‘गुलाबो सिताबो’- ‘शकुंतला देवी’ ऑनलाइन आईं और सिनेमाघरों की प्रोड्यूसर्स से बड़ी भिड़ंत हो गई

0


पहले यूट्यूब वर्सज़ टिक टॉक और अब ओटीटी बनाम सिनेमाघर. कोरोनावायरस इन्फेक्शन के इस समय में सिनेमाघर बंद हैं. जिन प्रोड्यूसर्स की फिल्में तैयार हैं, वो उसे किसी भी तरह से रिलीज़ करना चाहते हैं. ऐसे में ओटीटी प्लैटफॉर्म का रास्ता लिया है. 14 मई को एमेज़ॉन प्राइम वीडियो ने अनाउंस किया कि शूजीत सरकार की अमिताभ बच्चन-आयुष्मान खुराना स्टारर फिल्म सीधे उनके प्लैटफॉर्म पर रिलीज़ होगी. 12 मई को. अगली अनाउंसमेंट ये आई कि विद्या बालन की ‘शकुंतला देवी’ बायोपिक भी थिएटर्स के बदले सीधे एमेज़ॉन प्राइम पर आएगी. इसके बाद ये कहा जाने लगा कि ये नए दौर की शुरुआत है. और अब वो दिन दूर नहीं जब लोग थिएटर्स में जाना बंद कर देंगे. जैसे मल्टीप्लेक्स, सिंगल स्क्रीन थिएटर्स को खा गया, वैसे ही ओटीटी प्लैटफॉर्म्स थिएटर कल्चर को खत्म कर देंगे. हालांकि अभी दिल्ली दूर है लेकिन इस चीज़ ने फिल्म डिस्ट्रीब्यूटरों और सिनेमाघर मालिकों और मल्टीप्लेक्स चेन्स को नाराज़ कर दिया. सब लोगों ने बारी-बारी से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की. लेकिन फिल्मों की ऑनलाइन रिलीज़ और इसका फैसला लेने वाले प्रोड्यूसर्स के बचाव में प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया उतर आई है.

‘गुलाबो सिताबो’ की डिजिटल रिलीज़ की खबर बाहर आने के बाद मल्टीप्लेक्स चेन आइनॉक्स ने एक स्टेटमेंट जारी किया. इसमें उन्होंने फिल्म प्रोड्यूसर्स को ऐसा दोस्त बताया, जो अच्छे समय में साथ रहते हैं और बुरे समय में छोड़कर चले जाते हैं. और इसलिए अब वो लोग कुछ ऐसे उपाय में लगे हुए हैं, जिससे इन प्रोड्यूसरों से बदला ले सकें. आइनॉक्स के स्टेटमेंट की मोटी बातें आप नीचे पढ़ेंगे-

”आज (14 मई) एक प्रोडक्शन हाउस द्वारा उनकी फिल्म को थिएटर के बजाय सीधे ओटीटी प्लैटफॉर्म पर रिलीज़ करने की गई घोषणा के प्रति आइनॉक्स अपनी नाराज़गी और निराशा जाहिर करता है. दुनियाभर में प्रचलित फिल्म रिलीज़ के तरीके से उलट इस प्रोडक्शन हाउस का फैसला बहुत चिंताजनक है. इस मुश्किल वक्त में अपने साथियों को परस्पर रूप से मददगार संबंधों को खत्म करते देखना परेशान करने वाला है. वो भी तब जब एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चलना समय की मांग है, ताकि हम फिल्म इंडस्ट्री को वापस उसी स्थिति में ले जा सकें, जहां हम (इस विपदा से) पहले थे.

इस तरह की हरकतें परस्पर भागीदारी जैसे माहौल को खराब करती हैं और हमें बताती हैं कि कॉन्टेंट प्रोड्यूसर्स सिर्फ हमारे अच्छे दिनों के साथी हैं. जीवनभर हर दुख-सुख में साथ रहने वाले दोस्त नहीं. ऐसे में आइनॉक्स अपने ऑप्शंस खंगालने के साथ-साथ अपने अधिकारों की रक्षा करने और इन ‘अच्छे दिनों के दोस्तों’ से उनके ही तरीकों से निपटने के लिए मज़बूर है. आइनॉक्स सभी कॉन्टेंट क्रिएटर्स से ये अनुरोध करता है कि फिल्मों को थिएटर्स में चलाने वाले पुराने तरीकों के साथ बने रहे, यही सबके हित में है.”

