चेयरमैन बने रहेंगे और 2020 में शेयरधारकों की बैठक तक अलीबाबा के निदेशक रहेंगे.

जैक ने सोमवार को अपने जन्मदिन के अवसर पर अपनी सेवानिृवत्ति योजना की घोषणा की. न्यूयॉर्क टाइम्स ने शुक्रवार को कहा था कि जैक मा अपने जन्मदिन के दिन सेवानिवृत्ति की घोषणा करने वाले हैं.

हालांकि, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने इसका खंडन करते हुए कहा था कि जैक मा सोमवार को अपने 54वें जन्मदिन के मौके पर कंपनी में उनका उत्तराधिकार संभालने की रणनीति बताएंगे. हालांकि वह आगे भी कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन बने रहेंगे.

न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में जैक मा ने कहा है कि उनकी सेवानिवृत्ति एक युग का अंत नहीं है बल्कि एक युग की शुरुआत है.

उन्होंने कहा- ‘मुझे शिक्षा पसंद है. मैं अपना अधिक समय और पैसा इसी क्षेत्र में लगाऊंगा.’ जैक मा अंग्रेजी के शिक्षक रह चुके हैं.

 

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September 10, 20181min00

कई लोगों को पैरों में अधिक पसीना आता है. जब स्किन पर मौजूद बैक्टीरिया पसीने के संपर्क में आता है तो पैरों से बदबू आने लगती है. गर्मी और बरसात के मौसम में ज्यादा पसीना आने के कारण पैरों से बदबू भी अधिक आने लगती है. इसकी वजह से अक्सर कई लोगों को शर्मिंदगी का एहसास होता है.

 

आइए जानते हैं पैरों की बदबू को दूर करने के उपाय-

1. अदरक और सिरका

आप चाहें तो पानी में सामान्य सिरका मिलाकर उससे पैर धो सकते हैं या फिर अदरक के रस को पैर पर मल लें और बाद में गुनगुने पानी से पैर धो लीजिए. ऐसा करने से पैरों की बदबू चली जाती है.

2. लैवेंडर ऑयल

लैवेंडर ऑयल न केवल अच्छी खूशबू देता है बल्कि यह बैक्टीरिया को मारने में भी असरदार है. इस तेल में एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं जो पैरों की बदबू को दूर करने में बहुत फायदेमंद रहते हैं. हल्के गर्म पानी में कुछ बूंदें लैवेंडर ऑयल की डालकर पैरों को उसमें कुछ देर के लिए डुबोकर रखें. दिन में दो बार ऐसा करना फायदेमंद रहेगा.

3. बेकिंग सोडा

सोडियम कार्बोनेट को ही साधारण शब्दों में बेकिंग सोडा के नाम से जाना जाता है. पैरों से आने वाली बदबू को दूर करने का यह एक बेहद कारगर और आसान उपाय है. यह पसीने के pH लेवल को सामान्य रखता है और बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में कारगर होता है. हल्के गुनगुने पानी में बेकिंग सोडा मिला लें. 15 से 20 मिनट तक पैर पानी में ही डुबोए रखें. कुछ हफ्तों तक यह उपाय करने से फायदा होगा.

4. फिटकरी

फिटकरी कसैली होती है और इसमें एंटी-सेप्ट‍िक गुण भी पाया जाता है. यह बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकती है. एक चम्मच फिटकरी पाउडर को एक मग पानी में डालकर उससे पैर धोएं. कुछ दिनों में बदबू की समस्या दूर हो जाएगी.

5. पैर रखें साफ

सबसे आखिर में मगर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जूते पहनने से पहले आप यह सुनिश्च‍ित कर लें कि आपके पैर तो साफ हैं न. क्योंकि ऐसा पाया गया कि गंदे पैर जूते पहनने से ज्यादा बदबू आती है.

