धर्म

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adminJuly 12, 20211min00

गुरु पूर्णिमा को भारत में बहुत ही श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा पुण्य फलदायी होती है। परंतु हिंदी पंचांग का चौथा माह आषाढ़, जिसके पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। व्यास जी को प्रथम गुरु की भी उपाधि दी जाती है क्योंकि गुरु व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व इस वजह से मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं पूजा-विधि और गुरु पूर्णिमा के महत्व के बारे में।

शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- शुक्रवार 23 जुलाई को सुबह 10:34 बजे
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त- शनिवार 24 जुलाई को सुबह 08:06 बजे

पूजा विधि
प्रातःकाल सुबह-सुबह घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। किसी साफ सुथरे जगह पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यासजी, शुक्रदेवजी, शंकराचार्यजी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा का महत्व
भारतीय सभ्यता में गुरुओं का विशेष महत्व है। भगवान की प्राप्ति का मार्ग गुरु के बताए मार्ग से ही संभव होता है क्योंकि एक गुरु ही है, जो अपने शिष्य को गलत मार्ग पर जाने से रोकते हैं और सही मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस वजह से गुरुओं के सम्मान में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है?
भारत में गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने का इतिहास काफी प्राचीन है। जब पहले के समय में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली हुआ करती थी तो इसका महत्व और भी ज्यादे था। शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के समतुल्य बताया गया है, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में गुरु को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर कई अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कारण तथा सारी मान्यताएं प्रचलित है, परंतु इन सभी का अर्थ एक ही है यानी गुरु के महत्व को बताना।

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा से जुड़ी मान्यता
ऐसा माना जाता है कि यह पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन आज से लगभग 3000 ई. पूर्व हुआ था और क्योंकि उनके द्वारा ही वेद, उपनिषद और पुराणों की रचना की गयी है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का यह दिन उनकी समृति में भी मनाया जाता है। सनातन संस्कृति में गुरु सदैव ही पूजनीय रहें है और कई बार तो भगवान ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि गुरु स्वंय ईश्वर से भी बढ़कर है। एक बच्चे को जन्म भले ही उसके माता-पिता देते है लेकिन उसे शिक्षा प्रदान करके समर्थ और शिक्षित उसके गुरु ही बनाते हैं। पुराणों में ब्रम्हा को गुरु कहा गया है क्योंकि वह जीवों का सृजन करते हैं उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्यों का सृजन करते हैं। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने सप्तिर्षियों को योग विद्या सिखायी थी, जिससे वह आदि योगी और आदिगुरु के नाम से भी जाने जाने लगे।

बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
कई बार लोग सोचते है भारत तथा अन्य कई देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा गुरु पूर्णिमा का पर्व क्यों मनाया जाता है। इसके पीछे एक ऐतिहासिक कारण है क्योंकि आषाढ़ माह के शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही महात्मा बुद्ध ने वर्तमान में वाराणसी के सारनाथ में पांच भिक्षुओं को अपना प्रथम उपदेश दिया था। यहीं पांच भिक्षु आगे चलकर ‘पंच भद्रवर्गीय भिक्षु’ कहलाये और महात्मा बुद्ध का यह प्रथम उपदेश धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना गया। यह वह दिन था, जब महात्मा बुद्ध ने गुरु बनकर अपने ज्ञान से संसार प्रकाशित करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा भी गुरु पूर्णिमा का पर्व इतने धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
हिंदू तथा बौद्ध धर्म के साथ ही जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस दिन को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा को लेकर यह मत प्रचलित है कि इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने गांधार राज्य के गौतम स्वामी को अपना प्रथम शिष्य बनाया था। जिससे वह ‘त्रिनोक गुहा’ के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ होता है प्रथम गुरु। यही कारण है कि जैन धर्म में इस दिन को त्रिनोक गुहा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

