सैनिटाइजर, कोरोना से पहले तक अमूमन हम इसे तब ही इस्तेमाल करते थे, जब कभी हॉस्पिटल में किसी मरीज की देखभाल के लिए जाते थे। अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। कोविड के दौर में लोग सैनिटाइजर को साबुन से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन, माइक्रो बैक्टीरियल एक्सपर्ट्स ऐसा बिल्कुल नहीं करने की सलाह देते हैं। पुणे में आईसीएमआर के नेशनल एड्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में माइक्रो बॉयोलॉजी के एक्सपर्ट राजीव नीमा कहते हैं कि सैनिटाइजर की तुलना में साबुन से हाथ धुलना ज्यादा बेहतर है। सैनिटाइजर का इस्तेमाल तभी करें, जब आपके पास हाथ धुलने का विकल्प न हो।
15 सवालों और उनके जवाबों के जरिए सैनिटाइजर के बारे में वो सबकुछ जानिए जो आपके लिए बेहद जरूरी है-
1. सैनिटाइजर क्या काम करता है?
सागर स्थित हरि सिंह गौर यूनिवर्सिटी में माइक्रोबॉयोलॉजी के प्रोफेसर नवीन कांगो कहते हैं कि सैनिटाइजर का बेसिक कॉन्सेप्ट किसी सतह को स्टेरलाइज्ड करना होता है। सैनिटाइजर किसी भी सतह को वायरस, बैक्टीरिया, फंगस जैसी चीजों से फ्री कर देता। यहां तक डीएन, आरएन जैसी बेहद बारीक चीजें भी साफ हो जाती हैं।
2. बाजार में कितने तरह के सैनिटाइजर बिक रहे हैं?
राजीव नीमा कहते हैं कि बाजार में दो तरह के सैनिटाइजर मौजूद हैं। ये अल्कोहल बेस्ड और ये एंटी बैक्टीरियल होते हैं। अल्कोहल बेस्ड सैनिटाइजर्स कोविड में ज्यादा कारगर हैं। सैनिटाइजर में यदि अल्कोहल 70% से ज्यादा है तो सबसे बेहतर है। वैसे 95% वाला अल्कोहल सबसे ज्यादा असरदार होता है।
अल्कोहल बेस्ड सैनिटाइजर
इसमें 60 से 95% तक अल्कोहल मिला होता है, जोकि एथेनॉल, प्रोपेनॉल और आइसो प्रोपेनॉल से मिलकर बना होता है। यह कीटाणुओं से सुरक्षा करता है। इसका इस्तेमाल मेडिकल डिसइंफेक्टमेंट में भी किया जाता है।
अल्कोहल फ्री सैनिटाइजर
इसमें एंटीसेप्टिक मिला होता है, जो कि एंटी माइक्रोबायल एजेंट्स या बेंजाकोनियम क्लोराइड होते हैं। यह कीटाणुओं का पूरी तरह से सफाया कर देते हैं, इसमें गुल मेंहदी भी मिला होता है, जो हमारे हाथ को सॉफ्ट बनाते हैं, साथ ही अच्छी खुशबू भी आती है।
3. सैनिटाइजर का इस्तेमाल क्यों करते हैं?
प्रोफेसर नवीन कहते हैं कि यदि पेट में कोई बीमारी होती है तो हम एंटीबॉयोटिक खाते हैं, घाव होता है तो एंटीसेप्टिक का इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह जब हम किसी सरफेस से निर्जीव या डेड सेल्स या बैक्टीरिया-वायरस आदि को हटाना चाहते हैं तो डिसइन्फेक्ट का इस्तेमाल करते हैं, इसमें सैनिटाइजर, लाइजोल जैसी चीजें कारगर होती हैं।
4. दिन में कितनी बार सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना चाहिए?
राजीव कहते हैं कि कुछ खाने से पहले सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर सकते हैं, यदि आपके पास हाथ धुलने का विकल्प नहीं है। या तब सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें जब बस, ट्रेन या किसी सार्वजनिक वाहन में यात्रा कर रहे हैं, क्योंकि आप बार-बार हैंडल पकड़ते हैं, शीट टच करते हैं।
यदि आप घर में हैं तो सैनिटाइजर के इस्तेमाल की जरूरत नहीं है। घर में सिर्फ साबुन से हाथ धुलें। बॉडी पर सैनिटाइजर का स्प्रे तब करें, जब आप बाहर से घर में प्रवेश कर रहे हों, इस दौरान स्प्रे से कपड़े पर लगे बैक्टीरिया मर जाएंगे।
5. सैनिटाइजर को खरीदने से पहले हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
राजीव नीमा के मुताबिक सैनिटाइजर का सीमित इस्तेमाल ही करना चाहिए, क्योंकि ज्यादा इस्तेमाल करने से बॉडी के सेल्स का वाटर कंटेंट मर जाता है।
अगर सैनिटाइजर को ओवर यूज करते हैं, तो यह पानी खींच लेता है, इससे स्किन ड्राई हो सकती है। इसलिए अल्कोहल में कभी-कभी ग्लिसरीन मिलाया जाता है, ताकि स्किन सूखे नहीं।
लॉन्ग टर्म में इसके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं, जो सेल्स के फंक्शंस को प्रभावित कर सकते हैं। पर अभी कोविड के दौर में इसका इस्तेमाल बेहतर है।
6. सैनिटाइजर का असर कितनी देर तक रहता है?
सैनिटाइजर को हाथ या सतह में लगाने के साथ ही वहां मौजूद बैक्टीरिया और वायरस मर जाते हैं। लेकिन सैनिटाइजर का असर तीन से चार मिनट तक ही रहता है। इसके बाद इसमें मौजूद अल्कोहल उड़ जाता है।
इसलिए सैनिटाइजर के इस्तेमाल के बाद जैसे ही आपने दोबारा किसी सतह को छुआ, तो आप फिर बैक्टीरिया या वायरस के संपर्क में आ सकते हैं।
7. सैनिटाइजर के इस्तेमाल के बाद क्या आप कुछ खा-पी सकते हैं?
राजीव कहते हैं कि सैनिटाइजर लगे हाथ से खाना खाने या पानी पीने से कोई खतरा नहीं रहता है। क्योंकि, यह लगाने के चंद मिनट बाद ही उड़ जाता है। और वैसे भी अल्कोहल की थोड़ी मात्रा में शरीर के अंदर जाने से कोई खतरा नहीं रहता है। लेकिन, यदि आप दिन में 10 से 20 बार इसका इस्तेमाल करते हैं, तो इसकी मात्रा बढ़ जाएगी।
8. सैनिटाइजर वायरस को कैसे मारता है?
प्रोफेसर नवीन कहते हैं कि वायरस प्रोटीन और आरएनए है। यह झाग से मर जाता है। इसलिए जैसे ही हम साबुन या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते हैं, वह मर जाता है। सैनिटाइजर में 70 एथेनॉल, आइसो प्रोपेनॉल होता है। इसलिए यह वायरस के प्रोटीन को मार देता है।
कुछ सैनिटाइजर इफेक्टिव होते हैं, लेकिन स्किन को नुकसान पहुंचाते हैं। बाजार में कुछ खुशबू वाले सैनिटाइजर भी आ रहे हैं, लेकिन एथेनॉल बेस्ड सैनिटाइजर ज्यादा बेहतर हैं।
9. हैंड सैनिटाइजर वायरस से बचाने में कितना कारगर है?
