89 साल की उम्र में लतिका पुराने कपड़ों से बैग बना कर बेचती हैं

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“डिजिटल दुनिया में नई-नई लतिका की अपनी खुद की वेबसाइट है जिसका नाम है, ‘लतिकाज बैग्स’। पिछले तीन महीने से यह वेबसाइट चल रही है और उन्हें न्यू जीलैंड, ओमान और जर्मनी जैसे देशों से बैग्स के ऑर्डर मिल रहे हैं।”

 

आप की उम्र कितनी भी क्यों न हो जाए, आप कितने भी बूढ़े क्यों न हो जाएं, सपने और अभिलाषाएं हरदम जवां होते हैं। इन सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती। इस बात को सच साबित किया है 89 साल की लतिका चक्रवर्ती ने। इस उम्र में आकर लतिका ने साबित कर दिया है कि उम्र तो बस एक संख्या है। उन्होंने न जाने कितने प्रतिभाशाली और अपने अपने पैशन को पूरा करने की तमन्ना रखने वाले लोगों के लिए प्रेरणा दे दी है। वह पुराने कपड़ों से बैग बनाती हैं और उसे अपने ऑनलाइन स्टोर के माध्यम से बेचती हैं। बैग खरीदने वाले उनके ग्राहक विदेशों तक फैले हैं।

डिजिटल दुनिया में नई-नई लतिका की अपनी खुद की वेबसाइट है जिसका नाम है, ‘लतिकाज बैग्स’। पिछले तीन महीने से यह वेबसाइट चल रही है और उन्हें न्यू जीलैंड, ओमान और जर्मनी जैसे देशों से बैग्स के ऑर्डर मिल रहे हैं। कई बार तो उन्हें इतने बैग्स के ऑर्डर मिल जाते हैं कि वह उसे पूरा नहीं कर पातीं। लतिका के पोटली बैग की खासियत यह है कि इनकी कीमत बहुत अधिक नहीं होती और इसे 500 से लेकर 1500 रुपये के बीच खरीदा जा सकता है।

जिंदगी के 89वें पड़ाव में पहुंचकर भी पूरी तरह से सक्रिय जीवन जीने वाली लतिका का जन्म असम के धुबरी जिले में हुआ था। उन्होंने इसी शहर से अपनी पढ़ाई पूरी की। यह वो वक्त था जब काफी कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। लतिका की शादी भी पढ़ाई पूरी होते ही कर दी गई। उनके पति कृष्ण लाल चक्रवर्ती सर्वे ऑफ इंडिया में अधिकारी थे। इस नौकरी में उन्हें कई सारे राज्यों में जाना पड़ता था। इसी बहाने लतिका भी कई जगहों पर हो आती थीं। बहुत ज्यादा सफर करने की वजह से लतिका ने कई जगहों के कपड़ों को एक्सप्लोर किया और शौकिया तौर पर सिलाई की शुरुआत की।

वह बताती हैं कि सिलाई से उन्हें काफी सुकून मिलता था और वह अपने बच्चों के कपड़े खुद सिलती थीं। वह बच्चों के लिए गुड़िया भी तैयार कर देती थीं। लेकिन बदलते वक्त के साथ बच्चे बड़े होते गए और उनका सिलाई का शौक थम सा गया। इसी बीच उनके पति कृष्ण उनका साथ छोड़ गए और लतिका अकेली हो गईं। वह अपने बेटे के साथ रहने लगीं जो कि इंडियन नेवी में कैप्टन थे। जब बेटा ड्यूटी पर होता था तो लतिका घर पर अकेली होतीं। उन्होंने सोचा कि क्यों न फिर से सिलाई शुरू की जाए।

कुछ साल पहले ही लतिका ने छोटे-छोटे पोटली बैग बनाने शुरू किए। इस छोटे बैग की खासियत ये होती कि इन्हें पुराने कपड़ों जैसे साड़ियां, कुर्तों से बनाया जाता है। ये बैग जरूरत में तो काम आते ही हैं साथ ही इसे एथनिक कपड़ों के साथ एक्सेसरीज के साथ भी रखा जा सकता है। पहले लतिका ऐसे बैग्स बनाकर अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को देती थीं। अभी तक उन्होंने 300 से भी ज्यादा ऐसे बैग्स बना लिए हैं।

लतिका की ऑनलाइन साइट उनके पोते जॉय चक्रवर्ती का आइडिया था जिसने अपनी दादी के हाथों की कलात्मकता को और भी लोगों तक पहुंचाने के बारे में सोचा। जॉय फिलहाल जर्मनी में रहते हैं, लेकिन अपने पैरेंट्स के पास अक्सर भारत आते रहते हैं। स्कूपव्हूप को दिए एक इंटरव्यू में लतिका अपनी प्रेरणा और काम के पीछे की लगन के बारे में बात करते हुए कहती हैं, ‘मैंने अपना जीवन काफी अनुशासित तरीके से जिया है। इससे मुझे काफी सुकून मिलता है।’ वह कहती हैं कि उन्हें जल्दी सो जाना और जल्दी उठना पसंद है। शायद यही उनके स्वस्थ्य रहने का राज भी है।

 

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