वो गाना जिसे गाते हुए रफी साहब के गले से खून आ गया

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1980 की बात है, एक लक्ज़री बस में ड्राइवर एक के बाद एक गाने बजा रहा था. ‘नफरत की दुनिया छोड़ प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार’, ‘जीवन अपना वापस ले ले जीवन देने वाले’.

एक बार मोहम्मद रफी की मृत्यु के बाद ग़म में डूबे कुछ लोग उनके दर्द भरे नगमे सुन रहे थे. एक शख्स चिल्लाया, बंद करो ये. जिस आदमी ने दुनिया को मोहब्बत करना सिखाया उसके जाने पर ये गाने तो मत बजाओ. ये शख्स थे रफी को अपनी आवाज़ कहने वाले शम्मी कपूर.

शम्मी कपूर की बात को ही आगे बढ़ाएं तो हिंदी सिनेमा में रोमांस के हर आयाम को रफी साहब ने आवाज़ दी.

पहले प्यार की अंगड़ाई का अहसास देता हुआ दीवाना हुआ बादल, महबूब के मिलने की खुशी दिखाता ‘आने से उसके आए बहार’, प्रेमिका की तारीफ करता हुआ, ‘तूने काजल लगाया दिन में रात हो गई’. हल्का सा सुरूर देता ‘आज मौसम बड़ा बेईमान है’. तमाम ऐसे गाने हैं जिन में रफी साहब ने अपनी आवाज़ के ज़रिये इश्क़ के हर अंदाज़ को दिखाया है.

31 जुलाई, को इस दुनिया से विदा लेने वाले रफी साहब के कुछ ऐसे गानों और गायकी के कुछ ऐसे पहलुओं की बात करते हैं जो इंट्रेस्टिंग हैं, पर कम चर्चित हैं.

 

1- ऐ मेरे लाड़लो 

62 का युद्ध और लता जी के ऐ मेरे वतन के लोगों के बारे में सबने सुना होगा. मगर उसी दौर में रफी साहब ने भी एक गीत को आवाज़ दी थी. नौशाद के कंपोज़ किए गए इस गीत को सुनकर कई लोग भावुक हुए. रफी साहब इस को गाते समय रो पड़े थे, पर वक्त के साथ ये गीत लोगों की स्मृति से धुंधला पड़ गया.

 

 

2- जिसे गाते समय गले से खून आ गया 

गीतों की शास्त्रीयता को पैमाना बनाया जाए तो बैजू बावरा को एक मील का पत्थर माना जा सकता है. तानसेन और उनके गुरू भाई की कहानी में गायकी का चरम दिखाया गया. नौशाद ने रफी साहब को प्लेबैक के लिए चुना. रफी साहब के गले की रेंज यूं तो बहुत ऊंची है. वो जिस स्केल पर आराम से गाते हैं वहां सुर लगाने में कई गायकों को चीखना पड़ेगा. मगर फिल्म के गीत ऐ दुनिया के रखवाले गाते समय रफी साहब को तार सप्तक के उस बिंदु को छूना पड़ा कि उनके मुंह से खून निकल आया. इसके बाद कई दिन तक रफी साहब गा नहीं पाए थे. हालांकि कुछ साल बाद उन्होंने इस गाने को फिर से रिकॉर्ड किया और पहले से भी ऊंचे स्केल तक गाया, वो भी बिना किसी दिक्कत के.

 

 

3- किशोर के लिए प्लेबैक 

दो महानताओं की तुलना नहीं हो सकती. रफी और किशोर भी ऐसे ही हैं. रफी साहब जहां घरानेदारी से सीख कर आए क्लासिकली ट्रेंड गायक, वहीं किशोर स्वाभाविकता वाले जीनियस. मगर कुल 8 गाने ऐसे हैं जिनमें किशोर कुमार पर्दे पर हैं और आवाज़ रफी साहब की है. इनमें से एक को सुनिए.

 

 

4- जिसके साथ गाना गाकर रफी साहब खुश हुए 

हर बड़े सिंगर से ये पूछे जाते समय ये पूर्वधारणा होती है कि उससे प्रिय गायक का नाम पूछे जाने पर, जवाब में किसी उस्ताद या स्थापित गायक का नाम लेगा. कुंदन लाल सहगल और नूरजहां की गायकी के प्रशंसक रहे रफी साहब एक बार एक गाने की रिकॉर्डिंग करके बहुत खुश थे. घर में सबसे कहा कि वो जिसके फैन थे उसके आज गाने का मौका मिल गया. गाना था नसीब फिल्म का ‘चल मेरे भाई’ और इसमें दूसरे सिंगर थे अमिताभ बच्चन. फिल्में कम देखने के वाले रफी ‘दीवार’ के बाद से बिग बी के बड़े फैन हो गए थे. और बच्चन साहब के साथ गाना गाकर घर पर सबको ऐसे बता रहे थे जैसे कोई नया सिंगर रफी साहब के साथ गाने के बारे में बताता.

 

 

5- ये गाना मैंने कब गाया 

अक्सर लोग अनवर की आवाज़ को रफी जैसा बताते हैं. अपने इंतकाल से कुछ समय पहले ही मोहम्मद रफी ने अनवर का गाया कुर्बानी कुर्बानी सुना. कहा जाता है कि रफी साहब ने पहली बार गीत को सुनकर कहा ये गाना मैंने कब गाया?

 

 

6- आखिरी गीत :

नौशाद साहब ने राग पट-दीप में एक ग़ज़ल कंपोज़ की. रफी साहब इसे गाते-गाते रोने लगे. रिकॉर्डिंग के बाद नौशाद से बोले, तुमने बेहद अच्छा गाना दिया. आजकल तो ऐसे गाने मिलते ही नहीं हैं गाने के लिए. सुकून मिला. इसके पैसे नहीं लूंगा. उस समय ये गीत रिलीज़ नहीं हो पाया और इस गीत को गाने के कुछ दिन बाद ही रफी साहब इस दुनिया को छोड़ कर चले गए.

 

 

रफी साहब की बातें अनगिनत हैं. उनकी गायकी के किस्सों पर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है. रफी साहब का एक गीत उनकी नज़्र. गीत के बोल लिखे हैं एसएच बिहारी ने, सुरों से सजाया ओपी नैय्यर ने. फिल्म का नाम है कश्मीर की कली और गीत के बोल हैं. तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया.

 




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