रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड की वार्षिक बैठक भारतीय उद्योग जगत में हर साल उत्साह पैदा करती है. उपभोक्ताओं और शेयर होल्डर्स को भी इसका इंतज़ार रहता है.
बुधवार को कंपनी की 43वीं सालाना बैठक में, जो इस बार कोरोना महामारी के कारण वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग द्वारा हुई जिसमें चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कुछ बड़े फ़ैसलों का ऐलान किया. अगर इन फ़ैसलों पर अमल हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों के जीवन पर इसका काफ़ी सकारात्मक असर पड़ सकता है.
मुकेश अंबानी ने बताया कि रिलायंस का जियो प्लेटफॉर्म “मेड इन इंडिया” 5G टेक्नोलॉजी के साथ पूरी तरह से लॉन्च के लिए तैयार है.
इस सालाना बैठक में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई भी वीडियो के ज़रिए शामिल हुए. उन्होंने हाल में भारत में 10 अरब डॉलर निवेश करने का ऐलान किया था.
बैठक में मीटिंग में उन्होंने इसमें से 4.5 अरब डॉलर जियो प्लेटफॉर्म में निवेश करने की घोषणा की. उन्होंने गूगल और जियो की भागीदारी में एंड्राइड प्लटेफॉर्म पर चलने वाले सस्ते स्मार्टफ़ोन बनाने की योजना की जानकारी दी. इससे देश के वो 35 करोड़ लोग स्मार्टफ़ोन खरीदने योग्य हो जाएंगे जो फ़िलहाल 2G वाले फ़ीचर फ़ोन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सुंदर पिचाई ने कहा,
“गूगल और जियो प्लेटफॉर्म ने एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम और प्ले स्टोर के अनुकूल मिल कर एक एंट्री-लेवल किफ़ायती स्मार्टफ़ोन विकसित करने के लिए एक व्यावसायिक समझौता किया है. हम उत्साहित हैं कि भारत के करोड़ों लोग स्मार्टफ़ोन खरीद सकते हैं.”
आत्मनिर्भरता का मतलब केवल चीन से छुटकारा पाना तो नहीं?
जियो ने 5G टेक्नोलॉजी को पूरी तरह से भारतीय टेक्नोलॉजी की मदद से बनाने का दावा किया है. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर योजना को इससे काफ़ी बल मिलेगा.
कैलिफ़ोर्निया में सिलिकन वैली में रहने वाले हैदराबाद के 5G विशेषज्ञ सतीश कुमार अंबानी की घोषणा को गेम चेंजर की तरह से देखते हैं.
वो कहते हैं, “मुकेश अंबानी प्रधानमंत्री को ये पैग़ाम दे रहे हैं कि मोदी जी आगे बढ़ो (आत्मनिर्भरता की कोशिशों में) हम आपके साथ हैं.”
इधर इसी सप्ताह अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ब्रिटेन द्वारा ख़्वावे पर लगाई गई पाबंदी का स्वागत किया था. इस सिलसिले में अपनी एक प्रतिक्रिया के दौरान उन्होंने जियो की इस बात के लिए प्रशंसा की कि इसने 5G टेक्नोलॉजी के विकास में चीनी कंपनियों की मदद नहीं ली. भारतीय मीडिया के एक सेक्शन ने “मेड इन इंडिया” जियो 5G को “ख़्वावे किलर” भी बताया था.
अब अगर जियो ने 5G टेक्नोलॉजी के विकास में केवल स्थानीय उपकरणों और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने का दावा किया है तो देश में दो बड़ी टेलीकॉम कंपनियां वोडाफ़ोन और एयरटेल को भी सारा 5G नेटवर्क और सामान स्थानीय टेक्नोलॉजी से बनाना होगा और ये क्षमता उनके पास नहीं है.
विशेषज्ञ इसका मतलब ये निकाल रहे हैं कि 5G लॉन्च में ख़्वावे के उपकरणों और सॉफ्टवेयर की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. यानी अनौपचारिक रूप से भारत भी उन देशों में शामिल हो गया जिन्होंने ख़्वावे पर या तो पाबंदी लगा दी है या लगाने की सोच रहे हैं.
अमरीका को डर है कि ख़्वावे चीनी सरकार से डाटा शेयर कर सकता है और राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि वो निजी तौर पर कई देशों को ख़्वावे पर पाबंदी लगाने की सलाह दे रहे हैं.
गूगल और जियो का संयुक्त “एंट्री-लेवल किफ़ायती स्मार्टफ़ोन” प्रोजेक्ट चीनी स्मार्टफ़ोन कंपनी शाओमी के लिए एक बुरी ख़बर है. शाओमी भारत के स्मार्टफ़ोन सेक्टर की एक अहम कंपनी है.
उधर फे़सबुक ने हाल में जियो प्लेटफॉर्म पर 5.7 अरब डॉलर निवेश किया है. फे़सबुक के व्हाट्सऐप और रिलायंस के जियो की भागीदारी से चीनी प्लेटफॉर्म वीचैट को मुक़ाबला दे सकता है.
