क्या आप गणित में सचमुच इतने बुरे हैं?

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क्या आप भी उन माता-पिता में से एक हैं जो अपने बच्चे को गणित का होमवर्क कराने से घबराते हैं?

क्या रेस्तरां के बिल पर टिप का हिसाब लगाना आपको पसंद नहीं? क्या कर्ज़ पर ब्याज के भुगतान को समझना आपको पहाड़ जैसा लगता है?

यदि ऐसा है तो यकीनन आप अकेले नहीं हैं. अमरीका में 93 फीसदी वयस्क गणित से घबराते हैं.

सिर्फ़ वयस्क नहीं, 34 देशों में 15 से 16 साल के 31 फीसदी छात्र भी गणित के प्रश्न हल करते समय नर्वस हो जाते हैं.

33 फीसदी बच्चे गणित का होमवर्क करते वक़्त तनाव में आ जाते हैं और करीब 60 फीसदी बच्चों को गणित की कक्षाएं मुश्किल लगती हैं.

न्यूयॉर्क के बर्नार्ड कॉलेज की प्रेसिडेंट और मनोवैज्ञानिक सियान बीलॉक का कहना है कि पश्चिमी देशों में आम धारणा है कि या तो आप गणित में बहुत अच्छे हैं या बहुत बुरे हैं.

अगर आप गणित में कमजोर हैं तो यह सामाजिक तौर पर स्वीकार्य है.

वह कहती हैं, “आप वयस्कों को यह कहते नहीं सुनेंगे कि वे पढ़ते-लिखते नहीं हैं, लेकिन वे यह कहते हुए अवश्य मिलेंगे कि वह गणित के आदमी नहीं हैं.”

लेकिन हममें से कई लोग जो गणित से डरते हैं या ख़ुद को इसमें क़मजोर समझते हैं वे थोड़े से प्रयास से ही किसी प्रश्न को हल करने में पूरी तरह सक्षम हैं.

तो फिर गणित की ये घबराहट क्या है और कहां से आती है?

 

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बचपन से बैठा डर

“मैथेफ़ोबिया” शब्द को सबसे पहले 1953 में गणितज्ञ मैरी डि लेलिस गफ ने बनाया था. उनके कई छात्र गणित से घबराते थे.

गफ ने इसे ऐसी बीमारी बताया जिसका पता लगने से पहले ही घातक हो जाती है.

दूसरे विशेषज्ञों ने इसे उस घबराहट और लाचारी के रूप में परिभाषित किया जो गणित का सवाल दिए जाने पर कुछ लोगों में होती है. वे गणित का नाम लेते ही डरने लगते हैं.

बीलॉक और उनके सहयोगियों ने दिखाया कि यह डर उसी समय से शुरू हो सकता है जब हमारी औपचारिक स्कूली शिक्षा की शुरुआत होती है.

“पश्चिमी सभ्यताओं में गणित की पढ़ाई सबसे पहले शुरू होती है जिसमें हम सीखते हैं कि हमें जो मिला है वह सही है या ग़लत. हमें गणित के सवाल हल करने दिए जाते हैं जिनका मूल्यांकन होता है.”

यह घबराहट लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों में ज़्यादा हो सकती है. बीलॉक का कहना है कि प्राइमरी स्कूल शिक्षकों में अक्सर गणित का डर देखा गया है. अमरीका और अन्य जगहों पर वे ज़्यादातर महिलाएं हैं.

बच्चों में समान लिंग के वयस्कों के नक्शेकदम पर चलने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए लड़कियां अपनी महिला शिक्षकों के इस गुण को ज़ल्दी अपना लेती हैं. वे गणित से कन्नी काटने लगती हैं.

बीलॉक के रिसर्च से पता चलता है कि यदि महिला शिक्षक गणित से घबराती हों तो लड़कियों भी मानने लगती हैं कि उन्हें गणित से दूर रहना चाहिए जिससे उनका प्रदर्शन गिरने लगता है.

 

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कनाडा के न्यूफ़ाउंडलैंड की मेमोरियल यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डैर्सी हैलेट का कहना है कि गणित से घबराहट का संबंध बचपन के अनुभवों से है. इसमें शिक्षकों की निराशा और गुस्सा शामिल हैं.