आदियोगी शिवजी की कथा
गुरु पूर्णिमा के मनाये जाने को लेकर जो दूसरा मत प्रचलित है, वह योग साधना और योग विद्या से संबंधित है। जिसके अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव आदि गुरु बने थे, जिसका अर्थ प्रथम गुरु होता है। यह कथा कुछ इस प्रकार से है- आज से लगभग 15000 वर्ष पहले हिमालय के उपरी क्षेत्र में एक योगी का उदय हुआ। जिसके विषय में किसी को कुछ भी ज्ञात नही था, यह योगी कोई और नही स्वयं भगवान शिव थे। इस साधरण से दिखने वाले योगी का तेज और व्यक्तित्व असाधारण था। उस महान व्यक्ति को देखने से उसमें जीवन का कोई लक्षण नही दिखाई देता था। लेकिन कभी-कभी उनके आँखों से परमानंद के अश्रु अवश्य बहा करते थे। लोगो को इस बात का कोई कारण समझ नही आता था और वह थककर धीरे-धीरे उस स्थान से जाने लगे, लेकिन सात दृढ़ निश्चयी लोग रुके रहे। जब भगवान शिव ने अपनी आंखे खोली तो उन सात लोगों ने जानना चाहा, उन्हें क्या हुआ था तथा स्वयं भी वह परमानंद अनुभव करना चाहा लेकिन भगवान शिव ने उनकी बात पर ध्यान नही दिया और कहा कि अभी वे इस अनुभव के लिए परिपक्व नही है। हालांकि इसके साथ उन्होंने उन सात लोगो को इस साधना के तैयारी के कुछ तरीके बताये और फिर से ध्यान मग्न हो गये। इस प्रकार से कई दिन तथा वर्ष बीत गये लेकिन भगवान शिव ने उन सात लोगों पर कोई ध्यान नही दिया। 84 वर्ष की घोर साधना के बाद ग्रीष्म संक्रांति में दक्षिणायन के समय जब योगीरुपी भगवान शिव ने उन्हें देखा तो पाया कि अब वह सातों व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति के लिये पूर्ण रुप से तैयार है तथा उन्हें ज्ञान देने में अब और विलंब नही किया जा सकता था। अगले पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने इनका गुरु बनना स्वीकार किया और इसके पश्चात शिवजी दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बैठ गये और इन सातों व्यक्तियों को योग विज्ञान की शिक्षा प्रदान की, यही सातों व्यक्ति आगे चलकर सप्तर्षि के नाम से प्रसिद्ध हुए। यही कारण है कि भगवान शिव को आदियोगी या आदिगुरु भी कहा जाता है।

पूर्णिमा पर क्या करेंं व क्या न करें…
भोजन : इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। जैसे मांस, मटन, चिकन या मसालेदार भोजन, लहसुन, प्याज आदि।

शराब : इस दिन किसी भी हालत में आप शराब ना पिएं क्योंकि इस दिन शराब का दिमाग पर बहुत गहरा असर होता है। इससे शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं।

क्रोध : इस दिन क्रोध नहीं करना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है।

भावना : जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। अत: भावनाओं में बहें नहीं खुद पर नियंत्रण रखकर व्रत करें।

स्वच्छ जल : चांद का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। अत: इस दिन जल की मात्रा और उसकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।

अन्य सावधानियां : इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखें। यदि इस दिन उपवास नहीं रख रहे हैं तो इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करें तो ज्यादा बेहतर होगा। इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें।

शिष्य धर्म इस प्रकार है:

  • सदैव अपने गुरु की आज्ञा मानना
  • गुरु से उनका ज्ञान सीखने की पूरी कोशिश और उन्हें सहयोग देना।
  • गुरु की विपत्ति के समय रक्षा करना।
  • गुरु के सम्मान का सदैव ध्यान रखना, कभी उनके सामने उदंडता नही दिखानी, गुरु के सामने अपने ज्ञान का घमंड नही करना, गुरु का नाम लेने से पहले कानो को हाथ लगाना।
  • गुरु की पत्नी, कन्या, पुत्र को अपना परिवार का समझना, गुरु पुत्र को अपना भाई, गुरु कन्या को अपनी बहन, और गुरु माता को अपनी माता समान समझ कर व्यवहार करना।

