ज्ञानचंद

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adminJune 22, 20211min00

दुनिया में पैसा सब कमाते हैं लेकिन कुछ लोग ज्यादा कमाते तो कुछ लोग कम कमाते हैं। कई लोगों के साथ होता है कि बहुत पैसा कमाने के बाद भी घर में उनके पैसा नहीं होता है। पैसा बहुत कमाने के बाद भी पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती है। पैसों में वस्तुशास्त्र भी वजह होती है। बता दें कि घर में कुछ गलतियों की वजह से भी धन की हानि होती है और घर का माहौल खराब होने लगता है।

इन गलतियों की वजह से घर में नकारात्मकता का वास हो जाता है, जिस वजह से तरक्की में रुकावट आ जाती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में बंद घड़ी की वजह से नकारात्मकता आती है। घर में बंद पड़ी घड़ी नहीं रखनी चाहिए। अगर आपके घर में भी बंद पड़ी घड़ी है तो उसे तुरंत ठीक करवा लें या घर से बाहर कर दें।

• घर में सूखे पौधे होने की वजह से
• घर में पानी की बर्बाद न होने दें
• घर में साफ- सफाई का ध्यान रखें


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adminFebruary 8, 20211min00

आपने नाख़ून रगड़ने के बारे में ज़रूर सुन रखा होगा. मेट्रो में, बस में, शॉपिंग मॉल में कई लोगों को भी आपने अपने नाख़ून रगड़ते हुए देखा होगा. हो सकता है आप भी उन लोगों में से हों जो ऐसा करते हैं. आपने साथ में ये भी सुना होगा कि ऐसा करने से बाल काले होते हैं मज़बूत होते हैं और बालों का झड़ना कम होता है. हां, ये सच है और इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. आइये आपको बताते हैं कैसे काम करता है ये.

एक्यूप्रेशर के बारे में आपने ज़रूर सुना है. एक्यूप्रेशर के अनुसार ऐसा माना जाता है कि पूरा शरीर जुड़ा हुआ है. शरीर के एक हिस्से में दबाव डालने से दूसरे हिस्से में प्रभाव पड़ता है. शरीर में कुल ऐसे एक हजार ऐसे बिंदु हैं, इनको एक्यूप्वाइंट कहा जाता है.

चाइनीज़ एक्यूप्रेशर की माने तो हमारी उंगलियों की नसें खोपड़ी से जुड़ी हुई होती है. जब नाख़ून को रगड़ा जाता है तो उंगलियों की नसें खोपड़ी की नसों में दबाव डालती हैं. जिससे रक्त का प्रवाह तेज़ हो जाता है जिससे बाल मज़बूत होते हैं और बालों का झड़ना रुकता है. यह बालों को काला बने रखने में मदद करता है.

हालांकि इसका असर तुरंत दिखना नहीं शुरू होगा. इसके लिए आपको कम से कम 3-6 महीनों का समय देना होगा. इसकी मदद से बालों से सम्बंधित और भी परेशानियां जैसे बालों में डैंड्रफ होने जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिल सकता है.

योग में भी इस बात का ज़िक्र है. इसे बालायाम यानी बालों का व्यायाम कहा जाता है. अगर आपको डायबिटीज़, हृदय रोग है या आप गर्भवती महिला हैं तो इसे करने से आपको बचना चाहिए क्योंकि यह रक्तचाप को बढ़ा सकता है. ये आपको दिन भर नहीं करना है. आप इसे  दिन में 5-10 मिनट ही करेंगे तो भी बहुत होगा.

अब बस रोज़ाना 5-10 मिनट तक करिये बालायाम और बनाइये अपने बालों को मज़बूत.


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adminJanuary 29, 20211min00

1 फरवरी को मोदी सरकार संसद में साल 2021-22 का आम बजट पेश करेगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का तीसरा बजट होगा. पिछले कई सालों से परंपरा चल रही है कि बजट भाषण लोकसभा में ही होता है, इस बार भी ऐसा ही होगा. परंपरा ये भी है कि आम बजट से एक दिन पहले आर्थिक सर्वे पेश किया जाता है. और इस हिसाब से 31 जनवरी को आर्थिक सर्वे पेश होना चाहिए था लेकिन उस दिन रविवार है और संसद नहीं चलेगी. तो कल यानी शुक्रवार को ही आर्थिक सर्वे सदन के पटल पर रख दिया जाएगा. तो हर साल हम बजट के वक्त आर्थिक सर्वे का बार बार नाम सुनते हैं. क्या होता है ये आर्थिक सर्वे, कौन तैयार करता है और क्यों तैयार किया जाता है? और इस बार के आर्थिक सर्वे में क्या खास होगा, इस पर बात करते हैं.

आर्थिक सर्वे वित्त मंत्रालय एक अहम सालाना दस्तावेज होता है जिसे वित्त मंत्री लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखती हैं. वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स की इकनॉमिक्स डिवीज़न, आर्थिक सर्वे तैयार करती है. और ये सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में तैयार होता है. कौन हैं अभी मुख्य आर्थिक सलाहकार – कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम.

 

तो आर्थिक सर्वे में होता क्या है?

