दिसंबर में जन्मे लोग भाग्यशाली होने के साथ-साथ काफी बुद्धिमान भी होते हैं. इस महीने पैदा हुए लोगों की कई क्वालिटी उन्हें बाकियों से बेहतर बनाती हैं. भारत में जन्मी कई महान शख्सियत खुद इस बात प्रमाण हैं. कई चर्चित हस्तियों का जन्म भारत में हुआ है. आइए जानते हैं दिसंबर के महीने में पैदा होने वाले लोगों के स्वभाव की 10 खास बातें.
पैदाइशी लीडर- अगर इन्हें कहीं भी लीड करने को मिले तो ये बेहतर लीडर और मैनेजर साबित होते हैं. टीम को संभालना हो या किसी भी परिस्थिति से निपटना हो, ये हर चीज बड़ी आसानी से संभाल सकते हैं. इनकी तार्किक क्षमता इन्हें महान बनाती है. ये हर चीज के अच्छे औऱ बुरे पहलू को अच्छी तरह समझते हैं.
क्रिएटिव– इस महीने जन्मे लोग बहुत क्रिएटिव होते हैं. इनका रचनात्मक स्वभाव इन्हें किसी भी काम को एक अलग तरीके से करने के लिए मजबूर करता है, जिस वजह से परिणाम भी अच्छा आता है. इस राशि के अधिकतर लोग अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और कलाकार होते हैं. ये धन कमाने के मामले में भी बहुत भाग्यवान माने जाते हैं.
भाग्यशाली– इस महीने में पैदा होने वाले लोग काफी भाग्यशाली भी माने जाते हैं. मेहनत के साथ-साथ किस्मत भी इनका साथ देती हैं. चाहे पर्सनल लाइफ हो या प्रोफेशनल हर मामले में लकी साबित होते हैं.
ईमानदार– दिसंबर महीने में पैदा हुए लोग बहुत ही ईमानदार होते हैं. ये लाइफ में गलत तरीकों का कभी इस्तेमाल नहीं करते हैं. उन्हें पता होता है कि बेईमानी या झूठ बोलकर उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा. ये अपने विश्वासों और नैतिक मूल्यों के प्रति बेहद दृढ़ रहते हैं. इन्हें इन मूल्यों से कोई डिगा नहीं पाता है.
एनर्जेटिक– इस महीने में पैदा हुए लोग बहुत ऐक्टिव रहते हैं. ये जो भी काम करते हैं, उसमें अपनी पूरी एनर्जी लगा देते हैं. इनके अंदर अपने प्रोफेशन के प्रति गजब उत्साह रहता है. महात्वाकांक्षी होने के साथ-साथ ये दूसरों की मदद भी खूब करते हैं. इसी खासियत की वजह से ये एक अच्छे लीडर बन पाते हैं.
डाउन टू अर्थ- इन्हें बहुत लग्जीरियस लाइफ की आकांक्षा नहीं होती है. इन्हें छोटी-छोटी चीजों जैसे दोस्तों, प्यार, हंसी में ही खुशी मिल जाती है. ये हर पल को जीने में यकीन रखते हैं. इनकी कंपनी में रहना किसी वरदान से कम नहीं है.
सीक्रेटिव- इन्हें अपना पर्सनल स्पेस बहुत प्यारा होता है. ये हर किसी से अपनी फीलिंग्स के बारे में बातें नहीं करते हैं. ये कुछ चुनिंदा लोगों से ही अपनी निजी बातें साझा करते हैं जिन पर इन्हें बहुत भरोसा होता है.
उदार- दिसंबर में पैदा हुए लोग बहुत ही उदार प्रकृति के होते हैं. लेकिन इनके इसी स्वभाव का कई लोग फायदा उठाने लगते हैं. इन्हें बहुत देर से एहसास होता है कि हर किसी के लिए दिलदारी दिखाना सही नहीं है.
जिद्दी- हर किसी के व्यक्तित्व में नकारात्मक पक्ष भी होता है. दिसंबर में पैदा होने वाले लोग जिद्दी होते हैं और कई बार ये अपनी मान्यताओं और विश्वासों से अलग चीजों को स्वीकार नहीं करते हैं. कई बार खुद गलत होने के बावजूद भी खुद को सही ही मानते हैं. हालांकि ये दूसरों पर अपनी चीजें नहीं थोपते हैं.
वफादार– दिसंबर में पैदा हुए लोगों पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं. अगर आप एक बार इनसे आपकी अच्छी दोस्ती हो गई तो आपको पता होता है कि ये जिंदगी भर आपके साथ खड़े रहते हैं. ये जो कुछ बोलते हैं, उसमें बिल्कुल झूठ नहीं होता है. चिकनी-चुपड़ी बातें इन्हें करना नहीं आता है.
कोरोना वायरस की वजह से घरों में लंबे समय तक रहने के बाद अब लोग घूमने फिरने के लिए बाहर निकलने लगे हैं. इस समय मालदीव (Maldives) लोगों का पसंदीदा जगह बना हुआ है. सोशल मीडिया पर कई सेलेब्रिटीज मालदीव में छुट्टियां मनाते हुए अपनी तस्वीरें शेयर कर रहे हैं. यहां हम आपको दिखाने जा रहे मालदीव की ऐसी तस्वीरें जिसे देखकर आप भी यहां जरूर घूमना चाहेंगे.
ट्री टॉप डाइनिंग से लेकर अंडरवाटर विला जैसी खूबसूरत चीजों की वजह से मालदीव को लेकर पर्यटकों में खासा क्रेज है. खास बात ये है कि यहां पर्यटकों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखा जा है जिसकी वजह से भी लोग इस समय यहां छुट्टियां मनाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
पर्यटकों के लिए मालदीव 15 जुलाई को खोल दिया गया था और तबसे यहां 57,000 से भी अधिक पर्यटक आ चुके हैं. यहां आने से पहले पर्यटकों को अपनी Covid-19 टेस्ट की निगेटिव रिपोर्ट दिखानी होगी. साथ ही एक ऑनलाइन डिक्लेरेशन फॉर्म भी भरना होगा.
मालदीव में रिजॉर्ट में सफाई और कॉन्टैक्टलेस चेक-इन का खास ख्याल रखा जा रहा है. एकांत और यहां की खूबसूरती पर्यटकों को अपनी तरफ खींच लेती है.
यहां कुछ रिजॉर्ट में पर्यटकों के लिए खास ट्री टॉप डाइनिंग की सुविधा उपलब्ध है. इसमें बांस से बने रेस्टोरेंट को घोंसले का लुक दिया जाता है जिसमें बैठकर लोग खाने के साथ-साथ खूबसूरत नज़ारों का भी लुत्फ ले सकते हैं.
यहां रिजॉर्ट में पर्यटकों के लिए स्पा ट्रीटमेंट और योगा क्लास की भी सुविधा उपलब्ध है. पूल, क्लब हाउस, विला और बीच ये सारी चीजें पर्यटकों को यहां खूब पसंद आ रही हैं.
मालदीव में स्थित द मुराका अंडरवाटर विला का भी पर्यटकों में बहुत क्रेज है. इसमें पानी के 16 फीट अंदर एक मास्टर बेडरूम है जिसके अंदर से समुद्री जीवों को बिल्कुल पास से देखा जा सकता है. इस विला में इनडोर और आउटडोर लाउंज, प्राइवेट पूल और डूबते सूरज की खूबसूरती को देखने के लिए खास बेडरूम की सुविधा है. VIP पैकेज में यहां पर्सनल बटलर और शेफ की भी सुविधा उठा सकते हैं.