 

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September 10, 20182min00

किसी अरब देश में एक लड़का-लड़की को प्यार हुआ. और ऐसा हुआ कि आज यानी हज़ारों साल बाद भी याद किया जा रहा है. लड़की का नाम लैला था. लड़के का कैस. लेकिन वो लड़की के प्यार में इतना डूब गया कि कभी निकल ही नहीं पाया. इसके बाद उसे लोग ‘मजनू’ बुलाने लगे, जिसे हिंदी में पागल और अंग्रेज़ी में क्रेज़ी कहते हैं. तब से इस जोड़ी को लैला-मजनू के नाम से बुलाया जाने लगा. हालांकि ये एक ट्रेजिक लव स्टोरी थी. अब इस प्रेम कहानी पर इम्तियाज़ अली ने फिल्म लिखी है. और डायरेक्ट की है, उनके भाई साजिद अली ने. ये सोचकर कि अगर उन लैला-मजनू की प्रेम कहानी आज के समय में घटती तो कैसी होती.

बहुत से लोगों को लैला-मजनू की प्रेम कहानी बस इतनी पता है कि वो कभी पूरी नहीं हुई. लेकिन साजिद की ये फिल्म उस जोड़े की इस पूरी जर्नी को रिक्रिएट करती है. ये आज भी महान प्रेम कहानियों में क्यों गिनी जाती है, वो इस फिल्म को देखकर पता चलेगा.

इस फिल्म की सबसे अच्छी बात इसकी कहानी है. जो मेकर्स के पास पहले से उपलब्ध थी. लेकिन उसको दोबारा से ट्रेस करके लिखना इतना भी आसान नहीं था. अगर ये सही से हो गया तो बाकी सब हो गया. तो ‘लैला मजनू’ में ये सही से हो गया है. फिल्म की शुरुआत में ही बैकग्राउंड से एक डायलॉग आता है, जिसमें ये कहा जाता है कि ‘हमारी कहानी लिखी हुई. इसे दुनिया क्या, दुनिया वाले क्या, हम खुद नहीं बदल सकते.’ फिल्म का प्लॉट कुछ ऐसा है कि कश्मीर में रहने वाले दो परिवारों के बीच भारी दुश्मनी है. लेकिन उनके बच्चे प्यार में पड़ जाते हैं. लेकिन उनकी शादी एक दूसरे से नहीं होती. अब दोनों ही अपनी लाइफ से खुश नहीं है. मिलने की कोशिश होती है लेकिन कभी मिल नहीं पाते. कितनी घिसी हुई कहानी लग रही है सुनकर. लेकिन इसे देखने में रोएं खड़े हो जाते हैं, ऐसे बनाया गया है इसे.

 

अविनाश इससे पहले 2017 में आई फिल्म ‘तू मेरा संडे’ में काम कर चुके हैं.

इस फिल्म में नए एक्टर्स काम कर रहे हैं. पहले उन्हें छुपाकर रखा जा रहा था. क्योंकि इम्तियाज़ का ये मानना था कि वो अपने एक्टर्स को दुनिया से सीधे लैला-मजनू के किरदार में ही मिलवाना चाहते थे. ये एक्टर्स हैं अविनाश तिवारी और तृप्ति डिमरी. फिल्म में एक सीन है, जहां लैला और उसके पति के बीच लड़ाई हो रही होती है. इस सीन को देखकर आप इस बात पर शर्त लगा सकते हैं कि ये तृप्ति की पहली फिल्म नहीं है. मजनू के किरदार में अविनाश ने पूरा सेकंड हाफ हथिया लिया है. क्योंकि उस दौरान स्क्रीन पर सिर्फ वही दिखते हैं और आपको किसी और को देखने का मन भी नहीं करता है. फिल्म में एक और एक्टर हैं, जो बहुत इंप्रेस करते हैं. सुमित कौल. इन्होंने लैला के पति इब्बन का रोल किया है. इनका कश्मीरी लहज़े में बात करना बहुत अच्छा लगता है लेकिन इस कैरेक्टर से पूरी फिल्म में एक खुन्नस सी बनी रहती है.

 

तृप्ति की ये पहली फिल्म है. दूसरी बार ऑडिशन लेकर उन्हें फिल्म में लिया गया है.