सैनिटाइजर का इस्तेमाल तुरंत प्रभावशाली है। वैसे सैनिटाइजर 99% बैक्टीरिया को मार देता है, लेकिन कोविड के मामले में यह 100% कारगर है। हालांकि, पोंछा लगाने में हाइपो क्लोराइड से बने डिसइंफेक्ट को इस्तेमाल करना बेहतर होता है।
सैनिटाइजर और साबुन की तुलना करें तो साबुन बैक्टीरिया या वायरस को मारने में ज्यादा बेहतर होता है, क्योंकि साबुन हथेली और उंगलियों के हर पोर में लगाया जा सकता है। फिर पानी से धुलने से हाथ पूरी तरह साफ हो जाता है, लेकिन सैनिटाइजर के साथ ऐसा नहीं है।
10. नकली सैनिटाइजर को कैसे पहचानें?
अल्कोहलिक स्मेल आनी चाहिए।
कलर देखकर आप नहीं समझ सकते हैं।
यह जरूर देखें कि सैनिटाइजर मानक एजेंसियों द्वारा सर्टिफाइड है या नहीं।
आम आदमी इंग्रीडिएंट्स को देखकर ही बस समझ सकता है।
11. सैनिटाइजर पर भरोसा कैसे करें?
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस वक्त बाजार में तमाम तरह के सैनिटाइजर बिक रहे हैं, इनमें बहुत से नकली या मिलावटी सैनिटाइजर भी हैं। ऐसे में सैनिटाइजर खरीदते वक्त खास सावधानी बरतने की जरूरत है। मिलावटी सैनिटाइजर से वायरस नहीं मरते हैं और संक्रमित होने को खतरा भी बढ़ जाता है।
12. सैनिटाइजर्स कितने समय में एक्सपायर होते हैं?
राजीव नीमा कहते हैं कि सैनिटाइजर वैसे तो खराब कम ही होते हैं। ज्यादातर सैनिटाइजर की एक्सपायरी डेट तीन साल तक होती है। सैनिटाइजर खरीदते वक्त बस एक बात का ध्यान रखना चाहिए, वह यह है कि इसमें अल्कोहल की मात्रा 60% से कम न हो।
13. सैनिटाइजर के इस्तेमाल के दौरान क्या सावधानी रखें?
अल्कोहल का इस्तेमाल करते समय हमें आग से दूर रहना चाहिए, क्योंकि अल्कोहल ज्वलनशील होता है।
सैनिटाइजर को हाथ में रगड़ने के तुरंत बार हाथ को मुंह, नाक, आंख को न छुएं, इससे साइड इफेक्ट का खतरा रहता है।
14. बाजार में मौजूद टॉप-5 हैंड सैनिटाइजर कौन से हैं?
डॉबर सैनिटाइज हैंड सैनिटाइजर
हिमालया प्योर हैंड
लाइफबॉय एंटी बैक्टीरियल हैंड सैनिटाइज
इंस्टैंट एंटी बैक्टीरियल जर्म्स किल स्प्रे
सेवलॉन सरफेस डिसइंफेक्ट स्प्रे
15. बाजार में सैनिटाइजर की कीमत क्या है?
बाजार में अलग-अलग तरह के सैनिटाइजर मिल रहे हैं। इनकी शुरुआती कीमत 50 रुपए से शुरू होकर 500 रुपए तक है। बहुत से सैनिटाइजर ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं, कंपनियां डिस्काउंट ऑफर भी दे रही हैं।
किसी भी एक्सरसाइज को शुरू करना आसान नहीं होता. अमूमन सबसे आसान मानी जाने वाली फिटनेस एक्टिविटी- रनिंग भी. आसान इसलिए कि इसमें सबसे अहम काम शूज पहनकर घर से बाहर निकलने का होता है. इसके अलावा आपको किसी दूसरे साधन की जरूरत भी नहीं होती. वैसे बता दें कि कई लोग बिना शूज के यानी बेयरफुट (नंगे पांव) भी रनिंग पसंद करते हैं. इसके भी अलग फायदे हैं, जिनके बारे में हम आपको अलग खबर में विस्तार से बताएंगे.
अगर आप रनिंग शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस समय भारत में मॉनसून का सीजन है. इस समय बारिश और हवा में नमी की मात्रा काफी ज्यादा रहती है. बारिश में दौड़ने के लिए आपको क्या सावधानी बरतनी होती है और इसके क्या फायदे होते हैं, यह हम आपको पिछली बार बता चुके हैं. इस बार हम आपको देश के दो मुख्य मौसमों सर्दी और गर्मी में रनिंग के फायदे और इन मौसमों के लिए लिए जरूरी चीजें बताएंगे.
हर जगह की परिस्थितियां हैं अलग
भारत में मुख्य तौर पर तीन ऋतुएं होती हैं- सर्दी, गर्मी और बरसात. तीनों मौसमों में रनिंग शुरू करने के लिए कुछ सावधानियां और तैयारियां जरूरी हैं. कुछ रनर्स को सर्दियों में रनिंग पसंद होती है तो कुछ गर्मियों में खासतौर पर धूप में रनिंग पसंद करते हैं. लेकिन ऐसा अमूमन ठंडे देशों में रहने वाले या अनुभवी रनर्स ही करते हैं. अगर आप भारत जैसी जलवायु वाले देश में गर्मियों की धूप में रनिंग करेंगे तो हो सकता है कि आपको अस्पताल ले जाना पड़े. अगर आप रनिंग शुरू करने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि चाहे सर्दी हो, गर्मी या बरसात आप किसी भी एक्सट्रीम वेदर कंडीशन में शुरुआत करने से बचें.
एक्सट्रीम वेदर कंडीशन से बचना इसलिए जरूरी
रनिंग शुरू करने के लिए एक्सट्रीम वेदर क्यों सही नहीं है? इसकी वजह है कि अगर आप रनिंग शुरू कर रहे हैं तो कुछ समय आपको अपनी बॉडी को जानने में लगेगा. आपकी बॉडी कितना प्रेशर झेल सकती है और कितनी जल्दी बदलावों को स्वीकार करती है, यह आपको धीरे-धीरे ही समझ आएगा. अगर आपके पास ट्रेनर या कोच हैं तो वह इन चीजों को नोट करेंगे. लेकिन वह भी असल में इनपुट आपसे ही लेंगे. इसलिए बॉडी में आ रहे बदलावों- दर्द, थकान, ऐंठन या फिर पॉजिटिव और एनर्जेटिक महसूस करने जैसी चीजों को सबसे पहले आप ही पहचानेंगे. इसलिए मौसम के हिसाब से तैयारी करनी जरूरी है.