सोशल डिस्टेंसिंग वेकेशन को ध्यान में रखते हुए फिनोल्हू जैसे रिजॉर्ट में बीच बबल टेंट लगाए गए हैं. इसमें पर्यटक पारदर्शी बेडरूम से समुद्र का नजारा ले सकते हैं. इसमें प्राइवेट बारबेक्यू की खास सुविधा है. इतना ही नहीं मालदीव आने वाले पर्यटकों के मनोरंजन का भी खास ख्याल रखा जा रहा है और मूनलाइट सिनेमा की सुविधा दी जा रही है.
मालदीव आने वाले पर्यटक स्पीड बोट की सवारी जरूर करते हैं. यहां स्पीड बोट कराने वाले कुछ रिजॉर्ट सोशल डिस्टेंसिंग के साथ और भी कई एक्टिविटी कराते हैं. इसके अलावा पर्यटकों के लिए प्राइवेट लंच-डिनर, स्पा ट्रीटमेंट और मूवी नाइट का भी इंतजाम कराते हैं.
छुट्टियां ही नहीं भीड़भाड़ से दूर कहीं एकांत में जाकर काम करने वालों के लिए भी मालदीव बेस्ट ऑप्शन है.
मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान का आज बर्थ-डे है. उनके कोरियोग्राफ किए हुए गानों के स्टेप्स पर डांस करती हुई हम जैसी लड़कियां बड़ी हुईं. जिसे आइकन कहा जाता है, सरोज खान उन चंद लोगों में से थीं जिन्होंने परदे के पीछे रह कर भी कमाल रचा. कोरियोग्राफी के लिए उन्हें आठ फिल्मफेयर अवॉर्ड्स मिल चुके थे, जो इस कैटेगरी में हाइएस्ट हैं. कोई उनके करीब तक नहीं है. उनके कुछ ऐसे ही कोरियोग्राफ किए हुए गाने, जो बेहद पॉपुलर हुए, आप यहां देख सकते हैं. साथ ही उससे जुड़ी कुछ रोचक जानकारी भी पढ़ लीजिएगा. 71 साल की उम्र में इसी साल उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.
1. चने के खेत में
फिल्म:अंजाम (1994)
किस पर फिल्माया गया: माधुरी दीक्षित
इस गाने का हुक स्टेप बहुत पॉपुलर हुआ. हुक स्टेप उसे कहते हैं जो गाने में बार-बार रिपीट होता है. चने के खेत में लाइन पर माधुरी जो एक्शन करती हैं, वो आज भी करने की कोशिश करते हुए लोग देखे जा सकते हैं. (दिखने में आसान है, करने में नहीं).
2. तम्मा तम्मा लोगे
फिल्म: थानेदार (1990)
किस पर फिल्माया गया: संजय दत्त, माधुरी दीक्षित
इस गाने के बारे में सरोज खान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी एक सहेली ने आकर संजय दत्त की तारीफ की थी. कि गाने में वो बहुत अच्छे लगे. मैंने उसे बताया कि गाने में तो माधुरी भी थी. उसने कहा कि उसने माधुरी को तो नोटिस ही नहीं किया. मैं यकीन नहीं कर पाई. ये अचानक से हुआ था.
3. निम्बूड़ा निम्बूड़ा
फिल्म: हम दिल दे चुके सनम (1999)
किस पर फिल्माया गया: ऐश्वर्या राय
इस गाने के लिए सरोज खान को बेस्ट कोरियोग्राफी का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था. ये गाना एक राजस्थानी लोकगीत की तर्ज पर बना है. ओरिजिनल गाने का शीर्षक निम्बूड़ा था जिसे राजस्थान के मांगणियार समुदार के गाजी खान बरना ने पॉपुलर किया था.
4. डोला रे डोला
फिल्म: देवदास (2002)
किस पर फिल्माया गया: माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय
इस गाने को लिखने में डायरेक्टर संजय लीला भंसाली को हफ्ते भर का समय लग गया. क्योंकि वो इसकी हर लाइन परफेक्ट करना चाहते थी. इस गाने की शूटिंग के दौरान भारी झुमकों की वजह से ऐश्वर्या राय के कानों से खून निकलना शुरू हो गया था. लेकिन उन्होंने किसी को बताए बिना शूटिंग जारी रखी.
5. हमको आजकल है
फिल्म: सैलाब (1990)
किस पर फिल्माया गया: माधुरी दीक्षित
इसमें लीड सिंगर ने सिर्फ एक लाइन गाई है. ‘हमको आजकल है इंतज़ार, कोई आए, ले के प्यार’. बाकी सबकुछ कोरस गाता है. कोरस के तमाम सवालों का जवाब माधुरी इस एक ही बात से देती है. ये कुछ अलग प्रयोग था, जो बेहतरीन बन पड़ा था.
6. ये इश्क हाय
फिल्म: जब वी मेट (2007)
किस पर फिल्माया गया: करीना कपूर
इस गाने का एक कवर सर्बिया नाम के देश के एक गाने में इस्तेमाल हुआ है. नेमम एलाना. इस फिल्म की एक ख़ास बात ये है कि इसका टाइटल पॉपुलर वोट से डिसाइड हुआ था. उस समय इंटरनेट इतना पॉपुलर नहीं था. तो अख़बारों में भी ऐड छपवाए गए थे और पब्लिक से उनकी राय मांगी गई थी. दूसरे ऑप्शन्स थे इश्क वाया भटिंडा और पंजाब मेल.
7. तबाह हो गए
फिल्म:कलंक (2019)
किस पर फिल्माया गया: माधुरी दीक्षित
इस गाने के साथ सरोज खान ने रेमो डिसूजा के साथ कोलैबोरेट किया था. और उनकी फेवरेट स्टूडेंट माधुरी तो थी हीं. पूरे गाने को कोरियोग्राफ करने में दो दिन लगे थे. इसके आखिर में जो क्लाइमेक्स शॉट है, वो एक ही टेक में पूरा किया गया था. इसमें माधुरी ने लगातार दस चक्कर लिए थे.
8. हवा हवाई
फिल्म: मिस्टर इंडिया (1987)
किस पर फिल्माया गया: श्रीदेवी
इस गाने को गाने वाली कविता कृष्णमूर्ति ने बताया कि ये गाना वो नहीं गाने वाली थीं. उन्होंने गाना सिर्फ डब किया था. लेकिन कम्पोजर लक्ष्मीकांत जी ने उन्हें बताया कि उनकी आवाज़ ही इस गाने के लिए इस्तेमाल की जाएगी, और इसे दुबारा रिकॉर्ड नहीं किया जाएगा.
9. धक-धक करने लगा
फिल्म: बेटा (1992)
किस पर फिल्माया गया: माधुरी दीक्षित , अनिल कपूर
फिल्म के डायरेक्टर और को प्रोड्यूसर इंद्रा कुमार ने ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ को दिए इंटरव्यू में बताया कि इस गाने की शूटिंग के लिए उन्होंने छह दिन प्लैन किए थे. लेकिन माधुरी के पास डेट्स नहीं बची थीं. तो इस पांच मिनट के गाने के पहले ढाई मिनट तीन दिन में और बाकी का गाना एक रात में शूट हुआ था.
10. चोली के पीछे
फिल्म: खलनायक (1993)
किस पर फिल्माया गया: नीना गुप्ता, माधुरी दीक्षित
इस गाने के लिए ना सिर्फ सरोज खान को बेस्ट कोरियोग्राफी के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था, बल्कि इस गाने को गाने वाली अलका याग्निक और इला अरुण को भी बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर का अवॉर्ड मिला था. इस गाने पर बहुत बवाल हुआ था और इसे बैन भी कर दिया गया था. लेकिन बाद में इसे वापस लाया गया.