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adminJune 26, 20211min00

हिन्दी पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी व्रत होता है। इस वर्ष योगिनी एकादशी व्रत 05 जुलाई 2021 दिन सोमवार को पड़ रहा है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। उनको अक्षत्, पीले पुष्प, पीले वस्त्र, पीली मिठाई, पंचामृत आदि अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग पूजा के समय योगिनी एकादशी व्रत की कथा का श्रवण भी करते हैं और भगवान विष्णु की आरती करते हैं। आइए जानते हैं योगिनी एकादशी ​तिथि, पारण समय और व्रत के महत्व के बारे में।

योगिनी एकादशी 2021 ति​थि
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 04 जुलाई दिन रविवार को शाम को 07 बजकर 55 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 05 जुलाई को रात 10 बजकर 30 मिनट पर होगा। एकादशी की उदया तिथि 05 जुलाई को प्राप्त हो रही है, इसलिए योगिनी एकादशी व्रत 05 जुलाई को रखा जाएगा।

योगिनी एकादशी 2021 पारण समय
जो लोग योगिनी एकादशी का व्रत रहेंगे, उनको अगले दिन 06 जुलाई मंगलवार को पारण करना है। उस दिन प्रात:काल 05 बजकर 29 मिनट से सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक पारण कर लेना है। पारण में इस बात का ध्यान रहे कि द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व तक पारण कर लें। द्वादशी तिथि का समापन 06 जुलाई को देर रात 01 बजकर 02 मिनट पर हो रहा है।

योगिनी एकादशी व्रत के नियम व पूजा विधि:-

  • योगिनी एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि रात्रि से शुरू होकर द्वादशी तिथि को प्रातःकाल के बाद पूरा होता है।
  • यह व्रत करने से एक दिन पहले ही इसके नियम शुरू हो जाते हैं।
  • दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत रखने वाले व्यक्ति को तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।
  • दशमी तिथि की रात्रि से ही नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • एकादशी व्रत के दिन भी भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए व चावल का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।
  • योगिनी एकादशी व्रत के दिन प्रात:काल जल्दी उठे।
  • स्नान आदि कार्यो को करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद कलश स्थापना की करें, कलश के ऊपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें और उनकी पूजा करें और भोग लगायें। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। भगवान् विष्‍णु की पूजा करते समय तुलसी के पत्तों को अवश्‍य रखें। तुलसी के पत्ते एकादशी के दिन कभी नहीं तोड़ना चाहिए इसलिए पत्तों को दशमी के दिन ही तोड़ कर रख लें। इसके बाद धूप जलाकर श्री भगवान् विष्‍णु की आरती उतारें इसके बाद पीपल के पेड़ की पूजा करें।
  • योगिनी एकादशी की व्रत कथा अवश्य सुनें व घर में सब को सुनाये क्योंकि सुनने मात्र से भी इसका फल मिलता है।
  • इस दिन दान कार्य करना अति कल्याणकारी होता है। और पीपल के पेड़ की पूजा भी अवश्य करनी चाहिये।
  • व्रत की रात्रि में जागरण करें।
  • व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को प्रात:काल दान कार्यो को करें इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें। तब व्रत समाप्त होता है।
  • जो लोग यह व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन भोजन में चावल नहीं लेना चाहिए और जो व्यक्ति एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद सदा बना रहता है।

योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, योगिनी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को कुष्ठ रोग या कोढ़ से मुक्ति मिलती है। योगिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को जीवन में सुख,समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। हमारे देश में इस व्रत का बहुत महत्त्व है। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने का फल, 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। तथा यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को इसका पुण्य अवश्य मिलता है। पद्म पुराण में बताया गया कि जो भी व्यक्ति योगिनी एकादशी के दिन अनुष्ठान का पालन करता है उसका स्वास्थ्य अच्छा होता है, तथा वह समृद्धि को प्राप्त करता है, और एक सुखी जीवन व्यतीत करता है। योगिनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसके सभी पाप भगवान् विष्णु की कृपा से नष्ट होते हैं और मनुष्य को मरने बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

योगिनी एकादशी की व्रत कथा

यह बात महाभारत के समय की है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से सभी एकादशियों के व्रत का महिमा सुन रहे थे। जब आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी की बारी आई तो युधिष्ठिर ने भगवान् से पूछा की हे भगवन इस एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा की हे राजन यह एकादशी योगिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस धरती पर जो भी व्यक्ति इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है और प्रभु की पूजा करता है उसके सभी पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं। तथा अंत काल में उसे मोक्ष प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी का उपवास तीनों लोकों में बहुत प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के बारे थोड़ा विस्तार से बताइये। तब भगवान श्री कृष्ण कहा की पुराणों में एक कथा प्रचलित है वही तुम्हें सुनाता हूँ। इसे ध्यानपूर्वक सुनना। स्वर्गलोक के अलकापुरी नगर में कुबेर नामक एक राजा था। वह भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था। वह हर परिस्थिति में भगवान् शिव की नियमित पूजा किया करता था। हेम नामक एक माली था जो राजा के लिए फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज राजा को पूजा से पहले फूल देकर आता था। एक दिन हेम ने फूल तोड़ने के बाद सोचा कि अभी तो पूजा करने में काफी समय है, और अपनी पत्नी के साथ घूमने लगा। इधर, कुबेर हेम की प्रतीक्षा कर रहा था। पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प नहीं पहुंचने की वजह से व्याकुल हो रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं आया तो राजा कुबेर को क्रोध आया और उसने अपने सैनिकों से हेम को लाने को कहा जब हेम राजा के समक्ष पहुँचा तो राजा ने क्रोधवश हेम को पत्नी वियोग का श्राप दे दिया। और साथ ही, उसे कोढ़ (कूबड़) ग्रस्त होकर धरती पर विचरण का श्राप भी दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली दुखी था वह कई वर्षों तक धरती पर इधर-उधर भटकता रहा। एक दिन संयोगवश वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि के पूछने पर हेम ने उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। और ऋषि ने हेम को कहा की आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। यदि तुम इस व्रत को पुरे विधि-विधान, और श्रद्धा भाव से करोगे तो तुम्हें इस श्राप से मुक्ति अवश्य मिलेगी। हेम ने बहुत ही श्रद्धा पूर्वक यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से हेम माली को श्राप से मुक्ति मिली तथा उसका कोढ़ समाप्त हो गया और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा। उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।


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adminJune 23, 20211min00

सनातन धर्म में पूर्णिमा तथा अमावस्या की तिथि का विशेष महत्व होता है। हिंदी पंचांग के प्रत्येक माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा की होती है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, अतः इस दिन पूजा एवं व्रत करना शुभ फलदायी होता है। हिंदू मान्यता के अनुसार पूर्णिमा की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विधान है। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 24 जून को पड़ रही है।इस दिन साल 2021 का आखिरी सुपरमून दिखेगा। इस बार की ज्येष्ठ पूर्णिमा पर विशेष संयोग बन रहा है। हिंदी पंचाग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि 24 जून, दिन गुरुवार को पड़ रही है। गुरुवार या बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होने के कारण ज्येष्ठ पूर्णिमा विशेष फलदायी है। इसके अतिरिक्त ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन सूर्य,मिथुन राशि में तथा चंद्रमा के वृश्चिक राशि में होने के कारण विशिष्ट संयोग का निर्माण हो रहा है। पूर्णिमा की तिथि 24 जून को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ हो कर 25 जून को रात्रि 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी। पूर्णिमा का व्रत 24 जून को रखा जाएगा तथा पारण 25 जून को होगा। शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान विष्णु को समर्पित करते हुए व्रत एवं पूजन करने का विधान है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना विशेष रूप से फलदायी होता है। परन्तु कोरोना महामारी के कारण नदियों में जा कर स्नान करना संभव न हो, तो नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर नहाने से भी गंगा स्नान का पुण्य मिलता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्थान सात विशेष पूर्णिमा में आता है इस दिन भगवान विष्णु का व्रत करने से सभी कष्ट एवं संकट समाप्त होते हैं तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।