सतीश कुमार कहते हैं कि ये चीन- मुक्त आत्मनिर्भरता अधिक नज़र आती है.
कुमार बताते हैं, “देखिये गूगल जियो प्लेटफार्म में पैसे लगा रहा है और उपकरण और टेक्नोलॉजी भी. इसे भारतीय कंपनी की आत्मनिर्भरता तो नहीं कहेंगे. हां चीनी कंपनी-मुक्त भारत बनाने की कोशिश कह सकते हैं.”
5G की क्षमता
भारत में मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने वाले अक्सर लाइन ड्राप होने से लेकर स्लो इंटरनेट जैसी शिकायत करते हैं.
लेकिन टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों के अनुसार 5G टेक्नोलॉजी 4G और 3G से बिल्कुल अलग है. 5G पूरी दुनिया को जोड़ने की क्षमता रखता है.
5G टेक्नोलॉजी की दुनिया में सबसे बड़ी कंपनी ख़्वावे कहती हैं, “सीधे शब्दों में कहें तो 5G की स्पीड 4G की तुलना में दर्जनों गुना ज़्यादा होगी.”
टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ प्रदीप इनामदार कहते हैं,
“तीसरे और चौथे जेनरेशन ऑफ़ टेक्नोलॉजी (3G और 4G) के मुक़ाबले 5G आपके स्मार्टफ़ोन को ही इंटरनेट से कनेक्ट नहीं करेगा बल्कि ये इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स से, यानी आपके फ्रिज, टीवी माइक्रोवेव ओवन, वॉशिंग मशीन और एसी को भी तेज़ रफ़्तार इंटरनेट से जोड़ेगा.”
सत्रहवीं शताब्दी में गैलीलियो ने कहा था कि सभी प्राकृतिक घटनाओं को गणित की भाषा में व्यक्त किया जा सकता है. यानी डेटा में व्यक्त किया जा सकता है.
इस बात पर सर्वसम्मति है कि 21वीं सदी डेटा की शताब्दी होगी. प्रदीप कहते हैं अब “हमारे हर एक्शन को डाटा से बेहतर तरीके से बताया जा सकता है”.
प्रदीप इनामदार कहते हैं, “इस टेक्नोलॉजी के लॉन्च में अभी देरी है लेकिन जब ये पूरी तरह से लागू हो जाएगा तो ये अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेगा, ई-कॉमर्स, स्वास्थ्य केंद्रों, किराने के दुकानदार, स्कूल और यूनिवर्सिटी और किसान इससे भरपूर लाभ उठा सकेंगे.”
एक तरह से आप कह सकते हैं आने वाले दिनों में रिलायंस का जियो प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी की ऐसी दुकान होगी जहाँ सभी के पसंद की सभी चीज़ें मौजूद होंगी. ये भारत का अपना वीचैट, अमेज़न, शाओमी, ज़ूम और ख़्वावे होगा और जिसे एक बंडल में भारतीय उपभोगताओं के लिए प्रस्तुत किया जा सकेगा.
5G का भारत में कैसा प्रदर्शन होगा?
दुनिया के जिन मुल्कों में 5G लॉन्च किया जा रहा है वहां ये देखा गया है कि 5G मोबाइल नेटवर्क का इंफ्रास्ट्रक्चर अलग है. 4G (एलटीई) और 3G नेटवर्क को हटा कर इसकी जगह उच्च बैंडविड्थ और कम विलंबता देने वाली नई रेडियो तकनीक और एक अलग नेटवर्क की ज़रुरत पड़ेगी.
5G की रफ़्तार की क्षमता 10 जीबीपीएस तक है जो 4G की 100 एमबीपीएस स्पीड से 100 गुना तेज़ है. लेटेंसी, यानी फ़ोन से सर्वर तक डेटा के पहुँचने का समय मिलीसेकंड से कम हो सकता है जो 4G की तुलना में 60-120 गुना तेज़ है.
क्या भारतीय कंपनियां ये स्पीड दे सकेंगी? विशेषज्ञों में आम सहमति ये है कि अभी कुछ कहना मुश्किल है. भारत में मोबाइल फ़ोन पर 4G और 3G की स्पीड और लाइन ड्राप होने की शिकायत आम है. उपभोगताओं में संतुष्टि का अभाव है.
रिलायंस जियो की “मेड इन इंडिया” उपकरणों की क्षमता की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है. कंपनी का दावा है कि इसने 5G के लिए सबसे आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है जो इसके 40 करोड़ ग्राहकों के लिए एक बेहतरीन अनुभव लेकर आएगा.
लेकिन इसका पहला कदम है फ़ील्ड टेस्टिंग का. 5G मोबाइल नेटवर्क परीक्षण करने के लिए भारत सरकार से संपर्क करने वाला जियो पहला नेटवर्क है.
जियो के रणनीति प्रमुख अंशुमान ठाकुर ने सितंबर 2019 में कहा था कि जियो 5G के लिए तैयार है और इसमें नेटवर्क बनाने की ज़रूरत है और इसके अलावा स्पेक्ट्रम और उपकरणों में निवेश करने की ज़रूरत है.
