संसद में उत्पन्न यह अनोखा दृश्य आज राष्ट्रीय मुद्दा हो गया है। गले मिले या गले पड़े की बहस में देश उलझा हुआ है। अविश्वास प्रस्ताव से ज्यादा यह गले वाली बात सबके गले में अटक गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी संसद में अपनी आसन्दी पर बैठे राहुल गांधी के इस बर्ताव से अचंभित रह गए, कुछ क्षण तो वे समझ ही नहीं पाए कि ये हो क्या रहा है, राहुल बाबा भी सपाटे से निकल गए, मोदी जी ने उन्हें वापस बुलाया कान में कुछ कहा पीठ पर हाथ फेरा। राहुल भी मुस्कुराकर चल दिये। अब यह भी फ़िल्म बाहुबली पार्ट वन की आखरी सीन के उस रहस्यमय प्रश्न की तरह तिलस्म हो गया है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा, इसी तर्ज पर मोदी ने राहुल के कान में क्या कहा। खबरिया चैनलों ने तो गले और कान पर डिबेट भी करा दी है।
वैसे राहुल ने कांग्रेस के कहे अनुसार गले मिल कर और भाजपा के मुताबिक गले पड़ कर बुरा क्या किया। अब यह उन्होंने किसी स्क्रिप्ट के तहत किया या सहज रूप में भावुक हो कर किया यह तो राष्ट्रीय अनुसन्धान का विषय है लेकिन इस वाकये ने महाभारत के युद्ध की याद दिला दी।कौरव-पाण्डव दिन में युद्ध करते और शाम को युद्ध विराम के समय एक दूसरे के शिविर में एक दूसरे का हाल चाल पूछने जाते।शायद राहुल ने भी महाभारतकालीन शिष्टाचार की परम्परा का पालन किया हो या उनसे कराया गया हो। पहले तो खूब प्रहार किए और फिर गले मिलने पहुंच गए। लेकिन बाद में बड़ी चूक कर गए शर्तिया यह तो स्क्रिप्ट में नहीं होगा कि गले का मामला निपटा कर आंख मारना।
इन न्यूज चैनलों का भी क्या करो एक-एक चैनल दिन भर कम से कम सौ बार गले मिलते या पड़ते और आंख मारते दिखाते गए दिखाते गए। लोग विश्वास-अविश्वास भूल गए बस यही लीला देखते रहे कई तो जबरन अपने वालों से गले लग कर या पड़ कर इस वाकये का विश्लेषण करने लगे। कईयों की आंखे दिन भर झपझपाने लगी। कुछ ने तो बरसों बाद आंख भी मारी। जिन घरों में आंख मारना अमर्यादित माना जाता था वहां भी कहने बताने के लिए खूब आंख मारी गई। आंख मारने को किसी ने बुरा नहीं माना।
अब तो लगता है आंख मारना एक संसदीय आचरण हो गया है।संसद में जो मारी गई है,आंख मारने के एक नए युग की शुरुवात हो गई है। संसद में जो काम हो सकता है वह कहीं भी हो सकता है। आंख मारने की शिकायत यदि किसी बच्चे की माँ-बाप के सामने आई तो बच्चे के पास अपने बचाव के लिए ठोस संसदीय तर्क होगा, जो उन्हें निरुत्तर कर देगा। वाह क्या गजब की मिसाल हो गई आंख मारने वालों के लिए। प्लासी के युध्द और पानीपत की लड़ाई की तरह यह आंख कांड इतिहास का अध्याय हो जाएगा।संसद में कही गई हर बात और वाकया संसदीय रिकार्ड में सुरक्षित जो रहता है।
बहरहाल जो कुछ हुआ अच्छा हुआ या खराब यह मत-मतान्तर का विषय है मगर जो भी हुआ बड़ा दिलचस्प हुआ।
(ब्रजेश जोशी)
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