इस कहानी में कुछ बहुत अलग नहीं है. बस ट्रीटमेंट का कमाल है सब. ये फिल्म अपने किरदारों की वजह से पसंद आती है. उनके पागलपन की वजह से पसंद आती है. जो पागलपन ‘गीत’ में था, ‘जॉर्डन’ में था, ‘वेरॉनिका’ में था, ‘वेद’ में था, वही पागलपन ‘कैस’ में दिखता है. और उसका पागलपन आप थोड़ा आगे तक देखना चाहते हैं. फिल्म खत्म होने के बाद कैस का क्या होता है. वो कहां जाता है? क्या करता है? जिंदा भी है कि नहीं? लेकिन फिर आप अपनी लैला को ढूंढ़ने में लग जाते हैं और कैस पीछे छूट जाता है.

फिल्म में एक सीन है जहां दीवाना कैस अपनी माशूक से बात कर रहा होता है. बगल में लोग नमाज़ अदा कर रहे होते हैं. कैस के बोलने से उनके नमाज़ में बार-बार खलल पड़ती है. वो उठकर चिक्खम-चिल्ली मचाते हैं और फिर कैस को पत्थर से मार देते हैं. वो समझ नहीं पाता कि उसे मारा क्यों गया? वो तो अपनी माशूक से बात कर रहा था, वो खोया हुआ था. फिर इन लोगों का ध्यान उस पर कैसे चला गया? वो भी अपने खुदा से बात कर रहे थे. फिल्म की एक अच्छी आदत है, वो बिना कहे बहुत कुछ कहती है. और आपको सुनकर सहमत होना पड़ता है.

 

इस फिल्म की कास्टिंग के दौरान शुरुआत में ही अविनाश को शॉर्टलिस्ट कर लिया गया था लेकिन उनके बाद भी कई लोगों का ऑडिशन हुआ लेकिन फिर अविनाश ही फाइनल कर लिए गए.

एक लड़की आकर कैसे लड़के की फ्लैट चल रही ज़िंदगी को सर के बल कर देती आपको यहां देखने को मिलता है. जैसे हीर ने ‘जनार्दन जाखड़’ को जेजे बना दिया, वैसे ही इस फिल्म की लैला, कैस को मजनू बना देती है. पागल कर देती है और बदले में बस फलक की ओर देखने को कहती है. उसे पता नहीं कि यही तो कैस को खल रहा है. उसे खुशी चाहिए लेकिन वो इंतज़ार कर रहा है. जब उसका सब्र जवाब दे देता है, तो निकल जाता है खुश होने. अकेले. अब उसे लैला से प्यार करने के लिए लैला की ही जरूरत नहीं है. कैस और लैला का सफर साथ शुरू हुआ था लेकिन कैस अब आगे निकल गया है. वो वहां से लौट भी नहीं सकता और आगे भी नहीं जा सकता. फिल्म में एक सीन है जहां दीवाना हो चुकी कैस से मिलने लैला आती है. उस समय वो बताता है कि उसे हर जगह क्या दिखता है. और वो अपने अंदर की सारी ऊर्जा लगाकर ये नाम लेता है- ‘लायला लायला’. ये फिल्म के उन सीन्स में से एक है, जहां अविनाश इतने तेज चमकने लगते हैं कि बाकी सब चीज़ें फीकी हो जाती हैं. और पूरी फिल्म में ये चीज़ आप कई जगह एक्सपीरियंस करते हैं. और उसके पीछे डायलॉग्स का बहुत बड़ा हाथ है. फिल्म के डायलॉग वैसे तो काफी रियल हैं लेकिन सुनने में इतने मीठे हैं कि शायरी जैसे लगते हैं.

 

इस फिल्म से पहले साजिद जॉन अब्राहम प्रोडक्शन के लिए ‘बनाना’ नाम की एक फिल्म डायरेक्ट कर चुके हैं लेकिन वो किसी वजह से रिलीज़ नहीं हो पा रही.