सर्दियों में रनिंग के लिए जरूरी बातें
इस समय चल रहे बरसात के मौसम के बाद सर्दियों का मौसम आएगा. इस मौसम में रनिंग के लिए आपको धैर्य रखने की जरूरत होती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि रनिंग के दौरान पसीना आना और प्यास लगना सबसे आम लक्षण हैं. लेकिन सर्दियों में ऐसा नहीं होगा तो आपको लग सकता कि रनिंग का फायदा नहीं मिल रहा है. सर्दियों में पसीना जल्दी सूख जाता है, इसलिए अगर आप जरूरी मात्रा में पानी नहीं पियेंगे तो डिहाइड्रेट हो सकते हैं. इसके अलावा, सर्दियों में प्री और पोस्ट रनिंग स्ट्रेचिंग काफी जरूरी है. क्योंकि इस मौसम में आपका शरीर ठंडा रहता है और सीधे रनिंग शुरू करने पर क्रैंप आ सकते हैं और इन्हें बार-बार इग्नोर करने पर यह इंजरी में भी बदल सकते हैं.
इसलिए फादेमंद है सर्दियों में रनिंग
गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में रनिंग के दौरान थर्मल सेंशेसनल लेवल ज्यादा रहता है. लंदन की सैंट मैरी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक सर्दियों में थर्मल सेंसेशनल लेवल गर्मी के मुकाबले करीब 32 फीसदी ज्यादा रहता है. थर्मल सेंसेशनल लेवल का आसान भाषा में मतलब है कि सर्दियों में रनिंग के दौरान आपका कंफर्ट लेवल बढ़ जाता है. यानी आप वही दौड़ सर्दियों में आसानी से लगा सकते हैं जिसमें आप गर्मियों में थक जाते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर मैराथन और हाफ मैराथन सर्दियों के मौसम में ही आयोजित की जाती हैं. ‘द मैराथन मेथड’ के लेखक टॉम हॉलैंड भी अपने एक इंटरव्यू में मानते हैं कि ठंडे मौसम में बॉडी पर स्ट्रेस काफी कम रहता है.
गर्मियों में रनिंग के लिए जरूरी बातें
गर्मियों में रनिंग के दौरान शरीर से पसीना ज्यादा मात्रा में निकलता है. इसलिए जरूरी है कि आप रनिंग के लिए सही समय चुनें. गर्मियों में रनिंग के लिए सुबह धूप निकलने से पहले या फिर शाम को सूरज डूबने के बाद का समय बेहतर रहेगा. अगर आप ट्रैक रनिंग करते हैं तो देख लें कि दिन के समय ट्रैक पर तेज धूप न हो. अगर दिन निकल आया है तो फुल स्लीव्स की टी शर्ट या सनस्क्रीन लोशन जरूरी है, वरना सन बर्न भी हो सकता है. इसके अलावा आप लॉन्ग रन के लिए निकले हैं तो साथ में पानी की छोटी बॉटल और एनर्जी बार (चॉकलेट) या च्यूइंग गम साथ में रख सकते हैं. बिना इन चीजों के लंबे समय तक दौड़ने पर आप डिहाइड्रेट या कमजोरी महसूस कर सकते हैं.
गर्मियों में रनिंग इसलिए है मुश्किल
कोई भी मौसम हो रनिंग के दौरान बेस बॉडी टेंपरेचर बढ़ जाता है. ऐसे में रनिंग के दिन अगर ज्यादा गर्मी है तो आपका डिसकंफर्ट लेवल सर्दियों के मुकाबले जल्दी बढ़ जाएगा. इसके अलावा गर्मियों में हमारे यहां हवा में नमी की मात्रा काफी ज्यादा होती है. इससे न केवल जल्दी सांस लेने में अतिरिक्त मेहनत लगती है बल्कि रनिंग के दौरान पसीना ज्यादा आता है. रनिंग के दौरान शरीर का तापमान बढ़ने पर स्किन पर पसीना आता है. इसके वैपोरेट (वाष्पित) होने की प्रक्रिया शरीर को वापस ठंडा करती है. गर्मियों की हवा में नमी ज्यादा होने से यह तुरंत वाष्पित नहीं हो पाता. अगर शरीर को एक मशीन मानें तो ऐसे समझें कि गर्मियों में रनिंग से यह जल्दी गर्म हो जाती है. अगर हवा में नमी की मात्रा 70 फीसदी या इससे ज्यादा है तो आपको बाहर का तापमान कम से कम 5 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त महसूस होता है.
अपनी बॉडी से इंटरैक्शन है जरूरी
रनिंग शुरू करना इस चीज पर भी निर्भर करता है कि आपको कौन सा मौसम ज्यादा पसंद है. असल में रनिंग केवल फिजिकल एक्सरसाइज नहीं है. इसके लिए मानसिक रूप से तैयार होना भी जरूरी है. इसलिए आप रनिंग के लिए बाहर निकलने से लेकर, रनिंग में बेहतर प्रदर्शन करने जैसी चीजें भी आपके पसंदीदा मौसम पर निर्भर करती हैं. अगर आप लंबे समय के लिए रनिंग करना चाहते हैं तो अपने पसंदीदा मौसम से थोड़ा पहले रनिंग शुरू कर दें. इसकी वजह यह है कि आपका पसंदीदा मौसम आने तक आपके शरीर को रनिंग की आदत हो जाएगी और आप बेहतर परफॉर्म कर पाएंगे. बेहतर परफॉर्मेंस ही रनिंग में आपको अगले दिन मैदान में उतरने की ऊर्जा देती है.
मौसम कोई भी हो, पानी देगा साथ
वैसे रनिंग शुरू करने के लिए एक्सट्रीम वेदर के बजाए, हल्की गर्मी या हल्की ठंड का मौसम सही रहेगा. ऐसे मौसम में आप न तो जल्दी हतोत्साहित होंगे और न ही मौसम संबंधी किसी परेशानी से दो-चार होना पड़ेगा. वैसे सर्दी हो या गर्मी अगर आप रनिंग से पहले और बाद में वेइंग स्केल पर चढ़ते हैं तो यह अच्छी बात है. रनिंग के दौरान आपका जितना भी वजन (Gram में) कम होता है, रनिंग के बाद उसका दोगुना पानी (ML में) आपको पीना चाहिए. आमतौर पर एक घंटे या इससे ज्यादा रनिंग करने वाले रनर्स अपने साथ पानी की छोटी बॉटल रखते हैं और प्यास लगने पर सिप लेते रहते हैं. रनिंग से आधा या एक घंटा पहले भी पानी लिया जाता है. रनर्स लंबी रनिंग के बाद स्पोर्ट्स ड्रिंक्स या नींबू पानी लेना पसंद करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि रनिंग के दौरान पसीना निकलने से आपका ब्लड सोडियम लेवल कम हो जाता है.
अकेले रहने वाले ही समझ सकते हैं कि घर से दूर मम्मी-पापा के बिना रहना क्या होता है. मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ जाती हैं, जब खाना बनाना न आता हो और किचन से रिश्ता सिर्फ़ मैगी और चाय बनाने तक का ही हो.
पहली बार खाना बनाने में नानी, दादी और मम्मी सब एक साथ याद आ जाती हैं. फ़ोन पर मम्मी से पीली वाली दाल को क्या कहते हैं, जैसे सवाल तो रोज़ की बात हो जाती है.
अकेले गुज़र-बसर करना कठिन है, लेकिन इतना भी नहीं. ज़िन्दगी आसान बना देंगी ये 14 टिप्स-
1. ज़्यादा समय तक Banana ऐसे चल सकता है.
