रामायण तो दिखा रहे, ये 10 सीरियल अगर फिर से दिखाने लगें तो मज़ा आ जाए!

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‘रामायण’ फिर से दूरदर्शन पर दिखाया जाने लगा है. रामानंद सागर का महा-पॉपुलर सीरियल, जिसे औरतें सिर पर पल्लू रखकर देखा करती थीं. दादियां भगवान राम के स्क्रीन पर आने पर टीवी के आगे हाथ जोड़ लिया करती थीं. जिसे चप्पल-जूते उतारकर देखने का रिवाज़ सा हो गया था. भारत के मन में राम-सीता-हनुमान तो हमेशा से विद्यमान थे ही, रामानंद सागर ने उनको चेहरा दिया. अरुण गोविल-दीपिका चिखलिया-दारा सिंह के रूप में. ‘रामायण’ जब टीवी पर आया करता था, तो सड़कें सूनी हो जाया करती थीं. जनवरी 1987 से लेकर जुलाई 1988 तक ये आलम रहा. रामायण विश्व के इतिहास का सबसे ज़्यादा देखा गया माइथॉलॉजिकल सीरियल है. अब फिर से दूरदर्शन पर आ रहा है. फर्क सिर्फ इतना है कि तब इसके टेलीकास्ट होते समय सड़कें सूनी होती थीं, अब सड़के सूनी हैं इसीलिए टेलीकास्ट हो रहा है.

साथ ही टेलीकास्ट हो रहा है ‘महाभारत’. भारत के पौराणिक ख़जाने से एक और महागाथा. ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ के भी अब्बाजान. भौकाल ये कि इसके एक्टर्स को किरदारों के नाम से जाना जाने लगा था. प्रवीण कुमार का नाम ही भीम पड़ गया था. पुनीत इस्सर, दुर्योधन के रूप में पुकारे गए और अर्जुन का रोल करने वाले एक्टर फ़िरोज़ ख़ान ने तो खुद ही अपना नाम हमेशा-हमेशा के लिए अर्जुन रख लिया.

नीतीश भारद्वाज ने सारी उम्र भले चाहे जो किया, पहचाने वो ‘कृष्ण’ की वजह से ही जाते हैं.

इसके अलावा दो और सीरियल फिर से आ रहे हैं. ‘सर्कस’ और ‘ब्योमकेश बक्शी’. ‘सर्कस’, जिसने हिंदी सिनेमा को उसका पहला ग्लोबल फेस दिया. शाहरुख ख़ान. दूसरा, ‘ब्योमकेश बक्शी’, जो तमाम उम्र रजित कपूर की पहली पहचान बना रहा.

बहरहाल, जब इत्ते पुराने सीरियल फिर से दिखा रहे हैं, तो हमारे मन का रिवर्स गियर लगाकर उस दौर में पहुंच जाना लाज़मी है. इस एक खबर भर से हमें न जाने कितने ही सीरियल याद आ गए, जिन्होंने हमारा बचपन गुलज़ार कर रखा था. जब हमें याद आ गए, तो आपको भी उस रस में डुबकी लगवाना हमें अपना फ़र्ज़ सा लगा. तो पेश है दूरदर्शन के अप्रतिम सीरियल्स की ऐसी ही एक फेहरिस्त. जो नॉस्टैल्जिया में रची-बसी है और इनका ज़िक्र भर मूड फ्रेश कर देता है.

लेकिन ठहरिए. आगे बढ़ने से पहले एक तस्वीर देख लीजिए. और पहचानने की कोशिश कीजिए ये क्या है?

इसका टीवी स्क्रीन पर दिखना न जाने कितनों का बीपी शूट कर जाने का कारण बना. (भले ही उस दौर में हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियों से सामान्य भारतीय मध्यमवर्ग अनजान था.)

ये वो तस्वीर है जो जब-जब भी टीवी पर आई, मूड की लंका लगा गई. लिखा होता था, ‘रुकावट के लिए खेद है’. ये फिकरा आगे चलकर एक मज़ाकिया जुमला भी बना. वो कहानी फिर कभी. अभी बिना किसी रुकावट के अपन लिस्ट बांचते हैं.

