7 हजार साल पहले ऐसे कपड़े पहनते थे भारतीय

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दुनिया में सबसे ज्यादा कुछ बदलता है तो वह है फैशन ट्रेंड । जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से पहली बार मिलता है तो वह उसके बाहरी आडम्बरों से ही उसके स्टेंडर्ड का आंक लिया करता है। आज फैशन लोगों को पहचान दे रहा है। फैशन की खास बात है कि इसमें कपड़े आउट ऑफ फैशन हो तो जाते हैं, मगर कुछ साल बाद वापस ट्रेंड में भी आ जाते हैं। उदाहरण के लिए समझिए कि पहले के जमाने में महारानियां अनारकली कुर्ता और सलवार पहनती थीं, वही फैशन फिर से ट्रेंड में आ गया है। 

हम फैशन सेंस और फैशन ट्रेंड की इतनी बात तो करते हैं, पुराने फैशनेबल कपड़ों को सर्च भी करते हैं और उनसे इंस्पायर होकर नए कपड़े भी बनाते हैं। पर क्या हमारे ज़हन में कभी ऐसा आया या हमने ये जानने की कोशिश की, कि आज से 7 हज़ार साल पहले लोग क्या पहनते थे? नहीं ना । तो चलिए फिर आज जान ही लेते हैं। 

 

धोती पहनते थे पुरूष

 

 

इस युग में धोती प्रचलन में थी। पुरुष एक सूती धोती अपनी कमर में लपेट के रखते थे। ‘सफेद सोना’ कहे जाने वाले कपास की खोज इसी युग में भारत में हुई थी। धोती पहनने के अलावा पुरूष माथे में पगड़ी भी बांधा करते थे। पुरुष अपनी दाढ़ी या तो बहुत छोटी रखते थे या नहीं रखते थे। पुरुषों का ऐसा पहनावा हज़ारों साल तक रहा।

 

घाघरा पहनती थी महिलाएं

 

 
 
7 हज़ार साल पहले जहां पुरूष धोती पहनते थे वहीं महिलाएं घाघरा जैसा कुछ पहनती थीं। इस घाघरे की लंबाई घुटनों के ऊपर हुआ करती थी। कुछ महिलाएं धूप से बचने से बचने के लिए सिर पर कपड़ा भी बांधा करती थीं।
 

गहने भी पहनती थीं महिलाएं

 

 

महिलाएं घाघरानुमा जैसा कुछ पहनने के अलावा गहने जैसे हार और कड़ा भी पहना करती थीं। इसमें भी बदलते वक्त के साथ- साथ धातुओं में भी बदलाव किया गया।

 

साड़ी का इतिहास

 

 

आज बाजारों में जो इतनी सुंदर-सुंदर साड़ियां देखने को मिलती हैं उनका इतिहास काफी पुराना है। इसकी शुरूआत 500 AD के आस-पास हुई थी। साड़ी शब्द की उत्पत्ति वेदों से हुई। साड़ियों को संस्कृत में कपड़ा कहा जाता है।

 

वेदों में जिक्र

 

 

वेदों में 600 BC में भी साड़ी का ज़़िक्र था।धनवान औरतें चीन के सिल्क से बनी साड़ी पहनती थीं। सिल्क की साड़ी मंहगी हुआ करती थी, जिससे आम लोग इसे खरीद नहीं पाते थे। साधारण महिलाएं सूती से बनी सा़ड़ी पहनती थीं।

 

सुई-धागा तकनीक

 

 

कपड़े सीने की तकनीक इस समय भारत से चीन आ चुकी थी । सिले हुए कपड़े पहनने की शुरुआत भी फिर इसी समय हुई थी। सुई-धागे से सिला हुआ कपड़ा शरीर से चिपका रहता था। इन कपड़ों के ऊपर ढेर सारा कढ़ाई का काम भी होता था। चूंकि यह बहुत महंगा होता था इसलिए इसे रईस लोग ही पहन पाते थे।

 

पुरूष भी पहनते थे सलवार कमीज़

 

 

सलवार कमीज की ख़ोज 1000 ADके आसपास ईरान में हुई। महिला और पुरुष दोनों इसे पहनने लगे, इसे चूड़ीदार और सलवार कमीज़ कहा गया। भारत में भी इसका प्रचलन बढ़ा, ख़ास कर उत्तर भारत में, लेकिन अब भी यह धोती-साड़ी के बाद ही लोगों की पसंद होती थी। ये महंगी भी हुआ करती थी इसलिए आमजन की पहुंच से दूर थी। महिलाएं इसके साथ ढेर-सारे गहने भी पहनती थीं।

 

थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चे पहनते थे कुर्ता

 

 

थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चों को कुर्ता पहनाया जाता था। या कुर्ता घुटने तक लम्बा हुआ करता था। वहीं वयस्क अपने माता-पिता की तरह कपड़े पहनते थे। लड़कियां व्यस्क होने के बाद ही साड़ी पहनती थीं।

 

वैदिक काल

 

 

इस काल के दौरान महिलाओं का शरीर कपड़े से लिपटा होता था, जैसे ईरान या ग्रीस की महिलाएं कपड़े पहनती थीं। कुछ औरतें स्कर्टनुमा अंदाज़ में कमर से कपड़े को लपेटती थीं और किसी अन्य कपड़े से आगे की ओर उसे बांध लेती थीं। मुख्य कपड़े के नीचे कसा हुआ शर्ट जैसा कुछ भी पहना जाता था

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