2. टोस्टर के बिना टोस्ट बनाने के लिए ब्रेड में मक्खन लगाओ और तवे पर सेक लो.
3. प्याज़ के आंसू नहीं रोना है, तो प्याज़ को बीच से काटकर कुछ देर के लिए पानी में भिगो देना.
4. अब से पिज़्ज़ा पार्टी करना कुछ इस तरह.
5. पेपर क्लिप के सहारे आसानी से रखो बियर बोतल को.
6. खाना गर्म करते वक़्त बीच में ज़रा जगह बनाने से वो अच्छे से गर्म होगा.
7. दूध को फैलने से रोकने के लिए भगोने के ऊपर लकड़ी का चम्मच रख दो.
8. अंडा ताज़ा है या नहीं, चेक करने के लिए उसे ठंडे पानी में डुब जाए तब तो ठीक और अगर तैरता रहे तो वो काफ़ी बासी है.
9. संतरा छीलने का सबसे तेज़ तरीका.
10. आलू को सेब के आस-पास रखने से उनमें पौधे नहीं होते.
11. जब केक बहुत सारा हो और फ्रिज न हो, तो ब्रेड और टूथपिक की मदद से उसको फ़्रेश रख सकते हो.
12. लहसुन को छिलने से पहले 5 मिनट पानी में डाल दो, छिलके आसानी से निकलेंगे.
13. जिस डब्बे में खाना आए उसे यूं फैला लो, प्लेट नहीं धोनी पड़ेगी.
14. अंडे ढंग से उबालने हैं, एक पिन से छोटा सा छेद कर के उबालो.
थैंक्स न बोलना, फ़र्ज़ था ये हमारा. एक Bachelor की तरफ़ से दूसरे Bachelor को तोहफ़ा!
लॉकडाउन खुलने के बाद काफी जगहों पर ऑफिस खुल चुके हैं और कर्मचारियों ने ऑफिस जाना भी शुरू कर दिया है. जबकि कुछ लोग अभी भी वर्क फ्रॉम होम में घंटों तक घर कुर्सी पर जमकर काम कर रहे हैं.
ऑफिस में काम करने वाले लोग यह बखूबी जानते होंगे कि एक ही जगह लम्बे समय तक बैठकर काम करने में कितनी दिक्कत होती है. आप एक ही जगह 8 से 9 घंटे बैठकर बिना हिले एक ही पोजिशन में काम बिल्कुल नहीं कर सकते. लॉकडाउन के बाद ज्यादातर लोगों को घर से ही ऑफिस का काम संभालना पड़ रहा है. ज्यादा देर तक बैठकर काम करने वालों को कुर्सी और उस पर बैठने के तरीके को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. इस पर ध्यान ना देने के कारण आपकी सेहत को बड़ा नुकसान हो सकता है.
ऑफिस का काम करने के लिए इंसान का कम्फर्टेबल जोन में होना बहुत जरूरी है. इसलिए जल्द ही अपने लिए एक वर्क फ्रेंडली चेयर का इंतजाम कर लीजिए. साधारण कुर्सी पर घंटों तक बैठे रहने से आपको कमर दर्द की समस्या हो सकती है. लंबे वक्त तक बैठकर काम करने के लिए एक कम्फर्टेबल चेयर का होना बहुत जरूरी है. ऐसे काम के लिए हमें लकड़ी या प्लास्टिक की कुर्सी की जगह एर्गोनॉमिक्स या किसी फ्लेक्सिबल चेयर का इस्तेमाल करना चाहिए.
एक फ्लेक्सिबल चेयर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल करने के अलावा कर्मचारियों में तनाव से राहत के लिए भी जानी जाता है. आप एक नॉर्मल चेयर की जगह मैश चेयर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.यह चेयर काफी कम्फर्टेबल होती है. इंडो इनोवेशन के सीईओ आशीष अग्रवाल कहते हैं कि एक कम्फर्टेबल चेयर से आपकी बैक को पूरा सपोर्ट मिलता है.
इसके तीन खास हिस्से होते हैं जिन्हें रोलरब्लेड स्टाइल केस्टर, कम्फर्टेबल सीट, वॉटरफॉल सीट कहा जाता है. चेयर की सबसे खास बात ये है कि इसे आप 140 से 150 डिग्री तक आसानी से ओपन कर सकते हैं. चेयर को इस पोजिशन पर करने के बाद आप काफी सुकून महसूस करेंगे. इससे बॉडी को काफी रिलैक्स मिलेगा.
क्या है कुर्सी पर बैठने का सही तरीका?
कुर्सी पर बैठते वक्त रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें. दोनों पैरों को हमेशा जमीन पर ही रखें. अक्सर लोग कुर्सी की ऊंचाई बढ़ा देते हैं और पैर हवा में लटका लेते हैं, जो सही नहीं है. हवा में पैर लटकाने से कमर की हड्डी पर दबाव पड़ता है जिससे घुटनों औप पैरों में दर्द शुरू हो जाता है. स्क्रीन को देखने के लिए भी सही एंगल नहीं बन पाता जिससे आंखों पर भी बुरा असर पड़ता है.
रसोई के ज़रूरी सामान में आजकल एक और नई चीज़ जुड़ गई है – माइक्रोवेव. जो लोग खाना पकाना नहीं जानते या मेहनत से खाना नहीं पकाना चाहते, उनके लिए तो माइक्रोवेव जीवनरक्षक है.
माइक्रोवेव में पके या गर्म हुए खाने को लेकर बहुत तरह की भ्रांतियां हैं. कुछ लोग कहते हैं कि माइक्रोवेव के खाने से गैस की समस्या हो जाती है. पेट ख़राब हो जाता है. कुछ का कहना है कि माइक्रोवेव करने से खाने के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
वहीं, कई लोगों का दावा है कि इसमें पका खाना खाने से हारमोन का संतुलन बिगड़ने लगता है. लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, माइक्रोवेब में गर्म किया खाना खाने में कोई हर्ज़ नहीं है.
दावा किया जाता है कि ब्रॉकली में पाया जाने वाला फ्लेवनॉएड माइक्रोवेव में 97 फ़ीसद तक नष्ट हो जाता है. जो ब्रॉकली उबालने की तुलना में तीन गुना ज़्यादा है. लेकिन 2019 की एक स्टडी के अनुसार, अगर सब्ज़ी को कम समय के लिए माइक्रोवेव में गर्म किया जाए, तो उसके पोषक तत्व नष्ट नहीं होते.
ब्रॉकली का फ्लेवनॉएड भी ज्यूं का त्यूं रहता है. बल्कि कुछ जानकार तो यहां तक कहते हैं कि नियमित तापमान पर ब्रॉकली को माइक्रोवेव करने पर उसके फ्लेवनॉएड बढ़ जाते हैं.
हालांकि, दूसरे एक्सपर्ट इस दावे पर मोहर नहीं लगाते. फ्लेवनॉएड का सेवन करने से दिल की बीमारियां होने की संभावना घट जाती है. हां, अगर ज़्यादा पानी के साथ ब्रॉकली पकाई जाएगी, तो नुक़सान हो सकता है. कुछ सब्ज़ियां माइक्रोवेव में पकाना ज़्यादा फ़ायदेमंद है.
