रानी लक्ष्मीबाई से पहले नाम आना चाहिए झलकारी बाई का

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28 साल की एक लड़की. मस्तमौला. इरादे पक्के. जो काम सामने आया, कर दिया. दौड़ने वाला घोड़ा सामने आया, दौड़ा लिया. चलने वाला घोड़ा आया, चला दिया. रानी ने बुलाया तो तन्मयता से काम कर दिया. जब मेकअप कर लिया तो खुद ही रानी लगने लगी. रानी के साथ लड़ाई पर गई. जब रानी घिर गई तो खुद ही रानी बन लड़ पड़ी. क्योंकि रानी उसकी सखी थी. ये दोस्ती की बात थी. साथ ही अपने राज्य के प्रति प्रेम की बात थी.

सबसे बड़ी बात थी अपने जौहर को दिखाने की. बचपन में कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने गई थी. तेंदुआ आ गया सामने, उसे भी काट दिया. रानी को इस लड़की की ये अदा पसंद थी. वो रानी थी लक्ष्मीबाई और ये लड़की थी झलकारी बाई. जिसका नाम इतिहास के पन्नों में इतना नीचे दबा है कि खोजते-खोजते पन्ने फट जाते हैं. वक्त की मार थी, लोग-बाग राजा-रानियों से ऊपर किसी और की कहानी नहीं लिखते थे.

पर जो बात है, वो बात है. कहानी उड़ती रही. डेढ़ सौ साल बाद भी वो लड़की जिंदा है. भारत के बहुजन समाज की हीरोईन. सबको नायक-नायिकाओं की तलाश रहती है. बहुजन समाज को इससे वंचित रखा गया था. पर इस लड़की ने बहुत पहले ही साबित कर दिया था कि इरादे और ट्रेनिंग से इंसान कुछ भी कर सकता है. बाकी बातें तो फर्जी होती हैं. बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने जब लोगों को जगाना चाहा तो इसी लड़की के नाम का सहारा लिया था. वरना एक वर्ग दूसरे वर्ग को यही बता रहा था कि बहुत सारे काम तो तुम कर ही नहीं सकते हो.

22 नवंबर 1830 को झांसी के एक कोली परिवार में पैदा हुई थी झलकारी. पिता सैनिक थे. तो पैदाइश से ही हथियारों के साथ उठना-बैठना रहा. पढ़ाई-लिखाई नहीं हुई. पर उस वक्त पढ़ता कौन था. राजा-रानी तक जिंदगी भर शिकार करते थे. उंगलियों पर जोड़ते थे. उस वक्त बहादुरी यही थी कि दुश्मन का सामना कैसे करें. चतुराई ये थी कि अपनी जान कैसे बचायें.

तो झलकारी के गांव में एक दफे डाकुओं ने हमला कर दिया. कहने वाले यही कहते हैं कि जितनी तेजी से हमला किया, उतनी तेजी से लौट भी गये. क्योंकि झलकारी के साथ मिलकर गांव वालों ने बड़ा इंतजाम कर रखा था. फिर झलकारी की शादी भी हो गई. एक सैनिक के साथ. एक बार पूजा के अवसर पर झलकारी रानी लक्ष्मीबाई को बधाई देने गई तो रानी को भक्क मार गया. झलकारी की शक्ल रानी से मिलती थी. और फिर उस दिन शुरू हो गया दोस्ती का सिलसिला.

1857 की लड़ाई में झांसी पर अंग्रेजों ने हमला कर दिया. झांसी का किला अभेद्य था. पर रानी का एक सेनानायक गद्दार निकला. नतीजन अंग्रेज किले तक पहुंचने में कामयाब रहे. जब रानी घिर गईं, तो झलकारी ने कहा कि आप जाइए, मैं आपकी जगह लड़ती हूं. रानी निकल गईं और झलकारी उनके वेश में लड़ती रही. जनरल रोज ने पकड़ लिया झलकारी को. उन्हें लगा कि रानी पकड़ ली गई हैं. उनकी बात सुन झलकारी हंसने लगी. रोज ने कहा कि ये लड़की पागल है. पर ऐसे पागल लोग हो जाएं तो हिंदुस्तान में हमारा रहना मुश्किल हो जाएगा.

मैथिली शरण गुप्ता ने झलकारी बाई के बारे में लिखा है:

जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी.
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी.

झलकारी के अंत को लेकर बड़ा ही मतभेद है. कोई कहता है कि रोज ने झलकारी को छोड़ दिया था. पर अंग्रेज किसी क्रांतिकारी को छोड़ते तो ना थे. कोई कहता है कि तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया गया था. जो भी हुआ हो, झलकारी को अंग्रेजों ने याद रखा था. वहीं से कुछ जानकारी कहीं-कहीं आई. वृंदावन लाल वर्मा ने अपने उपन्यास झांसी की रानी में झलकारी बाई का जिक्र किया है. पर इतिहास में ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है.

उसी दौरान एक और वीर लड़की हुई थी. उदा देवी. लखनऊ की बेगम हजरत महल के साथ रहने वाली. 1857 की लड़ाई के दौरान कैप्टेन वालेस एक जगह अपने साथियों के साथ रुका. पानी पीने के लिये. वहां ब्रिटिश सैनिकों की लाशें गिरी हुई थीं. उसने देखा कि सब पर ऊपर से गोली चलने के निशान हैं. तो उसने अपने साथियों को इशारा कर ऊपर पेड़ पर गोलियां चला दीं. एक लाश गिरी. यूनिफॉर्म पहने हुए. दो-दो बंदूकों के साथ. ये उदा देवी थीं. वालेस रो पड़ा. बोला कि मुझे मालूम होता कि ये औरत है तो मैं गोली ना चलाता. खैर, ये बात वालेस ने क्यों कहा समझ नहीं आया. क्योंकि दूसरे देश में आकर गोली चला रहे थे. इससे औरतों को कितनी तकलीफ थी. ये तो नहीं मालूम पड़ा. फर्जी बात करना अंग्रेज अफसरों का स्वभाव था. उदा की बहादुरी के सामने खुद का बड़प्पन जो दिखाना था. बसपा के गठन के समय ये लड़की भी समाज को एकजुट करने के काम आई.




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