आसमान में टूटते तारों की बौछार क्यों हो रही है?

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अभी 14 नवंबर को दिवाली थी. लोगों ने अपने पटाखे फोड़-फाड़ के खत्म कर लिए. लेकिन आसमान में एक लाइट शो अभी चल रहा है. इसके पीछे कोई व्यक्ति या संस्था नहीं है. इसकी वजह है टूटते तारे. एक नहीं बहुत सारे. हर साल नवंबर के महीने में ऐसा देखने को मिलता है. इसे लियोनिड मीटियोर शावर कहते हैं.

साइंसकारी के इस एपिसोड में लियोनिड मीटियोर शावर की बात करेंगे. आसमान में टूटते तारों की बौछार.

 

जिसे हम आम भाषा में टूटता तारा कहते हैं, असलियत में तब कोई तारा नहीं टूट रहा होता है. वो एक मीटियोर होता है. मीटियोर यानी उल्का पिंड. अंतरिक्ष में मौजूद छोटी-छोटी चट्टानें. जब ये उल्का पिंड बहुत तेज़ स्पीड से पृथ्वी के वायुमंडल में ऐंट्री मारते हैं, तो घर्षण होता है. इनकी स्पीड और वायुमंडल का घर्षण इतना भयंकर होता है कि ये जल उठते हैं. जब ऐसा होता है तो लोगों को लगता है कि कोई तारा टूट गया. और कुछ भोले लोग अपनी आंखें बंद करके विश मांगने लगते हैं.

ज़्यादातर मीटियोर वायुमंडल में ही जलकर भस्म हो जाते हैं. सिर्फ कुछ मीटियोर के अंश ज़मीन तक पहुंचते हैं. अभी बहुत सारे मीटियोर आसमान में दिख रहे हैं. ऐसी घटना को मीटियोर शावर कहते हैं. मीटियोर शावर का मतलब है उल्कापिंड की बौछार.

 

जब कोई मीटियोर का टुकड़ा धरती पर गिरता है, तो उसे मीटियोराइट कहते हैं. (विकिमीडिया)

 

ये घटना नवंबर के पहले हफ्ते से ही शुरू हो गई थी. मंगलवार और बुधवार (17-18 नवंबर) को ये अपने चरम पर पहुंची. और इसे नवंबर महीने के अंत तक देखा जा सकता है. 2020 में ये मीटियोर शावर 6 नवंबर से 30 नवंबर तक हरकत में रहेंगे. इनमें सबसे तेज़ मीटियोर की रफ्तार 71 किलोमीटर प्रति सेकेंड की होगी. जब मीटियोर शावर चरम पर होता है तो हर घंटे 10-15 मीटियोर देखे जा सकते हैं.

अब सवाल ये है कि अचानक आसमान में इतने सारे मीटियोर कहां से आ गए? और नवंबर महीने में ऐसा क्या है कि लियोनिड मीटियोर शावर इसी महीने में होता है?

अंतरिक्ष में बहुत सारा मलबा है. जब ये मलबा पृथ्वी के रास्ते में आ जाता है, तब मीटियोर शावर देखने को मिलता है. लियोनिड मीटियोर टेंपल-टर्टल से आए हैं.

टेंपल-टर्टल एक कॉमेट (धूमकेतू) का नाम है. ये कॉमेट भी पृथ्वी की तरह सूरज के चक्कर काटता है. टेंपल-टर्टल 33 साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है. इसका रास्ता और पृथ्वी का रास्ता क्रॉस करते हैं. अब होता ये है कि ये कॉमेट अपने रास्ते में कई जगह मलबा फैलाता जाता है. पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े. तो पृथ्वी के रास्ते में भी ये टुकड़े आ जाते हैं.

