किसी देश की अर्थव्यवस्था को मापने का इकलौता पैमाना क्या होता है? जाहिर है जीडीपी. जीडीपी की ग्रोथ रेट जितनी ज्यादा होगी, अर्थव्यवस्था उतनी ही तेजी से आगे बढ़ेगी. अगर जीडीपी की ग्रोथ रेट कम है तो देश में मंदी है. और अगर अपने मुल्क की बात करें तो ये साफ है कि देश में मंदी है. जीडीपी का पांच फीसदी का आंकड़ा इसकी गवाही देता है.
और जीडीपी जिन तीन बड़े सेक्टरों के आधार पर तय की जाती है, उनमें से एक है उद्योग. अगर उद्योगों का उत्पादन कम हो रहा है, तो उसका सीधा असर जीडीपी पर पड़ता है. और अब भी यही हो रहा है. देश का औद्योगिक उत्पादन लगातार गिरता जा रहा है. और 11 नवंबर के आंकड़े बताते हैं कि देश का औद्योगिक उत्पादन पिछले आठ साल के सबसे निचले स्तर पर है.
औद्योगिक उत्पादन क्या होता है और क्यों ये आठ साल के सबसे निचले स्तर पर है, इसे समझने की कोशिश करते हैं आसान भाषा में.
क्या होता है औद्योगिक उत्पादन?
जैसा कि नाम से ही जाहिर है, उद्योगों के उत्पादन के आंकड़े को औद्योगिक उत्पादन कहते हैं. मूलत: इसमें तीन बड़े सेक्टर शामिल किए जाते हैं. पहला है मैन्युफैक्चरिंग. यानी उद्योगों में जो बनता है, जैसे गाड़ी, कपड़ा, स्टील, सीमेंट जैसी चीजें. दूसरा है खनन, जिससे निकलता है कोयला और खनिज़ और तीसरा है यूटिलिटिज़ यानी जन सामान्य के लिए इस्तेमाल होने वाली चीजें, जैसे सड़कें, बांध और पुल. ये सब मिलकर जितना भी प्रोडक्शन करते हैं, उसे कहते हैं औद्योगिक उत्पादन.
इसे नापा कैसे जाता है?
औद्योगिक उत्पादन को नापने की इकाई है आईआईपी. यानी कि इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन. इसके नापने का आधार वर्ष है 2011-12. यानी कि 2011-12 की तुलना में इस वक्त उद्योगों के उत्पादन में जितनी तेजी या कमी होती है, उसे कहा जाता है आईआईपी. इस पूरे आईआईपी का 77.63 फीसदी हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आता है. इसके अलावा बिजली, स्टील, रिफाइनरी, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, प्राकृतिक गैस और उर्वरक ये आठ बड़े उद्योग हैं, जिनके उत्पादन का सीधा असर आईआईपी पर दिखता है. देश में आंकड़े जारी करने की जो संस्था है सीएसओ (सेंट्रल स्टैटिक्स ऑफिस), वो हर महीने इसके आंकड़े जारी करती है.
अभी क्या हुआ है?
11 नवंबर को सीएसओ ने आंकड़ा जारी किया है. सीएसओ के मुताबिक सितंबर, 2019 में औद्योगिक उत्पादन में 4.3 फीसदी की कमी आई है. औद्योगिक उत्पादन में पिछले आठ साल की ये सबसे बड़ी गिरावट है. सितंबर से पहले अगस्त, 2019 में भी गिरावट आई थी, लेकिन तब गिरावट मात्र 1.4 फीसदी की ही थी. हालांकि अगर पिछले साल से तुलना करें, तो सितंबर, 2018 में औद्योगिक उत्पादन 4.6 फीसदी बढ़ा था. आठ साल पहले जब आईआईपी की गणना करने के लिए बेस ईयर में बदलाव किया गया था और इसे 2004-05 से बदलकर 2011-12 किया गया था, तो नए बेस ईयर से आईआईपी में पांच फीसदी की गिरावट आ गई थी.
क्यों हुई ऐसी हालत?
सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक सितंबर महीने में खनन क्षेत्र में 8.5 फीसदी, मैन्युफैक्चरिंग में 3.9 फीसदी और बिजली में 2.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जिसका सीधा असर आईआईपी के आंकड़े पर दिख रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 23 बड़े उद्योगों में से 17 उद्योगों का उत्पादन निगेटिव रहा. सबसे ज्यादा निगेटिव उत्पादन रहा बड़ी गाड़ियां जैसे ट्रेलर्स बनाने वाले उद्योगों का, जिनका उत्पादन माइनस 23.6 फीसदी रहा. इसके बाद नंबर आता है फर्नीचर उद्योग का, जिसमें फैब्रिकेटेड फर्नीचर का उत्पादन माइनस 22 फीसदी रहा. इसके अलावा और भी कई बड़े उद्योग हैं, जिनका उत्पादन निगेटिव रहा और जिसकी वजह से आईआईपी पिछले आठ साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया है. हालांकि इस दौरान सबसे ज्यादा ग्रोथ लकड़ी से बनने वाले सामान की रही और इसमें 15.5 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई.
क्या होगा असर?
31 अगस्त, 2019 को जीडीपी का सबसे ताजा आकड़ा आया था. इसमें बताया गया था कि साल 2019 की अप्रैल-जून की तिमाही में जीडीपी पांच फीसदी पर है. और तब औद्योगिक उत्पादन में इतनी बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई थी. अब 30 नवंबर को एक बार फिर से जीडीपी का आंकड़ा आने वाला है. और उससे पहले आया है औद्योगिक उत्पादन का आंकड़ा, जो आठ साल के निचले स्तर पर है. ऐसे में इसका सीधा असर जीडीपी के आंकड़े पर देखने को मिल सकता है और जीडीपी पांच फीसदी से भी नीचे आ सकती है.
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