कोरोना के हमले की शुरुआत से ही हम सोशल डिस्टेंसिंग की बात कर रहे हैं. अब सोशल डिस्टेंसिंग से ही जुड़ा एक ऐसा कॉन्सेप्ट आया है, जिसकी मदद से न्यूज़ीलैंड ने कोरोना को मात दे दी है. कॉन्सेप्ट है ‘सोशल बबल’ का.
बैकग्राउंड
कोरोना वायरस इंफेक्शन को रोकने के लिए कई देशों ने लॉकडाउन लगाए. लेकिन लॉकडाउन के चलते कामकाज भी ठप हो गया. साथ ही लोग एक तरह से घरों में कैद हो गए. इकॉनमी से लेकर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य तक- हर चीज़ पर असर आया. कोई भी लॉकडाउन लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता. कभी न कभी तो इसे खोलना होगा. इसी कड़ी में सोशल बबल का उपाय सामने आया.
क्या है सोशल बबल
सोशल यानी समाज से जुड़ा हुआ. और बबल का मतलब होता है बुलबुला. अंग्रेजी में एक कहावत है. लिविंग इन अ बबल. वो लोग जो अपने ही छोटे से ग्रुप में रहते हैं, जिनका समाज की असलियत से पाला नहीं पड़ता. इस फ्रेज़ का अर्थ नेगेटिव है. मगर जिस बबल की हम बात कर रहे हैं, वो लोगों की जान बचा सकता है. यहां बबल का मतलब होगा कुछ लोगों का एक छोटा सा घेरा.
इसे ऐसे समझें:
मिस लल्ली अपने हसबेंड पुत्तन और बेटे किट्टू के साथ एक अपार्टमेंट में रहती हैं. सामने वाले फ्लैट में सुनीता अपने पति सुरेश के साथ रहती हैं. मिस लल्ली और पुत्तन, दोनों सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं. उनको वर्क फ्रॉम होम की सुविधा है. किट्टू का तो स्कूल ही बंद है.
सुनीता एक टीचर हैं और घर से ऑनलाइन क्लास ले रही हैं. सुरेश होममेकर हैं, घर पर रहते हैं. इन दोनों परिवारों का आपस में आना जाना है. दोनों की परिवारों से कोई भी किसी बाहरी के फिजिकल संपर्क में नहीं आता. ये दोनों परिवार मिलकर एक सोशल बबल बना सकते हैं. क्योंकि एक दूसरे से मिलकर ये कसी को खतरे में नहीं डाल रहे.
अब एक दिन लल्ली को उसके भाई का कॉल आया. बहन मैं मिलने आ जाऊं. उसका भाई एक मीडिया प्रोफेशनल है. और लगातार ऑफिस जाता रहा है. अब ऐसी स्थिति में अगर लल्ली अपने भाई को घर बुला लेती है तो वो बबल को ब्रेक कर देगी. क्योंकि उसका भाई जाने कितने लोगों से मिला होगा और मुमकिन है कि सारी प्रिकॉशन के बाद भी कभी वायरस से एक्सपोज़ हुआ हो.
लल्ली का अपने भाई से मिलना उसकी अपनी फैमिली के साथ सुनीता की फैमिली को भी खतरे में डाल सकता है. और ट्रांसमिशन की चेन बन सकती है.
लल्ली का परिवार एक छोटा बबल है. सुनीता का परिवार दूसरा. दोनों आपस मिलते हैं तो यह सोशल बबल हो जाएगा.
इस फोटो से आप सोशल बबल को समझ सकते हैं. ऊपर दो परिवार यानी दो अलग-अलग बबल. फिर ये मिल गए तो यह सोशल बबल बन गया.
विद्वान क्या कह रहे
ब्रिटेन की ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में कहा गया है कि लोग छोटे-छोटे ग्रुप में एक-दूसरे से मिलें तो कोरोना संक्रमण रोका जा सकता है. यह सोशल डिस्टेंसिंग से बेहतर तरीका है. क्योंकि इसमें लोगों को आइसोलशन यानी अकेलेपन की टेंशन नहीं होगी.
ब्रिटेन के ही लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस की रिसर्च कहती है. कि सोशल बबल एक तरह से छोटे-छोटे समुदाय होंगे. इनमें बहुत कम लोग होंगे. जो होंगे उनका भी संपर्क का दायरा छोटा होगा. इसके चलते वायरस का संक्रमण होना मुश्किल होगा. अगर किसी को एक को संक्रमण हुआ भी तो वह ज्यादा फैलेगा नहीं. साथ ही उन्हें ट्रेस करना भी आसान होगा.
क्या इसकी टेस्टिंग हुई है?
जी हां. सबसे पहले न्यूजीलैंड ने ऐसा किया. वहां एक परिवार को एक बबल माना गया. इसके तहत एक परिवार को दूसरे परिवार से मिलने दिया गया. एक सोशल बबल कहलाया. लेकिन ध्यान रखा गया कि जो दो परिवार मिल रहे हैं, वे किसी ओर से न मिले.
ऩ्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा आर्डन ने पिछले दिनों बताया कि उनका देश कोरोना फ्री हो चुका है. (Photo: AP)
एक-दूसरे के संपर्क में रहने से उनका काम भी आपस में बंट गया. जैसे एक आदमी ही मार्केट जाकर सबके लिए सामान ले आया. कोई एक परिवार दफ्तर गया तो उसके बच्चों को दूसरे ने संभाल लिया. ऐसे में लोग आपस में जुड़े भी रहे और बाहर भी नहीं निकले. नतीजा रहा कि न्यूजीलैंड में कोरोना के 1504 मामले ही सामने आए. यहां इस बीमारी से सिर्फ 22 लोगों की मौत हुई. और यह कोरोना मुक्त भी हो चुका है.
और कौन इसे अपना रहे हैं?
दुनिया के बाकी देश भी इस तरीके को आजमा रहे हैं. जर्मनी और इटली ने इसे शुरू किया है. इसके अलावा ब्रिटेन भी सोशल बबल को लागू करने पर काम कर रहा है. अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को राज्य ने भी इसी तरह की रणनीति बनाई है.
इंडिया के हाल क्या हैं?
भारत में अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है. वैसे भी यहां पर लॉकडाउन खुलना शुरू हो चुका है. धीरे-धीरे करके सबकुछ पहले की तरह हो रहा है. साथ ही ताज़ा केसेज बढ़ते जा रहे हैं.
अगर हम अभी भी सोशल बबल और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को मानें. तो इस खतरे को उन तक पहुंचने से रोक सकते हैं. जो सुरक्षित हैं.
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