1)

 सीरियल का नाम – ये जो है ज़िंदगी
कब आता था – 1984
डायरेक्ट किसने किया – कुंदन शाह, रमण कुमार, एस.एस.ओबेरॉय
प्रमुख कलाकार – शफी ईनामदार, स्वरूप संपत, राकेश बेदी, सतीश शाह, फरीदा जलाल 
कहां देखें – यूट्यूब, अमेज़न प्राइम

वो ज़माना साफ़-सुथरी कॉमेडीज़ का था. फिल्मों से लेकर टीवी तक सब जगह ऐसी ही कॉमेडी होती थी. सेक्स कॉमेडी के तो नाम तक से हिंदुस्तान वाकिफ नहीं था.

एटीज़ का एक हल्का-फुल्का कॉमेडी सीरियल. वर्मा पति-पत्नी, वर्मा जी का साला राजा, बंगाली पड़ोसी इतने से लोग. और इन्हीं लोगों की डेली लाइफ से उपजी कॉमेडी. साथ ही सतीश शाह का तड़का. शफी-ईनामदार और स्वरूप संपत की जोड़ी को बहुत पसंद किया गया. ख़ास तौर से स्वरूप संपत को, जो कभी मिस इंडिया रही थीं और बाद में परेश रावल की पत्नी बनीं.

ख़ास बात – सतीश शाह ने पहले से लेकर 54वें एपिसोड तक इसमें अलग-अलग कॉमिक रोल किए थे. उनके इस कारनामे का ही ज़हूरा था कि उस दौर में उन्हें ‘किंग ऑफ कॉमेडी’ के नाम से पुकारा जाने लगा था.

 

2)

सीरियल का नाम – करमचंद
कब आता था – 1985
डायरेक्ट किसने किया – पंकज पराशर
प्रमुख कलाकार – पंकज कपूर, सुष्मिता मुखर्जी, सुचेता खन्ना, अर्चना पूरणसिंह
कहां देखें – यूट्यूब

 

कहते हैं कि करमचंद किसी विदेशी जासूस की नकल था. जो भी था, कमाल था.

ब्योमकेश बक्शी से काफी पहले भारतीय टेलीविजन एक जासूस के कारनामों से चमत्कृत रह चुका था. क़त्ल के केसेस सुलझाने में पुलिस की मदद करता जासूस करमचंद, जो बात-बात पर कोट की जेब से गाजर निकालकर खाता था. और अपनी मूर्ख सी असिस्टेंट किटी को लगातार डांटता भी रहता था, ‘शट अप किटी’. पंकज कपूर के बेहद रिच एक्टिंग करियर की जब भी बात होती है, उसमें ‘करमचंद’ का ज़िक्र ज़रूर होता है. बाद के सालों में इसका सीज़न टू भी आया था, जिसमें लीड रोल फिर से पंकज कपूर ने ही किया था.

ख़ास बात – ‘करमचंद’ की पॉपुलैरिटी का अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिए कि अमेरिका के मशहूर कॉमेडी सीरियल ‘दी बिग बैंग थियरी’ तक में उसका ज़िक्र आ चुका है.

 

3)

सीरियल का नाम – विक्रम और बेताल
कब आता था – 1985
डायरेक्ट किसने किया – प्रेम सागर
प्रमुख कलाकार – अरुण गोविल, सज्जन, दीपिका चिखलिया
कहां देखें – यूट्यूब

एटीज़ और नाइंटीज़ में पौराणिक, साहित्यिक और लोककथाओं वाली कहानियों पर खूब सीरियल बने. ये उनमें से एक था.

महाकवि सोमदेव भट्ट की लिखी बेताल पचीसी, जो परदे पर आई तो बहुत पसंद की गई. ख़ास तौर से बच्चों द्वारा. राजा विक्रमादित्य हर रात पेड़ से उल्टे टंगे प्रेत को अपनी पीठ पर लाद लेता है. उसे ये प्रेत किसी जगह पहुंचाना है. खामोशी से. अगर बोला, तो कसम टूट जाएगी और प्रेत वापस पेड़ पर. रास्ते में प्रेत यानी बेताल, राजा को कहानी सुनाता है. जिसके अंत में एक सवाल पूछता है. अगर राजा को जवाब पता है तो उसे देना ही पड़ेगा, वरना वो ‘उसके सिर के हज़ार टुकड़े कर देगा’. बहरहाल, 25 रातों तक ये सिलसिला चलता है और कहानी अपने मुकाम पर पहुंचती है. क्या मुकाम, ये देखकर जानिएगा.

