क्या है चिटफंड अमेंडमेंट बिल, 2019 जो लोकसभा में पास हो गया है?

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चिटफंड अमेंडमेंट बिल, 2019. लोकसभा में पास हो गया है. 20 नवंबर को. अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. इस बिल में सरकार ने चिटफंड इंडस्ट्री को बढ़ावा देने और ग्राहकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए कानून में बड़े बदलाव किए हैं. सरकार के मुताबिक, इस बिल का मकसद चिटफंड स्कीम में पारदर्शिता लाना और ग्राहकों की रक्षा करना है. बीते कुछ सालों में चिटफंड से जुड़े कई घोटाले सामने आए हैं जिनकी वजह से खूब विवाद हुआ.

 

चिटफंड स्कीम क्या होती है?

चिट फंड एक्ट-1982 के मुताबिक, चिट फंड स्कीम का मतलब है कि कोई आदमी किसी दूसरे के साथ, या लोगों का समूह आपस में समझौता करे. इस समझौते में एक अमाउंट तय हो. एक समय तय हो. उस तय समय के दौरान, वो फिक्स अमाउंट अलग-अलग इंटरवल में इंस्टॉलमेंट के रूप में जमा की जाए. जब समय पूरा हो जाए तो जमा पैसों से खरीदे गए सामान की नीलामी हो. इस नीलामी से जो फायदा हो, वो सभी में बांट दिया जाए. इसके अलावा कोई और यदि इसमें बिड लगाता है तो उसे भी पैसे लौटाने होते हैं.

नियमों के मुताबिक, ये स्कीम किसी ऑर्गनाइजेशन या फिर किसी व्यक्ति के जरिए रिश्तेदारों या फिर दोस्तों के बीच चलाई जा सकती है. लेकिन अब चिट फंड की जगह कई कलेक्टिव पब्लिक डिपॉजिट या कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम चलाई जा रही हैं.

दक्षिण भारत के राज्यों में बहुत से लोग ऐसी योजनाओं में अपना सेविंग इन्वेस्ट करते हैं. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में राज्य की इकॉनमी में चिटफंड का बड़ा योगदान रहा है. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और त्रिपुरा में ऐसे सैकड़ों चिट फंड कंपनियों की जांच चल रही है जिन पर आरोप है कि उन्होंने लोगों का पैसा ठगा. चिट फंड के ज्यादातर पैसे कंस्ट्रक्शन, रियल एस्टेट, मीडिया, एंटरटेनमेंट, माइक्रो फाइनेंस और टूरिज्म में लगाए जाते रहे हैं.

 

पिछला कानून क्या था और नए बिल में खास क्या है?

लोकसभा में जो बिल पास हुआ है, उसे चिट फंड एक्ट, 1982 में संशोधन करके लाया गया है. 1982 का यह एक्ट चिट फंड कंपनियों को कंट्रोल करता है और राज्य सरकार की इजाज़त के बिना किसी भी तरह के फंड कलेक्शन से रोकता है. सरकार का कहना है कि इस बिल के पास हो जाने से चिट फंड कंपनियों को बेहतर तरीके से रेगुलेट किया जा सकेगा. इस कानून के तहत चिट फंड कारोबार का रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन संबंधित राज्य सरकारें ही कर सकती हैं. 1982 के एक्ट के सेक्शन 61 के तहत, चिट रजिस्ट्रार की नियुक्ति सरकार करती है. चिटफंड कंपनियां गैरबैंकिंग कंपनियों की कैटेगरी में आती हैं. ऐसी कंपनियों को किसी खास योजना के तहत एक टाइम पीरियड के लिए रिज़र्व बैंक और सेबी की ओर से आम लोगों से फिक्स्ड डिपॉजिट और डेली डिपॉजिट जैसी योजनाओं के लिए फंडरेजिंग की इजाजत चाहिए होती है.

नए विधेयक के ऑब्जेक्टिव में कहा गया है कि चिट कारोबार का विकास और इन्वेस्टर के इंटरेस्ट की सुरक्षा के लिहाज से संस्थागत ढांचे में सुधार और रजिस्टर्ड चिट फंड क्षेत्र को मजबूत बनाना है. सरकार ने चिटफंड संशोधन बिल में इंडस्ट्री को बढ़ावा देने और ग्राहकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए कानून में बड़े बदलाव किए है. इस बिल का मकसद चिटफंड स्कीम में पारदर्शिता लाना और ग्राहकों की रक्षा करना है. इस बिल में-

  • लोगों की कंपाइल्ड चिट अमाउंट की अधिकतम सीमा एक लाख से बदलकर तीन लाख करने का प्रस्ताव है.
  • यह अमाउंट फर्मों के लिए छह लाख रुपये से बढ़ाकर 18 लाख रुपये करने की बात कही गई है. सरकार ने कहा है कि इन्फ्लेशन रेट के कारण रकम बढ़ाई गई है.
  • चिट निकालने के लिए जो व्यक्ति सबसे जिम्मेदार होता था उसे कुल जमा का 5 फीसद पैसा मिलता था, नए बिल के लागू हो जाने के बाद उसे कुल जमा का 7 फीसद अमाउंट मिलेगा.
  • 1982  के नियमों के मुताबिक किसी भी चिट का अमाउंट 100 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकता है लेकिन नए बिल में यह तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी गई है.

चिट फंड एक्ट-1982 जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू था, लेकिन नया बिल अगर कानून बनता है तो वो पूरे देश में एक साथ लागू होगा.

 

किसने विरोध किया?

तृणमूल कांग्रेस सहित कई दलों ने इस बिल का विरोध किया. अब संसद में इस विधेयक पर चर्चा होगी. सरकार को उम्मीद है कि बिल पास हो जाएगा क्योंकि ये बिल स्टैंडिंग कमेटी से होकर आ चुका है. बीते कुछ सालों में चिटफंड से जुड़े कई घोटाले सामने आ चुके हैं, जिसकी वजह से खूब राजनीति हुई है. संसद में विपक्षी दलों के नेताओं ने विधेयक में और प्रावधान शामिल करने का सुझाव देते हुए इसे स्थायी समिति को भेजने की मांग की है.

तृणमूल कांग्रेस के कई नेता इस बिल के विरोध में हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो शारदा चिटफंड घोटाला बंगाल के बड़े घोटाले में से एक है और नए बिल के आने से कई नेता लपेटे में आ सकते हैं.

 

सरकार का क्या कहना है?

18 नवंबर को अनुराग ठाकुर ने बिल पेश करते हुए कहा कहा था कि- चिटफंड को शक की नज़र से देखा जाता रहा है. इसके लिए इसकी छवि सुधारने के लिए विधेयक में उपाय सुझाए गाए हैं. चिटफंड अवैध नहीं है, ये वैध कारोबार है. राज्य सरकार चिट की सीमा निर्धारित कर सकती है. ठाकुर ने कहा कि चिट फंड सालों से छोटे कारोबारों और गरीब वर्ग के लोगों के लिए इन्वेस्टमेंट का सोर्स रहा है लेकिन कुछ पक्षकारों ने इसमें अनियमितताओं को लेकर चिंता जताई थी जिसके बाद सरकार ने एक कंसल्टिंग ग्रुप बनाया.

पुराने बिल के बारे में ज्यादा जानकारी आप यहां क्लिक करके और नए बिल का सार आप यहां क्लिक करके समझ सकते हैं.




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