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June 22, 20211min00

हिंदू मान्यता के अनुसार प्रदोष का व्रत भगवान शिव को समर्पित है। प्रत्येक मास के दोनों त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखने का विधान है। इस बार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ने के कारण ये भौम प्रदोष के संयोग का निर्माण कर रहा है। भौम प्रदोष का व्रत रखने से भगवान शिव और रूद्रावतार हनुमान जी दोनों को प्रसन्न किया जा सकता है। साथ ही व्यक्ति के मंगल दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इस माह 22 जून को भौम प्रदोष का संयोग है, इस दिन विधि पूर्वक व्रत रखने तथा पूजन करने से सभी मनोकामनाए पूर्ण होंगी।

भौम प्रदोष की तिथि एवं मुहूर्त

हिंदी पंचांग के अनुसार भौम प्रदोष का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ रहा है। यह तिथि 22 जून दिन मंगलवार को है अतः यह संयोग भौम प्रदोष का बन रहा है। यह तिथि 22 जून को प्रातः 10:22 बजे से शुरू हो कर 23 जून को प्रातः 6:59 बजे तक रहेगी। हालांकि पूजा का विशेष मुहूर्त प्रदोष काल 22 जून को शाम 07:22 से रात्रि 09:23 बजे तक रहेगा।

भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि

भौम प्रदोष के दिन भगवान शिव की माता पर्वती के साथ पूजा करने का विधान है। शास्त्रोक्त विधि से पूजन करने के लिए व्रत के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो कर रेशम के कपड़ों से मण्डप का निर्माण करना चाहिए। मण्डप में शिवलिंग या शिव परिवार का चित्र स्थापित करें। इसके बाद आटे और हल्दी से स्वास्तिक बनाएं तथा भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, मदार, दूध, दही,शहद का भोग लगाना चाहिए। पंचाक्षर मंत्र से आराधना करें तथा संकल्प लेकर पूरे दिन फलाहार करते हुए व्रत रखना चाहिए। व्रत का पारण अगले दिन चतुर्दशी को किया जाता है। भौम प्रदोष का व्रत रखने से दाम्पत्य जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा विवाह में आने वाली बाधा को भी दूर किया जा सकता है।

भौम प्रदोष व्रत कथा
एक समय की बात है। एक स्थान पर एक वृद्ध महिला रहती थी। उसका एक बेटा था। वह वृद्धा हनुमान जी की भक्त थी। हमेशा हनुमान जी की पूजा विधिपूर्वक करती थी। मंगलवार को वह हनुमान जी की विशेष पूजा करती थी। एक बार हनुमान जी ने अपने भक्त उस वृद्धा की परीक्षा लेनी चाही।

वे एक साधु का वेश धारण करके उसके घर आए। उन्होंने आवाज लगाते हुए कहा कि कोई है हनुमान भक्त, जो उनकी इच्छा को पूर्ण कर सकता है। जब उनकी आवाज उस वृद्धा के कान में पड़ी, तो वह जल्दी से बाहर आई। उसने साधु को प्रणाम किया और कहा कि आप अपनी इच्छा बताएं। इस पर हनुमान जी ने उससे कहा कि उनको भूख लगी है, वे भोजन करना चाहते हैं, तुम थोड़ी सी जमीन लीप दो। इस पर उसने हनुमान जी से कहा कि आप जमीन लीपने के अतिरिक्त कोई और काम कहें, उसे वह पूरा कर देगी।