ख़ास बात – ‘रामायण’ से पहले अरुण गोविल, दीपिका चिखलिया और रामानंद सागर का गठबंधन इस सीरियल में हुआ था.

 

4)

सीरियल का नाम – मालगुडी डेज़
कब आता था – 1986
डायरेक्ट किसने किया – शंकर नाग
प्रमुख कलाकार – मास्टर मंजुनाथ, गिरीश कर्नाड, वैशाली कासरवल्ली
कहां देखें – यूट्यूब, अमेज़न प्राइम

‘मालगुडी डेज’ वो रेयर अचीवमेंट है, जिसमें पुस्तक और सीरियल दोनों को ही सुपरहिट होने का सुख मिला.

आर.के.नारायण की अप्रतिम कहानियों पर बनाया गया प्यारा सा सीरियल. साउथ इंडिया का काल्पनिक कस्बा मालगुडी, जिससे कभी सिर्फ साहित्यप्रेमी ही परिचित थे, इस सीरियल की वजह से हिंदुस्तान के घर-घर में पहचाना गया. स्वामी, उसके दोस्त मणि और राजम की कहानियां जनता का मन भी बहलाती रहीं, प्रेरित भी करती रहीं. साहित्य को सिनेमा के परदे पर बिना आत्मा नष्ट किए पेश करने का अप्रतिम नमूना था ये सीरियल. शुरुआत की वो बांसुरी वाली धुन तो इतनी प्यारी लगती थी कि क्या ही बताएं! सीरियल के लिए तमाम स्केच आर.के.नारायण के छोटे भाई और जगतप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण ने बनाए थे.

ख़ास बात – स्वामी का किरदार निभाने वाले मास्टर मंजुनाथ इतने लोकप्रिय हुए कि उनको अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अग्निपथ’ में उनके बचपन का रोल मिल गया. वैसे उन्होंने कुल 68 फिल्मों में बाल-कलाकार के रूप में काम किया. पर न जाने क्या हुआ कि बड़े होने के बाद वो कभी एक्टिंग की दुनिया में नहीं लौटे.

 

5)

सीरियल का नाम – भारत एक खोज
कब आता था – 1988
डायरेक्ट किसने किया – श्याम बेनेगल
प्रमुख कलाकार – रोशन सेठ, ओम पुरी, टॉम अल्टर, सदाशिव अमरापुरकर, पल्लवी जोशी, अनंग देसाई, के.के.रैना, नसीरुद्दीन शाह
कहां देखें – यूट्यूब

श्याम बेनेगल ने बड़े परदे पर जो किया सो किया, छोटे परदे को भी ये अप्रतिम सौगात दी है.

मस्ट, मस्ट, मस्ट वॉच. दरअसल दूरदर्शन को सबसे पहले इसे ही दिखाना चाहिए था. वॉट्सऐप इतिहास से परे असली इतिहास. जवाहरलाल नेहरू की लिखी ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को श्याम बेनेगल ने कलात्मकता और संजीदगी के साथ परदे पर पेश किया. भारत के पांच हज़ार सालों का इतिहास महज़ 53 एपिसोड्स में समेटना आसान नहीं था. सिंधु घाटी सभ्यता से बात चलती है, तो वैदिक युग, महाभारत, रामायण, चाणक्य, सम्राट अशोक, कालिदास, विजयनगर एम्पायर, मुग़ल सल्तनत, 1857 से होती हुई 1947 की आज़ादी तक आ पहुंचती है. अगर आपके पास वक्त है तो ज़रूर देखिए. नहीं है तो निकालिए. रोशन सेठ ने नैरेटर जवाहरलाल नेहरू का रोल इस चमत्कारी ढंग से निभाया था कि वो ज़िंदगी भर हमें नेहरू ही लगते रहे.

