रंग लाया दिल्ली के तीन दोस्तों का कॉफी स्टार्टअप

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दिल्ली के तीन दोस्तों अश्वजीत सिंह, अजीत थांदी और अरमान सूद ने ‘स्लीपी आउल’ नाम से कॉफी स्टार्टअप क्या शुरू किया, कुछ वक्त बाद ही उन्हें साढ़े तीन करोड़ की फंडिंग भी मिल गई और कारोबार चल निकला।

 

तीन दोस्तों ने अपनी पढ़ाई और काम के दिनों में अच्छी कॉफी न मिलने की दिक्कत को झेलते हुए मसहसूस किया क्यों न वे तीनो मिलकर खुद ही ये काम शुरू कर दें। दो साल पहले 2016 में उन्होंने ‘स्लीपी आउल’ नाम से कॉफी बनाने का स्टार्टअप शुरू कर दिया।

नवाचार यानी स्टार्ट अप आज चौतरफा कामयाबियों की नित-नई दास्तानें सुना रहा है। तमाम युवा इसमें सक्सेस हो रहे हैं। देखते ही देखते अनेक प्रयोगधर्मी जीवन के विविध कार्यक्षेत्रों में लाखपति-करोड़पति बन चुके हैं। खेती-किसानी, इंडस्ट्री, औद्यानिकी, बाजार, एजुकेशन आदि कोई क्षेत्र आज स्टार्टअप से अछूता नहीं रहा। आज जबकि ब्रू कॉफी के कॉन्सेप्ट को बरीस्ता, कैफे कॉफी डे, स्टारबक्स जैसे ब्रांड मशहूर कर चुके है, कॉफी मार्केट में फ्रेश ब्रू और सेवेन बीन्स जैसे स्टार्टअप भी अपना हाथ आजमा रहे हैं, चाय की तरह कॉफी भी धीरे-धीरे खास पसंद बनती जा रही है, ऐसे में नए फ्लेवर और फॉर्मेट लाने का ये सही वक्त माना जा रहा है।

इस वक्त को पहचाना है तीन युवाओं ने। दिल्ली में तीन दोस्तों अश्वजीत सिंह, अजीत थांदी और अरमान सूद का एक स्टार्टअप ‘स्लीपी आउल’ कॉफी को एक नए ट्विस्ट के साथ पेश कर रहा है। यह स्टार्टअप कॉफी को एक इजी टू मेक और इजी टू ड्रिंक बेवरेज बनाना चाहता है। अच्छी कॉफी मिलना और बनाना, दोनों ही आसान नहीं है। तीन दोस्तों ने अपनी पढ़ाई और काम के दिनों में अच्छी कॉफी न मिलने की दिक्कत को झेलते हुए मसहसूस किया क्यों न वे तीनो मिलकर खुद ही ये काम शुरू कर दें। दो साल पहले 2016 में उन्होंने ‘स्लीपी आउल’ नाम से कॉफी बनाने का स्टार्टअप शुरू कर दिया।

गौरतलब है कि भारत में कॉफ़ी का उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में होता है। यहां कुल 8200 टन कॉफ़ी का उत्पादन होता है जिसमें से कर्नाटक राज्य में अधिकतम 53 प्रतिशत, केरल में 28 प्रतिशत और तमिलनाडु में 11 प्रतिशत उत्पादन होता है। भारतीय कॉफी दुनिया भर की सबसे अच्छी गुणवत्ता की कॉफ़ी मानी जाती है, क्योंकि इसे छाया में उगाया जाता है, इसके बजाय दुनिया भर के अन्य स्थानों में कॉफ़ी को सीधे सूर्य के प्रकाश में उगाया जाता है। भारत में लगभग 250000 लोग कॉफ़ी उगाते हैं; इनमें से 98 प्रतिशत छोटे उत्पादक हैं। आज से एक दशक पहले भारत का कॉफ़ी उत्पादन दुनिया के कुल उत्पादन का केवल 4.5 प्रतिशत था। आज लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा निर्यात हो रहा है। निर्यात का 70 प्रतिशत हिस्सा जर्मनी, रूस, स्पेन, बेल्जियम, स्लोवेनिया, संयुक्त राज्य, जापान, ग्रीस, नीदरलैंड्स और फ्रांस को भेजा जा रहा है। भारतीय कॉफी को ‘भारतीय मानसून कॉफ़ी’ भी कहा जाता है। इसका स्वाद पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। पेसिफिक हाउस का फ्लेवर इसकी विशेषता है।

