कौन हैं रोहिंग्या, भारत में कितने हैं और किन राज्यों में रहते हैं

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भारत सरकार पहली बार देश में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजेगी. पहली बार में 7 लोगों को वापस भेजा जाएगा. हालांकि, इस मुद्दे पर आज ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी होगी. केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, मणिपुर की मोरेह सीमा चौकी पर 7 रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार के अधिकारियों को सौंपा जाएगा. फिलहाल ये 7 रोहिंग्या असम के सिलचर स्थित हिरासत केन्द्र में बंद हैं.

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केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 40 हजार रोहिंग्या गैरकानूनी तौर पर रह रहे हैं. ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान इस वक्त जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रहते हैं.
 
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मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस समय यूएनएचसीआर के पास भारत में रह रहे 14,000 से अधिक रोहिंग्या के बारे में जानकारी मौजूद है. हालांकि जो दूसरी सूचनाएं गृह मंत्रालय के पास मौजूद हैं, उनके मुताबिक लगभग 40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं.
 
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आपको बता दें कि अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाना और उन्हें वापस भेज देना एक निरंतर प्रक्रिया है, केंद्र सरकार यानी गृह मंत्रालय विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के लिए मिले अधिकार के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर रहा है.
 
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राज्य सरकारों और वहां के प्रशासन को भी रोहिंग्या सहित अवैध रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान करने उन्हें रोकने और उन्हें वह वापस भेजने की शक्तियां दी गई हैं. भारत में सबसे ज्यादा रोंहिग्या मुस्लिम जम्मू में बसे हैं. वहां करीब 10,000 रोंहिग्या मुस्लिम रहते हैं.
 
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गौरतलब है कि म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया था. जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही है
 
हालांकि, इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों ने इसमें हवा देने का काम किया.
 
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उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे. इसी क्रम में कई रोहिंग्या मुसलमान भारत में भी घुस आये थे और अब केंद्र सरकार इन पर एक्शन लेने के मूड में हैं.
 
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रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही चला आ रहा है. बताया जाता है कि राखिन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं. ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था.
 
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1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया. इस दौरान ब्रिटिश  शासकों ने बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान लाना शुरु किया. इस तरह म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई.
 
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बांग्लादेश से जाकर राखिन में बसे ये वही लोग थे जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है. रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया. इस कानून के तहत रोहंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई.
 
 
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