जब 1965 के युद्ध में भारत के दो पायलटों ने तीन पाकिस्तानी जहाज़ मार गिराए थे

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टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,

कोख धरती की बांझ होती है.

फ़तह का जश्न हो या हार का सोग,

जिंदगी मयत्तों पर रोती है.

इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों,

जंग टलती रहे तो बेहतर है.

आप और हम सभी के आंगन में,

शमा जलती रहे तो बेहतर है…

मशहूर शायर और गीतकार साहिर लुधियानवी की नज़्म है ये. लेकिन दुनिया नज़्मों और ग़ज़लों के हिसाब से चलती तो कितनी ख़ूबसूरत होती. हिसाब से चलें तो 54 साल पहले एक आसमानी हिसाब आज ही के दिन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर चढ़ा था. 65 का भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था. दोनों देश एक दूसरे पर बढ़त लेने की हर कोशिश में थे. ज़मीन, पानी और आसमान तीनों में लोहा और बारूद घुला हुआ था. ये कहानी आसमान की है. जब भारतीय वायुसेना के चार लड़ाकू विमानों ने एक साथ चार पाकिस्तानी सैबर जेट विमानों को घेर लिया था.

कीलर बनाम सैबर्स

लड़ाई शुरू होने के तक़रीबन दो हफ़्तों बाद चाविंडा सेक्टर में एक आसमानी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गई कि वो मिसटियर्स जहाजों को एस्कॉर्ट करें. इस टुकड़ी के एक सेक्शन को लीड कर रहे थे डेन्ज़िल कीलर. उनके साथ थे फ़्लाइंग ऑफ़िसर मुन्ना राय. दूसरे सेक्शन में थे फ़्लाइंग ऑफ़िसर विनय  कपिला और फ़्लाइंग ऑफ़िसर विजय मायादेव. चाविंडा में चार सैबर विमान भारतीय फ़ौज पर लगातार गोलीबारी कर रहे थे. सेना को एयर सपोर्ट की सख्त ज़रूरत थी.

जैसे ही भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान चाविंडा पहुंचे, पाकिस्तान की तरफ से विमानभेदी तोपों से उन पर हमला शुरू हो गया. हमारे लड़ाकू विमान बहुत नीचे उड़ रहे थे. इस वजह से तोपों के गोले उनके ऊपर फट रहे थे. एंटी एयरक्राफ्ट तोपों से बचने की ये अनोखी रणनीति थी, जिससे पाकिस्तानी वायुसेना धोखा खा गई.

सबसे पहले कपिला ने 2000 फ़ीट की ऊंचाई पर चार पाकिस्तानी सैबर विमानों को आते देखा. कपिला ने RT माने रेडियो ट्रैफ़िक पर साथी पायलटों को इसकी जानकारी दी.

सरगोधा बेस से आए पाकिस्तानी सैबर और उनके स्क्वाड्रन लीडर अज़ीम दाउदपोता को पता ही नहीं चला कि चार भारतीय लड़ाकू विमान नीची उड़ान भरते हुए कब उनके ठीक पीछे आ गए.

 

फिर शुरू हुई लुकाछिपी

पाकिस्तानी सैबर विमानों को अपने पीछे दुश्मन होने का पता तब चला जब कीलर का जहाज़ एक पाकिस्तानी सैबर को अपने निशाने पर लेने की कोशिश में उसके ठीक पीछे उड़ान भरने लगा. सैबर विमान तुरंत डिफेंसिव मोड में आ गए. दो-दो के हिस्से में बंट गए.

भारतीय लड़ाकू विमानों ने भी दो अलग-अलग जोड़े बना लिए. कीलर और राय सैबर्स के एक जोड़े के पीछे लग गए जबकि कपिला और मायादेव ने दूसरे सैबर जोड़े का पीछा करना शुरू किया.

 

एंड ऐक्शन

कीलर और कपिला सीज़र बनाते हुए पीछा कर रहे थे. मतलब कैंची स्टाइल में एक दूसरे की ट्रेल काटते हुए सैबर्स को घेर रहे थे.