जबकि कुछ को पारंपरिक तरीक़ों से पकाना ही बेहतर है.
हम अक्सर माइक्रोवेव में प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं. ये घातक होता है. माइक्रोवेव की गर्मी, प्लास्टिक में शामिल ज़हरीले पॉलिमर के कणों को तोड़ देती है और वो खाने में शामिल हो जाते हैं. ये पॉलिमर हार्मोन विघटन को बढ़ावा देते हैं. वैसे भी हर तरह की प्लास्टिक माइक्रोवेव के लिए नहीं होती.
फ्थैलेट्स सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिसाइज़र है. ये प्लास्टिक को ज़्यादा लचीला बनाता है. इसे अक्सर टेक अवे कंटेनर, प्लास्टिक रैपर और पानी की बोतलों में प्रयोग किया जाता है. फ्थैलेट्स हमारे मेटाबोलिक सिस्टम को अनियमित करने और हारमोन बिगाड़ने में ज़िम्मेदार हैं.
फ्थैलेट्स बच्चों में ब्लड प्रेशर और इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता है. जिससे बच्चों में शुगर और ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ सकती है. इसे अस्थमा और प्रजनन संबंधी दिक़्क़तों से से भी जोड़कर देखा जाता है.
फ्थैलेट्स थायराइड हारमोन के संतुलन को भी बिगाड़ सकता है. गर्भवती महिलाओं में ये हारमोन बच्चे के दिमाग़ के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है.
प्लास्टिक कंटेनरों में बिस्फ़ेनॉल नाम का केमिकल भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. ये हारमोन के चक्र को बिगाड़ने वाले विलेन का काम करता है.
फ्थैलेट्स हमारे आसपास पाई जाने वाली लगभग हर चीज़ में है. यहां तक कि बच्चों के खिलौने और बॉडी लोशन भी इससे अछूते नहीं. जानकार अभी पुख़्ता तौर पर इसके ख़तरों के बारे में कुछ नहीं कहते. लेकिन फ्थैलेट्स तेज़ गर्मी के संपर्क में आकर ख़तरनाक हो सकता है.
इस पर लगभग सभी जानकार सहमत हैं.
बेहतर यही है कि माइक्रोवेव के लिए प्लास्टिक की जगह किसी और बर्तन का प्रयोग किया जाए. कांच का बर्तन इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है.
माइक्रोवेव का इस्तेमाल अक्सर खाना गर्म करने के लिए किया जाता है. जिससे खाने में पनपे बैक्टीरिया मर जाएं. लेकिन जानकार कहते हैं कि खाना दो बार से ज़्यादा गर्म नहीं किया जाना चाहिए. और इसे 82 सेल्सियस से ज़्यादा गर्मी नहीं देनी चाहिए.
माइक्रोवेव में खाने को समान रूप से गर्मी नहीं मिल पाती. किनारे से लगा खाना तो जल्द गर्म हो जाता है. लेकिन बीच से ठंडा ही रह जाता है. इसलिए माइक्रोवेव में बहुत ध्यान से खाना गर्म करना चाहिए.
कुछ एक्सपर्ट आगाह करते हैं कि माइक्रोवेव में ज़्यादा गर्मी पर पकाए खाने में एक्रिलेमाइड नाम का केमिकल बन जाता है. ये केमिकल ख़तरनाक हो सकता है क्योंकि इससे कैंसर पनपने का डर होता है. खाना बनाने के किसी और तरीक़े की तुलना में माइक्रोवेव में पके खाने में एक्रिलेमाइड ज़्यादा पैदा होते हैं.
जहां तक बात है रेडिएशन की तो ये पूरी तरह सुरक्षित है. माइक्रोवेव में हल्की फ़्रीक्वेंसी वाली चुंबकीय किरणों का इस्तेमाल होता है. इतनी ही क्षमता वाली रेडिएशन लाइट बल्ब में भी प्रयोग की जाती है. माइक्रोवेव की किरणें सेहत के लिए हानिकारक बिल्कुल नहीं हैं.
माइक्रोवेव लंबे समय से एक सुरक्षित उपकरण माना जाता रहा है लेकिन इसके साथ कई चेतावनियां भी हैं.
ख़ास तौर से विशेषज्ञ अभी भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि माइक्रोवेव में उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक की पैकेजिंग हमारे हारमोन और स्वास्थ्य को कैसे नुक़सान पहुंचा सकती हैं.
बहरहाल, माइक्रोवेव में खाना पकाना और गर्म करना दोनों सुरक्षित हैं. लेकिन, इसके लिए कुछ शर्तें लागू हैं.
कुछ साल पहले लंदन की एक कॉफी दुकान में जब मैंने पहली बार हल्दी दूध को देखा तो मुझे भरोसा नहीं हुआ. मेन्यू में इसे ‘गोल्डन मिल्क’ नाम दिया गया था.
इसमें बादाम, थोड़ी दालचीनी और काली मिर्च के साथ मिठास के लिए प्राकृतिक एगेव सिरप डाली गई थी.
उसके आगे मैंने पढ़ना बंद कर दिया. इसकी एक वजह शायद यह थी कि मैंने उसकी महंगी क़ीमत देख ली थी. दूसरी वजह, मुझे भारत की हज़ारों दादी मां की मुस्कान याद आ गई थी.
थोड़ी देर के लिए मैं बचपन की यादों में खो गई जब मेरी मां मुझे गर्म हल्दी दूध पिलाने के लिए दुलारती थी. मना करने पर डांट भी पड़ती थी.
उस दूध में मेवे नहीं होते थे. मीठा बनाने के लिए बस चीनी मिली होती थी. आख़िरी घूंट में मुंह में हल्दी भर जाती थी. हिंदी में जिसे हल्दी दूध कहा जाता है उसे मेरी मां तमिल में पलील मंजल कहती थी.
मसाला या औषधि?
गले में खराश हो या शरीर में बुखार हो, मां तुरंत ही हल्दी दूध पिला देती थी. कई भारतीय इसे तरल रामबाण औषधि मानते हैं.
पश्चिमी देशों ने पिछले दशक में ही हल्दी को खोजा और इसे ‘सुपरफ़ूड’ बनाने में देर नहीं की.
उन्होंने हल्दी की ताज़ी गांठों को चाय और कॉफी में मिला दिया. उसका शरबत बनाने लगे और तुरंत फ़ायदे के लिए हल्दी का गाढ़ा पेय तैयार कर दिया.
लंदन के बाद सैन फ्रांसिस्को से लेकर मेलबर्न तक सभी शहरों के कैफे और कॉफी दुकानों में मैंने हल्दी वाले पेय देखे हैं.
भारत में हल्दी लंबे समय से रसोई की प्रमुख सामग्रियों में से एक है. यह दो रूपों में इस्तेमाल होती है- गांठों के रूप में और अब हल्दी पाउडर के रूप में भी.
मेरी मसालदानी में सरसों, जीरा और मिर्च पाउडर के साथ हमेशा हल्दी पाउडर मिलता है. मेरी मां भी ऐसे ही मसाले रखती थी और उनसे पहले उनकी मां का भी यही तरीक़ा था.
