बालाजी वेफर्स इंडियन वेफर्स मार्केट में बहुत बड़ा नाम है| यह भारत की वेफर्स बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है| 10000 रुपये के छोटे से निवेश से शुरू हुई इस कंपनी ने साल 2017 में 1800 करोड़ रुपये का कारोबार किया है| बालाजी वेफर्स की इस कामयाबी के पीछे मेहनत और नेतृत्व है कंपनी के संस्थापक श्री चंदुभाई वीरानी का| चंदुभाई वीरानी ने बालाजी वेफर्स की शुरुआत 1982 में घर के एक बरामदे से की थी|
चंदुभाई वीरानी का जन्म गुजरात के कालावाड़ गाँव में हुआ था| उनके पिता एक किसान थे| चंदुभाई वीरानी के दो भाई और है| साल 1972 में उनके पिता ने तीनों भाईयों को कुल बीस हज़ार रुपये दिए थे ताकि वो सब मिलकर किसी नये बिजनेस की शुरूआत कर सके|
सभी भाईयों ने पिता के पैसो से खाद और खेती के साजो-सामान का बिजनेस किया, लेकिन अनुभव न होने के कारण फेल हो गए। किसी ने धोखे से नकली सामान बेच दिया था और बिजनेस में लगाये तीनों भाइयों के रुपए डूब गए थे।

उनके इलाके में बारिश न होने के कारण और सुखा पड़ने के कारण तीनों भाई काम के लिए राजकोट आ गये| चंदुभाई ने 10वी तक पढाई की थी इसीलिए उन्हें एक सिनेमाघर के कैंटीन में नौकरी मिल गयी| कैंटीन में काम करने के अलावा उन्होंने फिल्मो के पोस्टर चिपकाने और घर की रखवाली जैसे काम भी किये|
चंदू भाई वीरानी के काम करने की लगन और मेहनत को देखकर सिनेमा घर के मालिक ने चंदू भाई वीरानी और उनके भाईयों को सिनेमाघर के कैंटीन को चलाने का ठेका दे दिया| तीनों भाईयों ने मिलकर कैंटीन चलाना शुरू किया| वो एक supplier से आलू वेफर्स खरीदते थे और उसे कैंटीन में बेचते थे|
इस सब के बीच परेशानी यह थी कि wafer supplier टाइम पर डिलीवरी नही करता था जिससे business में नुकसान होता था| उन्होंने तीन बार wafer suppliers बदलकर देखे लेकिन कोई फायदा नही हुआ स्थिति जस की तस बनी रही|
कैसे हुई बालाजी वेफर्स की शुरुआत : Success Businessman Story in Hindi
बिज़नेस को नुकसान से बचाने के लिए चंदुभाई वीरानी और उनके भाईयों ने राजकोट में एक बड़ा घर खरीद लिया और वहाँ पर कैंटीन के लिए खुद मसाला सैंडविच बनाना शुरू किया| उनके घर पर तैयार किये हुए सैंडविच को लोगो ने पसंद भी किया| लेकिन सैंडविच ज्यादा देर तक फ्रेश नही रह पाता था और जल्दी ख़राब हो जाता था|
चंदुभाई ने इसके बाद वेफर्स की बिक्री बढ़ाने के बारे में सोचा और डिलीवरी की problems से निपटने के लिए उन्होंने खुद 10000 रुपये invest कर वेफर्स घर पर बनाने शुरू किये| आलू छिलने की मशीन के दाम ज्यादा होने के कारण उन्होंने खुद सस्ती मशीन बनवाई|
लेकिन समस्याए ख़त्म नही हो रही थी| जिस आदमी को उन्होंने चिप्स फ्राई करने के लिए रखा था| वह महीने के कई दिन काम पर नही आता था|
इस समस्या से निपटने के लिए चंदुभाई ने खुद वेफर्स को फ्राई करने का निर्णय लिया|
पूरी रात मै ही वेफर्स फ्राई करता था| शरुआत में ढेर सरे वेफर्स बर्बाद हो जाते थे और माल का नुकसान होता था लेकिन धीरे-धीरे मै सीख गया – चंदुभाई|
समय बीतने के साथ चंदू भाई वीरानी को आस-पास के तीन और सिनेमा हाउस की कैंटीन चलाने के contract मिल गये| इसके साथ ही उन्होंने 20-30 अलग अलग दुकानों पर भी वेफर्स बेचना शुरू कर दिए| लेकिन कुछ दुकानदार टाइम पर पेमेंट नही करते थे या पुराने वेफर्स होने का बहाना बनाकर खुले पैकेट लौटा देते थे|
लेकिन चंदुभाई ने हार नही मानी वे जानते थे कि एक दिन वक्त बदलेगा|
धीरे धीरे उनके घर पर बने हुए wafers की बिक्री बढ़ने लगी और चंदुभाई ने राजकोट के GIDC ( Gujarat Industrial Development Corporation) एरिया में wafers बनाने के लिए खुद की फैक्ट्री की शुरुआत की जिसका नाम उन्होंने “बालाजी वेफर्स” रखा|
यह गुजरात की सबसे बड़ी आलू वेफर्स बनाने वाली फैक्ट्री थी|
इस फैक्ट्री की शुरुआत करने के बाद चंदुभाई वीरानी ने मार्केट में वेफर्स बनाने वाली दूसरी कंपनियों को उन्होंने कड़ी चुनौती दी| चंदुभाई ने कभी भी प्रोडक्ट की क्वालिटी पर समझौता नही किया| जिसकी वजह से आज बालाजी वेफर्स अपने क्षेत्र में सबसे बड़ी कंपनी बनकर उभरी है|
आज भारत में बालाजी वेफर्स कंपनी के चार प्लांट हैं| जिनकी कुल क्षमता 6.5 लाख किलो आलू और 10 लाख किलो नमकीन प्रतिदिन है| चंदुभाई वीरानी की बालाजी वेफर्स, आलू वेफ़र्स के अलावा 30 दुसरे तरह के नमकीन स्नैक्स भी बनाती है|
चंदुभाई ने अपने इन plants के जरिये पांच हज़ार से ज्यादा लोगो को रोजगार दिया है|
इन सफलताओं के बाद चंदुभाई वीरानी अपने वेफर्स को पुरे भारत में ले जाने के लिए प्रयासरत है|
एक अनुमान के मुताबिक भारतीय वेफ़र्स का बाज़ार 7,000 से 10,000 करोड़ तक का है| आश्चर्य की बात नहीं कि कई बड़े बिज़नेस स्कूल और कंपनियां चंदूभाई को आमंत्रित करते हैं कि वो अपनी सफ़लता की कहानी और अनुभव उनके साथ बांटें और स्टूडेंट्स को motivate करें|
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