इधर कीलर और राय की जोड़ी में से कीलर के निशाने पर एक सैबर आते-आते रह गया. कीलर ने राय को वापस बेस लौटने के लिए कहा. क्योंकि कीलर रिस्क कम करना चाह रहे थे. अब कीलर के सामने थे दो पाकिस्तानी सैबर्स. कीलर को न सिर्फ़ उन पर नज़र रखनी थी बल्कि उन्हें निशाने पर भी लेना था. राय के लौटने के बाद कीलर दो सेबर्स के सामने अकेले रह गए थे.

इस बीच सैबर्स से थोड़ा तेज़ उड़ते हुए कपिला ने 500 गज़ की दूरी से सैबर पर सीधा हिट किया. कपिला को लगा कि शायद सैबर बच निकला है. इस बार कपिला सैबर का पीछा करते हुए 300 गज से भी कम दूरी पर आ गए. कपिला ने दूसरा फ़ायर किया.

इस बार भी कपिला को अपना निशाना चूका ही लगा. लेकिन फिर उन्हें अपनी RT पर कीलर की आवाज़ आई ‘Cap you’hv got him. he is going down’

 

अब आई कीलर की बारी

कीलर अभी तक अपने सामने के सैबर जोड़े पर नज़र रखी हुए थे. रह-रहकर उन्हें एंगेज भी कर रहे थे. कीलर सीधे हमले में शामिल नहीं हो रहे थे, क्योंकि उन्हें दूसरी तरफ़ अपने साथी पायलटों की ट्रेल सेफ़ रखनी थी. ताकि कोई उनपर पीछे से हमला न करे.

लेकिन फिर एक पाकिस्तानी सैबर चुपचाप निकलने की कोशिश में अलग दिशा में उड़ा. कीलर ने सेकेंड्स भर में फ़ैसला लिया और अपना जहाज़ पाकिस्तानी सैबर के पीछे लगा दिया. भागता हुआ सैबर अपने पीछे कम उंचाई पर उड़ रहे भारतीय जहाज़ को देख नहीं पाया.

कीलर ने सही मौक़े का इंतज़ार किया और फिर जैसे ही पाकिस्तानी सैबर कीलर की फ़ायरिंग रेंज में आया. कीलर ने ट्रिगर दबा दिया. और अगले ही पल पाकिस्तानी सैबर जलता हुआ नीचे गिर पड़ा. कीलर का जहाज़ तब तक बहुत नीचे उड़ान भरने लगा था.

 

कपिला का लास्ट शॉट

जब तक कीलर संभलते तब तक दूसरा पाकिस्तानी सैबर निकल जाता. लेकिन पीछे से आए कपिला. उन्होंने कीलर से उलझने की कोशिश में लगे पाकिस्तानी सैबर को एंगेज किया और उसे मार गिराया. ये सैबर पाकिस्तानी सीमा में जा गिरा.

 

कीलर-कपिला जोड़ी

कीलर और कपिला जब बेस पर लौट कर उतरे तो उनका ज़बरदस्त स्वागत किया गया. भारतीय वायु सैनिक नाच रहे थे. कपिला और डेन्ज़िल कीलर को इस बहादुरी के लिए उसी दिन वीर चक्र देने की घोषणा हुई.

डेन्ज़िल कीलर के साथ ही उनके भाई ट्रेवर भी उसी बेस पर पोस्टेड थे. दोनों ही फाइटर पायलट थे और दोनों ने कई बार एक साथ उड़ान भरी थी. कीलर को वीर चक्र मिलने से कई दिन पहले ट्रेवर को भी उसी वॉर के लिए वीर चक्र मिलने का ऐलान हो चुका था. ट्रेवर 65 की लड़ाई में उन पहले पायलटों में से थे जिन्होंने पाकिस्तानी जहाज़ मार गिराने की शुरुआत की थी.

65 की लड़ाई ख़त्म होने के बाद लखनऊ के कीलर ब्रदर्स के घर ख़ुद एयरमार्शल अर्जन सिंह गए थे. और कीलर ब्रदर्स के पिता से कहा था ‘आपके बेटों की बहादुरी भारत कभी नहीं भूलेगा.’




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