हनुमान जी ने उससे अपनी बातों को पूरा करने के लिए वचन लिया। तब उन्होंने कहा कि अपने बेटे को बुलाओ। उसकी पीठ पर आग जला दो। उस पर ही वे अपने लिए भोजन बनाएंगे। हनुमान जी की बात सुनकर वह वृद्धा परेशान हो गई। वह करे भी तो क्या करे। उसने हनुमान जी को वचन दिया था। उसने आखिरकार बेटे को बुलाया और उसे हनुमान जी को सौंप दिया।

हनुमान जी ने उसके बेटे को जमीन पर लिटा दिया और वृद्धा से उसकी पीठ पर आग जलवा ​दी। वह वृद्धा आग जलाकर घर में चली गई। कुछ समय बाद साधु के वेश में हनुमान जी ने उसे फिर बुलाया। वह घर से बाहर आई, तो हनुमान जी ने कहा कि उनका भोजन बन गया है। बेटे को बुलाओ ताकि वह भी भोग लगा ले। इस पर वृद्धा ने कहा कि आप ऐसा कहकर और कष्ट न दें। लेकिन हनुमान जी अपनी बात पर अडिग थे। तब उसने अपने बेटे को भोजन के लिए पुकारा। वह अपनी मां के पास आ गया। अपने बेटे को जीवित देखकर वह आश्चर्यचकित थी। वह उस साधु के चरणों में नतमस्तक हो गई। तब हनुमान जी ने उसे दर्शन दिया और आशीर्वाद दिया।

पढ़ें ये मंगलकारी 21 नाम :-

1. मंगल,
2. भूमिपुत्र,
3. ऋणहर्ता,
4. धनप्रदा,
5. स्थिरासन,
6. महाकाय,
7. सर्वकामार्थ साधक,
8. लोहित,
9. लोहिताक्ष,
10. सामगानंकृपाकर,
11. धरात्मज,
12. कुंजा,
13. भूमिजा,
14. भूमिनंदन,
15. अंगारक,
16. भौम,
17. यम,
18. सर्वरोगहारक,
19. वृष्टिकर्ता,
20. पापहर्ता,
21. सर्वकामफलदाता।

हर व्यक्ति ऋण/ कर्ज से मुक्ति के लिए हर तरह की कोशिश करता है किंतु कर्ज की यह स्थिति व्यक्ति को तनाव से बाहर नहीं आने देती। इस स्थिति से निपटने के लिए मंगलवार का भौम प्रदोष व्रत बहुत सहायक सिद्ध होता है।


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June 21, 20211min00

 

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न शारीरिक योग आसनों का जितना महत्त्व है उतना ही महत्त्व मन को स्वस्थ एवं हर क्षण प्रसन्न रखने के लिए कर्मयोग का है भगवान श्री कृष्ण ने गीता के निम्न श्लोक में कर्मयोग की विस्तृत विवेचना की है:

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।   

आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो। यह समभाव ही योग कहलाता है।

कर्मयोगी इस नित्य परिवर्तनशील जगत् में रहते हुये समभाव को दृढ़ करने का सतत प्रयत्न करे। इसके लिये उपाय है कर्मों के तात्कालिक फलों के प्रति संग (आसक्ति/ममता/सुख की आशा) का त्याग। कर्मों को कुशलतापूर्वक करने के लिए श्रीकृष्ण ने जिन आसक्तियों का त्याग करने को कहा है वे सब संग शब्द से इंगित की गयी हैं अर्थात् विपरीत धारणायें, झूठी आशायें, दिवा स्वप्न, कर्म फल की चिन्तायें और भविष्य में संभाव्य अनर्थों का भय इन सबका त्याग करना चाहिये।



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