बोलती फिल्मो के प्रचलित होने से पहले कई दशको तक मूक फिल्मो का दौर रहा था | मूक फिल्मो के लिए अग्रेजी शब्द Movie का प्रयोग होता था जबकि बोलती फिल्मो को Talkie कहा जाने लगा | वह 14 मार्च 1931 का दिन था जब बम्बई के Majestic Cinema में भारत की पहली सवाक फिल्म आलम आरा का प्रदर्शन होने जा रहा था और असंख्य दर्शक उक्त फिल्मालय की ओर दौड़े जा रहे थे | अजीब दृश्य था |
दादा साहब फाल्के ने यदि देश में फिल्म निर्माण आरम्भ किया तो पारसी सेठ आर्देशिर ईरानी ने उसे जुबान दी | आलम आरा को देखने के लिए जबर्दस्त जन सैलाब उमड़ा था | यहाँ तक कि दर्शको को काबू में रखने के लिए लाठियाँ भांजनी पड़ी थी | आज “आलम आरा” का कोई दर्शक शायद ही धराधाम पर जीवित बचा हो | इस पहली बोलती फिल्म की भाषा को न तो शुद्ध हिंदी कहा जा सकता है और न शुद्ध उर्दू | यह मिली-जुली हिन्दुस्तानी थी जिसे पारसी शैली के नाटक लेखक नारायण प्रसाद बेताब ने दूध में घुली मिश्री की डली बताया था |
मूक फिल्मो के दर्शक अब तो अपनी दृश्यशक्ति का उपयोग करके कथानक का रस ग्रहण करते थे | अब नेत्रों के साथ साथ उन्हें श्रवण शक्ति का प्रयोग कर संवादों तथा गीतों का भी रसास्वादन करना था | टॉकी फिल्मो की लोकप्रियता निरंतर बढती गयी | फाल्के ने अपनी मूल फिल्म “सेतुबंध” को शीघ्र ही सवाक बनाया | इसी प्रकार वी.शांताराम ने अपनी पहली टॉकी “अयोध्या का राजा” को स्टेज पर उतारा |
तकनीक का विकास न होने के कारण निर्माताओ के समक्ष अनेक कठिनाईया थी | साउंडप्रूफ स्टूडियो न होने के कारण अनावश्यक आवाजो से बचने के लिए रात को उस समय शूटिंग करनी पड़ी थी जब स्टूडियो के पास से रेल की पटरी पर दौड़ने वाली आखिरी लोकल ट्रेन निकल जाती | संयोगवश अर्देशिर का स्टूडियो रेल पटरी से ही लगता था | अंतत: आलमआरा तैयार हुयी | इसमें सात गाने थे | इनमे से जिसे लोकप्रियता मिली उसके बोल थे “दे दे खुदा के नाम पर” और इसे वजीर मोहम्मद खान ने गाया था | यद्यपि ये फिल्म के नायक नही थे किन्तु उन्हें प्रथम हिंदी फिल्म गीत गायक होने का श्रेय मिला |इस फिल्म की नायिका थी जुबैदा और नायक थे मास्टर विट्ठल | फिल्म में अन्य कलाकार थे पृथ्वीराज कपूर , जगदीश सेठी |
यहाँ एक रोचक प्रसंग उल्लेक्नीय है मास्टर विट्ठल शिक्षित नही थे इसलिए न्रिमाताओ ने उन्हें नायक का काम देने से इस कारण इन्कार किया कि वे संवाद बोलने में कठिनाई अनुभव करेंगे किन्तु मास्टर विट्ठल वैतनिक मुलाजिम थे | उन्होंने फिल्म एम् न लिए जाने को अपना अपमान समझा और कम्पनी पर मुकदमा ठोक दिया | गौरतलब है कि मिस्टर जिन्ना जो बम्बई के जाने माने बैरिस्टर थे | उन्होंने मास्टर विट्ठल को विजय दिलाई और वे आलम आरा के नायक बने |
वस्तुत: आलम आरा का निर्माण पारसी नाटको की तकनीक का विकसित रूप था क्योंकि तब तक इस शैली के नाटको का ही प्रचलन था | अब तक जो फिल्मे बनती थी वे अधिकांशत: पौराणिक अथवा एतेहासिक होती थी | आलम आरा की प्रेम कहानी दर्शको के लिए कुछ नवीनता लेकर आयी | तब तक गायन की प्लेबैक पद्धति का प्रचलन नही हुआ था अत: पात्रो को संवाद बोलने के साथ अपने गीत खुद गाने पड़ते थे | नायिका जुबैदा ने जो गीत गाया उसके बोल थे “बदला दिलवाएगा यारब”|
सारा फिल्मांकन प्रत्यक्ष होता था इसलिए संगीत प्रस्तुत करते समय सान्जिदो को किसी पेड़ या खम्भे के पीछे छिपकर बैठना पड़ता था अन्यथा उनकी शकले भी दिखाई दे जाती | जो हो सवाक फिल्मे चली तो लोगो को रोजगार के अवसर मिले | संवाद लेखक , गीतकार , संगीत निर्देशक , साजिंदे और ध्वनि को रिकॉर्ड करने वालो को जीविका निर्वाह के साधन मिले | 77 साल पुरानी आलम आरा का आज कोई भी प्रिंट तक उपलब्ध नही है |
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