मंदी के दौर में आख़िर चीन कैसे कर रहा है ग्रोथ?

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सैन्य ताक़त में असाधारण बढ़ोतरी से लेकर ख़ुद को एक संपन्न देश बनाने और दुनिया का मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनने तक का सफ़र चीन ने रॉकेट की रफ्तार से तय किया है. 1979 में अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलने और आर्थिक सुधार लागू करने के महज़ 40 सालों में चीन के आर्थिक और सैन्य सुपरपावर बनने के सफ़र को पूरी दुनिया ने हैरत भरी नज़रों से देखा है.

साल 2019 के आख़िर में चीन ने दुनिया को तब फिर चौंका दिया जब उसके एक शहर वुहान से ख़तरनाक कोरोना वायरस फैलना शुरू हो गया.

जब तक कोई समझ पाता कोविड-19 वायरस पूरी दुनिया में पैर पसार चुका था. इस एक वायरस ने पूरी दुनिया को लाचार और पंगु बना दिया और अगला पूरा एक साल इस महामारी से जंग में कटा. अभी भी यह लड़ाई जारी है.

इस दौरान आम लोगों से लेकर पश्चिमी दुनिया के दिग्गज देशों तक सब की आमदनी और अर्थव्यवस्थाएं धराशायी हो गईं. अभी भी दुनिया इस महामारी के असर से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने की कोशिशों में लगी हुई हैं.

हालांकि, इस मामले में भी चीन ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. जब पूरी दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं नकारात्मक ग्रोथ या कॉन्ट्रैक्शन (अर्थव्यवस्थाओं का संकुचन या सिकुड़ना) का सामना कर रही हैं या फिर मामूली ग्रोथ के लिए भी संघर्ष कर रही हैं, उस वक्त पर चीन ने ग्रोथ के बढ़िया आंकड़ों से दुनिया को हैरत में डाल दिया है.

चीन की इकनॉमी जिस रफ्तार से बढ़ रही है वह कोरोना से जूझ रहे दूसरे देशों के लिए कल्पना से भी ज्यादा है.

क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी मानते हैं कि कोरोना पर जल्द कंट्रोल पाने की वजह से चीन अपनी आर्थिक ग्रोथ को रिकवर करने में सफल रहा है.

डी के जोशी कहते हैं, “सबसे पहले महामारी चीन में शुरू हुई और उन्होंने ही सबसे जल्दी इस पर क़ाबू पा लिया. पूरी समस्या की जड़ ही कोविड-19 है. ऐसे में अगर आप कोविड-19 पर कंट्रोल कर सकते हैं तो आप आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ा सकते हैं. इसी वजह से केवल एक तिमाही में ही चीन की ग्रोथ नेगेटिव हुई और उसके बाद इसमें धीरे-धीरे तेजी आने लगी.”

 

आईएमएफ़ का अनुमान, 2021 में 7.9 फ़ीसद रफ़्तार से बढ़ेगा चीन

 

चीन

 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने 2021 के लिए चीन की ग्रोथ का पूर्वानुमान घटाकर 7.9 फ़ीसद कर दिया है.

 

पहले आईएमएफ़ का अनुमान था कि 2021 में चीन की अर्थव्यवस्था 8.2 फ़ीसद की रफ्तार से आगे बढ़ेगी.

ग्रोथ फोरकास्ट को घटाने के बावजूद 7.9 फ़ीसद का आंकड़ा ऐसा है जिसे हासिल करना शायद दुनिया के दूसरे किसी भी देश के लिए मुमकिन नहीं है.

 

क्या हैं चीन के आंकड़ें?

पिछले साल चीन की अर्थव्यवस्था 2.3 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ी है. 2020 की शुरुआत में कोविड-19 के शटडाउन की वजह से पैदा हुई सुस्ती के बावजूद चीन ग्रोथ करने में कामयाब रहा है.

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास, व्यापार, निवेश और टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता रखने वाले नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डिवेलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रोफ़ेसर डॉ. प्रबीर डे कहते हैं कि अगर कोविड के दौर को देखें तो पिछले साल फ़रवरी से इस साल जनवरी तक के दौर में चीन ही दुनिया की एकमात्र ऐसी बड़ी इकनॉमी है जो लगातार पॉज़िटिव ग्रोथ से बढ़ रही है.

हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था पिछले चार दशकों में पहली बार 2020 में सबसे सुस्त रफ्तार से बढ़ी है.

लेकिन, डॉ. डे कहते हैं, “चीन की जीडीपी का साइज़ मौजूदा प्राइस के हिसाब से क़रीब 10 लाख करोड़ डॉलर का है. ऐसे में इसमें अगर 1 फ़ीसदी की भी बढ़ोतरी होती है तो इससे भी एक बड़ा असर पैदा होता है.”

2020 की आख़िरी तिमाही यानी अक्तूबर से दिसंबर के बीच चीन की ग्रोथ 6.5 फ़ीसद रही है जो कि एक ज़बरदस्त आंकड़ा है.

इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के प्रिंसिपल इकनॉमिस्ट यू सु के मुताबिक़, “जीडीपी आंकड़ों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था तकरीबन सामान्य हो चुकी है. यह रफ्तार जारी रहेगी, हालांकि उत्तरी चीन के कुछ प्रांतों में कोविड-19 के मौजूदा मामलों के चलते अस्थाई रूप से इसमें उतार-चढ़ाव आ सकता है.”

जुलाई से सितंबर के क्वॉर्टर में चीन की ग्रोथ पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 4.9 फ़ीसद रही थी.

2020 के पहले तीन महीनों में पूरे देश में फ़ैक्टरियों और मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स के शटडाउन के चलते चीन की ग्रोथ नेगेटिव 6.8 फ़ीसद रही थी.

दूसरी तिमाही में चीन की ग्रोथ 3.2 फ़ीसद रही और इस तिमाही से ही चीन रिकवरी की राह पर चल पड़ा.

ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि चीन ने यह ग्रोथ एक ऐसे वक़्त में हासिल की है जबकि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलने को लेकर चीन को लेकर ग़ुस्सा था और चीन के साथ कारोबार न करने के मंसूबे दुनियाभर में बनाए जा जा रहे थे.

 

क्या हैं वजहें?

वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था के दोबारा खड़े होने के पीछे दो-तीन वजहें हैं.

वे कहते हैं, “पहला तो चीन ने महामारी को बड़ी तेज़ी से कंट्रोल कर लिया. इसके बाद उन्होंने अर्थव्यवस्था को जल्दी ही खोल दिया. महामारी को कंट्रोल कर लेने के चलते चीन को दूसरे देशों जैसी दिक़्क़तों का सामना नहीं करना पड़ा.”

प्रो. कुमार कहते हैं कि चीन ने कोरोना वायरस को अपने यहां दूसरे इलाक़ों में फैलने नहीं दिया. उन्होंने इसे हुवेई प्रांत में ही कंट्रोल कर लिया. इस वजह से चीन अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी करने में सफल रहा.

 

एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग में रफ्तार

चीन का एक्सपोर्ट सेक्टर दिसंबर 2020 में भी तेज़ रफ्तार से बढ़ा है. दिसंबर में चीन का ट्रेड सरप्लस रिकॉर्ड पर पहुँच गया.

पूरी दुनिया में हेल्थकेयर उपकरणों और वर्क फ्रॉम होम की तकनीकों की माँग ने चीन के एक्सपोर्ट को बरक़रार रखा है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “ऐसा लग रहा था कि महामारी के चलते चीन का एक्सपोर्ट में बड़ी गिरावट आएगी, वैसा नहीं हुआ.”

“सोचा ये जा रहा था कि कोविड-19 फैलने के चलते बाक़ी देशों में माँग कमज़ोर होगी, लेकिन उल्टा ये हुआ कि दुनियाभर के देश चीन से सामान ख़रीदने लगे.”

वे कहते हैं कि लग रहा था कि चीन से नाराज़गी के चलते दूसरे देश वहां से सामान नहीं ख़रीदेंगे, लेकिन, ऐसा नहीं हुआ.

दिसंबर में चीन का निर्यात 18.1 फीसदी की रफ्तार से बढ़ा है. जबकि नवंबर में ये ग्रोथ 21.1 फ़ीसद थी.

क्रिसिल के डी के जोशी कहते हैं, “चीन की ग्रोथ बड़े तौर पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आ रही है. चीन का एक्सपोर्ट भी दमदार बना हुआ है. इसके अलावा, चीन की सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी बड़ा पैसा लगा रही है.”

