“विरोध के अधिकार को लेकर कोई यूनिवर्सिल पॉलिसी नहीं हो सकती है. इसमें केस-टू-केस बदलाव आते रहते हैं. ऐसे में हालात को ध्यान में रखते हुए कुछ कटौतियां भी करनी ज़रूरी होती हैं, ताकि संतुलन बना रहे.”
ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की है. 21 सितंबर, सोमवार को. सुनवाई हो रही थी दिल्ली के शाहीन बाग में हुए एंटी-सीएए प्रोटेस्ट को लेकर आई तमाम याचिकाओं पर. याचिकाएं, जिसमें ज़िक्र है उन असुविधाओं का, जो शाहीन बाग प्रोटेस्ट की वजह से लोगों को हुईं. सुप्रीम कोर्ट ने लोगों के विरोध के अधिकार और रोड ब्लॉक किए जाने के बीच ‘संतुलन’ स्थापित करने की ज़रूरत पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
दिल्ली के शाहीन बाग में दिसंबर से शुरू होकर करीब तीन महीने तक एंटी-सीएए प्रोटेस्ट चला था. रोड ब्लॉक रही थी, जिससे पूरे एनसीआर के लोगों को आने-जाने में दिक्कत हुई थी. रोड ब्लॉक करके विरोध जताने के इसी तरीके पर तमाम आपत्तियां जताई गई थीं. बाद में जब कोविड-19 का ख़तरा बढ़ा, लॉकडाउन लगा, सोशल डिस्टेंसिंग अमल में आई, तो ये प्रोटेस्ट भी ख़त्म किया गया था.
जस्टिस एसके कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी ने की बेंच ने कहा –
“(रोड ब्लॉक के बीच) कुछ ऐसे परिस्थितियां बनीं, जो किसी के हाथ में नहीं थीं. कह सकते हैं कि भगवान ने ख़ुद हस्तक्षेप किया (कोरोना के रेफरेंस में). विरोध के अधिकार और रोड ब्लॉक किए जाने के बीच संतुलन ज़रूरी है. लोकतंत्र में विरोध तो होते हैं. संसद में भी और रोड पर भी. लेकिन रोड पर इसका शांतिपूर्ण तरीके से होना ज़रूरी है.”
वकील अमित साहनी ने भी इस मामले में याचिका लगाई थी. उन्होंने कहा –
“इस तरह के विरोध प्रदर्शन भविष्य में नहीं होने चाहिए. जनहित में यही अच्छा है. शाहीन बाग में 100 दिन से ऊपर प्रदर्शन चलने दिया गया और इससे लोगों को भारी असुविधा हुई. अब कल हरियाणा में ही चक्का जाम कर दिया गया. 24-25 सितंबर को भारत बंद का ऐलान किया गया है. ऐसे विरोध नहीं होना चाहिए.”
जब विरोध प्रदर्शन चल रहा था, तो सुप्रीम कोर्ट ने कुछ वार्ताकारों को भी शाहीन बाग भेजा था, ताकि बातचीत के ज़रिये कुछ हल निकाला जा सके और कम से कम रोड को खुलवाया जा सके. लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला था. अब फैसला सुरक्षित रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वार्ताकारों को भेजना एक प्रयोग था, जो शायद काम किया या शायद काम नहीं भी किया.
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