दो तरह की बातें होती हैं – पहली तो ये कि पिछले एक साल में देश की अर्थव्यवस्था कैसी रही. सरकार का पैसा किस सेक्टर में कितना गया, देश में उद्योगों की हालत कैसी रही, रोज़गार कितना रहा, कृषि क्षेत्र का हाल क्या है, कितना हमने आयात-निर्यात किया. इन सब विषयों का डेटा होता है. दूसरा, आर्थिक सर्वे में अगले साल की अर्थव्यवस्था का अनुमान दिया जाता है. ये बताया जाता है कि किस सेक्टर में कितनी ग्रोथ हो सकती है, और उसकी वजह बताई जाती हैं. यानी नए वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था तेज़ी से दौड़ेगी तो क्यों दौड़ेगी उसकी वजह बताई जाती है, या खराब रहेगी तो क्यों रहेगी, ये वजह बताई जाती है. एक तरह से आर्थिक सर्वे बजट का आधार तय करता है. बजट में सरकार ने किस सेक्टर को कितना फंड अलोकेट किया है, इसका तर्क आर्थिक सर्वे के आंकड़ों में खोजा जाता है.

पिछले साल यानी 2020-21 के आर्थिक सर्वे में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 6 से 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था. इसके अलावा इस सर्वे में वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र में ग्रोथ 2.8 फीसदी बताई गई थी, इंडस्ट्रियल ग्रोथ 2.5 फीसदी बताई थी. सर्विस सेक्टर में 6.9 फीसदी की ग्रोथ रेट बताई थी. लेकिन ज़्यादातर अनुमान गड़बड़ा गए. क्यों? कोरोना और लॉकडाउन की वजह से. मौजूदा वित्त वर्ष अप्रैल 2020 से शुरू हुआ था और तब देश में सबसे सख्त लॉकडाउन था. सब कुछ बंद था और ऐसा अगले कई महीनों तक रहा. याद होगा आपको जब वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में कोरोना की वजह से नुकसान को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताया था. इसीलिए पिछले साल जो अनुमान लगाए गए थे उनके मुताबिक कुछ नहीं हुआ. जितनी राजस्व आय की उम्मीद थी उतनी नहीं हुई, सरकारी घाटा बढ़ गया, अनुमान के मुताबिक इंवेस्टमेंट नहीं हुआ. पहली दो तिमाही के आंकड़े माइनस में रहे हैं और पूरे साल ही ग्रोथ रेट माइनस में रहने का अनुमान है.

National Statistical Office के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 की चारों तिमाही को मिलाकर अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसदी का कॉन्ट्रैक्शन रहेगा यानी संकुचन रहेगा. संकुचन का मतलब ये कि 2019-20 में जो जीडीपी थी, 2020-21 की जीडीपी उससे 7.7 फीसदी कम रहेगी. जीडीपी आप जानते ही हैं – देश में सभी उत्पादों और सेवाओं को मिलाकर बनने वाला आंकड़ा. एक तरह से पूरे देश का सैलरी अकाउंट. वित्त वर्ष 2020-2021 में कृषि सेक्टर में 3.2 फीसदी की ग्रोथ का अनुमान है. माइनिंग सेक्टर माइनस 12.4 फीसदी रहेगा. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर माइनस 9.4 फीसदी रहने का अनुमान है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर माइनस 12.6 फीसदी रह सकता है.

इनके अलावा भी अर्थव्यवस्था के कई और इंडिकेटर्स होते हैं- जैसे बेरोज़गारी दर. कोरोना की वजह से नौकरियां गईं, लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया. जब पिछला दशक शुरू हुआ था तो देश में बेरोज़गारी दर करीब 2 फीसदी थी. अभी देश में करीब 9 फीसदी बेरोज़गारी दर है. तो आर्थिक सर्वे में इस हालत से बाहर निकलने पर फोकस हो सकता है. 2019 में सरकार ने अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी चुनौती ये है कि नकारात्मक ग्रोथ से अर्थव्यवस्था को वापस ट्रैक पर लाया जाए. आर्थिक सर्वे और बजट में सरकार की ये ही कोशिश दिखने का अनुमान है. आर्थिक सर्वे पेश होने के बाद फिर हम आंकड़ों पर बात करेंगे.


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adminJanuary 6, 20211min00

कोरोना महामारी के बीच अब भारत के कई राज्यों में बर्ड फ्लू (Bird Flu) के मामले बढ़ते जा रहे हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में इस वायरस को लेकर अलर्ट (Bird flu outbreak) जारी कर दिया गया है. पोल्ट्री फार्म, जलाशयों और प्रवासी पक्षियों पर विशेष निगरानी रखने को कहा गया है. साथ ही संक्रमण फैलने वाली जगहों पर मांस बेचने पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है.

दिसंबर 2020 में जापान, साउथ कोरिया, वियतनाम और चार यूरोपीय देशों में बर्ड फ्लू के मामले आने शुरू हुए थे और अब ये भारत के कई हिस्सों में फैल चुका है. आइए जानते हैं कि आखिर बर्ड फ्लू होता क्या है और ये कैसे फैलता है?

 

क्या होता है बर्ड फ्लू-

बर्ड फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है जिसे एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) भी कहते हैं. ये एक पक्षी से दूसरे पक्षियों में फैलता है. बर्ड फ्लू का सबसे जानलेवा स्ट्रेन H5N1 होता है. H5N1 वायरस से संक्रमित पक्षियों की मौत भी हो सकती है. ये वायरस संक्रमित पक्षियों से अन्य जानवरों और इंसानों में भी फैल सकता है और इनमें भी ये वायरस इतना ही खतरनाक है.