 

JPL, NASA 

 

हर साल पृथ्वी नवंबर के महीने में इसी मलबे वाले इलाके से होकर गुज़रती है. इस दौरान ये टुकड़े पृथ्वी में घुसे चले आते हैं. जब इस मलबे के टुकड़े हमारे वायुमंडल में दाखिल होते हैं, तो वो जल उठते हैं. इसलिए हर साल नवंबर में ये मीटियोर शावर दिखाई देता है. मलबे के इस ढेर में छोटे चट्टानी टुकड़े, धूल या बर्फ होती है. ये इतने छोटे होते हैं कि वायुमंडल के ऊपर इलाके में ही भस्म हो जाते हैं. और पृथ्वी की सतह पर कभी पहुंच नहीं पाते.

इस मीटियोर शावर का नाम लियोनिड क्यों रखा गया है? लियो कॉन्स्टेलेशन के ऊपर. लियो नाम का एक तारामंडल है. ये मीटियोर लियो कॉन्सेटेलेशन से निकलते प्रतीत होते हैं. इसलिए इसका नाम लियोनिड मीटियोर शावर रख दिया गया. हालांकि असलियत में ऐसा नहीं होता है. ऐसा सिर्फ प्रतीत होता है.

 

लियो कॉन्स्टेलेशन का नाम शेर जैसी आकृति होने के कारण आया है. (विकिमीडिया)

 

सबसे बढ़िया बात ये है कि ये मीटियोर शावर हम अपनी आंखों से देख सकते हैं. किसी दूरबीन या टेलिस्कोप की ज़रूरत नहीं है. ये उत्तरी गोलार्ध के ज़्यादातर हिस्सों से दिखाई देगा. भारत उत्तरी गोलार्ध में ही है. इसलिए इसे पूरे भारत में इसे कहीं से भी देखा जा सकता है. लेकिन ढंग से दर्शन पाने के लिए कुछ शर्तें हैं.

मीटियोर शावर तब ज़्यादा अच्छे से दिखाई देते हैं जब आसमान में बादल न हों, आपके इलाके में प्रदूषण कम हो और चांद की रोशनी बहुत अधिक न हो. अभी बहुत बढ़िया मौका है. कुछ दिन पहले ही अमावस्या थी. दीवाली के दिन. इस हफ्ते चांद का 5% से कम हिस्सा चमक रहा है. इसलिए मीटियोर शावर दिखने के चांस ज़्यादा हैं.

 

ये नवंबर 1868 की एक पेंटिंग है. (विकिमीडिया)

 

शहरी इलाकों से देखने में थोड़ी दिक्कत आ सकती है. शहरों में सिर्फ वायु प्रदूषण नहीं होता, यहां रोशनी का प्रदूषण भी बहुत होता है. आपके आसपास जितनी ज़्यादा आर्टिफिशियल लाइट होगी, आसमान उतना कम साफ दिखेगा. इसे लाइट पॉल्यूशन कहते हैं. अगर आप शहर के रोशनी भरे इलाके से दूर कहीं ऊंचाई पर जाकर देखेंगे तो मामला थोड़ा क्लियर दिखाई देगा.

आप पूछेंगे आसमान में कब और कहां देखना है? ऐसा कोई फिक्स मुहूर्त और लोकेशन नहीं है. 17-18 नवंबर को ये अपने चरम पर था. लेकिन ये पूरे नवंबर महीने में चलने वाला है. इसे देखने के लिए रात में बारह बजे के बाद और सुबह होने के पहले का समय सबसे सही है. इसे देखने के लिए आपको आसमान में लियो तारामंडल खोजने की ज़रूरत नहीं है. ये पूरे आसमान में कहीं भी दिख सकते हैं.

 

अंतरिक्ष से ऐसा दिखता है मीटियोर शावर. (नासा)

 

ये साल का इकलौता मीटियोर शावर नहीं है. सालभर कई मीटियोर की बौछार होती रहती है. दिसंबर के महीने में जेमिनिड और उर्सिड मीटियोर शावर दिखाई देगा.




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