दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 7 जून को एक वीडियो मैसेज जारी किया. ऐलान किया कि जब तक कोरोना क्राइसिस चल रहा है, तब तक दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज होगा. हालांकि 8 जून की शाम होते-होते दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने ये फैसला पलट दिया. कहा कि कोई भी दिल्ली आकर इलाज करा सकता है.
लेकिन इन सबके बीच एक सवाल लोगों के दिमाग में कौंधा. कि भई कोई राज्य ऐसे कैसे किसी को अपने यहां इलाज कराने से रोक सकता है. हमने भी संविधान के पन्ने पलटे और जाना कि राज्य सरकारों के पास कौन-सी ऐसी ताकत है, जिससे वो दूसरे राज्य के लोगों को अपने यहां इलाज से रोक सकते हैं.
चलिए, जानते हैं.
संविधान की अनुसूची क्या है?
भारतीय संविधान में कुल 12 अनुसूचियां यानी Schedule हैं. अनुसूची यानी संविधान का वो हिस्सा, जिसमें उल्लेख है देश में आने वाले और देश चलाने वाले तमाम सिस्टम की ज़िम्मेदारियों, ताकतों और अन्य बातों का. इन अनुसूचियों में संविधान के तमाम अनुच्छेदों (Articles) को विस्तार से समझाया गया है. जैसे कि राष्ट्रपति, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट वगैरह के काम-काज, पंचायती राज, देश के संबंध में भाषाओं वगैरह की व्याख्या है.
राज्यों की शक्तियां कौन-सी अनुसूची में हैं?
हम बात करेंगे संविधान की सातवीं अनुसूची की.
इसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया है. इस अनुसूची की तीन सूचियां यानी लिस्ट हैं.
* अब यहां से हम अनुसूची के लिए ‘शेड्यूल’ और सूची के लिए ‘लिस्ट’ शब्द का इस्तेमाल करेंगे. पढ़ने-समझने में आसान पड़ता है.
लिस्ट 1 – यूनियन लिस्ट. इसमें वो विषय बताए गए हैं, जिनमें केंद्र की शक्तियां लागू हैं. जिन पर केंद्र कानून बना सकता है.
लिस्ट 2 – स्टेट लिस्ट. इसमें राज्य की शक्तियां बताई गई हैं. (इसको ध्यान में रखें, अभी आगे इसी पर बात करेंगे)
लिस्ट 3 – कॉनकरेंट लिस्ट. इसमें वो विषय हैं, जिन पर केंद्र-राज्य आपस में भइया-बाबू करके यानी सहमति से कानून बना सकते हैं.
# स्टेट लिस्ट क्या कहती है?
अब तक भूमिका बांधी. बेसिक समझाया. अब आज के मुद्दे की बात.
सातवें शेड्यूल की स्टेट लिस्ट. इसमें वो विषय (Item) बताए गए हैं, जिनको रेग्युलेट यानी नियमशुदा करने, जिन पर कानून बनाने और जिनको चलाने का अधिकार राज्यों के पास है. इन्हीं तमाम विषयों में नंबर-6 पर है – लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता; अस्पताल और औषधालय. यानी Public Health and Sanitation; Hospitals and Dispensaries.
संविधान के सातवें शेड्यूल की स्टेट लिस्ट का यही आइटम-6 राज्यों को ये शक्ति देता है कि वे अपने यहां के अस्पतालों को रेग्युलेट करने, इन्हें इस्तेमाल करने से जुड़े फैसले ले सके.
# क्या अस्पतालों को परमानेंट रिज़र्व भी किया जा सकता है?
इस बात को और थोड़ा समझने के लिए दि लल्लनटॉप ने बात की संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से. उन्होंने बताया –
“स्टेट लिस्ट का आइटम-6 राज्यों को ये शक्ति देता है कि वो अस्पतालों को रेग्युलेट कर सकें. रिज़र्व कर सकें. कुछ समय या ज़्यादा समय के लिए.”
हमने बात के बीच में ही पूछा– परमानेंट रिज़र्व भी? इंडियन सिटिज़न के तौर पर मुझे कहीं भी जाकर इलाज कराने का भी तो अधिकार है. जवाब आया –
“हां, टेक्निकली राज्य ऐसा कर सकते हैं. हालांकि पॉलिटिकली और सोशली करेक्ट रहने के लिए ऐसा कोई करता नहीं है. एज़ अ इंडियन सिटिज़न संविधान भी आपको राइट टू रेज़िडेंस ही देता है.”
# तो क्या कहीं और जाकर इलाज कराने का अधिकार नहीं है?
सुभाष कश्यप की बात सही है. लेकिन यही संविधान लोगों को आर्टिकल-21 के तहत ‘राइट टू लाइफ’ भी देता है. एलजी ने केजरीवाल के आदेश को पटलते हुए जो लेटर जारी किया, उसमें इसका ज़िक्र भी किया. लिखा –
“सुप्रीम कोर्ट बार-बार इस बात पर ज़ोर देता आया है कि ‘राइट टू हेल्थ’ भी ‘राइट टू लाइफ’ का अहम हिस्सा है. किसी मरीज को सिर्फ इस आधार पर इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता कि वो दिल्ली का रहने वाला नहीं है.”
‘राइट टू हेल्थ’ यानी भारत के किसी भी राज्य के नागरिक को अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए दूसरे राज्य जाने का अधिकार. जाकर इलाज कराने का अधिकार. यही अधिकार था कि हरियाणा में पैदा हुए, पश्चिम बंगाल से पढ़े, बिहार में नौकरी किए और यूपी में रहकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल अपनी खांसी का इलाज कराने कर्नाटक जा सके थे.
केजरीवाल ने कुछ दिन पहले कहा था, “दिल्ली तो दिल वालों की है. किसी को इलाज के लिए मना करना मुश्किल होगा.” दिल दिखाने का इससे बड़ा मौका क्या ही होता! लेकिन ‘रिसोर्स मैनेजमेंट’ के नाम पर अस्पतालों के दरवाजों पर फिल्टर लगा दिए गए. हमारे यहां के मरीज़ और बाहर के मरीज़.
दुर्योग ही था कि ये फैसला आने के अगले ही दिन अरविंद केजरीवाल की तबीयत कुछ नासाज़ हो गई है. सोशल मीडिया पर लोग पूछने लगे- अब आप अपना इलाज कहां कराएंगे? दिल्ली में या बाहर?
बहरहाल, एलजी ने फैसला पलट दिया है. लेकिन ये पूरा घटनाक्रम अपने पीछे एक बड़ी बहस छोड़ गया है. तुलसीदास ने लिखा है-
धीरज, धरम, मित्र अरु नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी।।
यानी धैर्य, धर्म, दोस्त और नारी (इसका तात्पर्य ‘साथी’ से ले सकते हैं) की सही परख़ मुश्किल वक्त में होती है.
ये समय भी मुश्किल है. एक राजा के, एक प्रशासक के धर्म की सच्ची पहचान भी इसी वक्त होनी है. बिस्तरों का संकट, डॉक्टरों का संकट तो ज्यों-त्यों हाथ-पैर मारकर संभाला जा सकता है. देश सक्षम है. लेकिन ये कोरोना का ये काल इतिहास में याद किया जाएगा. और याद किया जाएगा इस काल के हर राजा को. कि उसने अपना धर्म निभाया. या दो आंख की.
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