इंसानों में बर्ड फ्लू का पहला मामला 1997 में हॉन्ग कॉन्ग में आया था. उस समय इसके प्रकोप की वजह पोल्ट्री फार्म में संक्रमित मुर्गियों को बताया गया था. 1997 में बर्ड फ्लू से संक्रमित लगभग 60 फीसदी लोगों की मौत हो गई थी. ये बीमारी संक्रमित पक्षी के मल, नाक के स्राव, मुंह की लार या आंखों से निकलने वाली पानी के संपर्क में आने से होती है.

H5N1 बर्ड फ्लू इंसानों में होने वाले आम फ्लू की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से नहीं फैलता है. एक इंसान से दूसरे इंसान में तभी फैलता है जब दोनों के बीच बहुत करीबी संपर्क हो. जैसे कि संक्रमित बच्चे की देखभाल करने वाली मां या घर के किसी अन्य संक्रमित सदस्य का ख्याल रखने वाले लोग.

 

किन पक्षियों में होता है बर्ड फ्लू-

बर्ड फ्लू प्रवासी जलीय पक्षियों खासतौर से जंगली बतख से प्राकृतिक रूप से फैलता है. इन जंगली पक्षियों से ये वायरस घरेलू मुर्गियों में फैल जाता है. जंगली पक्षियों से ये बीमारी सूअरों और गधों तक भी फैल जाती है. साल 2011 तक ये बीमारी बांग्लादेश, चीन, मिस्र, भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम में फैल चुकी थी.

 

इंसानों में कैसे फैलता है बर्ड फ्लू-

बर्ड फ्लू इंसानों में तभी फैलता है जब वो किसी संक्रमित पक्षी के संपर्क में आए हों. ये करीबी संपर्क कई मामलों में अलग-अलग हो सकता है. कुछ लोगों में ये संक्रमित पक्षियों की साफ-सफाई से फैल सकता है. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में ये पक्षियों के बाजार से फैला था.

संक्रमित पक्षियों से दूषित पानी में तैरने-नहाने या मुर्गों और पक्षियों की लड़ाई छुड़वाने वाले लोगों में भी बर्ड फ्लू का संक्रमण हो सकता है. इसके अलावा संक्रमित जगहों पर जाने वाले, कच्चा या अधपका मुर्गा-अंडा खाने वाले लोगों में भी बर्ड फ्लू फैलने का खतरा होता है. H5N1 में लंबे समय तक जीवित रहने की क्षमता होती है. संक्रमित पक्षियों के मल और लार में ये वायरस 10 दिनों तक जिंदा रहता है.

 

बर्ड फ्लू के लक्षण-

बर्ड फ्लू होने पर आपको कफ, डायरिया, बुखार, सांस से जुड़ी दिक्कत, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, नाक बहना और बेचैनी जैसी समस्या हो सकती है. अगर आपको लगता है कि आप बर्ड फ्लू की चपेट में आ गए हैं तो किसी और के संपर्क में आने से पहले डॉक्टर को दिखाएं.

 

क्या है इलाज- 

अलग-अलग तरह के बर्ड फ्लू का अलग-अलग तरीकों से इलाज किया जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में एंटीवायरल दवाओं से इसका इलाज किया जाता है. लक्षण दिखने के 48 घंटों के भीतर इसकी दवाएं लेनी जरूरी होती हैं. बर्ड फ्लू से संक्रमित व्यक्ति के अलावा, उसके संपर्क में आए घर के अन्य सदस्यों को भी ये दवाएं ली जाने की सलाह दी जाती है, भले ही उन लोगों में बीमारी के लक्षण ना हों.


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December 29, 20201min00

एक मोहतरमा हैं, बेंगलुरु में रहती हैं. इन्होंने मिंत्रा से शॉपिंग की. ऑर्डर रिसीव होने के कुछ दिनों बाद इनके अड्रेस पर इंडिया पोस्ट से एक चिठ्ठी आई. बताया गया कि मिंत्रा की तरफ़ से इनको लकी ड्रॉ कूपन मिला है, जो सिर्फ कंपनी के कुछ चुनिंदा कस्टमर को मिलता है. इनाम की रकम 15 लाख है और लकी ड्रॉ में हिस्सा लेने के लिए इन्हें अपने बैंक अकाउंट की डिटेल वग़ैरह पोस्ट या वॉट्सऐप के ज़रिए भेजनी होगी.

ये लकी ड्रॉ वाला फ्रॉड बहुत पुराना हो गया है. अपनी डिटेल भेजने का मतलब है “आ बैल मुझे मार”. मोहतरमा को भी अच्छे से ये बात पता थी. इन्होंने सोशल मीडिया पर पूरे मामले के बारे में लिखा, लोगों को इस तरह के फ्रॉड से सावधान किया. इसी पोस्ट में इन्होंने मिंत्रा को टैग किया और पूछा कि भैया मिंत्रा ये बताओ कि इन फ्रॉडियों के पास मेरा रजिस्टर्ड अड्रेस और ऑर्डर की डिटेल कैसे पहुंची.