फिल्म में डायलॉग से ज़्यादा कुछ कहने या करने की कोशिश ही नहीं की गई है. फोटो वाली कहानी टाइप लगती है ये फिल्म. कश्मीर के कभी हरे-भरे तो कभी बर्फ से ढंके पहाड़. नीली झील. घने जंगल. इस माहौल में घट रही ये कहानी बहुत सूफी सी हो जाती है. नॉर्मल रफ्तार से शुरू हुई ये फिल्म हर बढ़ते सीन के साथ तेज होती जाती है. और खत्म ऐसे होती है जैसे इसे कोई रेस जीतनी हो. ‘आहिस्ता’ और ‘हाफिज़ हाफिज़’ गाने के बीच जो कुछ घटता है उससे आप एक पल को नज़र नहीं हटा सकते. अगर ऐसा हुआ तो आप सेकंड भर में काफी कुछ मिस कर जाएंगे. सामने अविनाश परफॉर्म कर रहे होते हैं पीछे से मोहित चौहान अपना जादू बिखेर रहे होते हैं. ये फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा है. इस फिल्म के लिए गाने नीलाद्री कुमार और जॉय बरुआ ने बनाएं हैं. फिल्म में ‘सरफिरी’ गाने का प्लेसमेंट थोड़ा अजीब लगता है. क्योंकि ये एक सीन के बीच नेपथ्य से आकर सामने खड़ा हो जाता है, जबकि आप वो सीन देखने में इंट्रेस्टेड हैं. वो गाना आप यहां देख सकते हैं:

 

 

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September 10, 20181min00

10 सितंबर के दिन का इतिहास में बेहद खास स्थान है. आज ही के दिन इंडियन एयरलाइंस के एक विमान को अगवा कर लिया गया था और उसमें सवार सभी यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को भारत-पाकिस्तान की मदद से सुरक्षित बचा लिया गया था. यह बात साल 1976 की है जब देश में इमरजेंसी को लेकर हंगामे हो रहे थे और उस वक्त इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान को सनसनीखेज तरीके से हाईजैक कर लिया गया था.

खास बात ये है कि इस दौरान भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सरकारों के तालमेल ने भी एक मिसाल कायम की थी. दरअसल 10 सितंबर को सुबह करीब साढ़े सात बजे दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान ने 77 यात्रियों के साथ मुंबई (तब बंबई) के लिए उड़ान भरी. मुंबई पहुंचने से पहले जहाज को जयपुर और औरंगाबाद रुकना था.

हालांकि टेक-ऑफ करने के एक कुछ ही मिनटों बाद दो अपहरणकर्ता कॉकपिट में आ गए और पायलट को पिस्तौल दिखाकर विमान का अपहरण कर लिया. अपहरणकर्ता विमान को लीबिया ले जाना चाहते थे, लेकिन पायलट और सह-पायलट ने ऑटो पायलट शुरू करके दिल्ली एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से संपर्क साधा और घटना की जानकारी दी.

बताया जाता है कि उस दौरान अपहरणकर्ता पायलट को लीबिया जाने के लिए कह रहे थे. हालांकि टीम ने पेट्रोल ना होने की बात कही और पायलट की समझदारी से विमान को लाहौर ले जाया गया, जबकि वो कराची जाने को कह रहे थे. उस दौरान भारत की सरकार ने पाकिस्तान सरकार को करके फोन करके क्रू के सदस्यों और यात्रियों की सुरक्षा की गुहार लगाई और पाकिस्तान ने मदद भी की.

पाकिस्तान ने विमान को जगह दी और रात होने के बहाने से विमान को रोके रखा. अपहरणकर्ताओं की खातिर जहाज में बढ़िया खाने का इंतजाम करवा दिया. दरअसल, पाकिस्तानी अधिकारियों ने खाने के साथ दिए पानी में नशीली दवाइयां मिला दी थीं जिसे पीकर अपहरणकर्ता बेहोश हो गए थे. बाद में अपहरणकर्ताओं को पकड़ लिया गया और बाद में विमान को भारत के लिए रवाना किया गया.

