भारत के सोशल मीडिया यूज़र्स आजकल एक नया नाम सुन रहे हैं- मास्टोडॉन. इससे पहले फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम ही मोटे तौर पर भारत में लोकप्रिय थे. लेकिन इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगने वाले मनमानी और दुर्भावना के आरोपों ने यूज़र्स को मास्टोडॉन की ओर आकर्षित किया है.
5 अक्टूबर, 2016 को मास्टोडॉन शुरू वाले युगेन रोकचो के मुताबिक, बीते एक हफ्ते में भारत के क़रीब 26 हज़ार लोग इस प्लेटफॉर्म से जुड़े हैं. हालांकि, ये भी अनुमानित आंकड़ा ही है. अब आप कहेंगे कि कंपनी बनाने वाले को तो पता होगा न, कि कितने लोगों ने उनके पास अपना अकाउंट बनाया है. तो जवाब है- जी नहीं. मास्टोडॉन इन सब आंकड़ों का मोटा-मोटा हिसाब ही रखता है. सिर्फ इतना कि पिछले हफ्ते कितने लोग थे और इस हफ्ते कितने लोग हैं. यहां सबकुछ एक बंदे या कंपनी के कंट्रोल में नहीं है. आप अपनी मर्ज़ी से तय कर सकते हैं कि आपको किसके सर्वर से जुड़ना है. अगर बातें बोझिल हो रही हैं, तो ये सब ज्ञान पॉइंट्स में जान लेते हैं. आसान भाषा में.
मास्टोडोन बनाने वाले युगेन रोक्चो. (साभार- मास्टोडॉन)
मास्टोडॉन क्या है
मास्टोडॉन की वेबसाइट के मुताबिक,
– मास्टोडॉन एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है. ट्विटर और टंबलर की तरह ही यूज़र यहां एक अकाउंट बना सकता है. मैसेज, फोटो, वीडियो भेज सकता है और दूसरे यूज़र्स को फॉलो कर सकता है.
– मास्टोडॉन में ट्विटर के 280 करेक्टर की लिमिट की जगह, 500 करेक्टर लिखने की आज़ादी है.
– इसे कोई एक बंदा या कंपनी नहीं चलाती है. दूसरी तरफ देखें तो बाकी सभी बड़े सोशल मीडिया नेटवर्क्स को कंपनियां चलाती हैं. उनमें शेयर होने वाले डेटा और कॉन्टेंट पर कंपनी का पूरा कंट्रोल होता है. लेकिन मास्टोडॉन में कोई भी अपना सर्वर बना सकता है. सरल भाषा में कहें तो अपनी कम्यूनिटी बना सकता है.
‘माह लाइफ, माह रूल्ज़ वाली बात यहां फिट बैठती है.
वैसे इसका यूज़र इंटरफेस ट्विटर से मिलता जुलता है.
काम कैसे करता है मास्टोडॉन
इंस्टेंस. ये शब्द याद कर लीजिए. जब कभी भी कोई अपने नियम, कायदे-क़ानून चलाकर मास्टोडॉन का अपना वर्ज़न बनाता है, तो उसे इंस्टेंस कहते हैं. क्योंकि मास्टोडॉन ओपन सोर्स (ऐसा सॉफ्टवेयर जिसे अपने हिसाब से बदला जा सके) है, इसलिए कोई भी अपने इंस्टेंस बना सकता है. अपनी साइट, अपने रूल. माने एक तरह का ग्रुप बन जाता है. जो खुद के नियम-कानून बनाता है.
यूजर के डेटा पर उनका ही अधिकार होता है. किसी प्राइवेट कंपनी का नहीं, जो विज्ञापन कंपनियों को डेटा बेचने के लिए डेटा ट्रैक करते रहते हैं. ज्यादातर इंस्टेंस क्राउड फंडेड होते हैं. माने, इंस्टेंस के यूज़र्स चंदा जुटाकर उस सर्वर का खर्च उठाते हैं.
ये इंस्टेंस के नाम हैं. इनमें से आप कोई भी इंस्टेंस जॉइन कर सकते हैं. (साभार- मास्टोडॉन)
पर ये अलग-अलग इंस्टेंस आपस में कैसे जुड़ते हैं?