इस पर कंपनी के सोशल मीडिया हैन्डल से लिखा-लिखाया जवाब आया:

“हम बताना चाहेंगे कि मिंत्रा इस तरह का कोई प्राइज़ ऑफर या कॉन्टेस्ट नहीं चला रहा है. हम सलाह देते हैं कि ऐसे मैसेज और कॉल को नज़र-अंदाज करिए और अपनी किसी भी तरह की पर्सनल डिटेल मत शेयर करिए. मिंत्रा में हम कस्टमर के अकाउंट की सिक्योरिटी को बहुत अहमियत देते हैं और ऐसी गतिविधियों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाता है. हम आपकी समझदारी की सराहना करते हैं.”

इससे पहले हम मिंत्रा के जवाब पार गौर करें, पहले आप नीचे लगे हुए स्क्रीनशॉट में लकी ड्रॉ वाला कागज़ देखिए.

 

 

इसकी पूरी रूप रेखा ऐसी है कि पहली नज़र में देख कर लगेगा कि ये मिंत्रा की ही तरफ़ से आया है. ऊपर से ये उसी नाम और अड्रेस पर आया है जिसपर मिंत्रा ऑर्डर आया था. तो सवाल तो बनता ही है कि मिंत्रा कस्टमर की डिटेल लीक होकर फ्रॉडियों के हाथ में कैसे पहुंची.

अब मिंत्रा का जवाब देखिए. इन्होंने पहले तो ये कहा है कि मिंत्रा इस तरह का कोई भी कॉन्टेस्ट वग़ैरह नहीं चलाता है इसलिए इसको इग्नोर करिए. क्यों इग्नोर कर दें भाई? मान लीजिए कोई मिंत्रा कस्टमर इतना भोला हो कि इसे सच्ची-मुच्ची का कॉन्टेस्ट समझ ले और अपनी सारी जानकारी शेयर कर दे. तब? ऊपर से कॉन्टेस्ट वाले कागज़ पर ये भी लिखा है:

“कॉन्टेस्ट के बारे में इनके दिए हुए टोल फ़्री नंबर पर कॉल करिए, कस्टमर केयर वाले पर नहीं, क्योंकि वो सिर्फ ऑर्डर से रिलेटेड चीज़ें हैन्डल करते हैं, कॉन्टेस्ट के बारे में उनको कुछ पता नहीं होता.”

दूसरी बात मिंत्रा ने ये कही है कि कस्टमर के अकाउंट की सिक्योरिटी को बहुत अहमियत देते हैं और ऐसी “कथित” गतिविधियों के लिए इनके पास “ज़ीरो टोलेरैंस” है. अगर ऐसा ही है तो फ़िर कस्टमर का अड्रेस फ्रॉडिए के पास कैसे पहुंचा.

मोहतरमा ने जो सवाल पूछा, उसका तो इन्होंने जवाब ही नहीं दिया. कस्टमर की डिटेल मिंत्रा के डेटाबेस से लीक कैसे हुई? लीक कैसे हुई इसका जवाब तो मिंत्रा से तब आता जब ये मानते कि डिटेल लीक हुई है. ये तो “alleged” और “कथित” वाले शब्दों से खेल रहे हैं.

हमारे एक मित्र हैं, ज्ञानेन्द्र सिंह. नोएडा-स्थित एक ई-कॉमर्स वेबसाइट के साथ सालों से बतौर सप्लाई मैनेजर काम कर रहे हैं. ये कहते हैं:

“कस्टमर की डिटेल लीक होने की दो जगह हैं. एक तो खुद कंपनी का डेटाबेस और दूसरा कुरियर कंपनी जो समान डिलिवर करती है. कंपनी अपने ही कस्टमर का डेटा लीक करे ऐसा होने के चांस बहुत कम हैं. मगर कुरियर कंपनी इसे आराम से अंजाम दे सकती है. मिंत्रा के केस में भी शक की सुई इनके कुरियर पार्टनर से जुड़ी हो सकती है.” 

हमने इस सिलसिले में मिंत्रा को भी सवाल भेजे हैं. उनकी तरफ से फिलहाल कोई जवाब नहीं आया है. जवाब आने पर हम इस स्टोरी को जवाब के साथ अपडेट कर देंगे.

कस्टमर के ऑर्डर की डिटेल लीक होना कोई नई चीज़ नहीं है. इस मामले में होम शॉप 18 का नाम बड़ा खराब हुआ पड़ा है. ऑर्डर रिसीव होने के बाद फ्रॉडिए कॉल और मैसेज कर करके जीना दूभर कर देते हैं. और इनको आपके ऑर्डर की पूरी जानकारी होती है इसलिए इस बात की उम्मीद बढ़ जाती है कि कोई भोला भाला कस्टमर इनके चंगुल में फंस जाए.

कन्मस्यूर फ़ोरम पर हमें मिंत्रा कस्टमर की डिटेल लीक होने के और भी मामले मिले. एक केस तो बिल्कुल इसी जैसा है बस वहां पोस्ट की जगह फ्रॉडियों ने कॉल की. अंकित तिवारी नाम के शख्स ने 2018 में इस बात को उजागर किया जहां लकी ड्रॉ के नाम पर इनको ठगा गया. इनका कहना है कि चूंकि कॉल करने वाले के पास इनका नाम, इनके मिंत्रा ऑर्डर की पूरी डिटेल, एड्रेस और आइटम के प्रोडक्ट कोड तक थे इसलिए इन्हें इस बात पर भरोसा हो गया कि कॉल मिंत्रा की तरफ़ से ही थी.