वहीं 7 जनवरी, 1977 को 41 साल पहले सभी अपहरणकर्ताओं को पाकिस्तान सरकार ने रिहा कर दिया था. बता दें, सभी पाकिस्तान में हिरासत में थे. वहीं पाकिस्तान के इस फैसले का विरोध भारत ने काफी किया. वहीं आज ये पता नहीं चल पाया है कि आखिर उन अपहरणकर्ताओं ने  इंडियन एयरलाइंस के बोइंग 737 विमान क्यों हाईजैक किया था. उनका क्या मकसद था..

 

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September 8, 20183min00
हर ढलते दिन के साथ लोगों में फैशन के मायने बदल रहे हैं. आजकल कई फैशन ब्रांड बेहद अटपटे ढंग से कपड़ों को डिजाइन कर रहे हैं, जिन्हें देखकर समझ पाना ही थोड़ा मुश्किल होता है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
हाल ही में ब्रिटिश की एक ऑनलाइन फैशन रिटेलर कंपनी ASOS ने जींस की अनोखी वेस्टबैंड लॉन्च की है. डेनिम की इस वेस्टबैंड को बेस्ट बेल्ट और  शॉर्ट स्कर्ट भी माना जा रहा है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
बता दें, ये जींस की कटी हुई वेस्टबैंड है. इसवेस्ट बैंड की कीमत 18 पाउंड, जो भारतीय रकम के हिसाब से 1,672 रुपये है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
ASOS कंपनी ने इस वेस्टबैंड को ‘योर आउटफिट्स प्लस वन’ बताया है. इस वेस्टबैंड में एक बटन है, जो आपको एक अनफिनिश्ड लुक देगी.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
ASOS  की वेबसाइट पर एक मॉडल ने ये वेस्टबैंड नारंगी रंग की ट्राउजर, जैकेट और व्हाइट टी शर्ट के साथ पहनी हुई है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
ASOS कंपनी ने बताया है कि ये वेस्टबैंड लिमिटेड स्टोक में ही उपलब्ध हैं. कंपनी ने ये भी बताया है कि अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं, तो बता दें इसे खरीदना ‘ अभी या कभी नहीं ‘ की तरह होगा.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
जब से ये वेस्टबैंड ऑनलाइन साइट पर आई है तभी से लोग इसको लेकर अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. आइए जानते हैं लोगों का इस वेस्टबैंड के बारे में क्या कहना है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
कई लोगों का मानना है कि वे 18 पाउंड इस वेस्टबैंड को खरीदने के लिए क्यों खर्च करेंगे, जब इसे घर पर ही पुरानी जींस को काटकर बनाया जा सकता है. 
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
एक यूजर लिखती हैं कि ASOS हमें दाम से ज्यादा की चीजें बेचने की कोशिश कर रही है.
 
जींस की कतरन से बनी बेल्ट का फैशन, कीमत जानकर रह जाएंगे हैरान
 
वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, आखिर ASOS पुरानी जींस की वेस्टबैंड 18 पाउंड में बेचने की कोशिश क्यों कर रही है.

 

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September 8, 20181min00

भोपाल की रहने वाली 19 साल की मनीषा कीर ने साउथ कोरिया में चल रहे इंटरनेशल जूनियर शूटिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। यह प्रतियोगिता इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन द्वारा कराई जाती है। इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे मनीषा को काफी संघर्ष पड़ा। दरअसल मनीषा एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं और उनके पिता कैलाश कीर भोपाल झील में मछलियां पकड़ने का काम करते थे। मनीषा भी उनके काम में हाथ बंटाती थीं।

मनीषा के छह भाई बहन हैं। इस हालत में शूटिंग करने की कल्पना करना तो बिलकुल आसान नहीं था। दक्षिण कोरिया में चल रही इस प्रतियोगिता में मनीषा ने जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी जरूर की, लेकिन उन्हें दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। मनीषा ने ओलंपियन मनशेर सिंह के निर्देशन में शूटिंग की ट्रेनिंग ली है।