ख़ास बात – रोशन सेठ ने अपना यही रोल रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ में भी किया. जिसको ऑस्कर अवॉर्ड मिला.

 

6)

सीरियल का नाम – मिर्ज़ा ग़ालिब
कब आता था – 1988
डायरेक्ट किसने किया – गुलज़ार
प्रमुख कलाकार – नसीरुद्दीन शाह, तन्वी आज़मी, नीना गुप्ता, शफी ईनामदार
कहां देखें – यूट्यूब

ये सीरियल हिंदुस्तान के साथ-साथ पाकिस्तान में भी बेहद मशहूर हुआ. आज भी है.

शायरी के आदिपुरुष मिर्ज़ा असदुल्ला खाँ ग़ालिब का कलाम तो सबने ही जाने-अनजाने सुन रखा होगा, लेकिन उनको शक्ल मिली 1988 में. गुलज़ार द्वारा. नसीर साहब ने ऐसे डूबकर ग़ालिब निभाया कि आज भी ग़ालिब के ज़िक्र पर लंबी सी, कामदानी की हुई, मलमल की टोपी पहने नसीर साहब ही याद आते हैं. ग़ालिब की जीवनगाथा को परदे पर उस शख्स ने उतारा था, जो कविताई में बहुत बड़ा नाम है. गुलज़ार. ऊपर से उनको कैफ़ी आज़मी की मदद हासिल थी. ज़ाहिर है सीरियल का स्टैण्डर्ड हाई होना ही था.

ख़ास बात – इस सीरियल में ग़ालिब की लिखी हुई दस प्रमुख ग़ज़लों को जगजीत और चित्रा की आवाज़ में पेश किया गया. दस की दस बेहद मकबूल हुईं. आज भी खूब सुनी जाती हैं.

 

7)

सीरियल का नाम – देख भाई देख
कब आता था – 1993-94
डायरेक्ट किसने किया? – आनंद महेंद्रू
प्रमुख कलाकार – शेखर सुमन, सुषमा सेठ, नवीन निश्चल, फरीदा जलाल
कहां देखें – यूट्यूब

शेखर सुमन को इस धारावाहिक ने भरपूर प्रसिद्धि दिलाई.

‘इस रंग बदलती दुनिया में, क्या तेरा है, क्या मेरा है, देख भाई देख…‘.

उदित नारायण की आवाज़ में जब-जब भी ये लाइन सुनाई पड़ती, हम बच्चे टीवी से चिपक जाया करते थे. नाइंटीज़ की एक साफ-सुथरी कॉमेडी. कहानी थी दीवान परिवार की. जिसकी तीन जनरेशंस एक बंगले में रह रही है. इसी परिवार की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से उपजा हास्य हमें खूब गुदगुदाया करता था. चाहे इरिटेट करने वाले माता-पिता से जूझते बच्चे हों, या रिलेशनशिप की दिक्कतें. कॉमेडी का डोज़ हर सूरत में मिल जाया करता था.

ख़ास बात – इस सीरियल को जया बच्चन ने प्रड्यूस किया था. अपनी कंपनी सरस्वती ऑडियो विजुअल्स प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले. जो अब अमिताभ बच्चन कॉर्पोरेशन लिमिटेड में मर्ज हो गई है.

8)

सीरियल का नाम – मोगली – दी जंगल बुक
कब आता था – 1993
डायरेक्ट किसने किया? – फुमियो कुरोकावा
कहां देखें – यूट्यूब

‘जंगल बुक’ को दुनिया भर में सराहा गया. भारत में बच्चे तो पागल हुआ करते थे. अगर उन दिनों मर्चेंडाइज़ का चलन होता तो मोगली एंड टीम के बहुत बिकते.