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December 19, 20202min00

ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स-2020 में भारत 131वें नंबर पर है. पिछले साल यानी कि 2019 में हम लिस्ट में 129वें नंबर पर थे. यानी इस साल दो पायदान नीचे आ गए हैं. ये कौन सी लिस्ट है? किस आधार पर तैयार होती है? पहले नंबर पर कौन सा देश है? जिन देशों से हम प्रत्यक्ष तौर पर बा-वास्ता हैं, उनकी क्या स्थिति है? आइए जानते हैं.

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ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स है क्या?

अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज कहते हैं –

“विकास का मतलब केवल GDP या लोगों की आय को बढ़ा देना नहीं है. ये तो आर्थिक वृद्धि हुई. लेकिन विकास का मतलब है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, लोकतंत्र, सामाजिक सुरक्षा जैसे मसलों पर हम कितना आगे बढ़े.”

दुनिया के अलग-अलग देशों में विकास को इन्हीं पैरामीटर्स पर परखा जा सके, इसके लिए हर साल तैयार किया जाता है- ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (HDI). इसे जारी किया जाता है संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की ओर से. HDI की वेबसाइट है- http://hdr.undp.org/en. यहां जाएंगे तो आपको इंडेक्स जारी करने का मकसद जानने को मिलेगा. लिखा है –

“HDI तैयार किया जाता है ताकि किसी देश के विकास को सिर्फ उसकी आर्थिक वृद्धि से न तौला जाए. बल्कि ये देखा जाए कि वहां के लोगों की क्षमताओं का कितना इस्तेमाल किया जा रहा है. इंडेक्स के जरिए ये भी पता चलता है कि अलग-अलग देशों में सरकार की नीतियां कितना कारगर हैं. इससे ये पता चलता है कि अलग-अलग देशों में लोग कितनी लंबी और सेहतमंद ज़िंदगी जी रहे हैं. उनके पास कितना ज्ञान है और रहने-सहने का स्तर कैसा है.”

 

कैसे तैयार होता है इंडेक्स?

ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स तैयार करने के तीन पैरामीटर होते हैं.

1. Life – किसी देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा देखी जाती है. अंग्रेज़ीदां लोगों के लिए- Life Expectancy. माने उस देश में जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी औसतन कितनी आयु होने की उम्मीद रहती है.

2. Knowledge – देश के लोग औसतन कितने साल स्कूलिंग कर रहे हैं.

3. Living – रहने-सहने का स्तर. इसको ग्रॉस नेशनल इनकम (GNI) पर कैपिटा से तौला जाता है.

इन तीन कैटेगरी को मिलाकर बनता है इंडेक्स.

 

भारत की स्थिति

भारत 131वें नंबर पर है. Life Expectancy at birth यानी जन्म के समय जीवन प्रत्याशा है 69.7 बरस. ये 2019 में 69.4 साल थी. यानी जीवन प्रत्याशा में मामूली सी बेहतरी हुई है. भारत में जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी संभावित स्कूलिंग 12.2 साल की होती है. 2019 में ये नंबर था- 12.3 साल. यानी पढ़ाई-लिखाई में हम थोड़ा पीछे खिसके हैं.  ग्रॉस नेशनल इनकम (GNI) पर कैपिटा है- 6,681 डॉलर सालाना. यानी करीब 4.91 लाख रुपए प्रति व्यक्ति सालाना कमाई (टैक्स देने से पहले). ये भी पिछली बार की तुलना में कम हुई है.

साल जीवन प्रत्याशा स्कूलिंग GNI पर कैपिटा
2020 69.7 12.2 4.91
2019 69.4 12.3  5.02

(जीवन प्रत्याशा और संभावित स्कूलिंग- बरस में. GNI पर कैपिटा- लाख रुपए में.)

 

बाकी देशों की स्थिति

इंडेक्स में इस साल टॉप-3 देश हैं- नॉर्वे, आयरलैंड और स्विट्जरलैंड. पिछले साल भी नॉर्वे ही नंबर-1 था. स्विट्जरलैंड नंबर-2 और आयरलैंड नंबर-3 पर था. UK और USA पिछले साल नंबर-15 और नंबर-16 थे. इस साल UK नंबर-13 पर आ गया है, जबकि USA नंबर-17 पर चला गया है.

चाइना पिछले साल भी नंबर-85 पर था, इस साल भी. पाकिस्तान 152वें नंबर से गिरकर 154 पर आ गया है. अफ्रीकी देश नाइजर 189 देशों की इस लिस्ट में आख़िरी पायदान पर है.


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December 10, 20201min00

हर बैंक अपने ग्राहक का KYC करवाता है. बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र के कामकाज में हमेशा केवाईसी का जिक्र होता है. खासकर बैंक अपने ग्राहकों की पहचान के लिए केवाईसी का प्रयोग करता है. लेकिन आपके मन में सवाल उठता होगा कि ये KYC क्या है और क्यों जरूरी है?

KYC यानी (Know Your Customer) को साधारण हिंदी में परिभाषित करें तो कहेंगे कि कस्टमर के बारे में पूरी जानकारी. केवाईसी कराना सभी के लिए जरूरी है. एक तरह से बैंक और ग्राहक के बीच KYC रिश्ते को मजबूत करता है. बिना केवाईसी निवेश मुमकिन नहीं है, इसके बगैर बैंक खाता भी खोलना आसान नहीं है.

