महाराष्ट्र के बाद अब केरल अपने यहां CBI की एंट्री बैन करने की तैयारी कर रहा है

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केरल सरकार, सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने पर विचार कर रही है. केरल में इस वक्त LDF, CPI (M) और CPI की गठबंधन सरकार सत्ता में है. गठबंधन में शामिल दल चाहते हैं कि सीबीआई पर उसी तरह नियंत्रण की जरूरत है जैसा कुछ अन्य राज्यों में किया गया है. इस मामले में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला वे कहा कि राज्य में सीबीआई पर अंकुश लगाने का कदम आत्मघाती है और इसके जरिए सरकार लाइफ मिशन योजना के भ्रष्टाचार को ढकने की कोशिश कर रही है.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक राज्य के कानून मंत्री और CPI(M) के वरिष्ठ नेता एके बालन ने कहा,

“कई राज्यों ने पहले ही मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली है. CPI(M) और CPI की मांग के बाद केरल भी इस पर विचार कर रहा है. राज्यों ने उन दिनों सीबीआई को समान्य सहमति दी थी जब एजेंसी के पास विश्वसनीयता थी.”

बालन ने आगे कहा,

“हम केंद्रीय एजेंसी की ताकत पर कोई सवाल नहीं कर रहे हैं. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के सेक्शन 6 के अनुसार सीबीआई को मामला दर्ज करने से पहले संबंधित राज्यों से सहमति लेनी होगी. हम राज्य सरकारों के लिए उस सुरक्षा को बनाए रखना चाहते हैं. पहले के वक्त में एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के माध्यम से सीबीआई को मामलों की जांच के लिए राज्यों द्वारा एक सामान्य सहमति दी गई थी. कई राज्यों ने उस सहमति को वापस ले लिया है, और यह विकल्प अब केरल सरकार के सामने भी है.”

 

ये है मामला

इससे पहले सीबीआई ने कांग्रेस विधायक अनिल अकारा की एक शिकायत के आधार पर, राज्य सरकार की संस्था लाइफ मिशन द्वारा कथित विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) उल्लंघन के एक मामले में एक FIR दर्ज की थी. लाइफ मिशन ने इस FIR को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसने इस महीने की शुरुआत में सीबीआई जांच पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा कि लाइफ मिशन FCRA सेक्शन 3 के दायरे में नहीं आता है, जो विदेशी योगदान स्वीकार करने पर रोक लगाता है.

बालन ने कहा कि लाइफ मिशन प्रोजेक्ट के मामले में सीबीआई एक ऐसे क्षेत्र में घुस गई जो उसके अधिकार में नहीं है. उन्होंने कहा,

“जब सीबीआई ऐसी चीजों में हस्तक्षेप करती है तब हम उन्हें चुनौती देने को मजबूर होते हैं. केरल सरकार को उस मामले में हाईकोर्ट से राहत मिल चुकी है.”

 

सीबीआई का दुरुपयोग?

CPI(M) के स्टेट सेक्रेटरी कोडिएरी बालाकृष्णन ने कहा कि पार्टी चाहती थी कि सरकार, राजनीतिक हथियार के रूप में सीबीआई के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी विकल्पों पर गौर करे. उन्होंने कहा,

“कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी सीबीआई के राजनीतिक हथियार के रूप में दुरूपयोग को रोकने के पक्ष में हैं. संघीय सिद्धांतों के अनुसार राज्यों को राज्य-स्तरीय मुद्दे में जांच एजेंसी पर फैसला लेने का पूरा अधिकार है”

CPI के राज्य सचिव कनम राजेंद्रन ने कहा,

“हम सीबीआई के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एजेंसी को केवल राज्य की सहमति से मामले उठाने चाहिए.”

विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला कहते हैं,

“CPI(M) को अंदाजा है कि जांच हुई तो सीएम पिनाराई विजयन भी सीबीआई जांच के घेरे में आ जाएंगे. इस योजना में जो भ्रष्टाचार हुआ है उसकी जानकारी सीएम को भी थी. दूसरे राज्यों में हो सकता है कि सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा हो लेकिन केरल में तो एजेंसी को भ्रष्टाचार की जांच से रोका जा रहा है. जांच को रोकने की ये कोशिश केरल के लोगों को चुनौती है.”

आपको बता दें कि इस मामले में शनिवार 24 अक्टूबर को कांग्रेस और भाजपा ने केरल सरकार की आलोचना की. दोनों पार्टियों ने एक स्वर में आरोप लगाया कि सरकार भ्रष्टाचार को छुपाना चाह रही है. कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने कहा कि सरकार जांच से डरी हुई है.

 

सामान्य सहमति होती क्या है?

दरअसल सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के विभाग और कर्मचारी हैं. राज्य सरकार से जुड़े किसी मामले की जांच अगर सीबीआई करना चाहे तो उसे राज्य सरकार से इजाजत लेनी होगी. एक सहमति किसी खास केस से जुड़ी होती है और दूसरी सहमति सामान्य होती है. सामान्य सहमति खत्म होने का अर्थ है कि किसी सीबीआई वाले को जो अधिकार मिले हैं वो राज्य में घुसते ही खत्म हो जाते हैं और वह एक साधारण नागरिक बन जाता है. हाल ही में महाराष्ट्र ने ऐसा कदम उठाया था. उससे पहले पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और सिक्किम भी सामान्य सहमति सीबीआई से वापस ले चुके हैं.




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