सरोज खान की लिगेसी उनके गानों में मौजूद रहेगी. आने वाले कई सालों तक छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर उनकी मांओं तक उनके स्टेप्स पर थिरकती दिखेंगी. गाने बदलते रहेंगे, सरोज और उनका नृत्य के लिए प्रेम हमेशा मौजूद रहेगा.
मनोज कुमार केवी एक एमबीबीएस स्नातक हैं और कोविड-19 के फ्रंटलाइन वर्कर्स में से एक हैं, जो कर्नाटक के गडग जिला अस्पताल में डॉक्टर के रूप में कार्यरत हैं। उनकी मां ने उनकी परवरिश की, जिन्होंने एक दुर्घटना में अपने पिता को खोने के बाद एक कृषि मजदूर के रूप में काम किया था।
एक युवा लड़का होने के बाद से डॉक्टर बनने का उनका दृढ़ निश्चय था। 14 साल की उम्र में, मनोज एक जानलेवा स्वास्थ्य स्थिति से बच गया जिसने उनके संकल्प को आगे बढ़ाया। हालांकि, शिबुलाल फैमिली फिलेंथ्रॉफिक इनिशियेटिव से उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम, विद्यादान के समर्थन के बिना उनके सपने को साकार करना मुश्किल था।
वह उच्च अध्ययन के लिए धन की आवश्यकता में 30,000 आवेदकों में से है, जिसमें से 1,000 का चयन किया जाता है।
कुमारी शिबूलाल, 1999 में स्थापित शिबुलाल फैमिली फिलेंथ्रॉफिक इनिशियेटिव (SFPI) की फाउंडर और चेयरपर्सन कहती हैं, “कई साल पहले कर्नाटक में विद्यादान कार्यक्रम में शामिल होने के दौरान, मनोज ने बताया कि वह अन्य लोगों की ज़िंदगी को डॉक्टरों की तरह बचाना चाहते थे जिन्होंने उन्हें बचाया और उनकी माँ को भी एक आरामदायक जीवन प्रदान किया। आज, वह दोनों कर रहे हैं।”
वह कहती है, इसके पीछा मकसद है कि कम उम्र के बच्चों को एक समग्र शिक्षा देने में मदद करना है जो उन्हें अपने समुदायों की मदद करने में सक्षम बनाएगा। परोपकारी संगठन ने एक और पहल अंकुर की शुरूआत, बेंगलुरू और कोयम्बटूर में कैम्पस के साथ सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल समिता एकेडमी में एक छात्र आवासीय छात्रवृत्ति के रूप में की।
इन वर्षों में, संगठन ने 2012 में नेतृत्व विकास के लिए शिक्षालोकम और एडुमेंटम, 2015 में शिक्षा में सामाजिक उद्यम के लिए एक ऊष्मायन सहित कई कार्यक्रमों के साथ काम किया है। साथिया उन छात्रों के लिए एक और कार्यक्रम है जो आतिथ्य में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं।
जीवन संवारना
कहा जाता है कि एक हजार मील की यात्रा एक कदम के साथ शुरू होती है। SFPI के लिए, विद्यादान कार्यक्रम केरल में दो छात्रों को छात्रवृत्ति के साथ शुरू हुआ। अब इसकी देखभाल के तहत 4,300 छात्र हैं। पिछले 20 वर्षों में, कार्यक्रम ने पूरे भारत के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के 17,000 से अधिक मेधावी बच्चों की मदद की है।
इन बच्चों ने विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में 230 डॉक्टरों और 940 इंजीनियरों के साथ प्रमुख कार्यक्रम पर मंथन किया है। अपनी शिक्षा के वित्तपोषण के अलावा, यह सामाजिक और संचार कौशल और कैरियर परामर्श सहित समग्र विकास के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करता है।
10 राज्यों में मौजूद, वह कहती हैं कि उनके कक्षा दस के परिणाम के आधार पर विद्यादान के लिए चयन प्रक्रिया सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है। कुमारी ने कहा, “हमारी योजना प्रत्येक राज्य से 100 छात्रों को लेने की है लेकिन हमेशा 100 से अधिक योग्य छात्र होते हैं।”
यह तब है जब उन्होंने प्रायोजकों – दोनों व्यक्तियों और कॉरपोरेट्स – को बोर्ड पर लाने के लिए इच वन, टीच वन की शुरुआत की और हर साल एक हजार अतिरिक्त छात्रों की मदद करने में सक्षम रही है। कुमारी का कहना है कि प्रायोजक छात्रों को सीधे पैसा भेज सकते हैं और संगठन केवल चयन प्रक्रिया में मदद करता है। इसमें UST Global, Flex India, Fanuc India और ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग भी देते हैं और अक्सर चयन प्रक्रिया में भी बैठते हैं।
लिखित परीक्षा और इंटरव्यू राउंड के लिए पात्र होने के लिए, छात्र की वार्षिक पारिवारिक आय 2 लाख रुपये से कम होनी चाहिए और उसने दसवीं कक्षा में कम से कम 95 प्रतिशत हासिल किया हो।
कुमारी कहती हैं, “उनके पेट में आग है। और हम साक्षात्कार के दौरान उत्साह देख सकते हैं जहां 99 प्रतिशत छात्र दिखाते हैं कि वे कुछ करना चाहते हैं और अपने परिवार के सदस्यों की मदद करना चाहते हैं।”
आईआईएम-कोझिकोड के साथ साझेदारी में संगठन द्वारा किए गए एक हालिया सर्वे से पता चला है कि अधिकांश लाभार्थी अपनी शिक्षा पूरी करने के दो साल के भीतर अपने परिवारों को गरीबी से ऊपर उठाने में सक्षम हो गए हैं। वे अपने गांवों और समुदायों में रोल मॉडल भी बनते हैं।
कुमारी की ग्राउंडवर्क और बच्चों की यात्रा में स्पष्ट रूप से शामिल है, क्योंकि वह उन छात्रों के नाम साझा करती है जिन्होंने प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं में भाग लिया और टॉप किया, जैसे “कर्नाटक के विनीत कुमार ने 2009 में NEET में टॉप किया और AIIMS में प्रवेश किया, केरल की अनीता ने JEE में पहला रैंक हासिल किया…और यह सूची खत्म ही नहीं होती।”
ध्यान देने वाली बात यह है कि कई लाभार्थी अन्य बच्चों को प्रायोजित करते हैं। SFPI में जीवन तब पूरा हो गया जब पहली छात्रवृत्ति छात्र ने उच्च अध्ययन पूरा किया और दस साल पहले एक वित्त नियंत्रक के रूप में संगठन में शामिल हो गया।
भविष्य की योजनाएं
कोविड-19 मामलों में उछाल के साथ, कुमारी का कहना है कि कनेक्टिविटी के मुद्दों का सामना करने वाले कुछ छात्रों को छोड़कर, सॉफ्ट स्किल, करियर काउंसलिंग और NEET और JEE के लिए प्रशिक्षण सफलतापूर्वक ऑनलाइन आयोजित किया जा रहा है।
किसानों के परिवार से खुश, कुमारी कहती है कि वह अपने जीवन में निभाई गई भूमिका के कारण अधिक बच्चों को शिक्षा प्रदान करना चाहती है। इसलिए, जब छात्र कुमारी को बताते हैं कि वे उनके जैसा बनना चाहते हैं और परोपकारी काम करते हैं, तो वह सुझाव देती है कि वे एक किताब लें और उसे एक बच्चे की पढ़ाई में मदद करें।
एनिमल लवर्स को जानवरों के साथ टाइम स्पेंड करना बहुत पसंद होता है. पर ऐसे लोग जिनके पास कोई Pet नहीं होता वो इनके साथ खेलने और इनकी क्यूटनेस को देखने से वंचित रह जाते हैं. ऐसे ही एनिमल लवर्स के लिए दुनियाभर में कुछ ख़ास Pet Cafes बनाए गए हैं. यहां जाकर आप केक और कॉफ़ी के साथ इन पेट्स के साथ जी भर के खेल सकते हैं.