दरअसल बैंक में खाता खुलवाना, म्यूचुअल फंड में निवेश, बैंक लॉकर्स लेने पर, या फिर पुरानी कंपनी की पीएफ राशि निकालनी हो तो ऐसे वित्तीय लेन-देन में केवाईसी के बारे में पूछा जाता है. केवाईसी के जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई बैंकिंग सेवाओं का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा है.

इन सबके अलावा जब आप सिम कार्ड खरीदते हैं तो अपनी पहचान के लिए आधार कार्ड वैरीफाई करते हैं, इस प्रक्रिया को भी KYC कहते हैं. केवाईसी फॉर्म ऑनलाइन भी भरे जाते हैं. लेकिन डॉक्यूमेंट्स और फोटो वैरीफिकेशन के लिए एक बार बैंक जाना जरूरी होता है.

केवाईसी फॉर्म के साथ ग्राहक को अपनी पहचान और एड्रेस प्रूफ जमा करने होते हैं. आईडी प्रूफ के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और पैन कार्ड जैसे कई विकल्प हैं. एड्रेस प्रूफ के लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है. एड्रेस का कोई प्रूफ न होने पर एफिडेविट भी दिया जा सकता है.

अगर आवेदक की केवाईसी प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो इससे जालसाजी या धोखाधड़ी की संभावना कम हो जाती है. इसलिए केवाईसी के साथ दस्तावेज देते समय कोताही न बरतें. इस प्रक्रिया से व्यक्ति की असली पहचान सुनिश्चित हो जाती है.


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December 2, 20201min00

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और केंद्र की बीजेपी सरकार के बीच अदावत कोई नई बात नहीं है. हाल में महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया था कि बीजेपी उनकी पार्टी को बैन कराना चाहती है. इस खबर का हमें इतना ही जिक्र करना था. दरअसल, हम इस सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं कि क्या केंद्र सरकार किसी पार्टी को बैन कर सकती है? लेकिन इससे पहले राजनीतिक पार्टी के गठन और उसकी राज्य या राष्ट्रीय मान्यता के बारे में जान लेते हैं.

 

नई राजनैतिक पार्टी बनाई कैसे जाती है?

हाल ही में आजाद समाज पार्टी और प्लूरल्स पार्टी जैसी नई पार्टियां चुनावी मैदान में दिखाई दी हैं. ये पार्टियां बनती कैसे हैं, कहां इनका रजिस्ट्रेशन होता है, कैसे होता है, और इस काम पर खर्चा कितना आता है? आइए जान लेते हैं.

किसी भी नई पार्टी को भारतीय निर्वाचन आयोग में रजिस्टर्ड कराना होता है. पार्टियां तीन तरह की होती हैं. राष्ट्रीय स्तर की पार्टी, राज्य स्तर की पार्टी और रजिस्टर्ड पार्टी. रजिस्ट्रेशन के लिए निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर जाकर एक आवेदन पत्र डाउनलोड करना होगा. यह आवेदन पत्र आयोग के काउंटर से भी मिल सकता है. डाक द्वारा भी मंगाया जा सकता है.

इसको भरने से पहले थोड़ी तैयारियों की जरूरत होती है. जैसे पार्टी का नाम क्या होगा? पार्टी का सिंबल क्या होगा? पार्टी का मुख्यालय कहां होगा? पार्टी के पदाधिकारी कौन-कौन होंगे? पार्टी के कुल सदस्य कितने होंगे? पार्टी का संविधान क्या रहेगा? ये सब बातें पहले से तय करनी होंगी.

अब इसके लिए कुछ नियम भी हैं. जैसे पार्टी का नाम और सिंबल मजहबी/धार्मिक पहचान वाला नहीं होना चाहिए. पार्टी में कम से कम 100 सदस्य होने चाहिए. पार्टी के गठन के बाद 30 दिन में अपना आवेदन निर्वाचन आयोग के सचिव को भेजना होगा. इस आवेदन के साथ पार्टी संविधान की कॉपी भी भेजनी होगी, जिसके हर पन्ने पर पार्टी के अध्यक्ष या महासचिव के हस्ताक्षर और मुहर होनी जरूरी है. आवेदन के साथ पार्टी का लैटर हैड भी लगाया जाएगा.

 

राज्य स्तरीय मान्यता पाने की शर्तें क्या हैं?

पार्टी तो बना ली, अब राज्य स्तर की मान्यता कैसे मिलेगी? इसके लिए पैमाना ये होता है कि राज्य की विधानसभा के लिए जो चुनाव होते हैं, उनमें या तो तीन सीटें पार्टी जीत जाए या फिर तीन प्रतिशत वोट मिल जाए. ऐसा होने पर पार्टी को राज्य स्तर की मान्यता मिल सकती है. इसके अलावा यदि आम चुनावों में पार्टी ने राज्य के लिए निर्धारित प्रत्येक 25 लोकसभा सीटों में से 1 पर भी जीत हासिल कर ली, तो भी उसे राज्य स्तर की पार्टी की मान्यता मिल जाती है. एक तरीका ये भी होता है कि लोकसभा या विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कुल वैध मतों के आठ प्रतिशत प्राप्त कर लिए हों.  यदि इनमें से कोई एक शर्त भी पार्टी पूरा कर लेती है, तो वह राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी कहला सकती है.