दिल्ली के तीन दोस्तों अश्वजीत सिंह, अजीत थांदी और अरमान सूद ने अपने स्टार्टअप की शुरुआत में 12 लाख रुपए जोड़-जुटाकर ‘स्लीपी आउल’ सेटअप लगाया। यह राशि उन्होंने खासकर निजी सेविंग और अपने परिवारों से इकट्ठी की। काम शुरू हो जाने के बाद उन्हें डीएसजी पार्टनर की 3.5 करोड़ रुपये की फंडिंग से मदद मिली। कंपनी ने इस पूंजी का इस्तेमाल पहुंच बढ़ाने और प्रोडक्ट डेवलेपमेंट में किया। स्लीपी आउल कॉफी अब तक 25 हजार से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंच चुकी है। साल-दर-साल कंपनी 100 फीसदी ग्रोथ रिकॉर्ड कर रही है। उसका लक्ष्य है, दो साल में रिटेल स्टोर प्रेसेंस को मौजूदा सौ स्टोर से बढ़ाकर एक हजार के आकड़े तक ले जाना।

तीनों दोस्त अपने इस कारोबार को एक यूनिक ब्रांड में तब्दील करना चाहते हैं। वे नए-नए फ्लेवर कॉफी रेंज उपलब्ध कराने में जुटे हुए हैं। चूंकि तीनो दोस्तों ने अपने स्टार्टअप की शुरुआत दिल्ली में की है, इसलिए ये जानना भी रोचक होगा कि देश में पहला भारतीय कॉफ़ी हाउस नयी दिल्ली में 27 अक्टूबर 1957 को स्थापित किया गया था। धीरे-धीरे भारतीय कॉफी हाउस की श्रृंखला का विस्तार पोपोरे देश में हो गया। 1958 के अंत तक पोंडिचेरी, थ्रिसुर, लखनऊ, नागपुर, जबलपुर, मुम्बई, कोलकाता, इलाहाबाद, तेलीचेरी और पुणे में इसकी शाखाएं खोली जा चुकी थीं। देश में ये कॉफी हाउस 13 सहकारी समितियों के द्वारा चलाये जाते हैं, जिनका नियंत्रण कर्मचारियों के द्वारा चयनित प्रबंधन समितियों द्वारा किया जाता है। सहकारी समितियों का संघ एक नेशनल अम्ब्रेला संगठन है, जिसका नेतृत्व इन सोसाइटियों द्वारा किया जाता है।

कुछ लोग तो कॉफी के ऐसे दीवाने होते हैं, बिना देखे सिर्फ पी कर ही बता देते हैं कि वह कॉफी किस ब्रांड की है। दुनिया की सबसे महंगी कॉफी पूरी दुनिया में ‘सिवेट कॉफी’ के नाम से मशहूर है। उसे बिल्ली की पॉटी से बनाया जाता है। इस कॉफी का स्वाद जितना जायकेदार होता है, उससे ज्यादा कीमती है। इसके लिए बिल्ली का उपयोग किया जाता है। इसका प्रोसेस काफी लंबा होता है, इसलिए इसकी कीमत भी आसमान छूती है। इसका उत्पादन सुमात्रा के इंडोनेशियाई द्वीप पर किया जाता है, लेकिन अब भारत में भी ये अनोखी कॉफी मिल रही है। इस कॉफ़ी के एक कप की कीमत 11 हजार रुपए होती है। भारत में ये कॉफी आठ हजार रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रही है, जबकि खाड़ी देशों और यूरोपीय देशों में इसकी कीमत बीस से पचीस हजार रुपए प्रति किलोग्राम है। कर्नाटक में ‘सिवेट कॉफी’ का सीसीए (Coorg Consolidated Commodities) नाम से हाल ही में स्टार्टअप शुरू हुआ है। ये स्टार्टअप इस कॉफी को ‘ऐनीमैन’ नाम के ब्रांड के साथ बेच रहा है।

 

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