केंद्र सरकार ई-पासपोर्ट लाने की योजना बना रही है. नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर ने इसके लिए रिक्वेस्ट फ़ॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी किया है. इसके ज़रिए सरकार एक ऐसी एजेंसी का चुनाव करना चाहती है, जो इन ई-पासपोर्ट के लिए आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर और सॉल्यूशंस तैयार कर सके.
सरकार ने इसका पायलट प्रोजेक्ट शुरू भी कर दिया है. अंग्रेजी दैनिक इकनॉमिक टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, सरकार 20,000 सरकारी और डिप्लोमैटिक ई-पासपोर्ट ट्रायल बेसिस पर जारी कर चुकी है.
माना जा रहा है कि अगले साल से ये नए ई-पासपोर्ट आम लोगों को भी जारी किए जाने लगेंगे. ऐसे में अगर आप अगले साल नए पासपोर्ट के लिए आवेदन करते हैं या अपना पासपोर्ट रिन्यू कराते हैं, तो बड़ी संभावना है कि आपको ई-पासपोर्ट दिया जाए.
ख़बरों के मुताबिक, चुनी गई एजेंसी एक डेडिकेटेड यूनिट लगाएगी ताकि हर घंटे 10,000 से 20,000 ई-पासपोर्ट जारी किए जा सके. इसके लिए दिल्ली और चेन्नई में आईटी सिस्टम्स लगाए जाएँगे.
लेकिन, ये ई-पासपोर्ट होते क्या हैं?
ई-पासपोर्ट ऐसे पासपोर्ट होते हैं, जिनमें एक इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोप्रोसेसर चिप लगा होती है.
फ़िलहाल नागरिकों को पासपोर्ट दिए जाते हैं, वे पर्सनलाइज्ड होते हैं और उन्हें बुकलेट्स पर प्रिंट किया जाता है.
सामान्य पासपोर्ट और ई-पासपोर्ट में क्या फ़र्क होता है?
एरोस्पेस, डिफेंस, ट्रांसपोर्टेशन और सिक्योरिटी मार्केट्स के लिए इलेक्ट्रिकल सिस्टम्स बनाने वाले और सर्विसेज मुहैया कराने वाले थालिस ग्रुप के मुताबिक़, “इलेक्ट्रॉनिक पासपोर्ट या ई-पासपोर्ट पारपंरिक पासपोर्ट के जैसे ही होते हैं. लेकिन, इनमें एक छोटा इंटीग्रेटेड सर्किट (चिप) लगा होता है. यह चिप पासपोर्ट के कवर या इसके पन्नों पर लगाई जाती है.”
आम पासपोर्ट के मुक़ाबले ज़्यादा सुरक्षित
इस चिप के ज़रिए पासपोर्ट को अधिक डिज़िटल सिक्योरिटी फ़ीचर्स मिलते हैं. इस चिप में पासपोर्ट धारक के बायोमीट्रिक्स भी शामिल होते हैं. साथ ही यह चिप पासपोर्ट की वैधता को भी साबित करने में मददगार होती है. इस चिप में दर्ज सूचनाओं को बदला नहीं जा सकता है. इस तरह से ई-पासपोर्ट्स में फ़र्जीवाड़ा करना मुश्किल है.
बार-बार अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल करने वालों के लिए भी यह फ़ायदेमंद है, साथ ही इमिग्रेशन अधिकारियों को भी ई-पासपोर्ट्स से यात्रियों के बारे में अधिक ठोस और प्रमाणित सूचना मिलती है.
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट और इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (आईएएमएआई) के कंसल्टेंट रक्षित टंडन बताते हैं, “अगर सिक्योरटी के पहलू से देखें तो ई-पासपोर्ट में यूजर की डिज़िटल आइडेंटिटी वेरिफ़ाई होती है. फिजिकल पासपोर्ट में डेटा को स्कैन करके रखना और इस स्कैन्ड डेटा को रिट्रीव करना कितना मुश्किल काम होता है. ई-पासपोर्ट में आपके बायोमीट्रिक से जानकारियाँ वेरिफाई हो जाती हैं.”
अपराधियों के देश छोड़ने पर लगेगी लगाम
ई-पासपोर्ट क्या अपराधियों पर भी लगाम लगाने में कामयाब हो सकता है? रक्षित कहते हैं कि कई दफ़ा अपराधी देश छोड़कर भाग जाने में इस वजह से सफल हो जाते हैं क्योंकि जब तक पुलिस उन्हें एयरपोर्ट पर बाहर जाने से रोकने की लंबी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी करती है, तब तक अपराधी देश से निकल चुके होते हैं.
वे कहते हैं, “जब ई-पासपोर्ट आ जाएँगे तो किसी अपराधी को देश छोड़ने से रोकना एक बटन दबाने के ज़रिए मुमकिन हो जाएगा. साथ ही ऐसे लोग दूसरे देश में भी घुस नहीं पाएँगे, क्योंकि पूरा डेटा डिज़िटल होगा.”
वे कहते हैं, “डार्क नेट पर ऐसे कई लोग हैं, जो फ़र्जी पेपर पासपोर्ट बेच रहे हैं. ई-पासपोर्ट एक अच्छा क़दम है.”

मानकीकरण
पासपोर्ट्स के मानकीकरण का काम आईसीएओ (इंटरनेशल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) करता है, जो यूएन का ही एक हिस्सा है. लेकिन, देशों के पास अपने हिसाब से इन मानकों को लागू करने का अधिकार होता है.
2016 में यह तय हुआ था कि अब से सभी पासपोर्ट मशीन में पढ़े जाने योग्य होने चाहिए. इसके लिए मशीन रीडेबल ट्रैवल डॉक्यूमेंट्स (एमआरटीडी) शब्द का इस्तेमाल किया गया था.
एमआरटीडी का मतलब यह है कि पासपोर्ट के पहले पन्ने के नीचे की दो लाइनों में नाम, एक्सपायरी की तारीख, जारी करने वाला देश जैसी जानकारियाँ हों.
हालाँकि, आईसीएओ ने अभी तक चिप को मानक के तौर पर अनिवार्य नहीं किया है. लेकिन, दुनिया के कई देश अपने पासपोर्ट्स की साख को बढ़ाने के लिए चिप का इस्तेमाल करते हैं.
आईसीएओ के मुताबिक़, दुनिया के 100 से अधिक देश और ग़ैर-राष्ट्र इकाइयाँ (जैसे संयुक्त राष्ट्र) फ़िलहाल ई-पासपोर्ट जारी करते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक़, दुनिया में इस समय क़रीब 49 करोड़ ई-पासपोर्ट सर्कुलेशन में हैं. यूरोप के ज़्यादातर देशों में इसी तरह के ई-पासपोर्ट चलते हैं
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