 

राष्ट्रीय स्तर की मान्यता के लिए क्या शर्तें हैं?

किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का स्टेटस तभी दिया जा सकता है, जब वह पार्टी इनमें से किसी एक शर्त को पूरा करती हो-

1. पार्टी ने लोकसभा चुनावों में कम से कम 2% सीटें जीती हों, लेकिन ये सीटें कम से कम 3 अलग-अलग राज्यों की हों. लोकसभा में 545 सीटें हैं. इसलिए राष्ट्रीय स्टेटस पाने के लिए किसी भी पार्टी के पास कम से कम 11 सीटें होना जरूरी है. ये 11 सीटें कम से कम 3 राज्यों की होनी चाहिए. तब ही उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है.

2. पार्टी के पास 4 लोकसभा सीटें हों, और उसे कुल वोटों के कम से कम 6 प्रतिशत वोट मिले हों.

3. पार्टी के पास 4 लोकसभा सीटें हों, और उसे कम से कम चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में 6% से ज्यादा वोट मिले हों.

4. पार्टी को कम से कम चार राज्यों में ‘स्टेट पार्टी’ की मान्यता मिली हुई हो.

 

राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर की पार्टी होने के फायदे क्या हैं?

1. पहला फायदा ये है कि जिस पार्टी को जिस राज्य में राज्‍य स्‍तरीय दल की मान्यता मिली हुई है, वहां वो अपने उम्मीदवारों को पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा सकती है. यह सिंबल कोई और इस्तेमाल नहीं कर सकेगा.

2. अगर किसी पार्टी को नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल है, तो उसे पूरे भारत में अपने उम्मीदवारों को सुरक्षित चुनाव चिन्ह बांटने का अधिकार मिला हुआ होता है.

3. मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टी के उम्मीदवारों को नामांकन-पत्र दाखिल करते वक्त केवल एक प्रस्तावक की ही जरूरत होती है.

4. मतदाता सूचियों में संशोधन होता है तो इन्हें दो सेट फ्री में मिलते हैं. आम चुनावों में भी ऐसी पार्टी के उम्मीदवारों को मतदाता सूची का एक सेट फ्री मिलता है.

5. आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा भी मिलती है. यही नहीं ऐसी पार्टियां अपने स्टार प्रचारक भी नामित कर सकती हैं.

6. इन स्टार प्रचारकों की यात्राओं का खर्च उस उम्मीदवार के खर्च में नहीं जोड़ा जाता, जिसके लिए ये प्रचार करते हैं. मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल अधिकतर 40 स्टार प्रचारक बना सकता है. वहीं गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड पार्टी केवल 20 स्टार प्रचारक ही तय कर सकती है.

चुनाव आयोग के मुताबिक, किसी पार्टी को नेशनल या स्टेट पार्टी का स्टेटस मिल गया हो तो यह स्टेटस उसके पास दस साल तक बना रहेगा. यानी दो लोकसभा चुनावों तक. इसके बाद ही उस स्टेटस की समीक्षा की जाएगी. ऐसा नहीं है कि एक चुनाव में ही खराब प्रदर्शन हो जाने के बाद, ये स्टेटस छीन लिया जाए. पहले ये टाइम पीरियड 5 साल हुआ करता था यानी हर लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग पार्टियों के स्टेटस की समीक्षा करता था.

 

क्या केंद्र सरकार किसी राजनीतिक पार्टी को बैन कर सकती है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर सुनील चौधरी से बात की. उन्होंने कहा कि कोई सरकार किसी राजनीतिक दल को बैन नहीं कर सकती है. उनका कहना था,

“ये काम सरकार का नहीं है. कोई सरकार ऐसा नहीं कर सकती. भारतीय संविधान चुनाव आयोग को इसकी ताकत देता है, लेकिन वह भी तभी ऐसा कर सकता है, जब कोई पार्टी देश के हितों के खिलाफ काम कर रही हो और देशविरोधी साबित हो जाए. चुनाव आयोग किसी पार्टी को बैन कर सकता है, लेकिन उसके राजनीतिक मूवमेंट के बेसिस पर नहीं. “

दिल्ली विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर संगीत रागी ने कहा,

“केंद्र सरकार को किसी राजनीतिक दल को प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार नहीं है. ये राजनीतिक स्टेटमेंट लगता है. यदि कोई टेररिस्ट एक्टिविटी में इन्वॉल्व है, यदि कोई गलत काम में लगा है, तब उसे बैन किया जा सकता है. बिना किसी ठोस वजह के सरकार किसी पार्टी को बैन नहीं कर सकती.”


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November 27, 20201min00

बॉलीवुड सिंगर और कंपोजर बप्पी लहरी ने बॉलीवुड में बहुत लंबी पारी खेल ली है. 500 से ज्यादा गाने कंपोज कर चुके बप्पी लहरी ने खुद के लिए लैजेंड का तमगा हासिल कर लिया है.

पॉप म्यूजिक को बॉलीवुड का एक अहम हिस्सा बनाने का श्रेय भी बप्पी लहरी को ही जाता है. बात चाहे 80 के दशक में उनके गानों की हो, या फिर हाल ही में गाए गए किसी गाने की, उनका नायाब अंदाज हमेशा पसंद किया जाता है.