जियो ऑल-आईपी नेटवर्क के साथ एकमात्र ऑपरेटर भी है, जो 5G सेवाओं को लॉन्च करने के लिए एक महत्वपूर्ण ज़रूरत है.
(ऑल-आईपी वॉयस नेटवर्क टेलीफ़ोन कॉल कनेक्ट करने और संचार स्थापित करने के लिए इंटरनेट प्रोटोकॉल तकनीकों का उपयोग करता है, ठीक उसी तरह जिस तरह से कंप्यूटर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं.)
कुछ महीने पहले एयरटेल ने कहा था कि वो फ़ील्ड टेस्ट के लिए अपने परीक्षणों पर ख़्वावे, जेडटीई, एरिक्सन और नोकिया के साथ काम करेगी.
इसने ख़्वावे द्वारा सप्लाई किये गए 5G टेक्नोलॉजी ट्रांसमिशन उपकरण 100 जगहों पर लगाए हैं.
इसने अपने कोर नेटवर्क को तेज़ करने के लिए सिस्को और एरिक्सन के साथ समझौते किए हैं ताकि कंपनी 5G सेवा दे सके.
वोडाफ़ोन-आइडिया, ख़्वावे, जेडटीई, एरिक्सन और नोकिया के साथ अपने परीक्षणों का संचालन करने की तैयारी कर चुका है.
वोडाफ़ोन आइडिया पहले से है अपने 4G नेटवर्क की क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए ख़्वावे की 5G आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है.
भारत में कब लॉन्च हो सकता है5G?
इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन इंडस्ट्री का अनुमान है कि आम उपभोक्ता इसका इस्तेमाल 2022-23 से पहले नहीं कर सकेंगे.
5G वाले स्मार्टफ़ोन देश में बिक तो रहे हैं लेकिन अभी सेवा उपलब्ध नहीं है. यानी भारत में 5G का हाल ये है कि खाना तो तैयार है, खाने वाले भी तैयार हैं लेकिन डाइनिंग टेबल अभी तक नहीं लगाया गया है.
जैसा कि मुकेश अंबानी ने बुधवार को कहा कि जियो प्लेटफॉर्म 5G को अगले साल रोल-आउट करने के लिए तैयार है. लेकिन 5G की कुंजी सरकार के हाथ में है. लॉन्च से पहले की दो अहम प्रक्रिया अभी बाक़ी है: स्पेक्ट्रम की नीलामी और इसके लाइसेंस की महँगी फ़ीस.
भारत सरकार ने 2020 की दूसरी तिमाही में इस 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी करने की योजना बनाई थी लेकिन अब COVID-19 महामारी की वजह से अब इस नीलामी में देर हो सकती है.
अगर अगले साल के मध्य में नीलामी शुरू होती है तो उसके बाद नीलामी में स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कंपनियों को इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और टेस्ट करने में एक साल से अधिक लग सकता है. यानी 2022 से पहले 5G आम लोगों तक मिलना असंभव है.
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने सिफारिश की है कि 5G सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम को 3300 से 3400 मेगाहर्ट्ज और 3425 से 3600 मेगाहर्ट्ज बैंड पर उपलब्ध कराया जाए. ये बैंड रेंज अच्छी स्पीड के लिए जाने जाते हैं.
सरकार की महंगी फ़ीस
ट्राई ने 5G एयरवेव्स की नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य निर्धारित कर दी है, जिसका बेस प्राइस 70 मिलियन डॉलर है.
विशेषज्ञों और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के अनुसार ये इस स्पेक्ट्रम के लिए बेहद महंगी क़ीमत है.
अमरीका में इसका बेस प्राइस 26 मिलियन डॉलर है, इटली और दक्षिण कोरिया में 18 मिलियन डॉलर, ब्रिटेन में 10 मिलियन डॉलर और ऑस्ट्रेलिया में 5 मिलियन डॉलर है.
भारत के सेलुलर ऑपरेटर की संस्था COAI ने भारत सरकार से बेस प्राइस को कम करने की सिफ़ारिश की है.
क़र्ज़ों में डूबी दो बड़ी कंपनियां — वोडाफ़ोन आइडिया और एयरटेल – महंगे स्पेक्ट्रम के कारण नीलामी में भाग न ले सकीं या सीमित रूप से ले सकीं, जिसकी पूरी संभावना है, तो मैदान जियो के लिए साफ़ हो जाएगा.
जियो ने भी नीलामी के बेस प्राइस को कम करने पर ज़ोर दिया है लेकिन वित्तीय रूप से जियो अभी मज़बूत स्थिति में है और विदेशी कंपनियों का हाल में जियो प्लेटफॉर्म में 118 लाख करोड़ का निवेश इसका बड़ा सबूत है.
अगर भारत सरकार ने नीलामी का बेस प्राइस कम न किया तो इसका ख़मियाज़ा आम उपभोगताओं को उठाना पड़ सकता है. ऐसा बिल्कुल संभव है कि भारत में 5G सेवा सबसे महंगी हो और इंडस्ट्री के अनुसार इसकी ज़िम्मेदार केवल भारत सरकार होगी.
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