 


ज़ाहिर तौर पर फिल्मों के ऑनलाइन रिलीज़ होने से सालों पुरानी प्रोड्यूसर, डिस्ट्रिब्यूटर और सिनेमाघर मालिकों की चेन टूट जाएगी. फिल्मों की ऑनलाइन रिलीज़ से प्रोड्यूसर तो अपने पैसे बना लेगा लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर और सिनेमाघरों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. इस बारे में हफिंगटन पोस्ट से बात करते हुए पीवीआर पिक्चर्स के सीईओ कमल ज्ञानचंदानी ने कहा–

”हम ‘गुलाबो सिताबो’ के सीधे स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म पर रिलीज़ होने के फैसले से बहुत निराश हैं. हमने प्रोड्यूसर्स से गुज़ारिश की थी कि वो सिनेमाघरों के खुलने तक अपनी फिल्मों की रिलीज़ रोक लें. और हमें उम्मीद थी कि वो हमारी रिक्वेस्ट मान लेंगे. सिनेमा एक्जीबिशन हमेशा से अलग-अलग तरह के चैलेंज का सामना करता रहा. बीते कुछ सालों में नए डिस्ट्रीब्यूशन प्लैटफॉर्म्स की शुरुआत से लेकर अब ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर फिल्मों की रिलीज़ तक. लेकिन सिनेमाघर अब भी हमारी जनता के प्रेम और सहयोग से खड़े हैं. कोविड 19 की वजह से सिनेमाघरों का बंद होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि जब भी हालात नॉर्मल होंगे, तो हमारी जनता थिएटर्स में सिनेमा देखने ज़रूर जाएगी.”

 

फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ की शूटिंग के दौरान आयुष्मान खुराना और अमिताभ बच्चन.

 

थिएटर चेन्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स की शिकायतों और धमकियों के बाद प्रोड्यूसर्स का पक्ष सामने लेकर आई है उनके हितों के लिए काम करने वाली प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया. आइनॉक्स और पीवीआर जैसे बड़े मल्टीप्लेक्स चेन्स को जवाब देते हुए गिल्ड ने इस मुश्किल वक्त में प्रोड्यूसर्स और उनकी फिल्मों पर काम करने वाले हज़ारों लोगों की दिक्कतें बताई हैं. साथ ही उन्होंने आइनॉक्स के धमकीभरे लहज़े पर भी अपनी आपत्ति दर्ज करवाई. दो पन्ने की स्टेटमेंट में गिल्ड ने क्या कहा, उसका सार हम आपको नीचे बता रहे हैं-

”ये अभूतपूर्व समय है. हम अपने जीवन की सबसे बड़ी स्वास्थ्य और आर्थिक एमरजेंसी से गुज़र रहे हैं. ये पूरी सहानुभूति और समर्थन के साथ फिल्म इंडस्ट्री के एकजुट होने का समय है. क्योंकि इस मुश्किल में प्रोड्यूसर से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर, एक्ज़ीबिटर, दिहाड़ी मजदूर और टेक्निशियन समेत वो हज़ारों लोग शामिल हैं, जिनकी आजीविका किसी न किसी रूप में हमारी इंडस्ट्री पर निर्भर है. ऐसे में हमारे एक्जीबिशन सेक्टर के कुछ सहकर्मियों की ओर से दूसरों के प्रति आने वाले असंवेदनशील मैसेज देखकर निराशा होती है. उन प्रोड्यूसर्स के खिलाफ ‘एक्शन लेने और सबक सिखाने’ जैसी बातें कही जा रही है, जो अपनी फिल्में सीधे ओटीटी प्लैटफॉर्म पर रिलीज़ करने वाले हैं. वो भी उस समय में जब हमारे सिनेमाघर अनिश्चितकाल के लिए बंद हैं. एक्जीबिशन सेक्टर की ही तरह हमारा प्रोडक्शन सेक्टर भी हर दिन करोड़ों रुपए का नुकसान झेल रहा है.”

 


प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया अपने स्टेटमेंट में बताती है कि उन्हें किस प्रकार हर दिन भारी-भरकम नुकसान हो रहा है-

# पूरी साज-सज्जा के साथ फिल्मों की शूटिंग के लिए महंगे सेट्स बनवाए गए थे. फिल्मों की शूटिंग होने के आसार नज़र न आते हुए इन सेट्स को तोड़ना पड़ रहा है. इसे बनवाने के खर्च से लेकर स्टूडियो को इसका किराया देने तक की जिम्मेदारी प्रोड्यूसरों की है. और इंश्योरेंस वाले भी इसे कवर करने से मना कर रहे हैं. इस लॉकडाउन के दौरान जितने भी शूटिंग शेड्यूल कैंसिल हुए हैं, उनके लिए की गईं सभी तरह की बुकिंग के कैंसिलेशन चार्ज भी प्रोड्यूसर्स ही वहन कर रहे हैं.

 

आलिया भट्ट की संजय लीला भंसाली डायरेक्टेड फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ का सेट. ये सेट 80-90 के दशक में मुंबई के कमाठीपुरा इलाके का है. शूटिंग कैंसिल होने की स्थिति में सेट को मेंटेन करना काफी मुश्किल और महंगा पड़ रहा था, इसलिए तोड़ना पड़ा.

