1 फरवरी को मोदी सरकार संसद में साल 2021-22 का आम बजट पेश करेगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का तीसरा बजट होगा. पिछले कई सालों से परंपरा चल रही है कि बजट भाषण लोकसभा में ही होता है, इस बार भी ऐसा ही होगा. परंपरा ये भी है कि आम बजट से एक दिन पहले आर्थिक सर्वे पेश किया जाता है. और इस हिसाब से 31 जनवरी को आर्थिक सर्वे पेश होना चाहिए था लेकिन उस दिन रविवार है और संसद नहीं चलेगी. तो कल यानी शुक्रवार को ही आर्थिक सर्वे सदन के पटल पर रख दिया जाएगा. तो हर साल हम बजट के वक्त आर्थिक सर्वे का बार बार नाम सुनते हैं. क्या होता है ये आर्थिक सर्वे, कौन तैयार करता है और क्यों तैयार किया जाता है? और इस बार के आर्थिक सर्वे में क्या खास होगा, इस पर बात करते हैं.
आर्थिक सर्वे वित्त मंत्रालय एक अहम सालाना दस्तावेज होता है जिसे वित्त मंत्री लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखती हैं. वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स की इकनॉमिक्स डिवीज़न, आर्थिक सर्वे तैयार करती है. और ये सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में तैयार होता है. कौन हैं अभी मुख्य आर्थिक सलाहकार – कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम.
तो आर्थिक सर्वे में होता क्या है?
दो तरह की बातें होती हैं – पहली तो ये कि पिछले एक साल में देश की अर्थव्यवस्था कैसी रही. सरकार का पैसा किस सेक्टर में कितना गया, देश में उद्योगों की हालत कैसी रही, रोज़गार कितना रहा, कृषि क्षेत्र का हाल क्या है, कितना हमने आयात-निर्यात किया. इन सब विषयों का डेटा होता है. दूसरा, आर्थिक सर्वे में अगले साल की अर्थव्यवस्था का अनुमान दिया जाता है. ये बताया जाता है कि किस सेक्टर में कितनी ग्रोथ हो सकती है, और उसकी वजह बताई जाती हैं. यानी नए वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था तेज़ी से दौड़ेगी तो क्यों दौड़ेगी उसकी वजह बताई जाती है, या खराब रहेगी तो क्यों रहेगी, ये वजह बताई जाती है. एक तरह से आर्थिक सर्वे बजट का आधार तय करता है. बजट में सरकार ने किस सेक्टर को कितना फंड अलोकेट किया है, इसका तर्क आर्थिक सर्वे के आंकड़ों में खोजा जाता है.
पिछले साल यानी 2020-21 के आर्थिक सर्वे में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 6 से 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था. इसके अलावा इस सर्वे में वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र में ग्रोथ 2.8 फीसदी बताई गई थी, इंडस्ट्रियल ग्रोथ 2.5 फीसदी बताई थी. सर्विस सेक्टर में 6.9 फीसदी की ग्रोथ रेट बताई थी. लेकिन ज़्यादातर अनुमान गड़बड़ा गए. क्यों? कोरोना और लॉकडाउन की वजह से. मौजूदा वित्त वर्ष अप्रैल 2020 से शुरू हुआ था और तब देश में सबसे सख्त लॉकडाउन था. सब कुछ बंद था और ऐसा अगले कई महीनों तक रहा. याद होगा आपको जब वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में कोरोना की वजह से नुकसान को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताया था. इसीलिए पिछले साल जो अनुमान लगाए गए थे उनके मुताबिक कुछ नहीं हुआ. जितनी राजस्व आय की उम्मीद थी उतनी नहीं हुई, सरकारी घाटा बढ़ गया, अनुमान के मुताबिक इंवेस्टमेंट नहीं हुआ. पहली दो तिमाही के आंकड़े माइनस में रहे हैं और पूरे साल ही ग्रोथ रेट माइनस में रहने का अनुमान है.
National Statistical Office के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 की चारों तिमाही को मिलाकर अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसदी का कॉन्ट्रैक्शन रहेगा यानी संकुचन रहेगा. संकुचन का मतलब ये कि 2019-20 में जो जीडीपी थी, 2020-21 की जीडीपी उससे 7.7 फीसदी कम रहेगी. जीडीपी आप जानते ही हैं – देश में सभी उत्पादों और सेवाओं को मिलाकर बनने वाला आंकड़ा. एक तरह से पूरे देश का सैलरी अकाउंट. वित्त वर्ष 2020-2021 में कृषि सेक्टर में 3.2 फीसदी की ग्रोथ का अनुमान है. माइनिंग सेक्टर माइनस 12.4 फीसदी रहेगा. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर माइनस 9.4 फीसदी रहने का अनुमान है. कंस्ट्रक्शन सेक्टर माइनस 12.6 फीसदी रह सकता है.
इनके अलावा भी अर्थव्यवस्था के कई और इंडिकेटर्स होते हैं- जैसे बेरोज़गारी दर. कोरोना की वजह से नौकरियां गईं, लाखों लोगों का रोज़गार छिन गया. जब पिछला दशक शुरू हुआ था तो देश में बेरोज़गारी दर करीब 2 फीसदी थी. अभी देश में करीब 9 फीसदी बेरोज़गारी दर है. तो आर्थिक सर्वे में इस हालत से बाहर निकलने पर फोकस हो सकता है. 2019 में सरकार ने अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अभी चुनौती ये है कि नकारात्मक ग्रोथ से अर्थव्यवस्था को वापस ट्रैक पर लाया जाए. आर्थिक सर्वे और बजट में सरकार की ये ही कोशिश दिखने का अनुमान है. आर्थिक सर्वे पेश होने के बाद फिर हम आंकड़ों पर बात करेंगे.
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