स्कूल जाती थीं तो पड़ते थे पत्थर, फिर ऐसे खोला लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल

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आज देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका  सावित्रीबाई ज्‍योतिराव फुले की 187वीं जयंती है. उनका जन्म  3 जनवरी, 1831 को हुआ था. वह भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं.  सावित्रीबाई ज्‍योतिराव फुले को भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन की एक अहम शख्सियत माना जाता है.

सावित्रीबाई फुले की 1840 में 9 साल की उम्र में 13 साल के ज्‍योतिराव फुले से शादी हो गई थी. सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. बता दें, साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी. वहीं, अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था. उन्‍होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की.

 

स्कूल जाती थीं, तो पड़ते थे पत्थर

सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे. उन पर गंदगी फेंक देते थे. सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था. सावित्रीबाई फुले एक कवयित्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवयित्री के रूप में भी जाना जाता था.

 

कई कुरीतियों के खिलाफ हुईं खड़ी

सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया. सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलिवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया.

 

ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती थीं

सावित्रीबाई फुले के पति ज्‍योतिराव फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई थी, तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कामों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया था. उसके बाद सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च, 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई. उनका पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने- लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती थीं.

 

सावित्री बाई की शिक्षा पर लिखी मराठी  कविता का हिंदी अनुवाद

जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती

काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो

ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है

इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो

दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है

इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो.

 

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