 

# फिल्मों पर लगाने के लिए मार्केट से उठाए गए पैसों पर ब्याज बढ़ते जा रहे हैं. और सिनेमाघर किसी भी हालत में अगले कुछ दिनों में खुलते नज़र नहीं आ रहे. दरअसल सिनेमाघर वो आखिरी सेक्टर होंगे, जिन्हें इस सब के बाद दोबारा से खुलने की अनुमति मिलेगी.

# सिनेमाघरों के खुलने के बाद भी आर्थिक हालात सामान्य होने में लंबा समय लगने वाला है. क्योंकि राज्य सरकारें अपने यहां की स्थिति को अच्छी तरह से जांचने-परखने के बाद थिएटर्स को खोलने का फैसला लेंगी. ऐसे में रीजनल सिनेमा से इतर हिंदी फिल्मों के प्रोड्यूसरों को देशभर के थिएटर्स के खुलने का इंतज़ार करना होगा. क्योंकि उनकी फिल्में ऑल इंडिया रिलीज़ के हिसाब से प्लान की गई थीं.

 

शकुंतला देवी बायोपिक के पहले पोस्टर पर फिल्म की लीडिंग लेडी विद्या बालन. फिल्म में विद्या के साथ ‘दंगल’ सान्या मल्होत्रा भी नज़र आएंगी.

 

# अगर इंडिया में थिएटर्स खुल भी जाते हैं, तो बाकी देशों के सिनेमाघरों के खुलने की कोई गारंटी नहीं है. और फिल्मों को विदेशी मार्केट में रिलीज़ करना हिंदी फिल्मों की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. अगर कुछ देशों के थिएटर्स नहीं खुलते हैं, तो प्रोड्यूसर्स के लिए वो भी नुकसान का सबब है.

# अगर सिनेमाघर खुल भी जाते हैं, तो शुरुआत में वहां आने वाले लोगों की संख्या काफी कम रहने वाली है. क्योंकि, 1) पब्लिक सेफ्टी को ध्यान रखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य और ज़रूरी दोनों होगी. 2) लोग शुरू-शुरू में सिनेमाघरों जैसे बंद पब्लिक स्पेस में जाने से कतराएंगे.

 

दिल्ली का मशहूर मल्टीप्लेक्स कनॉट प्लेस में पीवीआर प्लाज़ा (सांकेतिक तस्वीर).

 

# इस सबके अलावा थिएटर्स में रिलीज़ करने के लिए फिल्मों की लंबी कतार लगी हुई होगी. और सबसे ज़रूरी बात ये कि इस वजह से मीडियम या छोटे बजट की फिल्मों को सिनेमाघर में बमुश्किल ही शोज़ मिल पाएंगे. इस चीज़ से उनकी कमाई प्रभावित होगी.

इतनी सारी बातें बताने के बाद गिल्ड कहती है कि जिन प्रोड्यूसर्स ने अपनी फिल्मों पर पहले से ही ढेर सारा पैसा लगाया है और अगर उन्हें ऐसा लगेगा कि वो थिएटर से उतने पैसे नहीं कमा पाएंगे, तो ज़ाहिर तौर पर अपनी इन्वेस्टमेंट की वापसी के लिए किसी दूसरे रास्ते जाएंगे. ताकि वो फिल्म बिज़नेस में बनें रह सकें.

”द प्रोड्यूसर्स गिल्ड जोर देकर कहना चाहती है कि वो पूरी तरह से फिल्मों के थिएटर में रिलीज़ होने के पक्ष में ही हैं. फिल्में सिनेमैटिक अनुभव के हिसाब से ही बनाई जाती हैं, इसलिए उन्हें थिएटर्स में रिलीज़ करना हमारी पहली पसंद होगी. लेकिन ये अलग समय है, उन सभी वजहों से जो हमने आपको ऊपर गिनाईं. इसलिए बेहतर यही होगा कि हम चीज़ों को उनके संदर्भ में देखें. अगर प्रोड्यूसर्स को फिल्में प्रोड्यूस करते रहना है, तो इसके लिए सबसे ज़रूरी ये है कि वो फिल्म बिज़नेस में बने रहें. इसलिए प्रोडक्शन सेक्टर, एक्ज़ीबिशन सेक्टर के साथ मिलकर काम करना चाहेगी. ताकि जब देशभर के थिएटर्स खुलें, तब हम ज़्यादा से ज़्यादो लोगों को सिनेमाघरों तक लाने की कोशिश करें.”

हमने आपको एक्जीबिशन यानी थिएटर मालिकों-मल्टीप्लेक्स चेन्स और प्रोड्यूसर्स दोनों का पक्ष बता दिया. दोनों में से कौन सही है और कौन गलत, इसका चुनाव करने की ज़िम्मेदारी आपकी.




दुनिया में कम ही लोग कुछ मज़ेदार पढ़ने के शौक़ीन हैं। आप भी पढ़ें। हमारे Facebook Page को Like करें – www.facebook.com/iamfeedy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Contact

CONTACT US


Social Contacts



Newsletter