पारंपरिक भारतीय रसोई में हल्दी खाने में रंग लाने के लिए इस्तेमाल होती है, ख़ास तौर पर करी और शोरबा बनाने में.
हल्दी की ताज़ी और मुलायम गांठों से हल्दी का अचार भी बनता है, जिसके ऊपर गर्म तेल से छौंक लगाई जाती है. कुछ समुदायों में हल्दी के पत्तों का लिफाफा बनाकर उसमें भोजन पकाया जाता है.
‘द फ्लेवर ऑफ़ स्पाइस’ की लेखिका मरियम रेशी कहती हैं, “गोवा में मैं अपने घर में हल्दी उगाती हूं ताकि यहां की मशहूर पटोलिओ मिठाई बना सकूं.”
पटोलियो बनाने के लिए दरदरे चावल में गुड़ मिलाकर उसे हल्दी के दो पत्तों के बीच रखा जाता है. इसके बाद उसे भाप लगाकर पकाया जाता है जिससे उसमें हल्दी की ख़ास ख़ुशबू आ जाती है.
हल्दी कितनी ज़रूरी?
क्या नए भारतीय व्यंजनों में भी हल्दी की उतनी ही अहमियत है जितना पांरपरिक खाने में है? यह जानने के लिए मैंने मुंबई के मशहूर द बॉम्बे कैंटीन रेस्तरां के एक्जीक्यूटिव शेफ़ थॉमस ज़कारिया से बात की.
ज़कारिया अपने रेस्तरां में सिर्फ़ ताज़ी और स्थानीय सामग्रियों का ही इस्तेमाल करते हैं. वह हल्दी को “कम जायके वाली पृष्ठभूमि सामग्री” कहते हैं.
“मुझे लगता है कि भारत में ज़्यादातर लोग इसे आदत के कारण इस्तेमाल करते हैं, न कि खाने में कोई जायका बढ़ाने के लिए.”
ज़कारिया को जब भी मौक़ा मिलता है वह ताज़ी हल्दी को स्टार सामग्री की तरह इस्तेमाल करते हैं, जैसे केरल की फिश करी मीन मोइली बनाने के लिए.
हल्दी और अदरक एक ही परिवार के हैं. भारत के कई राज्यों में इसकी खेती होती है.
फाइनेंसियल एक्सप्रेस के मुताबिक दुनिया भर के कुल हल्दी उत्पादन का 75 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा भारत में होता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी निर्यातक है और यहां इसकी खपत भी सबसे ज़्यादा है.
दक्षिण भारत के गर्म और आर्द्र मौसम वाले राज्यों- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में उम्दा क्वालिटी वाली हल्दी का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है.
इसे मई से अगस्त के बीच लगाया जाता है और जनवरी आते-आते फसल तैयार होने लगती है.
शगुन की गांठ
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि तमिलनाडु में जनवरी के मध्य में होने वाली नई फसल के उत्सव पोंगल में हल्दी की जड़ और पत्तों का इस्तेमाल होता है.
दूध उबालने के बर्तन के मुंह पर हल्दी के ताज़े पत्ते और उसकी जड़ बांधी जाती है. इसे धनधान्य का प्रतीक माना जाता है.
भारत में हल्दी रसोई के एक मसाले से कहीं बढ़कर है. भारतीय संस्कृति में इसकी ख़ास जगह है.
कई हिंदू समुदायों में शादी जैसे शुभ अवसरों पर उर्वरता और समृद्धि के प्रतीक के तौर पर हल्दी का उपयोग किया जाता है.
मिसाल के लिए, शादी से पहले हल्दी की रस्म होती है जिसमें परिवार के बड़े बुज़ुर्ग दुल्हन और दूल्हे के चेहरे पर हल्दी का लेप लगाते हैं.
दुल्हन के मंगलसूत्र के धागे को भी हल्दी के घोल में डुबोया जाता है. आज भी शादी सहित तमाम शुभ मौकों पर पहने जाने वाले कपड़ों के किसी कोने में हल्दी पाउडर लगा दिया जाता है.
भारतीय महिलाएं अपने घरेलू फेस पैक में एक चुटकी हल्दी मिलाती हैं. उनका मानना है कि हल्दी से त्वचा साफ़ और चमकदार होती है.
असली भारतीय मसाला
रेशी का कहना है कि भारत के ज़्यादातर मसाले खोजी यात्री और आक्रमणकारी लेकर आए, जैसे मिर्च दक्षिण अमरीका से लाया गया तो जीरा पूर्वी भूमध्य सागर क्षेत्र से आया. मगर हल्दी पूरी तरह भारतीय है.
“यह हमारा मसाला है. जिस तरह से हमने इसे दिल से अपनाया है और इसके औषधीय गुणों पर हमारा जैसा विश्वास है वह हज़ारों साल की अंतरंगता से बनता है.”
दस साल पहले एक पुराने दर्द के इलाज के लिए मैं केरल के एक आयुर्वेद अस्तपाल गई थी. उन्होंने हल्दी के लेप, कुछ मालिश और अन्य औषधियों से मेरा इलाज किया था.
तब एक वरिष्ठ वैद्य ने मुझे बताया था कि आयुर्वेद में हल्दी को जलन कम करने वाला माना गया है. इससे दर्द में राहत मिलती है.
कई भारतीय हल्दी से घरेलू उपचार करते हैं, जैसे टखने में मोच आ जाए तो हल्दी का लेप लगा लो या या सर्दी भगानी हो तो हल्दी की गांठ का धुआं सूंघ लो. आयुर्वेद की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली में इसका इस्तेमाल सदियों से हो रहा है.
बेंगलुरू के सौक्या होलिस्टिक हेल्थ सेंटर के संस्थापक डॉक्टर आइज़क मथाई का कहना है कि आयुर्वेद मानव शरीर में तीन तरह की ऊर्जा मानता है- वात, पित्त और कफ.
“हल्दी एकमात्र ऐसी औषधि सामग्री है जो इन तीनों तरह के दोषों को ठीक करती है.”
यह जलन कम करती है. साथ ही यह भी माना जाता है कि हल्दी में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-सेप्टिक गुण होते हैं. हालांकि इन चिकित्सीय गुणों के वैज्ञानिक प्रमाण अभी नहीं मिले हैं.
हल्दी के रासायनिक गुण
हल्दी को उसका चमकीला पीला रंग और इसकी कथित औषधीय ख़ूबियां एक रासायनिक घटक से मिलती हैं. इसका नाम है कर्क्यूमिन.
एक सिद्धांत कहता है कि भारतीय खाना पकाने में जिस तरह तेल में फ्राई किया जाता है उससे कर्क्यूमिन का असर बढ़ जाता है.
पोषण विशेषज्ञ और ‘द एवरीडे हेल्दी वेजिटेरियन’ की लेखिका नंदिता अय्यर कहती हैं, “कर्क्यूमिन एक तेज़ी से घुलने वाला यौगिक है. वसा के साथ कर्क्यूमिन के मिल जाने से शरीर में उसके अवशोषित होने की संभावना बढ़ जाती है.”
अगर यह सही है तो यह मेरे कानों में शहद घुलने जैसा है. इसका मतलब यह है कि मैं बिना किसी अपराधबोध के हल्दी दूध पीने से मना कर सकती हूं और उसकी जगह हल्दी का मसालेदार अचार खा सकती हूं.
