₹2 लाख से शुरू किया था कपड़े प्रेस करने का कारोबार, अब हर महीने कमा रहीं ₹4 लाख रुपये

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हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां फर्स्ट इंप्रेशन काफी मायने रखता है। पहली मुलाकात के बाद सामने वाला शख्स हमारे बारे में जो राय बनाता है, उसी पर काफी हद तक हमारे रिश्ते का भविष्य टिका होता है। अगर पहली मुलाकात में ही किसी को प्रभावित करना हो तो कपड़ों का रोल काफी अहम हो जाता है। कई बार लोगों कपड़ों के आधार पर ही सामने वाले को जज करते हैं।

चाहे महिलाएं हों, पुरुष हों या फिर बच्चे हों, हर किसी को साफ-सुथरे कपड़े पहनना पसंद होता है। हालांकि, सभी को कभी न कभी अपने धोबी से शिकायत हो जाती है। कई बार दाग सही से साफ न करने को लेकर धोबी से बहस बन जाती है तो कभी कपड़ों का नुकसान इसकी वजह बनता है। संध्या नांबियार ने आम आदमी को इन्हीं परेशानियों से छुटकारा दिलाने के लिए 2017 में इस्तरीपेटी की नींव रखी थी। यहां कपड़ों को ग्राहकों के दिशानिर्देश के मुताबिक काफी सावधानी से धोया जाता है। इस्तरी करते समय भी कपड़ों का खास ख्याल रखा जाता है।

तमिल में इस्तरी पेटी का मतलब एक लोहे का प्रेस होता है, जिसमें कोयला भरकर गर्म करके कपड़ों पर इस्तरी की जाती है। संध्या की इस्तरीपेटी एक प्रोफेशनल आयरनिंग और लॉन्ड्रिंग बिजनेस है। यह बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) और बी2सी (बिजनेस टू कंज्यूमर) दोनों तरह के क्लाइंट्स को सर्विस देता है।

 

संध्या बताती हैं,

‘हम अपने सभी ग्राहकों को सुगंधित इस्तरी किए हुए कड़क और करीने से सजे कपड़े देना चाहते हैं, ताकि उनसे बिल्कुल नए कपड़ों जैसी महक आए। भारत में लॉन्ड्री बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र है। हम इस्तरीपेटी के साथ इस काम को आसान बनाना चाहते हैं, जिससे ग्राहक की खुशी और संतुष्टि मिले।’

इस्तरीपेटी का चेन्नई में स्थित है। यह स्टार्टअप कपड़ों को घर, ऑफिस या ग्राहकों की सुविधा के हिसाब से कहीं भी लाता है और फिर उनकी बताई जगह पर डिलीवर कर देता है। इसका मतलब है कि आपको रोजाना अपने धोबी से कपड़ों के धब्बे, बदबू, नकद लेन-देन या समय को लेकर बहस नहीं करनी पड़ेगी।

 

इस्तरीपेटी की शुरुआत की कहानी

हर घर में लोगों को कपड़े धोने और आयरन करने से दिक्कत होती है। हम भारतीयों को परेशानी इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि हम अलग-अलग और नाजुक वेरायटी वाले कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं।

 

संध्या बताती हैं,

‘मैं एक वर्किंग प्रोफेशनल थी। मैं भी इस काम से नफरत करती थी। मुझे अक्सर दाग या कपड़े गायब होने को लेकर धोबी से बहस करनी पड़ती थी। इन सबने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि हर घर में कपड़े धोने की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस काम को पुराने ढंग से चलाया जा रहा है।’

 

संध्या अपने बिजनेस आइडिया के बारे में बताते हुए कहती हैं,

‘हम पहले पड़ोस की किराना दुकानों पर फोन करके समान मंगाते थे। फिर उसमें थोड़ा बदलाव करके एप्लिकेशन का रूप दे दिया गया। मैंने इस आइडिया को कपड़े धोने के कारोबार में भी आजमाने का फैसला किया।’

संध्या एक एचआर प्रोफेशनल्स रह चुकी हैं। उन्होंने लॉन्ड्री सेगमेंट पर रिसर्च करते समय महसूस किया कि यह महत्वपूर्ण सेगमेंट असंगठित है, जिस पर पेशेवर नजरिए से ध्यान नहीं दिया गया है। उन्हें लगा कि अभी इस क्षेत्र में काफी कुछ करने की गुंजाइश है। संध्या ने फिर अपनी तरह के सोच वाले दोस्तों के साथ इस आइडिया पर काम करना शुरू किया।

इस तरह उनके दिमाग की उपज से इस्तरीपेटी का जन्म हुआ। इसे जनवरी 2018 में चेन्नई के नुंगमबक्कम में एक माइक्रो-साइज स्टीम आयरनिंग यूनिट के रूप में शुरू किया गया था। अब यह स्टार्टअप शहर के पल्लीकरनई में स्थापित एक छोटी फैक्ट्री बन गया है। यहां कपड़े धोने और स्टीम आयरन जैसी सुविधाएं मिलती हैं। यह हॉस्पिटैलिटी सेक्टर और रिटेल ग्राहकों को सर्विस देता है। इस्तरीपेटी को सबसे बड़ी कामयाबी तब मिली, जब इसने ओयो और कंपास के साथ कारोबारी समझौता किया।