 
 
 

एनबीटी के मुताबिक मनीषा के दिन की शुरुआत भोपाल झील में मछलियां पकड़ने में पिता की मदद करने से शुरू होती थी। उनके पिता कैलाश कीर मछलियों को बाजार में बेचते और परिवार का पेट पाला करते। मनीषा के दिन भी पिता की मदद में ही गुजर रहे थे। मनीषा की बड़ी बहन सोनिया एक दिन उन्हें मध्य प्रदेश शूटिंग अकेडमी ले गईं जहां शॉटगन ट्रायल हो रहे थे। मनीषा के निशाने का कमाल यहां ओलिंपियन मनशेर सिंह ने देखा जो अकेडमी के मुख्य कोच थे। उन्होंने मनीषा को एक लक्ष्य दिया जिसे मनीषा ने एक पेशेवर शूटर की तरह राइफल से हिट कर दिया।

भोपाल के बाहरी इलाके गोरेगांव में रहने वाली मनीषा ने मई 2016 में फिनलैंड में जूनियर शॉटगन कप में गोल्ड जीता। वह बताती हैं, ‘मैं 2013 में एक नए स्टेडियम में ट्रायल के लिए गई और सिलेक्ट हो गई। मैंने वहां ट्रेनिंग शुरू कर दी और इसके बाद मैंने और कुछ अन्य शूटर्स ने नैशनल इवेंट के लिए क्लॉलिफाइ किया। हालांकि मैं भारतीय टीम में जगह नहीं बना सकी। हालांकि मैंने अगली बार और कड़ी मेहनत की। मैंने पूरे दिन अकेडमी में अभ्यास किया। इसका फायदा हुआ और मैं तीसरी रैंक के साथ नैशनल टीम में चुन ली गई। ‘

 

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September 8, 20181min00

दोनों की इस प्रेम कहानी व कब्रों का राज यहां आजादी के बाद खुला फिर 1960 के बाद से यहां मेला भरने लगा, जो आज तक जारी है।

डायरेक्टर इम्तियाज अली  के भाई  साजिद अली  के निर्देशन में बनी फिल्म लैला-मजनूं रिलीज हुई है लेकिन इनकी स्टोरी की सच्चाई बहुत कम लोग जानते हैं। दोनों की कब्र श्रीगंगानगर में हैं। हर साल 15 जून को लैला-मजनूं की याद में अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर, राजस्थान) के बिंजौर में सालाना मेला लगता है। पूरे देश के हजारों प्रेमी जोड़े यहां आकर चादर चढ़ाते हैं और मन्नते मांगते हैं।

आखिर इस मेले की शुरुआत भारत-पाक सीमा पर बसे बिंजौर गांव से हुई कैसे? लैला-मजनूं का इस गांव से रिश्ता क्या था? दोनों की मजार यहां बनी कैसे? लैला-मजनूं आखिर हिंदुस्तान आए कैसे? इनके जवाब जानने के लिए भास्कर टीम ने 15 दिन तक इंटरनेट पर कई साइट्स खंगाली, इतिहासकारों से बातचीत की। बिंजौर गांव जाकर वहां के बुजुर्गों तथा उस समय के बीएसएफ में रहे अधिकारियों से बात की। ज्यादातर लोगों का मत है कि उस समय पाकिस्तान में जन्मे लैला-मजनूं अंतिम समय में अनूपगढ़ के बिंजौर गांव ही आए थे। लैला के भाई दोनों को मारने के लिए उनके पीछे पड़े हुए थे। दोनों छिपते-छिपाते पानी की तलाश में यहां पहुंचे और दोनों की प्यास से ही मौत हो गई और यहीं दोनों को एक साथ दफना दिया गया। दोनों की इस प्रेम कहानी व कब्रों का राज यहां आजादी के बाद खुला फिर 1960 के बाद से यहां मेला भरने लगा, जो आज तक जारी है। जानते हैं उनकी पूरी कहानी…

 