चलिए जानते हैं दुनिया के कुछ ऐसे ही एडोरेबल Pet Cafes के बारे में…
1. HARRY Hedgehog Cafe- Tokyo
जापान के इस कैफ़े में आप अपनी पसंद के Hedgehog के साथ क्डलिंग कर सकते हैं. साथ उसके लिए खाना भी ऑर्डर कर सकते हैं. यहां पर हर घंटे के लिए आपको 9 डॉलर की फ़ीस चुकानी होगी.
2. Little Zoo Cafe- Bangkok
इस कैफ़े में कई प्रकार के जंगली जानवर हैं. इनमें लोमड़ी से लेकर Meerkats तक शामिल हैं. ये काफ़ी फ़ेमस है इसलिए यहां एनिमल लवर्स की लंबी कतार लगी रहती है. एक घंटे की फ़ीस है 10 डॉलर.
3. Tokyo Snake Center- Tokyo
इस कैफ़े में आप अलग-अलग प्रकार के सांपों को को देख सकते हैं. ये थोड़ा डरावना हो सकता है मगर यहां पर सभी सांपों को शीशे के बॉक्स में रखा जाता है. एक घंटे की क़ीमत है 9 डॉलर.
4. Thanks Nature Cafe- Seoul
साउथ कोरिया के इस कैफ़े में आप भेड़ के साथ अपने खाने को इंजॉय कर सकते हैं. अगर आपके पास भी कोई भेड़ है तो उसके नहलाने की भी सुविधा यहां मौजूद है. यहां की एंट्री फ़्री है.
5. Yokohama Reptile Center- Yokohama
इस कैफ़े में अलग-अलग प्रकार के Reptile लोगों का स्वागत करते हैं. इन्हें भी शीशे के बॉक्स में रखा जाता है. यहां लंच और डिनर करने की भी सुविधा है. इसीलिए ये यहां बैठने का अलग से चार्ज़ नहीं लेते.
6. Sakuragaoka Café- Shibuya
जापान का ये कैफ़े छोटी-छोटी और प्यारी बकरियों के लिए फ़ेमस है. अगर आपको बकरियों के साथ खेलना पसंद है तो आपको यहां ज़रूर जाना चाहिए. ये इसके लिए अगल से पैसे नहीं लेते हैं.
7. The Blind Alley- Seoul
साउथ कोरिया के इस कैफ़े में लज़ीज़ फ़ूड और एक से बढ़कर एक Racoons देखने को मिलते हैं. इनके साथ खेलते हुए आप मज़े से अपने फ़ूड का लुत्फ़ उठा सकते हैं. एंट्री फ़्री है.
8. Lucky Bunny Cafe- Chiang Mai
अगर आपको खरगोश पसंद हैं तो आपको थाइलैंड के इस कैफ़े में जाना चाहिए. यहां पर आप लिविंग रूम, डाइनिंग टेबल, बीन बैग्स आदि पर बैठ कर अपने खाने को खरगोश के साथ खेलते हुए बड़े आराम से खा सकते हैं. यहां भी अलग से कोई चार्ज नहीं लिया जाता.
9. Owl Cafe- Osaka
जापान में उल्लुओं का कैफ़े भी है. आप यहां पर खाने-पीने के साथ उल्लुओं को अलग-अलग प्रकार की आवाज़े लगाता हुआ सुन सकते हैं. इसके लिए आपको 15 डॉलर एक घंटे के लिए चुकाने होंगे.
10. Huskitory- Malacca Huskies
डॉग्स की एक स्पेशल प्रजाति होती है. यहां इस जाति के कई डॉगी मोजूद हैं. इनका व्यवहार बहुत ही दोस्ताना होता है. मलेशिया के इस कैफ़े में आप इनके साथ आराम से अपना भोजन खा सकते हैं.
एनिमल लवर्स को एक बार इन कैफ़े में ज़रूर जाना चाहिए.
“हमारे गाँव में पानी की इतनी किल्लत है कि लड़कियाँ जब पाँच, छह साल की होती हैं, तब से वो छोटे-छोटे बर्तन उठाकर पानी भरने में लग जाती हैं. मैंने ख़ुद भी आठ साल की उम्र से पानी भरना शुरू कर दिया था…”
ये शब्द 19 साल की बबीता के हैं, जिन्होंने अपने गाँव अगरौठा की सैकड़ों महिलाओं के साथ मिलकर एक पहाड़ को काटकर पानी के लिए 107 मीटर लंबा रास्ता तैयार किया है.
मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले के अगरौठा गाँव में जलसंकट इतना गंभीर है कि गर्मियों में 2000 लोगों की आबादी वाले इस गाँव को दो या तीन हैंडपंप के सहारे ही रहना पड़ता है.
बबीता बताती हैं, “हमारे गाँव में पानी की इतनी परेशानी है कि कभी आप आएँ तो देख सकते हैं कि नलों पर घंटों खड़े रहने के बाद पानी मिलता है. कम पानी की वजह से खेती नहीं हो पाती है. पशुओं के लिए भी पानी चाहिए. नलों पर आलम ये होता है कि कई बार स्थितियाँ गाली-गलौच से बढ़कर हाथा-पाई तक पहुँच जाती हैं.”
मुश्किलें
लेकिन ये कहानी बस पानी की नहीं है. ये कहानी इन महिलाओं की मुश्किलों पर जीत की दास्तां है.
जल संकट से जूझ रहे भारत के तमाम दूसरे गाँवों की तरह अगरौठा में भी पानी की वजह से महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही लड़कियों की कम उम्र में शादी और स्कूल छोड़ने में भी जल संकट की भूमिका मानी जाती है.
बबीता कहती हैं, “हमारे यहाँ सुबह चार बजे नल पर लाइन लगानी पड़ती है और इसके बाद दोपहर 12 बजे तक नल पर रहना पड़ता है. इसके बाद घर पर आकर खाना-पीना और फिर शाम को एक बार फिर पानी लाने की कोशिशों में लग जाना. कई बार महिलाओं को उनकी सास या पतियों की ओर से प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ता है. क्योंकि महिलाएँ जब पानी भरने जाती हैं, तो नल पर उनकी दूसरी महिलाओं से लड़ाई झगड़े हो जाते हैं. इस वजह से उन्हें अपने घर पर कई सवालों का सामना करना पड़ता है.”
तो बबीता समेत इस गाँव की अन्य महिलाओं ने पहाड़ काटकर पानी निकालने का फ़ैसला कैसे किया.
कैसे लिया पहाड़ काटने का फ़ैसला
बबीता बताती है, “ये सब कुछ इतना आसान भी नहीं था. हम सब सोचते थे कि अगर पानी आ जाए, तो काम बन जाए, लेकिन जब जल जोड़ो अभियान वाले हमारे घर आए और उन्होंने समझाया कि ये इस तरह हो सकता है, तो लगा कि किया जा सकता है. थोड़ी बहुत दिक़्क़्तें हुईं, लेकिन आख़िर में सब साथ आ गए और काम हो गया.”
इस गाँव की रंगत बदलने में स्थानीय महिलाओं के साथ साथ उन प्रवासी मज़दूरों का भी योगदान है, जो कई-कई दिनों की पैदल यात्रा करके गाँव पहुँचे थे.
जल जोड़ो अभियान के संयोजक मानवेंद्र सिंह बताते हैं कि इस काम में उन लोगों ने भी अपनी भूमिका अदा की है, जो चार-पाँच दिनों की पैदल यात्रा करके अपने गाँव पहुँचे थे.