लेकिन बप्पी लहरी सिर्फ गाने की वजह से फेमस नहीं हैं. बल्कि उनका अपने शरीर पर ढेर सारा सोना धारण करना भी सुर्खियों में बने रहता है. बप्पी बॉलीवुड के एक लौते ऐसे सिंगर हैं जो इतना सोना पहनकर चलते हैं.

अब फैन्स को तो उन्हें इस अदांज में देखने की आदत हो चुकी है, लेकिन फिर भी ये सवाल आती ही है कि आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं. क्यों बप्पी लहरी को सोना इतना ज्यादा पसंद है?

अब फैन्स को तो उन्हें इस अदांज में देखने की आदत हो चुकी है, लेकिन फिर भी ये सवाल आती ही है कि आखिर वे ऐसा क्यों करते हैं. क्यों बप्पी लहरी को सोना इतना ज्यादा पसंद है?

 

बप्पी लहरी

 

बप्पी ने बताया था- मुझे हॉलीवुड कलाकार एलविस प्रेस्ली काफी पसंद थे. मैंने देखा था कि वे हमेशा एक सोने की चेन पहना करते थे. मुझे उनका वो अंदाज इंप्रेस कर गया था.

अब यहां तक तो ठीक था, एलिविस प्रेस्ली को देख ही बप्पी ने ठाना था कि वे अब और ज्यादा सक्सेसफुल बनकर रहेंगे. उस समय सफल होने के पीछ भी उनकी अलग ही वजह थी. वे उतना सोना पहनना चाहते थे जितना सफल वे अपने करियर में बन पाएंगे. वे सोना को अपने लिए काफी लकी मानते हैं. वैसे सवाल तो ये भी आता है कि बप्पी कितना किलो सोना पहनकर चलते हैं? जब सिंगर ने 2014 का चुनाव लड़ा था, तब उन्होंने इस बात की जानकारी दी थी. उस जानकारी के मुताबिक बप्पी के पास 754 ग्राम सोना है और 4.62 ग्राम चांदी.

 


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November 19, 20201min00

कोविड के इस दौर में ये बात अब बड़ी ऑब्वियस और न्यू नॉर्मल हो चुकी है कि मास्क बहुत ज़रूरी है. किसी भी सार्वजनिक स्थान पर हों, दफ्तर में हों, घर के नीचे नुक्कड़ तक जाना हो… मास्क लगाएं. न लगाने पर अधिकतर जगहों पर जुर्माना भी लग रहा है. लेकिन एक बड़ा कन्फ्यूजन है. अगर हम अपनी निजी गाड़ी के अंदर बैठे हैं, तो मास्क लगाना है या नहीं? जब अकेले कार में हैं, तो लगाना है कि नहीं?

इसका जवाब सुनिए..

“आपकी पर्सनल गाड़ी आपका प्राइवेट ज़ोन नहीं है. इसमें बैठे हर व्यक्ति को मास्क लगाना ज़रूरी है.”

ये बात दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के सामने 18 नवंबर को कही. दिल्ली में सौरभ शर्मा नाम के एक व्यक्ति का सितंबर में चालान कट गया था. 500 रुपए का. सौरभ कार में थे औऱ मास्क नहीं पहना था. पेशे से वकील सौरभ ने इसके ख़िलाफ पिटीशन फाइल की और 10 लाख रुपए का मुआवजा मांगा. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस नवीन चावला की सिंगल जज बेंच के सामने मामले पर सुनवाई हुई. जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा –

“याचिकाकर्ता का कहना है कि चूंकि वो कार में अकेले सफर कर रहे थे, इसलिए ये नहीं माना जा सकता कि वे सार्वजनिक स्थल पर हैं. और इस नाते मास्क न लगाने पर उनका चालान काटने का कोई तुक नहीं बनता. यहां बताना ज़रूरी है कि गाइडलाइंस ये कहती हैं कि कोई भी व्यक्ति अगर अपनी पर्सनल गाड़ी में चल रहा हो, ऑफिस की गाड़ी में चल रहा हो, दोनों ही स्थिति में उसका मास्क पहनना ज़रूरी है. ये बात हर सार्वजनिक स्थल के लिए ज़रूरी है. और किसी की भी पर्सनल गाड़ी इसी कैटेगरी में आती है. उसे प्राइवेट ज़ोन नहीं कहा जा सकता.”

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट को भी कोट किया, जिसके मुताबिक –

“जब कोई पर्सनल गाड़ी किसी पब्लिक रोड पर है तो इसे प्राइवेट नहीं माना जा सकता.”

हालांकि अभी कोर्ट का फैसला आना बाकी है. मामले की अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी. इस बीच मिड जून (अनलॉक से) से लेकर अक्टूबर अंत तक अकेले दिल्ली में ही मास्क न पहनने पर करीब चार लाख चालान कट चुके हैं. कार, बाइक या पैदल, हर किसी के मास्क पर पुलिस की नज़र है. बाकी जैसा कि बच्चन साब हर फोन कॉल पर बताते हैं कि कोविड अभी ख़त्म नहीं हुआ है. दो ग़ज दूरी और मास्क है बहुत ज़रूरी. तो आप भी सोशल डिस्टेंसिंग रखिए, मास्क लगाइए और स्वस्थ्य रहिए.



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