यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.
निधि की बेटी तीन साल की हो गई थी. पर वो अपनी उम्र के बाकी बच्चों से थोड़ी अलग थी. जैसे वो निधि या अपने पापा से आंख नहीं मिलाती थी. जब कोई उसका नाम पुकारता तो वो रिस्पॉन्ड नहीं करती थी. अमूमन बच्चे अपना नाम सुनकर थोड़ी हरकत करते हैं. पर निधि की बेटी ऐसा नहीं करती थी. इसके अलावा रोशनी, आवाज़ और टच से वो बहुत भागती थी. धीरे-धीरे निधि ने नोटिस किया कि उसकी बेटी एक ही चीज़ बहुत देर तक करती रहती थी. जैसे कूदना शुरू करती थी तो कूदती ही रहती थी. हाथ हिलाना, झूलना. ये सब शुरू करती तो रुकती नहीं. एकदम से बहुत हाइपर हो जाती थी. तब उसे संभालना मुश्किल हो जाता.
निधि के दोस्तों ने उसको डॉक्टर से मिलने की सलाह दी. निधि को ये बात अच्छी नहीं लगी. पर किसी तरह वो तैयार हुई. अपनी बेटी को दिखाया. पता चला वो ऑटिस्टिक है. यानी उसे ऑटिज़्म है. अब ये ऑटिज़्म क्या होता है और क्यों होता है. ये पेरेंट्स के लिए जानना ज़रूरी है. तो पहले वो जान लेते हैं.
क्या होता है ऑटिज़्म?
-ऑटिज़्म पैदा होने के समय या ठीक बाद शुरू होने वाला एक डिसऑर्डर है
-ये ज़िंदगी भर रहता है
-ऑटिज़्म में बच्चे को कुछ भी सीखने में तकलीफ़ होती है
-आसपास के वातावरण में सहज होने में परेशानी होती है
-लोगों से संपर्क बनाने में परेशानी होती है
कारण:
-जेनेटिक फैक्टर
-प्रीनेटल फेज़. अगर मां को प्रेग्नेंसी के पहले ट्राईमेस्टर में ब्लीडिंग हो गई या बच्चे ने गर्भ में एमनियोटिक फ्लूइड ले लिया
-मां के अंदर एंटीबॉडी बनने लगीं
-शरीर में कुछ तरह के केमिकल ज़्यादा बनने से भी ऑटिज्म होता है
ऑटिज़्म क्या होता है, ये तो आपका पता चल गया. अब इसके क्या लक्षण हैं, ये जान लीजिए. क्योंकि जितना जल्दी आप अपने बच्चे को समझ जाएं, उतना अच्छा है. साथ ही ऑटिज़्म का क्या कोई इलाज है?
लक्षण:
-ऑटिज़्म दिमाग से संबंधित और विकास की अवधि के दौरान होने वाला विकार है
-तीन प्रमुख लक्षण देखे जाते हैं
-सामाजिक व्यवहार न कर पाना
-संपर्क न कर पाना
-कुछ क्रियाओं को बार-बार दोहराना
-तीन साल से पहले इस विकार को हम पहचान सकते हैं
-पहचानने के कई तरीके हैं. आंखों से आंखें न मिला पाना प्रमुख लक्षण बन जाता है
-दूसरे बच्चों से मेलजोल न कर पाना
-आवाजों से डर जाना
-टच से डर जाना
-बैलेंस नहीं कर पाना
इलाज:
-ऑटिज़्म का इलाज पूरी तरह संभव नहीं हो पाया है. पूरे जीवन रहने वाली अवस्था है
-कई तरह की थैरेपी से अच्छा असर देखने को मिलता है
-व्यवहार की प्रॉब्लम आती है तो बिहेवियर थैरेपी है
-पढ़ाई के लिए स्पेशल एजुकेशन है
-इन्द्रियों की परेशानी से बचाने के लिए भी थैरेपी है
-संपर्क की प्रॉब्लम से डील करने के लिए स्पीच थैरेपी है
-असर के लिए जल्दी से जल्दी लक्षणों को पहचानना ज़रूरी है
मां-बाप के लिए ज़रूरी है कि वो अपने बच्चे के बर्ताव को इग्नोर न करें. कई बार आप मानने के लिए तैयार नहीं होते कि आपके बच्चे को थोड़ी मदद की ज़रूरत है. ऐसा न करके आप उसकी दिक्कतें और बढ़ा रहे हैं. जो आपके बच्चे के साथ ज्यादती है. उसे दूसरे बच्चों की तरह बनने, बिहेव करने के लिए फ़ोर्स मत करिए. और उस चक्कर में अपने बच्चों की ज़रूरतों को इग्नोर मत करिए. इसलिए अगर आपको अपने बच्चे में ऑटिज़्म के कोई लक्षण दिखें, तो प्रोफेशनल हेल्प ज़रूर लीजिए.
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