छतरपुर ज़िले के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अजय सिंह बताते हैं, “कोरोना लॉकडाउन के बाद अप्रैल और मई महीने में महिलाओं ने जल जोड़ो अभियान के संयोजक मानवेंद्र के साथ जुड़कर पहाड़ काटा और अपने गाँव तक पानी पहुँचाने का काम किया है. हमने इन लोगों को नरेगा के अंतर्गत भुगतान करने का सोचा था, लेकिन इन लोगों ने अपने स्तर पर ही ये कार्य कर लिया. इसके लिए उन्हें हमारी ओर से शुभकामनाएँ हैं.”
कितना मुश्किल था ये काम?
अगरौठा गाँव की पृष्ठभूमि देखें, तो यहाँ का ज़्यादातर हिस्सा पठारी क्षेत्र है. यहाँ लगभग 100 फ़ीट की गहराई पर पानी मिलता है.
लेकिन यहाँ ये बात ध्यान देने वाली है कि इस क्षेत्र में कुएँ खोदना मैदानी भागों की अपेक्षा मुश्किल होता है.
इस क्षेत्र में पलायन, सूखे और गंभीर जल संकट को देखते हुए यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मध्य प्रदेश सरकार को 3600 करोड़ रुपए का पैकेज दिया था.
इस पैकेज के तहत जल संरक्षण से जुड़ी तमाम योजनाओं को पूरा किया जाना था.
मानवेंद्र कहते हैं, “बुंदेलखंड पैकेज के तहत इस गाँव में 40 एकड़ का एक तालाब बनाया गया था, जो जंगल क्षेत्र से जुड़ा हुआ था. लेकिन इस तालाब में पानी आने का कोई रास्ता नहीं था. जबकि जंगल क्षेत्र के एक बड़े भूभाग का पानी बछेड़ी नदी से होकर निकल जाता था. अब सवाल ये था कि जंगल का पानी किसी तरह इस तालाब तक आ जाए. लेकिन ये इतना आसान नहीं था.”
“काफ़ी समय तक विचार विमर्श के बाद ये तय किया गया कि फ़िलहाल ऐसा किया जाए कि अभी जितना पानी पहाड़ पर आता है, उसे ही कम से कम तालाब तक लेकर आया जाए और फिर लोगों ने ख़ुद अपने स्तर पर तालाब तक पानी लाने का ज़िम्मा उठाया और ये कर दिखाया.”
बीते दिनों जब इस क्षेत्र में बारिश हुई तो अगरौठा का तालाब पानी से भर गया और लोगों को फ़िलहाल जलसंकट से राहत मिली है.
लेकिन इस काम से बबीता की ज़िंदगी में एक अहम बदलाव आया है.
वह कहती हैं, “अब गाँव में लोग उन्हें सम्मान देने लगे हैं, लोग बबीता जी कहकर बुलाते हैं और कहते हैं कि आपने बहुत अच्छा काम किया है. ये सुनकर बहुत अच्छी फ़ीलिंग आती है कि हाँ, हमने भी कुछ अच्छा काम किया है. लेकिन सच कहें तो हमें कभी भरोसा नहीं था कि ऐसा हो पाएगा.”
COVID-19 के दौरान कई लोग ज़रूरतमंदों के लिए मसीहा साबित हुए. इन्होंने लोगों खाना और ज़रूरत की चीज़ें दीं. सी क्रम में मिशेलिन-स्टार शेफ़ विकास खन्ना का भी शामिल हैं. इन्होंने भारत से हज़ारों मील दूर मैनहटन स्थित अपने घर से भारत में ज़रूरतमंदों को खाना मुहैय्यै कराया. इसके लिए विकास खन्ना को 2020 के प्रतिष्ठित ‘एशिया गेम चेंजर अवॉर्ड’ से सम्मानित किया जाएगा.
2014 में ‘एशिया गेम चेंजर अवॉर्ड’ की शुरुआत अमेरिका के एक गैर-लाभकारी संगठन ‘एशिया सोसायटी’ ने की थी. इसके तहत देश के उज्जवल भविष्य की ओर सकारात्मक योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित किया जाता है. संगठन ने जिन 6 लोगों के नामों की लिस्ट बुधवार को घोषित की, उसमें शेफ़ विकास खन्ना एक अकेले भारतीय हैं.
विकास ने कहा,
मैं इस सम्मान को पाकर बहुत ख़ुश हैं. मुझे ऐसा लग रहा है कि बीते 30 सालों से वो ख़ुद को इसी मानवीय संकट के लिए तैयार कर रहे थे. ये मेरी कुकिंग आर्ट के करियर का सबसे अच्छा और संतुष्टी भरा समय रहा है.
मैं इतने दिग्गज लोगों की लिस्ट में सम्मान के लिए शामिल होकर बहुत ख़ुश हूं. एशिया सोसायटी के तहत अभिनेता देव पटेल से लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़जई तक को सम्मानित किया जा चुका है.
पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित करने के कार्यक्रम का आयोजन अक्टूबर में होगा. इसमें न्यूयॉर्क के गवर्नर Andrew Cuomo द्वारा एक स्पेशल मैसेज दिया जाएगा, Yo-Yo Ma की परफ़ॉर्मेंस होगी और यूएस और एशिया में फ़्रंटलाइन स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया जाएगा.
COVID-19 के दौरान विकास ने अप्रैल से ‘फ़ीड इंडिया’ पहल के तहत 3.5 करोड़ मील दूर से ज़रूरतमंदों को खाना और सूखा राशन पहुंचाया. इसके अलावा 5 लाख चप्पल, 3.5 मिलियन सैनिटरी पैड, 20 लाख मास्क और अन्य ज़रूरी चीज़ें भी वितरित की हैं.
आपको बता दें, इस लिस्ट में प्रसिद्ध सेलिस्ट Yo-Yo Ma, टेनिस चैंपियन नाओमी ओसाका, कोरियन बॉय बैंड बीटीएस, ऑस्कर विजेता फ़िल्म ‘पैरासाइट’ के निर्माता Miky Lee और बिज़नेस लीडर और Philanthropists Joe और Clara Tsai का नाम भी शामिल है.
काम करते करते थक जाने पर आप क्या करते हैं? छोटा ब्रेक ले लेते हैं. अपने इस ब्रेक में दिमाग को फ़्रेश करने के लिए आप चाहते हैं कि कोई फ़िल्म देख लें मगर ज़्यादा वक़्त ख़राब होने के डर से आप ऐसा नहीं करते.
अगर आप भी इस दुविधा से रोज़ जूझते हैं तो उसका तोड़ हैं शॉर्ट फ़िल्में. शार्ट फ़िल्मों की ख़ासियत ये है कि ये आपको 1 घंटे से भी कम समय में ख़त्म हो जाती हैं और आपको बेहतरीन एंटरटेनमेंट भी देती हैं.
1. द स्कूल बैग:
15 मिनट की इस शॉर्ट फ़िल्म में रसिका दुग्ग्गल और सरताज आर.के. ने एक्टिंग की है. ये शॉर्ट फ़िल्म एक मां और उसके बेटे के बीच के प्यारे रिश्ते को दिखाती है. फारूक और उसकी अम्मी पाकिस्तान के छोटे शहर पेशावर में रहते हैं. बच्चा की एक छोटी सी मांग होती है कि वो अपने पिता से मिलना चाहता है. इस छोटी सी कहनी में ऊपर से खुश दिख रहे लोग भीतर से असल में कैसे होते हैं इसको दिखाया गया है.
2. नो स्मोकिंग:
‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ ये तो सबको ही मालूम है और इस पर जानकारी देने वाले ख़ूब वीडियो भी बने मगर दीपक डोबरियाल, सनी लियॉन और आलोक नाथ की इस 5 मिनट का ये वीडियो अपने आप में मज़ेदार भी है और जागरूक भी करता है.
