भारत में मई का महीना अक्सर तेज़ चिलचिलाती हुई धूप का होता है जब पारा 40 के पार होता है. लेकिन इस साल ऐसा नहीं है.
साल 2019 में मई में राजधानी दिल्ली में एक सप्ताह छोड़कर पूरे महीने पारा 40 के ऊपर रहा. लेकिन इस साल अब तक पारा 40 के नीचे रहा है और आने वाले कुछ दिनों तक भी ऐसा ही रहने कीउम्मीद की जा रही है.
इस साल मार्च और अप्रैल के बाद मई के महीने में भी तेज़ हवाएं चलीं और रुक-रुक कर बारिश होती रही. कई जगहों पर तो बिन मौसम अचानक हुई बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को भारी नुक़सान पहुंचाया.
भारतीय मौसम विभाग ने बुधवार 13, 14 और 15 मई को भी उत्तर भारत में कई इलाक़ों में बिजली कड़कने और बारिश होने की चेतावनी दी है.
साथ ही मौसम विभाग ने ये भी कहा है कि आंकड़ों के अनुसार पूरे उत्तर, पूर्व, केंद्रीय और दक्षिण भारत में इस साल तापमान बीते सालों के मुक़ाबले कम ही रहा है.

वेस्टर्न डिस्टर्बेंस
भारतीय मौसम विभाग में वैज्ञानिक कुलदीप श्रीवास्तव ने बीबीसी को बताया कि इस साल वेस्टर्न डिस्टर्बेंस यानी पश्चिमी विक्षोभ लगातार चल रहा है जिस कारण मौसम बार-बार बिगड़ रहा है.
वो कहते हैं, “पश्चिमी विक्षोभ जितना समान्य रूप से होना चाहिए इस बार उससे अधिक है. शुरुआत से ही यानी जनवरी से ही ये अधिक है. एक महीने में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के अमूमन पांच-छह वाक़ये होते हैं, लेकिन जनवरी में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के नौ वाक़ये सामने आ गए थे.”
चक्रवाती हवाओं के दबाव बनने से पश्चिमी विक्षोभ तैयार होता है और अक्तूबर से लेकर मई जून तक इसके कारण हवा चलती है और बारिश होती है.
कुलदीप श्रीवास्तव ने बीबीसी को को बताया, “पश्चिमी विक्षोभ के कारण पूरे उत्तर पूर्वी इलाक़े में बारिश हो रही है और इसका सीधा असर तापमान पर पड़ रहा है जो कि जनवरी से ही बाक़ी सालों के मुक़ाबले कम है. यही वजह है कि पिछले साल मई में तापमान 46-47 तक चला गया था लेकिन इस बार ऐसा नहीं है.”
वो कहते हैं कि ये कोई पहली बार नहीं है. इससे पहले 2013-14 में भी भारत में काफ़ी पश्चिमी विक्षोभ आए थे.
वो कहते हैं, “वास्तव में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के पैटर्न में दशक में एक बार बदलाव आ जाता ही है, कभी-कभी ये कम भी हो सकता है और कभी-कभी ये केवल पहाड़ी इलाक़ों को अधिक प्रभावित करता है.”
क्या ये जलवायु परिवर्तन है?
सेंटर ऑफ़ साइंस ऐंड एनवायर्नमेन्ट में जलवायु मामलों पर नज़र रखने वाले तरुण गोपालकृष्णण ने बीबीसी को बताया कि केवल उत्तर भारत या पूर्वी भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में मौसम बीते सालों की अपेक्षा इस साल अलग ही है.
हालांकि वो मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन को फ़िलहाल इसका कारण नहीं कहा जा सकता.
वो कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन के कारण जो बदलाव दिखेंगे वो अधिक बड़े बदलाव होंगे, जैसे देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ तो कुछ हिस्सों में भयंकर सूखा. साथ ही वो लंबे वक़्त यानी एक-दो साल के अधिक तक दिखेंगे.”
वहीं कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “मौसम में ये बदलाव हम फ़िलहाल इसी साल देख रहे हैं और मान सकते हैं कि ये दस साल में होने वाले बदलाव जैसा है ही. लेकिन अगर ये अभी और एक-दो साल तक होता रहता है तो इस पर सोचा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन भी इसके पीछे कारण भी हो सकता है. ”
लॉकडाउन
बीते साल दिसंबर में जैसे-जैसे कोरोना महामारी ने चीन में अपने पैर पसारने शुरू किए तो चीन में लॉकडाउन की घोषणा की गई.
इसके बाद इस साल कई और देशों ने इस वायरस को फैलने से रोकने की कोशिश में लॉकडाउन लगा दिए. इसके साथ ही पूरी दुनिया में यातायात पर भी एक तरह लगाम लग गई.
इसका सीधा असर हुआ कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण पर. चीन में फ़रवरी की शुरुआत से और मार्च के मध्य तक कार्बन उत्सर्जन में 18 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गई. कुछ यही हाल यूरोपीय कमीशन में शामिल देशों और भारत का भी रहा.
लेकिन क्या भारत में मौसम में हो रहे बदलाव का कारण ये हो सकता है?

कार्बन उत्सर्जन
तरुण गोपालकृष्णण ने बीबीसी से कहा, “प्रदूषण के कम होने का कुछ असर होता तो है लेकिन अभी तक हमारे पास इस तरह के आंकड़े नहीं हैं जो इस बात कि तस्दीक कर सकें. ऐसे में फ़िलहाल इसे मौसम परिवर्तन कहना सही होगा न कि जलवायु परिवर्तन.”
कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “कार्बन उत्सर्जन कम होने यानी प्रदूषण में कमी होने का स्थानीय स्तर पर असर पड़ता है लेकिन व्यापक स्तर पर इसका कम ही असर होता है. फिर भी स्थानिय स्तर पर इसके कारण 1 डिग्री सेल्सियस तक का बदलाव हो सकता है.”
तरुण गोपालकृष्णण कहते हैं कि “अगर आप बीते 15 सालों के आंकड़ों को देखें तो आपको पता चलेगा कि भारत में औसत सालाना तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जाती रही है और ये बढ़ोतरी लगभग ऐसी ही रही है.”
“आप ये मान सकते हैं कि लॉकडाउन खुलने के साथ सड़कों पर यायायात लौटेगा, बंद पड़े कारखाने नुक़सान की भरपाई करने की कोशिश करेंगे और अगले साल तक कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ेगा. लेकिन फ़िलहाल मौसम में बदलाव के लिए ये एक साल बस दूसरे सालों से थोड़ा अलग है.”
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