भारत की पहली ‘लॉकडाउन फ़िल्म’ को मिल रही है दर्शकों से तारीफ़

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जब अप्रैल में भारत में काम और ज़िंदगी लॉकडाउन की वजह से ठहर गए थे, तब एक युवा निर्देशक ने अपनी अगली फिल्म बनाने की ठानी.

लॉकडाउन की वजह से सिनेमा हॉल बंद थे. केरल में 60 फिल्में लटक गईं थी लेकिन निर्देशक महेश नारायणन के इरादे को इस बात से फ़र्क नहीं पड़ा.

मलयालम में फिल्में बनाने वाले महेश ने स्क्रिप्ट लिखी और एक लोकप्रिय एक्टर को प्रोड्यूस करने के लिए तैयार किया. इसके लिए उन्होंने 50 लोगों की टीम तैयार की.

ये फ़िल्म महज़ तीन हफ़्ते में शूट कर ली गई और इसके लिए कोच्चि शहर के छह अपार्टमेंट इस्तेमाल किए गए. ये अपार्टमेंट फ़िल्म का सेट भी थे, दफ्तर भी, प्रोडक्शन हब भी और फ़िल्म की कास्ट और क्रू के लिए घर भी.

सोशल डिस्टेंसिंग ध्यान में रखते हुए ये फ़िल्म ज़्यादातर आई-फ़ोन से शूट की गई है और 22 दिनों में पूरी कर ली गई.

फ़िल्म का नाम है- ‘सी यू सून’ जो एक सस्पेंस ड्रामा है. जैसा की महेश कहते हैं- शायद भारत की पहली घर में बनी लॉकडाउन फ़िल्म.

पिछले हफ़्ते ही ये फ़िल्म अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ की गई है. 90 मिनट की बिना गानों की छोटी सी लेकिन अपनेआप में एक असाधारण फ़िल्म है.

एक सिनेमा समीक्षक ने फ़िल्म के बारे में कहा है कि ये डूब जाने जैसा लाजवाब अनुभव है. दूसरे समीक्षक ने कहा है कि ये एक मौलिक फ़िल्म है जो दर्शक को अनोखा अनुभव देती है. साथ ही फ़िल्म की विज़ुअल सेटिंग को लेकर भी तारीफ़ हुई है.

 

सी यू सून

 

अमेज़न प्राइम के भारत में कंटेट हेड विजय सुब्रमणियम ने बीबीसी को बताया कि इस फ़िल्म को समीक्षकों और दर्शकों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है, साथ ही सोशल मीडिया पर भी लोग तारीफ़ कर रहे हैं.

फ़िल्म को ऐसे वक़्त में बनाने का एक कारण महेश ये बताते हैं कि वे स्थानीय फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों की मदद करना चाहते थे. हालात इतने ख़राब हो गए थे कि असिस्टेंट डायरेक्टर और महत्वपूर्ण क्रू मेंबर्स तक घर का बना खाना बेचने लगे थे और कुछ लोग जो बीमार थे वे अपनी दवाइयां भी नहीं खरीद पा रहे थे.

महेश ने बताया, “मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में बॉलीवुड की तरह बहुत पैसा नहीं है. ज़्यादाकर क्रू मेंबर्स को या तो रोज़ के हिसाब से पैसा मिलता है या फ़िल्म पूरी होने के बाद पैसा मिलता है. लेकिन सारी कमाई लॉकडाउन की वजह से ख़त्म हो गई थी.”

फ़िल्म की शुरूआत में दर्शकों के लिए एक कार्ड है: ‘इस फिल्म ने उन कामगारों को आर्थिक मदद दी है जिनकी कमाई का साधन सिर्फ़ सिनेमा है.’

इस प्रोडक्शन ने फ़िल्म मेकिंग की कई परंपराओं को तोड़ा है. इस फ़िल्म के एक्टर और प्रोड्यूसर फ़ाहद फ़ाज़िल ने कोच्चि में अपने दो अपार्टमेंट को सेट और दफ्तर में तब्दील कर दिया और उसी बिल्डिंग में चार अपार्टमेंट किराए पर लिए गए ताकि कास्ट और क्रू के लोगों को बाहर ना जाना पड़े.

उनके घर में खाना बनाने वाले को फ़िल्म यूनिट का शेफ़ बना दिया गया. एक्टर्स के लिए पानी वगैरह या मेकअप के लिए कोई असिस्टेंट नहीं था.

महेश ने बताया, “आप ये भी कह सकते हैं कि हमारी फिल्म प्रोडक्शन ने किसी आम फिल्म से काफ़ी कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ा है.”

 

सी यू सून

 

फ़िल्म में वही मोहब्बत, इमोशन और फैमिली ड्रामा जैसी बुनियादी चीज़ें है लेकिन ये बताती है कि लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध के बीच स्मार्ट आइडिया और तकनीक से कैसे फ़िल्म बनाई जा सकती है.

इस फ़िल्म में आप देखेंगे कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, सिक्योरिटी कैमरा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, सर्च इंजन, वीडियो कॉल और किरदारों के बीच चैट्स के साथ कैसे फिल्म आगे बढ़ती है.

इस फ़िल्म के किरदार दुनिया में अलग-अलग जगह हैं और इन सभी तकनीकों के ज़रिए एक-दूसरे से बात कर रहे हैं.

टिंडर के ज़रिए प्यार शुरू होता है, एक्टर्स फ़ेसबुक मैसेज और जीमेल से कनेक्ट होते हैं और गूगल सर्च से राज़ खुलता है.

 

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जब फ़िल्म में एयरपोर्ट या दफ्तरों की तस्वीरें दिखाने की ज़रूरत थी, तो महेश ने अपनी पुरानी फ़िल्मों का फुटेज ले लिया जो पहले इस्तेमाल नहीं हुआ था. कुछ दोस्तों से भी उधार लिया.

महेश कहते हैं, “हमने वही किया जिसे भारत में जुगाड़ कहा जाता है ताकि घर से काम हो सके.”

ऐसा दिख रहा है कि जुगाड़ काम कर गया.




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