सिंपल है. फॉलो कर सकते हैं एक दूसरे को. यानी अपने इंस्टेंस में तो आप फॉलो करते ही होंगे, आप दूसरे इंस्टेंस के यूज़र्स को भी फॉलो कर सकते हैं. हां, अब किसी इंस्टेंस का, ग्रुप का मन हो कि भइया नहीं फॉलो करवाना है किसी और से, तो वो अपनी सेटिंग कर सकते हैं प्राइवेट टाइप की.
एक बात और ज़रूरी है. यहां गाली-गलौज, भद्दे कमेंट और किसी को भी प्रताड़ित करने वाला कॉन्टेंट पोस्ट नहीं किया जा सकता. इसके लिए एंटी-अब्यूज़ टूल हैं. जो इंस्टेंस की मदद करते हैं ट्रोल्स को दूर रखने में. कुल मिलाकर, मास्टोडॉन का दावा है कि
मास्टोडॉन यूज़र्स को प्राथमिकता देता है, इसे बेचा नहीं जा सकता, ये कभी बैंकरप्ट नहीं हो सकता और न ही सरकारें इसे पूरी तरह से ब्लॉक कर सकती हैं.
ये ग्रीटिंग वाला हाथी बनाया है मास्टाडोन ने. (साभार- मास्टोडॉन)
इंडिया वाले 3 साल बाद क्यों धड़ल्ले से जॉइन करने लगे?
ट्विटर और फेसबुक के प्रति लोगों के गुस्से और नाराज़गी को पूरा क्रेडिट देना बेमानी होगी. गुस्सा और नाराज़गी है, लेकिन डाटा प्राइवेसी और विकेंद्रण यानी डीसेंट्रलाइज़ेशन की मांग करने वाले लोग भी मास्टोडॉन से जुड़े हैं. बात करें फेसबुक और ट्विटर पर लोगों के गुस्से की तो ये बीते अक्टूबर महीने से बढ़ रहा है. यूज़र्स फेसबुक और ट्विटर का विरोध उनके ही प्लेटफॉर्म पर कर रहे हैं. ट्विटर पर तो मानो युद्ध छिड़ा हो. ट्विटर इंडिया के चीफ एग्ज़िक्यूटिव को निकालने की मांग तक ट्रेंड हो गई ट्विटर पर.
ये हाथी उत्सुक है. ये भी पूरा मामला जानना चाहता होगा. (साभार- मास्टोडॉन)
यूज़र्स का दावा है कि
“ट्विटर इंडिया राजनैतिक और जातिगत पक्षपात करता है. दक्षिणपंथी और सरकार की तारीफ़ करने वालों के ट्विटर हैंडल को वेरिफाई कर देता है, लेकिन पिछड़े वर्ग से आने वाले एक्टिविस्टों और सरकार के आलोचकों के ट्विटर हैंडल वेरिफाई नहीं करता.”
मामले ने तब तूल पकड़ा, जब सुप्रीम कोर्ट के वकील और एक्टिविस्ट संजय हेगड़े का ट्विटर हैंडल दो बार ट्विटर इंडिया की ओर से सस्पेंड कर दिया. इसके अलावा पत्रकार और प्रोफेसर दिलीप मंडल के हैंडल पर भी पाबंदियां लगा दी गईं. इन सब बातों के विरोध में कई सेलिब्रिटीज़ और नामी लोगों ने ट्विटर छोड़ने की धमकी दी. और ऐसे में उन्हें नया प्लेटफॉर्म मिला- मास्टोडॉन. ट्विटर ने इस पूरे मामले पर सफाई दी, लेकिन अब भी नाराज़गी बदस्तूर जारी है.
कौन-कौन नामी इंडियन है मास्टोडॉन पर?
काफी नाम हैं. जैसे – कमीडियन और राइटर वरुण ग्रोवर, सरकार की आलोचना करने के बाद IAS की नौकरी छोड़ने वाले कन्नन गोपीनाथन, सिंगर विशाल डडलानी, सुप्रीम कोर्ट के वकील- प्रसन्ना एस, ऑल्ट न्यूज़ चलाने वाले प्रतीक सिन्हा, पार्लियामेंट एक्सपर्ट मेघनाद जैसे कई यूज़र्स हैं जो मास्टोडॉन का इस्तेमाल कर रहे हैं. और अपने ट्विटर के फॉलोअर्स को बुलावा भी दे रहे हैं मास्टोडॉन पर आने का.
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