एक बार यह घबराहट शुरू हो जाए तो यह घर करने लगती है. बीलॉक का कहना है कि इसकी फिक्र करने से स्थिति और बिगड़ने लगती है.

बीलॉक ने 5 से 8 साल के बच्चों पर रिसर्च किया जिससे पता चला कि गणित की घबराहट प्रदर्शन पर असर डाल सकती है.

“ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता सीमित है, इसलिए जब हम एक वक़्त पर एक से अधिक काम करते हैं तो हमारा ध्यान बंट जाता है.”

“यदि आपको गणित के सवाल हल करने को लेकर फिक्र हो रही है तो संख्याओं की गणना करते समय आपके अंदर से यह आवाज़ आ सकती है कि आप यह नहीं कर सकते.”

2019 के एक शोध के मुताबिक जब लोगों में गणित को लेकर चिंता होती है तो वे इस विषय से कन्नी काटने लगते हैं. नज़रअंदाज़ करने से यह विषय और मुश्किल लगने लगता है.

डैर्सी हैलेट का कहना है कि गणित बुनियादी विषय है. आप कोई एक अध्याय छोड़ देते हैं तो अगला अध्याय सीखना कठिन हो जाता है. फिर आप पिछड़ने लगते हैं और गणित से दूर जाने लगते हैं.

 

गणित से प्यार करने वाले शिक्षक

स्कूल में गणित से परहेज़ दूसरे विषयों में विशेषज्ञता हासिल करने में मददगार हो सकती है. लेकिन समाज घाटे में रहता है.

बहुत से लोग जो असल में गणित में अच्छा कर सकते थे वे इसकी ऊंची तालीम नहीं लेते या गणित से जुड़े करियर में नहीं जाते.

अमरीका में निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) कर्मचारियों की कमी से जूझते हैं. दूसरे देशों में भी यही हाल है.

इसलिए विशेषज्ञ उन उपायों पर विचार कर रहे हैं जिससे गणित की घबराहट को दूर किया जा सके. बीलॉक का कहना है कि इसकी शुरुआत घर में हो सकती है.

माता-पिता बच्चों को गणित का होमवर्क कराते समय घबराहट दिखाएं तो बच्चे में भी यह चीज़ आ सकती है. लेकिन जो बच्चे माता-पिता के साथ मैथ्स ऐप पर नियमित रूप से गेम्स खेलते हैं, उनका प्रदर्शन स्कूल में भी सुधरता है.

बीलॉक का मानना है कि बच्चों के साथ गणित के सवाल हल करने से माता-पिता को भी अपनी क्षमताओं पर यकीन होने लगता है.

बोस्टन यूनिवर्सिटी के क्वेस्ट्रॉम स्कूल ऑफ़ बिजनेस की एसोसिएट प्रोफेसर शुलामित कान ने STEM में लैंगिक असमानता के बारे में लिखा है.

उनका मानना है कि छात्रों, ख़ासकर लड़कियों को बचपन में अच्छा रोल मॉडल देना बहुत मायने रखता है.

कान को लगता है कि गणित को पसंद करने वाले लोग, ख़ासकर महिलाएं बच्चों को पढाएं.

इसका मतलब होगा ऐसे लोगों की भर्ती करना जिनके पास गणित का तजुर्बा हो या गणित संबंधी प्रशिक्षण हो.

नॉर्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के ऐइनर स्काल्विक का कहना है कि कक्षा में छात्रों को खुलकर बोलने के लिए प्रेरित करना भी मायने रखता है.

“गणित से घबराने वाले छात्र दूसरों के सामने बुरा दिखने से डरते हैं और सवाल नहीं पूछते. शिक्षकों को यह बताना चाहिए कि ग़लतियां करना सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा है.”

परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने की जगह सीखने पर जोर होना चाहिए. स्कूल जब सिर्फ़ ग्रेड को अहमियत देते हैं तो बेचैनी होने लगती है. रैंकिंग की व्यवस्था निजी तरक्की को ढंक सकती है.

हैलेट इसे घबराहट के अन्य विषयों की तरह निपटना चाहते हैं. “अभी तक हम मुद्दे के बाहर-बाहर उपाय तलाश रहे हैं, लेकिन इसका इलाज इस बात में है कि हम आम तौर पर बेचैनी का इलाज कैसे करते हैं.”