3. टेंथ रेस:
हम सबके चहेते पंकज त्रिपाठी 15 मिनट की इस शॉर्ट फ़िल्म में दिखाई देंगे. इस सस्पेंस थ्रिलर में चार लोग मिलकर एक क्राइम करने का सोचते हैं जो जोख़िम भरा हो सकता है मगर एक काम काम पूरा हो गया तो कोई ख़तरा नहीं. 15 मिनट की ये फ़िल्म आपको बीच में उठने का मौका नहीं देगी.
4. पुराना प्यार – Love Handles:
मोहन अगाशे और लिलेट दुबे की शॉर्ट फ़िल्म पुराना प्यार दो ऐसे लोगों की कहानी है जो साबित करते हैं की प्यार की कोई उम्र नहीं होती. गोरिल्ला शॉर्ट्स की ये फ़िल्म एक सीरीज़ ‘Love Handles’ का एक हिस्सा है. इस शॉर्ट फ़िल्म ने कई इनाम भी अपने नाम किये.
5. पीरियड – ऐंड ऑफ़ अ सेंटेंस:
नेटफ़्लिक्स की ये डॉक्यूमेंट्री आपको ज़रूर देखनी चाहिए. 26 मिनट की ये डॉक्यूमेंट्री उत्तर प्रदेश के काठीकेरा गांव में युवा महिलाओं के एक ग्रुप के अनुभवों और संघर्षों आसपास घूमती है. ये युवा महिलाएं अरुणाचलम मुरुगनांथम यानी पैडमैन ऑफ इंडिया द्वारा बनायीं गयी की गई कम लागत वाली मशीनों का उपयोग करके सेनेटरी नैपकिन बनाती हैं. 2019 में इस शॉर्ट फ़िल्म को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट के लिए ऑस्कर मिला.
6. द रिलेशनशिप मैनेजर:
साधारण मगर सोचने पर मज़बूर कर देने वाली शॉर्ट फ़िल्म है रिलेशनशिप मैनेजर. फ़िल्म की कहानी एक मैनेजर(अनूप सोनी) के आसपास घूमती है. जो लॉकडाउन के चलते घर से काम कर रहा है. कॉल करने के लिए उसके पास एक लिस्ट है जिनको वो दिन भर में फ़ोन करता है. फ़ोन कॉल कैसे अजीब मोड़ लेता है वो इस फ़िल्म में दिखाया गया है. फ़िल्म में अनूप सोनी के साथ दिव्या दत्ता, अनुपम खेर और सना ख़ान जैसे एक्टर्स भी दिखाई देंगे.
7. कांदे पोहे:
महाराष्ट्र में जब एक लड़का पहली बार अरेंज मैरिज़ के लिए लड़की के घर जाता है तो कांदा पोहा परोसा जाता है. इस रिवाज़ को ‘कांदे पोहे दा कार्यक्रम’ कहते हैं. इस शॉर्ट फिल्म की कहानी संजय(तुषार पाण्डेय) और मनीषा(अहसास चन्ना) की है जो अपने कांदे पोहे दा कार्यक्रम में मिल रहे हैं.
8. OP स्टॉप स्मेलिंग योर सॉक्स:
2011 में आई इस शॉर्ट फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी हैं और यही एक कारण काफी होना चाहिए इसे देखने के लिए. इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसे इंसान की है जो जिस बस में है उस बस की विंडो सीट पर कब्ज़ा कर चाहता है मगर असफ़ल रहता है.
9. नीतिशास्त्र:
फ़िल्म में तापसी पन्नू लड़कियों को सेल्फ़-डिफेंस सिखाती हैं ताकि लड़कियां बाहरी दुनिया के लोगों से खुद को बचा सकें मगर उनका पूरा जीवन पलट जाता है जब उन्हें मालूम चलता है कि उनके ही भी ने महिला के ख़िलाफ अपराध किया है.
10. घर की मुर्गी:
इस साल के महिला दिवस पर सोनी लिव ने शॉर्ट फ़िल्म निकाली थी घर की मुर्गी. क़रीब 18 मिनट लंबी ये फ़िल्म कई ज़रूरी सवाल खड़े करती है और अहम मुद्दों को उठाती है. इस फ़िल्म में साक्षी तंवर एक घरेलू महिला का किरदार निभा रही हैं. ये कहानी किसी भी घर की महिला की हो सकती है.
कई बुरी आदतें रहस्यमयी तरीके से हमारी सेहत को बर्बाद करती हैं. जाने-अनजाने हुई इन गलतियों के लिए हमें बाद में पछताना पड़ सकता है. हेल्दी और हैप्पी लाइफ चाहते हैं तो रोजमर्रा के कॉमन लाइफस्टाइल की इन छोटी-छोटी गलतियों पर ध्यान देना शुरू कीजिए. यकीन मानिए, ये 10 बुरी आदतें छोड़ने से आपको डॉक्टर और दवाइयां दोनों से राहत मिलेगी.
1) अक्सर आपने लोगों को कमर मोड़कर बैठे या चलते देखा होगा. ऐसा करना ना सिर्फ आपके शरीर की मांसपेशियों और रीढ़ के लिए हानिकारक है, बल्कि बॉडी पोश्चर पर भी इसका बुरा असर पड़ता है. कमर को हमेशा सीधा रखें. इससे मांसपेशियों में संतुलन रहेगा और रीढ़ भी दुरुस्त रहेगी.
2) वर्क फॉर्म होम के दौरान लोगों को घंटों तक कंप्यूटर के आगे बैठकर काम करना पड़ रहा है. अक्सर लोग इसे सिर्फ आंखों के लिए खराब समझते हैं, पर क्या आप जानते हैं, इससे हमारे हाथों पर भी बुरा असर पड़ता है. हाथ और उंगलियों में दर्द और झनझनाहट के कारण ‘कार्पल टनल सिंड्रोम’ का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए काम के बीच में आंखों के साथ-साथ हाथों को भी रिलैक्स दें.
3) बाजार में मिलने वाला जंक फूड या फास्ट फूड आपकी जुबान को संतुष्ट तो कर देता है, लेकिन साथ ही कई बीमारियां भी दे जाता है. जंक फूड तेजी से वजन बढ़ाकर डायबिटीज, हृदय रोग समेत कई खतरनाक बीमारियों को शरीर में आने की दावत देता है. जंक फूड के साथ आपके पेट में कई अनहेल्दी चीजें भी जाती हैं.
4) अनहेल्दी लाइफ के कारण शरीर में स्ट्रेस हार्मोन्स तेजी से रिलीज होते हैं. स्ट्रेस की वजह से इंसान को ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर की समस्या हो सकती है. इतना ही नहीं, ये बढ़ते वजन के साथ आपके डाइजेशन और इम्यूनिटी पर भी बुरा असर डालता है. इससे निजात पाने के लिए आप स्ट्रेस मैनेजमेंट के तहत ‘डीप ब्रीदिंग’, ‘मेडिटेशन’, ‘योग’, ‘वर्कआउट’ कर सकते हैं या परिवार के साथ समय बिता सकते हैं.
5) शराब में मौजूद एल्कोहल से आपकी शारीरिक और मानसिक स्थित दोनों पर बुरा असर पड़ता है. इसमें कोई संशय नहीं है कि अल्कोहल से हमारे शरीर को कई बड़े नुकसान हो सकते हैं. शराब ना सिर्फ इंसान का लिवर खराब करती है, बल्कि ये हृदय रोग, डिप्रेशन, गठिया और कैंसर जैसे खतरनाक रोगों का कारण बन सकती है.