लैला-मजनूं का जन्म 11वीं शताब्दी में हुआ
लैला-मजनूं 11 वीं शताब्दी में पैदा हुए थे। उस समय भारत-पाक एक ही थे। पाक स्थित सिंध प्रांत में मजनू का जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ था। मजनूं का नाम कायस इब्न अल-मुलाव्वाह था। मान्यता है कि मजनूं के जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इसे प्रेम रोग होगा और यह दर-दर भटका करेगा।

 

मदरसे में तालीम के दौरान इश्क हुआ
मदरसे में तालीम (पढ़ाई) के दौरान ही मुलाव्वाह को लैला नाम की एक लड़की से इश्क हो गया और लैला भी उसे चाहने लगी। मुलाव्वाह कविताओं में रुचि रखता था। ऐसे में अब वो जो भी कविता लिखता, सबमें लैला का जिक्र जरूर होता। मजनूं ने लैला के परिवार वालों से उसका हाथ मांगा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। 

 

नाराज परिवार ने करवा दी लैला की शादी 
लैला के परिवार ने उसकी शादी एक अमीर व्यापारी से करवा दी। लैला भी इस शादी से खुश नहीं थी और उसने अपने पति को मजनूं के बारे में सब बता दिया। खफा होकर पति कैफी ने उसे तलाक दे दिया और उसके पिता के घर छोड़ दिया। जब मजनूं ने लैला को फिर देखा तो दोनों घर से भाग गए। 

 

लैला-मजनूं घर से भागे तो परिवार जान के प्यासा हो गया
लैला के मजनूं के साथ भागने का पता उसके परिवार को लगा तो उसके भाई गुस्सा हो गए और दोनों को ढूंढने लगे। वहीं, परिवार से डरते-डरते लैला-मजनूं दर-दर भटकने लगे। बताया जाता है कि भागते-भागते वे श्रीगंगानगर की अनूपगढ़ तहसील के गांव बिंजौर (6एमएसआर) में पहुंच गए। यहीं रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी न मिलने से दोनों की मौत हो गई और लोगों ने उन्हें एक साथ दफना दिया।

 

ये है वो पहली कविता है, जो मजनूं ने लैला के लिए लिखी
“मैं इन दीवारों से गुजरता जाऊंगा, जिनसे लैला गुजरती है और मैं उस दीवार को चूमा करूंगा, जिनसे लैला गुजरती है
यह मेरे दिल में दीवारों के प्रति प्यार नहीं है, जो मेरे दिल को खुश करता है लेकिन जो उन दीवारों के पास से चलकर मेरा ध्यान आकर्षित करती है, उससे मुझे प्यार है।”

 

मजार में हिन्दू-मुस्लिम दोनों की आस्था, बस नाम अलग
लैला-मजनूं मजार में हिंदू और मुस्लिम दोनों की जबरदस्त आस्था है। दोनों समुदायों के लोग यहां आकर सिर झुकाते हैं और मन्नत मांगकर धागा बांधते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों समुदायों ने यहां का नाम भी अलग रखा हुआ है। मुस्लिम इसे लैला-मजनूं की मजार कहते हैं तो हिंदू लैला-मजनूं की समाधि कहकर पूजते हैं। पांच दिन के इस मेले में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों से प्रेमी जोड़े यहां मन्नतें मांगने आते हैं।

 

बीएसएफ भी देती है दोनों को सम्मान, सीमा चौकी का नाम पर भी मजनूं पर

  • देश में बीएसएफ की संभवत: यहां पहली सीमा चौकी है, जो प्यार करने वालों के नाम पर बनी है। सीमा पर बसे इस गांव में बीएसएफ की सीमा चौकी का नाम पहले लैला-मजनू था, जिसका नाम बाद में मजनूं कर दिया गया।
  • पहले यहां पाकिस्तान से बड़ी संख्या में प्रेमी आया करते थे, लेकिन भारत-पाक में मतभेद बढ़े तो यहां तारबंदी कर दी गई और वहां से प्रेमियों का यहां आना भी बंद हो गया।

 

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