उनके लिए जो महंगे कैफे में टर्मरिक लैटे पीने के लिए बड़ी रकम ख़र्च करते हैं, उनको चेत जाना चाहिए कि यह उनकी सभी मर्ज की दवा नहीं है. अच्छा हो कि वे इसे रामबाण औषधि की जगह गर्मागर्म पेय समझकर पिएं.
खाने के शौक़ीन हैं, तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं. क्योंकि आज हम बात कर रहे हैं सुपर थालियों के बारे में, जिन्हें अकेले खाना नामुमकिन ही समझ लीजिए.
(List Of Best Indian Thali)
भारत के अलग-अलग राज्यों की ये सुपर थाली, अच्छे-अच्छों को ललचा देती हैं:
1. ‘खली बली थाली’, दिल्ली (Khali Bali Thali, Delhi)
दिल्ली के कनॉट प्लेस में मिलती है ‘खली बली थाली’. यह 56 इंच की थाल में परोसी जाती है. ‘Ardor 2.1’ द्वारा परोसी जाने वाली वेज थाली की कीमत है 1,999 और नॉन-वेज की कीमत है 2,299. खास बात है कि चार से ज़्यादा लोगों के एक थाली को शेयर करने पर 500 रुपये एक्स्ट्रा लगते हैं.
2. बाहुबली थाली, पुणे (Bahubali Thali, Pune)
पुणे के शाकाहारी रेस्टोरेंट ‘आओजी खाओजी’ में मिलती है बाहुबली थाली. इस थाली में 11 मेन कोर्स डिशेस हैं जिसमें तीन तरह के चावल, रोटी, अचार 6 तरह के पापड़, सलाद और बड़ी गिलास लस्सी के साथ परोसा जाता है. इसकी कीमत है 2000 रुपये.
3. ‘चौपाल’ की राजस्थानी थाली, चौकी धानी (Chowki Dhani)
राजस्थान के चौकी धनी में मौजूद 5-स्टार रेस्टोरेंट ‘चौपाल’ की राजस्थानी थाली का क्या ही कहना. इसमें राजस्थान की पारंपरिक डिशेस सर्व की जाती हैं. खास बात है कि आप अपना पेट भरने तक खाना ले सकते हैं.
बेंगलुरु की केसरिया थाली में 32 आइटम्स परोसे जाते हैं. इसमें वेलकम ड्रिंक से लेकर डिजर्ट सब मौजूद होता है. इसे अकेले खाना तो लगभग नामुमकिन ही है, इसीलिए दोस्तों के साथ हैं तो इसे ज़रूर Try करें.
5. मसालेदार बाय मिनी पंजाब’, मुंबई (Mini Pubjab Thali, Mumbai)
मुंबई में मौजूद है ‘मसालेदार बाय मिनी पंजाब’. यहां परोसी जाती है ‘दारा सिंह थाली’. इसे दुनिया की सबसे बड़ी नॉन-वेज थालियों की लिस्ट में भी शुमार किया जाता है. ये थाली इतनी बड़ी है कि इसे आपकी टेबल पर लाने के लिए दो लोगों की ज़रूरत पड़ती है.
6. 56 भोग, मुंबई (56 Bhog, Mumbai)
मुंबई की हलवाई की दुकान में परोसी जाती है स्पेशल थाली जिसका नाम है ’56 भोग’. जैसा कि इसके नाम से ही क्लियर हो रहा है इसमें 56 आइटम्स परोसे जाते हैं. इस थाली को टेबल तक लाने के लिए तो दो से भी ज़्यादा लोगों की ज़रूरत पड़ती है.
7. सुकांता प्योर वेज थाली, पुणे (Pure Veg Thali, Pune)
सुकांता प्योर वेज थाली में 25 डिशेस सर्व की जाती हैं. इसमें खट्टे-मीठे, नमकीन आदि सभी फ्लवेरों से भरपूर होती है. अगर आप कम पैसों में एक बेहतर और बड़े स्वाद की तलाश में हैं तो ये थाली बिल्कुल आपके लिए ही बनी है.
अब अगर आप कभी इन राज्यों में जाएं, तो इन थालियों को आज़माना न भूलें.
मार्केट में मास्क की तो बहार है. डिजाइनर मास्क के साथ-साथ पॉलिटिकल मास्क तक दिख रहे हैं. ऐसे में बच्चों के मास्क ने भी मार्केट में एंट्री कर ली है. बच्चे भले ही स्कूल नहीं जा रहे, लेकिन घर से निकलना, खेलना-कूदना शुरू कर चुके हैं. कोरोना से लड़ाई लंबी है. ऐसे में एक बात संपुट की तरह बार-बार बोली जा रही है, वह है- हमें करोना के साथ जीना सीखना होगा!
बात भी ठीक है. जीना तो कोरोना के साथ सीखना ही होगा. बच्चे भी घर पर बैठे-बैठे परेशान हो गए हैं. वो घर के पास वाले पार्क में खेलने जाने की जिद कर रहे हैं. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि 10 बरस से कम उम्र के बच्चों के लिए कैसा मास्क रहेगा सेफ.
पहले जान लेते हैं, स्टडी क्या कहती है
अमेरिका और जापान में हुई स्टडी में सामने आया है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह का मास्क पहनाना उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है. स्टडी में दावा है कि इतने छोटे बच्चों में सांस लेने की जगह इतनी संकरी होती है कि मास्क पहनने से उनके दिल पर दबाव पड़ सकता है. ऐसे में बच्चे को सांस से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं. कोरोना के चलते जितना भी हो सके, बच्चे को घर पर ही रखा जाए और उन्हें बाहर ले जाने से बचा जाए. अगर जाना ही पड़े, तो कम से कम भीड़-भाड़ वाली जगह से दूर रहें.
और डॉक्टर साब क्या कह रहे हैं
पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. राजकुमार का कहना है कि लंबे वक्त तक बच्चों का मास्क पहनना अमूमन अच्छा नहीं होता. लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ऐसा करना जरूरी हो गया है. हालांकि बच्चों के लिए किसी भी तरह के फैंसी या मेडिकेटेड मास्क की जगह साधारण मास्क ही बेहतर है. बच्चे शारीरिक रूप से ज्यादा एक्टिव होते हैं. मास्क लगा कर खेलने में सिंथेटिक और मेडिकेटेड मास्क से उन्हें दिक्कत हो सकती है. ऐसे में साधारण और सूती कपड़े का मास्क पहनाना ही बच्चों के लिए बेहतर उपाय है.
ऐसा ही कुछ कहना है कि एमसीडी में मेडिकल ऑफिसर रहे डॉ. अनिल बंसल का. उनके अनुसार बच्चों को ऐसा मास्क पहनाएं, जिससे मुंह और नाक ढका रहे, लेकिन पर्याप्त सांस आती रहे. मेडिकेटेड मास्क में वयस्क लोग आराम से सांस ले सकते हैं, लेकिन 10 बरस से कम उम्र के बच्चों के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं होता. ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी से भी उन्हें सिंथेटिक मास्क में दिक्कत हो सकती है. ऐसे में बच्चे भी अगर बाहर जाएं, तो साधारण सूती कपड़े का मास्क लगाएं.