रुडयार्ड किपलिंग की किताब ‘जंगल बुक’ पर जापान में एनीमेशन सीरियल बना. ‘जंगल बुक शोनेन मोगली’. जो वहां तो हिट रहा ही, भारत में महा-पॉपुलर हो गया. जंगल-जंगल क्या, शहरों, कस्बों, गांव-देहात, हर जगह सबको पता चल गया था कि चड्ढी पहनकर कोई फूल खिला है. जंगल में पले-बढ़े इंसान के बच्चे मोगली के कारनामे खूब पसंद किए गए. मोगली, बघीरा, शेर ख़ान, भालू, अकेला ये सब नाम उस दौर के बच्चों की रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा थे. गुलज़ार का टाइटल ट्रैक हर ज़ुबान पर था. इसको तो वापस दिखा ही दो यार!

ख़ास बात -2016 में जब हॉलीवुड के वॉल्ट डिज़्नी स्टूडियोज़ ‘दी जंगल बुक’ नाम की फिल्म बनाई, उसमें गुलज़ार के लिखे गाने को भी जगह दी.

 

9)

सीरियल का नाम – चंद्रकांता
कब आता था – 1994-1996
डायरेक्ट किसने किया? – नीरजा गुलेरी
प्रमुख कलाकार – शिखा स्वरूप, शाहबाज़ ख़ान, मुकेश खन्ना, पंकज धीर, इरफ़ान ख़ान, अखिलेंद्र मिश्रा
कहां देखें – यूट्यूब

अमूमन हिंदी फिल्मों में साइड विलेन का रोल करने वाले शाहबाज़ ख़ान को इसमें लीड रोल मिला था.

‘चंद्रकांता’. नीरजा गुलेरी का मैग्नम ओपस. ये सीरियल दर्शकों को माइथॉलजी के भक्ति रस से निकालकर राजा-महाराजाओं की आपसी रंजिश, विश्वासघात, प्रेम और कुर्बानियों की अनोखी दुनिया में ले गया. ऐयारियों और मक्कारियों के ऑन स्क्रीन प्रदर्शन ने दर्शकों को अचंभित कर दिया. चाहे नौगढ़-विजयगढ़ कि दुश्मनी हो, या चुनारगढ़ में रची जा रही साज़िशें. दर्शकों ने सब हाथों-हाथ लिया. पंडित जगन्नाथ, जांबाज़, शिवदत्त, तेज सिंह, सूर्या, क्रूर सिंह, आमिर-नाज़िम-अहमद जैसे किरदार लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गए. यादों में बस गए.

ख़ास बात – ये सीरियल बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पर ‘चंद्रकांता’ पर आधारित था. इस उपन्यास की ख़ास बात ये कि लोगों ने महज़ इसे पढ़ पाने के लिए हिंदी सीखी थी. हिंदी साहित्य की नींव कहा जाता रहा है इस उपन्यास को.

 

10)

सीरियल का नाम – कैप्टन व्योम
कब आता था – 1998
डायरेक्ट किसने किया? – केतन मेहता
प्रमुख कलाकार – मिलिंद सोमण, कार्तिका राणे
कहां देखें – यूट्यूब

मिलिंद सोमण ने इच्छा ज़ाहिर की थी कि जब भी इसका सिक्वल बने, वो काम करना चाहेंगे. हालांकि अभी तक तो ऐसा हो नहीं पाया है.

पूरे ब्रम्हांड के 12 ख़तरनाक क्रिमिनल जुपिटर के चंद्रमा पर स्थित जेल से भाग गए हैं. वर्ल्ड प्रेसिडेंट उर्फ विश्वप्रमुख (जो भी पोस्ट ये होती हो), उनको पकड़ने का काम सौंपते हैं कैप्टन व्योम को. जो बज़ाहिर अनाथ है और योग द्वारा हासिल शक्तियों से सुसज्जित है. इस काम में उसकी मेन जोड़ीदार है माया, जो उस जेल की जेलर थी, जहां से ये अपराधी भागे हैं. दोनों अपने कुछ और साथियों के साथ मिलकर कैसे एक-एक करके तमाम कैदियों को धर दबोचते हैं, यही है कहानी. ‘कैप्टन व्योम’ बहुत पॉपुलर रहा था. भारतीयों की देसी साई-फाई देखने की प्यास को उन दिनों इसी सीरियल ने बुझाया था.

ख़ास बात – डायमंड कॉमिक्स ने इस सीरियल पर बाद में कॉमिक्स भी निकाले थे.




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