6) स्मोकिंग (धूम्रपान) हार्ट डिसीज और कैंसर से हुई 30% मौत के लिए जिम्मेदार है. इतना ही नहीं, 80-90% लोगों को फेफड़ों का कैंसर भी स्मोकिंग की वजह से होता है. सिगरेट या बीड़ी पीने से मुंह, गला या ब्लैडर कैंसर भी होता है. इन्हें छोड़ते ही आपको इसके लाभ दिखने शुरू हो जाएगा, क्योंकि स्मोकिंग छोड़ने के अगले ही मिनट से फेफड़े और कार्डियोवस्क्युलर सिस्टम खुद-ब-खुद रिकवर होने लगते हैं. लेकिन इसे वक्त रहते छोड़ देना चाहिए.
7) पेन किलर्स यानी दर्द में राहत देने वाली दवाओं को भी बहुत कम इस्तेमाल करना चाहिए. इनका लंबे समय तक इस्तेमाल सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है. पेन किलर्स लगातार लेने से अल्सर, गैस्ट्रोइंटसटाइनल से खून, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक की दिक्कत बढ़ सकती हैं. इसलिए ऐसी दवाओं के एडिक्शन पर कंट्रोल करना सीखिए.
8) कई लोगों को सुबह के वक्त ब्रेकफास्ट करने की आदत नहीं होती है. क्या आप जानते हैं मॉर्निंग डाइट ना लेने से आपकी सेहत को कितना नुकसान है? ऐसा लगातार करने से आपके सामान्य वजन, हार्मोनल हेल्थ, मेमोरी, ह्यूमर और मूड पर बुरा असर पड़ता है. सुबह का नाश्ता ना करने से मेटाबॉलिज्म सुस्त होता है, जो इंसान के वजन बढ़ने का कारण बन सकता है.
9) कम या अपर्याप्त नींद लेने से आपका फोकस कमजोर होता है. व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है. डिप्रेशन की समस्या बढ़ जाती है. स्ट्रेस हार्मोन में वृद्धि होने से वजन भी बढ़ता है. कम सोने से स्किन और इम्यून पर तो बुरा असर पड़ता ही है, साथ ही हाई ब्लड प्रेशर की समस्या भी होती है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हमें रोजाना कम से कम 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए.
10) पानी कम पीने की वजह से हमारी बॉडी डीहाइड्रेट होना शुरू हो जाती है. पानी की कमी का बुरा असर पूरे शरीर पर पड़ता है. ये थकान, ड्राय स्किन, चिड़चिड़ापन और फोकस में कमी का कारण बन सकता है. पानी कम पीने से शरीर से जहरीले पदार्थ बाहर नहीं आ पाते हैं, जिसके कारण किडनी और इम्यून पर भी बुरा असर होता है.
कोरोना वायरस महामारी ने इन 10 देशों को छोड़कर, दुनिया के लगभग हर देश में अपना असर दिखाया है. पर क्या ये देश वाक़ई कोविड-19 से बेअसर रहे? और सवाल यह भी है कि ये अब कर क्या रहे हैं?
1982 में खुला ‘द पलाऊ होटल’ उस ज़माने में एक ‘बड़ी चीज़’ था, इस होटल का बहुत नाम था क्योंकि उस समय कोई और होटल था ही नहीं.
तब से, आसमानी रंग के प्रशांत महासागर से घिरे इस छोटे से देश ने पर्यटन में उछाल का पूरा आनंद लिया.
2019 में क़रीब 90 हज़ार पर्यटक पलाऊ पहुँचे थे, यानी इस देश की कुल आबादी से लगभग पाँच गुना.
2017 में आईएमएफ़ के आँकड़ों से पता चलता है कि ‘देश की जीडीपी का 40 प्रतिशत हिस्सा पर्यटन से आता है.’
लेकिन ये सब कोविड से पहले की बातें हैं.
पलाऊ की सीमाएं मार्च के अंतिम दिनों से बंद हैं. लगभग उसी समय से जब भारत में पहले लॉकडाउन की घोषणा हुई थी. हालांकि, पलाऊ दुनिया के उन 10 देशों (उत्तर कोरिया और तुर्कमेनिस्तान को छोड़कर) में से एक है जहाँ कोरोना संक्रमण का आधिकारिक रूप से कोई केस नहीं है.
लेकिन किसी भी इंसान को संक्रमित किए बिना, कोरोना वायरस ने इस देश को तबाह कर दिया है.
द पलाऊ होटल मार्च से ही बंद है, और अब यह अकेला नहीं है. पलाऊ के सभी रेस्त्रां खाली पड़े हैं. जिन दुकानों पर पर्यटक तोहफ़े ख़रीदने जाते थे, वो बंद हैं. और सिर्फ़ वही होटल खुले हैं जो विदेशों से लौट रहे पलाऊ के नागरिकों को क्वारंटीन की सुविधा दे रहे हैं.
10 देश जहाँ कोविड-19 का कोई केस नहीं
पलाऊ
माइक्रोनेशिया
मार्शल द्वीप समूह
नाउरू
किरिबाती
सोलोमन द्वीप समूह
तुवालु
समोआ
वानुअतु
टोंगा
द पलाऊ होटल के प्रबंधक ब्रायन ली कहते हैं, “यहाँ का समंदर दुनिया के किसी भी स्थान से बहुत अधिक सुंदर है.”
उनके मुताबिक़, आकाश के रंग का नीला समंदर ही है जो उन्हें व्यस्त रखता है. कोविड से पहले, उनके होटल के 54 कमरों में से क़रीब 70-80 प्रतिशत कमरे हर वक़्त भरे रहते थे. लेकिन सीमाएं बंद होने के बाद, उनके पास कोई काम नहीं रह गया.
ब्रायन कहते हैं कि “यह एक छोटा देश है, इसलिए स्थानीय लोग तो पलाऊ होटल में आकर नहीं रुकेंगे.”
उनकी टीम में लगभग 20 कर्मचारी हैं और उन्होंने सभी को अब तक काम पर रखा हुआ है, हालांकि उनके काम के घंटे घटा दिये गए हैं.
वे कहते हैं, “मैं रोज़ उनके लिए काम ढूंढने की कोशिश करता हूँ. जैसे- रखरखाव का काम, किसी हिस्से के नवीकरण का काम या इसी तरह कुछ और.”
लेकिन खाली होटल में रखरखाव और नवीकरण का काम हमेशा के लिए नहीं किया जा सकता. ब्रायन कहते हैं, “मैं इस तरह छह महीने और चला सकता हूँ, लेकिन अंत में मुझे होटल बंद करना ही होगा.”
ब्रायन इस परिस्थिति के लिए सरकार को दोष नहीं देते, जिसने पलाऊ के निवासियों को आर्थिक सहायता की पेशकश की है, और सबसे बड़ी बात- कोरोना वायरस महामारी को सफलतापूर्वक देश से बाहर रखा है.
वे कहते हैं कि “सरकार ने अपने स्तर पर अच्छा काम किया है.” लेकिन पलाऊ के सबसे पुराने और जमे हुए होटल का अगर ये हाल है, तो वहाँ जल्द ही कुछ बदलाव करने की ज़रूरत है.
पलाऊ के राष्ट्रपति ने हाल ही में घोषणा की है कि ‘आवश्यक हवाई यात्राएं 1 सितंबर तक फिर से शुरू हो सकती हैं.’ इस बीच, ये अफ़वाह भी सुनी गई कि ताइवान के साथ पलाऊ की एक ‘एयर कॉरिडोर’ बनाने पर बात हुई है, जिससे पर्यटकों को आने की अनुमति मिलेगी.
हालांकि, ब्रायन को लगता है कि ऐसा जल्द नहीं होने वाला.