उनका कहना है कि पैरेंट्स को कोशिश तो यही करनी चाहिए कि वो तीन साल से कम के बच्चों को बाहर लेकर न जाएं. इतने छोटे बच्चे को मास्क पहनाना मुश्किल भरा हो सकता है और बच्चा बीमार हो सकता है.
कच्चा आम खाने में जितना खट्टा होता है, इसके फायदे उतने ही मीठे होते हैं. कच्चे आम के सेवन से कई दिक्कतों से बचा जा सकता है. आइए जानते हैं क्या हैं इसे खाने के फायदे.
– कच्चे आम का खट्टापन वजन कम करने में मददगार है.
– अपच, गैस आदि की समस्या में कच्चे आम का सेवन बहुत गुणकारी है.
– कच्चे आम में मौजूद विटामिन A आंखों के लिए लाभकारी है. किसी भी तरह से इसका सेवन नजर तेज करने में फायदेमंद है.
– गर्मी के मौसम में लू चलना तो लाज्मी है. इस दौरान कच्चे आम का सेवन बहुत फायदा पहुंचाता है.
– कच्चे आम में मौजूद विटामिन C मसूड़ों के लिए बहुत फायदेमंद होता है.
– ऊल्टी आने या जी घबराने पर कच्चे आम को काले नमक के साथ लेना बहुत आराम दिलाता है.
– कच्चा आम खाना काले बालों और बेदाग त्वचा पाने के लिए बहुत फायदेमंद है.
– यह शुगर के रोगियों के लिए बहुत अच्छा होता है.
– गर्मी में हद से ज्यादा पसीना आने को भी नियंत्रित करता है कच्चे आम का सेवन.
18 से 40 वर्ष के बीच के आवेदकों को हर महीने 55 रुपये से 200 रुपये के बीच निवेश करना होगा। आवेदक के 60 वर्ष का हो जाने पर वे 3 हजार रुपये मासिक पेंशन का क्लेम ले सकते हैं। अगर पेंशनभोगी की मृत्यु हो जाती है, तो उनके पति या पत्नी केवल 50% पेंशन प्राप्त करने के हकदार होंगे।
प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PM-SYM) एक सरकारी योजना है जो असंगठित कामगार / श्रमिक (Unorganized Workers – UW ऐसा व्यक्ति जो प्रत्यक्षतः या किसी एजेंसी या ठेकेदार के माध्यम से एक या अधिक अनुसूचित नियोजन/नियोजनों में लगे हुए हैं जैसे कि – खेतों में मजदूरी करने वाले, गृहकर्मी, स्ट्रीट हॉकर्स, मछली पकड़ने वाले श्रमिक, पत्थर तोड़ने वाले, स्थायी ईंट निर्माता, दुकानदार, गोदामों, परिवहन, हथकरघा, बिजली के सामान, डाइंग-प्रिंटिंग, सिलाई-बुनाई-कढ़ाई, लकड़ी के सामान, चमड़े के सामान और जूते बनाने वाले और पटाखे बनाने वाले, ऑटो रिक्शा चालकों, आटा, तेल, दालों, चावल और पोहा मिलों, लकड़ी के मजदूर, बर्तन, कारीगरों, चौकीमार, सुतार) के बुढ़ापे की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के लिए है। यह एक स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजना है जिसके तहत 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद ग्राहक को प्रति माह रुपये 3000 की न्यूनतम पेंशन प्राप्त होगी और यदि ग्राहक की मृत्यु हो जाती है, तो लाभार्थी का पति या पत्नी पारिवारिक पेंशन के रूप में 50% पेंशन प्राप्त करने के हकदार होंगे। पारिवारिक पेंशन केवल पति या पत्नी के लिए लागू होती है।
PM-SYM कैसे काम करती है
सबसे पहले सामुदायिक सेवा केंद्र (CSC) में एक PM-SYM खाता खोलें। यहाँ आपकी उम्र के आधार पर, मासिक योगदान राशि तय की जाएगी। 60 वर्ष की आयु होने तक हर महीने योगदान राशि का भुगतान करें। सरकार भी आपके खाते में समान राशि का योगदान करेगी। 60 वर्ष की आयु के बाद, आपको अपने जीवन के अंत तक 3000 रुपये की मासिक पेंशन मिलेगी। उसके बाद, आपके जीवनसाथी को उसके जीवन के अंत तक हर महीने 1500 रुपये की गारंटीकृत पारिवारिक पेंशन मिलेगी। उसके बाद, पारिवारिक पेंशन बंद कर दी जाएगी और पीएम-एसवाईएम खाते में शेष राशि सरकार को वापस दी जाएगी।
PM-SYM के लिए पात्रता मानदंड
असंगठित श्रमिक (UW) जिनकी आयु 18 से 40 वर्ष के बीच हो और जिनकी मासिक आय 15000 रुपये या उससे कम हो, इस योजना के तहत पेंशन का लाभ ले सकते हैं। वहीं संगठित क्षेत्र में कार्यरत (EPFO / NPS / ESIC के सदस्य) और जो आयकरदाता हो, इस योजना के पात्र नहीं होंगे।
इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदक के पास आधार कार्ड, बचत बैंक खाता / जन धन खाता संख्या IFSC के साथ होना चाहिए।
PM-SYM के लिए मासिक, वार्षिक योगदान
पीएम-एसवाईएम 50:50 के आधार पर एक स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजना है जहां केंद्र सरकार द्वारा लाभार्थी और मिलान योगदान द्वारा निर्धारित आयु-विशिष्ट योगदान किया जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष की आयु में इस योजना के लिए आवेदन करता है, तो उसे प्रति माह 55 रुपये का योगदान करना होगा, 60 वर्ष की आयु तक केंद्र सरकार द्वारा 55 रुपये के बराबर राशि का योगदान दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के लिए कैसे करें आवेदन
इच्छुक पात्र व्यक्ति निकटतम सीएससी केंद्र जाकर इसके लिए आवेदन करें।
नकद में प्रारंभिक योगदान राशि ग्रामीण स्तर के उद्यमी (VLE) को दी जाएगी।
VLE आधार संख्या, ग्राहक का नाम और जन्मतिथि का प्रमाणीकरण करेगा।
बैंक खाते के विवरण, मोबाइल नंबर, ई-मेल ऐड्रेस, पति / पत्नी (यदि कोई हो) और नामांकित विवरण जैसे विवरणों को भरकर वीएलई ऑनलाइन पंजीकरण पूरा कर लेंगे।
पात्रता शर्तों के लिए स्व-प्रमाणन किया जाएगा।
सिस्टम सब्सक्राइबर की आयु के अनुसार देय मासिक योगदान की गणना करेगा।
सब्सक्राइबर वीएलई को नकद में पहली सदस्यता राशि का भुगतान करेगा।
नामांकन सह ऑटो डेबिट जनादेश प्रपत्र मुद्रित किया जाएगा और आगे ग्राहक द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। VLE उसी को स्कैन करेगा और सिस्टम में अपलोड करेगा।
एक अद्वितीय श्रम योगी पेंशन खाता संख्या (SPAN) उत्पन्न की जाएगी और श्रम योगी कार्ड मुद्रित किया जाएगा।