हैलेट और उनके सहयोगी अपने शोध के हिस्से में 7 से 9 साल के बच्चों को ध्यान केंद्रित करना सिखाते हैं. शुरुआती नतीजों से पता चलता है कि बच्चों के एक ख़ास समूह पर यह कारगर हो सकता है.

उनका कहना है कि वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करके और अपनी घबराहट को पहचानकर छात्र परीक्षा पर बेहतर तरीके से फ़ोकस कर सकते हैं और प्रदर्शन सुधार सकते हैं.

जब वे अपना प्रदर्शन सुधरता हुआ देखते हैं तो अगली बार उन्हें पहले जितनी घबराहट नहीं रहती.

 

घबराहट कम करना

उच्च शिक्षा के स्तर पर भी घबराहट कम करने से छात्रों को मदद मिल सकती है.

बीलॉक 2014 में हुए एक अध्ययन में शामिल थीं जिससे पता चला था कि परीक्षा से पहले गणित से घबराने वाले छात्रों से एक छोटा लेख लिखवाने से उनका प्रदर्शन सुधारने में मदद मिलती है.

लिखित अभ्यास में छात्रों से कहा गया था कि वे परीक्षा की घबराहट के बारे में अपनी भावनाएं खुलकर जाहिर करें.

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस अभ्यास से छात्रों को अपनी भावनाएं बेहतर तरीके से समझने और उनको नियंत्रित करने में मदद मिली. उनकी याददाश्त ने बेहतर काम किया और परीक्षा में प्रदर्शन सुधरा.

इसका मतलब यह है कि अगर आप गणित की परीक्षा से पहले तनाव महसूस कर रहे हैं तो परीक्षा से पहले अपनी भावनाओं की विवेचना करने से मदद मिल सकती है.

बीलॉक कहती हैं, “तसल्ली कर लें कि आप अपनी भावनाओं की सही-सही व्याख्या कर रहे हैं.”

 

“सिर्फ़ इसलिए कि आपकी धड़कनें तेज़ हैं या हथेलियों से पसीना आ रहा है तो इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप फेल हो जाएंगे.”

उच्च शिक्षा के कुछ संस्थान गणित की घबराहट कम करने के उपाय निकाल रहे हैं.

मैरीलैंड का मॉन्टेगोमरी कॉलेज गणित का ख़ौफ़ दूर करने और आत्मविश्वास पैदा करने के लिए कक्षाएं चलाता है.

गणित के प्रोफेसर जॉन हैमैन का कहना है कि पाठ्यक्रम इस बात की पड़ताल करता है कि घबराहट कहां से आती है. उसी हिसाब से उससे निपटने की रणनीति बनाई जाती है.

“बहुत से छात्र यहां एक निश्चित मानसिकता से आते हैं, ख़ासकर गणित के बारे में. उन्हें लगता है कि या तो वे विषय में बहुत अच्छे हैं या बुरे हैं.”

हैमैन उनसे प्रयास की अहमियत के बारे में बातें करते हैं. शोध से यह भी पता चला कि पढ़ाई में अधिक स्वायत्तता मिलने से छात्रों की घबराहट कम होती है और प्रदर्शन सुधरता है.

कॉलेज ने छात्रों को ख़ुद से सीखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया. छात्र मशीन की कृत्रिम बु्द्धि पर आधारित ऑनलाइन प्रोग्राम की मदद से गणित के सवाल हल करते हैं.

इसमें प्रदर्शन के आधार पर सवाल पूछे जाते हैं. साथ में मदद के लिए एक प्रशिक्षक होता है. छात्र यहां पिछड़ जाने या सवाल पूछे जाने पर शर्मिंदा होने के दबाव में नहीं होते

हैमैन कहते हैं, “यह सूक्ष्म बदलाव है, लेकिन इससे घबराहट कम हो सकती है.”

बेशक कुछ लोग हमेशा ऐसे मिलेंगे जो किसी भी कीमत पर गणित को नज़रअंदाज़ करना चाहेंगे.

ऐसे लोग अगर संख्याओं से होने वाली बेचैनी से निपटने की कोशिश करें तो उन्हें सबसे अधिक फायदा होगा.

बीलॉक कहती हैं, “गणित रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है. यदि हम गणित से घबराने वालों की मदद नहीं कर रहे हैं तो वे अपनी पूरी क्षमता हासिल नहीं कर पाते.”




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