 

संध्या बताती हैं,

‘हम पूरे शहर में OYO को सर्विस देते हैं। हमें कंपास के जरिए फोर्ड और शेल जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों का काम मिला। यह इस्तरीपेटी जैसे स्टार्टअप के लिए काफी शानदार अनुभव है।’

 

कारोबारी चुनौतियां

इस्तरीपेटी को कारोबार जमाने की राह में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें लोगों को समझाना पड़ा कि स्टीम आयरनिंग किस तरह से आम आयरनिंग से अलग है। स्टार्टअप के सामने कपड़ों की सुरक्षा और क्वॉलिटी बरकरार रखने का भरोसा देने की चुनौती भी थी। भारत में लोग कीमतों को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं। इसलिए इस्तरीपेटी की सर्विस को मध्यम-वर्गीय परिवारों और कामकाजी पेशवरों के लिए किफायती बनाने का चैलेंज भी था। हालांकि, संध्या इन सब चुनौतियों से निपटते हुए अपने स्टार्टअप को अलग पहचान दिलाने में सफल रहीं। हालांकि, संध्या का कहना है कि वह मार्केट को लेकर आशावादी हैं।

 

वह बताती हैं,

‘हमें बी2बी और बी2सी दोनों सेगमेंट में काफी संभावनाएं नजर आती हैं। पिछले कुछ वर्षों में हॉस्पिटैलिटी और अकोमोडेशन (आवास) इंडस्ट्री ने काफी ग्रोथ की है। इसके अलावा आईटी पार्क, इंस्टीट्यूशंस और मेडिकल फैसिलिटीज में बढ़ोतरी से भी बी2बी और बी2सी सेगमेंट में लॉन्ड्री बिजनेस के लिए ग्रोथ के दरवाजे खुले हैं।’

स्टैटिस्टा के मुताबिक, 2019 में लॉन्ड्री केयर सेगमेंट का कारोबार तकरीबन 3.96 अरब डॉलर का है। इसके 2023 तक सालाना 3.7 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। संध्या की इस्तरीपेटी लॉन्ड्री मार्केट में पिकमायलॉन्ड्री, अर्बन धोबी, टूलर जैसे स्टार्टअप के साथ मुकाबला कर रही है। हालांकि, संध्या का कहना है कि इस्तरीपेटी की सर्विस की क्वॉलिटी, डिलीवरी टाइम और डिस्काउंट इसे दूसर स्टार्टअप से अलग करते हैं।

 

और ऐसे बढ़ते गए नंबर

इस्तरीपेटी ने 2018 में सिर्फ दो कर्मचारियों के साथ कारोबार शुरू किया था। फिलहाल, स्टार्टअप के साथ 15 कर्मचारी काम करते हैं। इसके पास अभी 350 से अधिक ग्राहक हैं। यह 3 किलो कपड़ों की धुलाई के लिए 200 रुपये लेता है। वहीं, 3 किलो कपड़ों की धुलाई और इस्तरी का चार्ज 300 रुपये है। इस्तरीपेटी में एक फैमिली पैकेज भी है। इसमें 15 किलो कपड़ों की धुलाई 900 रुपये में होती है।

 

संध्या निवेश के बारे में बात करते हुए कहती हैं,

‘इस्तरीपेटी की शुरुआत 2 लाख रुपये के निवेश के साथ हुई थी। उस वक्त हम सिर्फ स्टीम आयरनिंग सर्विस देते थे। हालांकि, हमें बाद में लगा कि कपड़े धोने जैसी सेवाओं की मांग बढ़ रही है तो हमने उसे भी शुरू किया। हम एक एंजेल (फरिश्ता) इनवेस्टर की मदद से वॉशिंग इक्विपमेंट खरीदने के लिए 11 लाख रुपये जुटाने में कामयाब रहे। हम शहर के भीतर और बाहर कारोबार बढ़ाने के लिए निवेशक तलाश रहे हैं।’

इस्तरीपेटी ने 2017 में 4.2 लाख रुपये का कारोबार किया था। अब यह हर महीने औसतन 4 लाख रुपये कमाती है। यह अपनी मौजूदा सुविधाएं के साथ औसत मासिक बिक्री को 5 लाख रुपये करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। संध्या कहती हैं कि हमें अपने स्टार्टअप को लेकर लोगों से शानदार रिस्पॉन्स मिल रहा है। इसलिए इस्तरीपेटी अगले साल तक शहर के मुख्य स्थानों पर कुछ और रिटेल यूनिट खोलने की योजना बना रही है।

 

संध्या ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा,

‘हम लॉन्ग टर्म विजन के तौर पर कारोबार में शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर लोगों को भी रोजगार देकर उनके लिए फ्रेंचाइजी बनाना चाहते हैं। इससे न केवल उन लोगों को रोजगार के मौके मिलेंगे, बल्कि यह समाज में उन्हें स्वीकार करने की दिशा में एक बड़ी पहल होगी।’




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