वे कहते हैं, “सरकार को बिज़नेस फिर से खोलने शुरू करने होंगे. शायद न्यूज़ीलैंड या उस तरह के अन्य देशों के साथ पर्यटकों के लिए एयर-बबल शुरू करना मदद करे. वरना यहाँ कोई भी काम-धंधा करने लायक नहीं बचेगा.”
पलाऊ से पूर्व दिशा में क़रीब 4000 किलोमीटर की दूरी पर, विशाल प्रशांत महासागर के पार स्थित हैं मार्शल द्वीप जो अब तक कोरोना फ़्री हैं. लेकिन पलाऊ की तरह, कोरोना संक्रमण ना होने का मतलब ये नहीं कि कोई प्रभाव नहीं है.
यहाँ होटल रॉबर्ट रीमर्स एक नामी होटल है. इसकी लोकेशन शानदार है. कोविड से पहले, होटल के 37 कमरों में से क़रीब 75-88% कमरे भरे रहते थे. यहाँ मुख्य रूप से एशिया और अमरीका के सैलानी पहुँचते थे.
लेकिन जब से सीमाएं बंद हुई हैं, होटल के पास 3-5 प्रतिशत काम बचा है.
इस होटल समूह के लिए काम करने वाली सोफ़िया फ़ाउलर कहती हैं कि “हमारे पास बाहरी द्वीपों से आने वालों की संख्या पहले ही सीमित थी, पर लॉकडाउन ने सब कुछ ख़त्म कर दिया.”
राष्ट्रीय स्तर पर, मार्शल द्वीप समूह में कोविड-19 के कारण 700 से अधिक नौकरियाँ जाने की उम्मीद है जो 1997 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है. इनमें से 258 नौकरियाँ होटल और रेस्त्रां क्षेत्र में जाने की उम्मीद है.
लेकिन मार्शल द्वीप समूह को ‘सेल्फ़ आइसोलेशन’ ने पर्यटन से ज़्यादा प्रभावित किया है, क्योंकि पलाऊ की तुलना में मार्शल द्वीप की पर्यटन पर निर्भरता कम है. यहाँ ज़्यादा बड़ी समस्या है मछली उद्योग का बंद हो जाना.
देश को कोविड-मुक्त रखने के लिए, संक्रमित देशों की नावों के मार्शल द्वीप के बंदरगाहों में प्रवेश करने पर रोक लगाई गई है. ईंधन के टैंकर और कंटेनर जहाज़ों सहित अन्य बड़ी नौकाओं को प्रवेश करने से पहले समंदर में 14 दिन खड़े रहने के निर्देश दिये गए हैं. मछली पकड़ने के लाइसेंस रद्द कर दिये गए हैं और कार्गो उड़ानों में भी कटौती की गई है.
संक्षेप में कहें, तो आप वायरस को तो देश से बाहर रख सकते हैं, लेकिन आप इसे हरा नहीं सकते. कोविड-19 आपको एक नहीं, तो दूसरे रास्ते से प्रभावित कर सकता है.
हालांकि, सोफ़िया को उम्मीद है कि ‘चीज़ें जल्द अच्छी होंगी.’
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कोविड-19 के कारण सीमाएं बंद होने से कुछ देश वाक़ई ग़रीब हुए हैं, लेकिन हर कोई नहीं चाहता कि सीमाएं फिर से खोली जाएं.
डॉक्टर लेन टारिवोंडा वानुअतु में सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के निदेशक हैं. वे तीन लाख की आबादी वाले राजधानी क्षेत्र पोर्ट विला में काम करते हैं. वे ख़ुद अम्बे से ताल्लुक रखते हैं जिसकी आबादी लगभग 10,000 है.
वे कहते हैं, “अगर आप अम्बे के लोगों से बात करेंगे तो पायेंगे कि लोग सीमाएं बंद रखने की वकालत कर रहे हैं. उनका मानना है कि जब तक महामारी ख़त्म ना हो जाये, सीमाएं बंद रखनी चाहिए, क्योंकि उनमें महामारी का भय बहुत अधिक है. वो उसका सामना नहीं करना चाहते.”
डॉक्टर लेन टारिवोंडा के अनुसार, वानुअतु के लगभग 80 प्रतिशत लोग शहरों और ‘औपचारिक अर्थव्यवस्था’ से बाहर हैं.
टारिवोंडा के अनुसार, ”उन्हें बंद से फ़र्क नहीं पड़ता, वो किसान हैं जो अपना भोजन ख़ुद पैदा करते हैं, वो स्थानीय, पारंपरिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं.”
फिर भी, देश को नुक़सान से बचाना मुश्किल लगता है. एशियाई विकास बैंक का अनुमान है कि वानुअतु की जीडीपी में लगभग 10% की गिरावट होगी जो 1980 में स्वतंत्रता के बाद से वानुअतु की सबसे बड़ी गिरावट होगी. माना जा रहा है कि कोविड का प्रभाव यहाँ लंबे समय तक रहेगा.
जुलाई में, वानुअतु की सरकार ने 1 सितंबर तक कुछ ‘सुरक्षित’ देशों के लिए अपनी सीमाएं फिर से खोलने की योजना बनाई थी. लेकिन ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में फिर से मामले बढ़ने के कारण योजना रद्द कर दी गई.
डॉक्टर टारिवोंडा का कहना है कि परेशानी और सीमा खोलने की आवश्यकता के बावजूद, वानुअतु कोई जल्दबाज़ी नहीं करेगा. वे पापुआ न्यू गिनी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि ‘वहाँ जुलाई के अंत तक कोई केस नहीं था. लेकिन उन्होंने जल्दबाज़ी की, और संक्रमण वहाँ आग की तरह फैल गया. इसी वजह से हम चिंतित हैं.’
तो ऐसा क्या है जो ये कोविड-फ़्री देश कर सकते हैं?
अल्पकालिक उपाय है कि ‘श्रमिकों और व्यापार करने वालों को कुछ आर्थिक मदद दी जाए.’ और एक मात्र दीर्घकालिक उपाय है कि ‘कोरोना की वैक्सीन का इंतज़ार किया जाए.’
तब तक, यात्रियों को अपने यहाँ लाने के लिए ‘एयर-बबल’ से उम्मीदें की जा सकती हैं. लेकिन जानकारों की राय है कि यह कहने में जितना आसान लगता है, इसे लागू कर पाना उतना आसान है नहीं.
और जैसा कि वानुअतु के ‘सितंबर प्लान’ के साथ देखा गया- एयर बबल से जुड़े प्लान बहुत आसानी से ‘फट भी सकते हैं.’ क्योंकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि वे एयर-बबल के प्लान को पहले एक दूसरे के साथ आज़माएंगे.
लॉवी इंस्टीट्यूट में पैसिफ़िक आइलैंड प्रोग्राम के निदेशक जोनाथन प्रीके के अनुसार, इसमें कोई संदेह नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन देशों के पास सेल्फ़-आइसोलेशन के सिवा कोई विकल्प नहीं था.
वे कहते हैं, “अगर इन देशों ने अपनी सीमाएं खुली भी रखी होतीं, तो पर्यटन के लिहाज़ से महत्वपूर्ण ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने अपनी सीमाएं ना खोली होतीं क्योंकि दोनों देशों ने भी अपनी सीमाएं बंद कर ली थीं.”
“इसलिए निश्चित तौर पर यह दोहरी मार है. संक्रमण और बीमारी तो है ही, साथ ही आर्थिक संकट भी है. इसका सही जवाब ढूंढने में सालों लग सकते हैं कि कोरोना काल में किसना क्या फ़ैसला सही लिया और क्या ग़लत. लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर, प्रशांत महासागर में स्थित इन देशों के सीमाएं बंद रखने के निर्णय को शायद कभी कोई ग़लत नहीं बता पायेगा.”