अमरीका को एक्सपोर्ट भी दिसंबर में एक साल पहले के मुक़ाबले 34.5 फ़ीसद बढ़ा है. दूसरी ओर, अमरीकी सामानों का चीन में आयात भी 47.7 फ़ीसद बढ़ा है जो कि जनवरी 2013 के बाद सबसे ज्यादा है.

पूरे साल के लिए चीन का अमरीका से ट्रेड सरप्लस 317 अरब डॉलर रहा है जो कि 2019 के मुक़ाबले सात फ़ीसदी ज्यादा है.

पिछले साल सितंबर में चीन के एक्सपोर्ट के आंकड़ों से ही मज़बूत रिकवरी के संकेत मिलने लगे थे.

इस दौरान चीन का एक्सपोर्ट 2019 के सितंबर महीने के मुक़ाबले 9.9 फ़ीसद की रफ्तार से बढ़ा, जबकि आयात में 13.2 फ़ीसद की ग्रोथ दर्ज की गई.

फ़िलहाल ऐसा दिख रहा है कि चीन का मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर रिकवर हो चुका है. इंडस्ट्रियल आउटपुट में 7.3 फ़ीसद की ग्रोथ दिखाई दी है.

प्रो. डे कहते हैं कि चीन का अभी भी ज्यादातर देशों के साथ ट्रेड सरप्लस बना हुआ है. चीन ने अपने यहां बड़े पैमाने पर रिफॉर्म किए हैं और कारोबारी माहौल को अनुकूल बनाया है.

 

नक़दी डालना

साल 2020 की शुरुआत में चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्रोथ और रोज़गार को सपोर्ट करने के क़दम उठाने शुरू कर दिए.

पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने पिछले साल फ़रवरी में रिवर्स रेपो के ज़रिए अर्थव्यवस्था में कुल 1.7 लाख करोड़ युआन (242.74 अरब डॉलर) की पूंजी डाली थी.

साल के अंत में यानी दिसंबर में चीन के केंद्रीय बैंक ने 950 अरब युआन (145 अरब डॉलर) मीडियम-टर्म लेंडिंग फ़ैसिलिटी के जरिए लगाए हैं.

दिसंबर ऐसा लगातार पाँचवां महीना था जबकि चीन ने इस टूल का इस्तेमाल करते हुए अर्थव्यवस्था में नकदी डाली है. साथ ही केंद्रीय बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज दरों को भी 2.95 फ़ीसद पर स्थिर रखा है.

पिछले एक साल में चीन में 2.44 लाख करोड़ युआन के नए लोन बांटे गए हैं. ख़ासतौर पर ये लोन छोटी कंपनियों को दिए गए हैं.

 

ट्रैवल बूम और घरेलू खपत पर ज़ोर

 

चीन

हालांकि, कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल पर भले ही प्रतिबंध हों, लेकिन चीन में घरेलू ट्रैवल ने अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूंकने का काम किया है.

अक्तूबर में चीन में मनाए जाने वाले गोल्डन वीक में लाखों की संख्या में चीनी लोगों ने ट्रैवल किया. गोल्डन वीक के दौरान हर साल छुट्टियां होती हैं.

आठ दिन की इन छुट्टियों के दौरान चीन में 63.7 करोड़ ट्रिप्स हुईं और इनसे करीब 69.6 अरब डॉलर का रेवेन्यू पैदा हुआ.

चीन की अर्थव्यवस्था मूल रूप में निवेश और मैन्युफैक्चरिंग पर आधारित है. लेकिन, चीन इसे खपत और सर्विसेज आधारित बनाने पर फोकस कर रहा है.

प्रो. डे कहते हैं कि चीन ने अपने यहां इंफ्रास्ट्रक्चर समेत दूसरे सेक्टरों में भारी निवेश किया है और इसके चलते डिमांड पैदा की है.

डे कहते हैं कि 2009 ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद चीन ने इससे सबक लिया और अपनी इकनॉमी को एक्सपोर्ट और मैन्युफैक्चरिंग आधारित से घरेलू खपत और सर्विसेज मार्केट आधारित इकनॉमी पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया.

हालांकि, डी के जोशी कहते हैं कि चीन में घरेलू खपत ज्यादा नहीं बढ़ी है और चीन पहले की तरह से इंफ्रास्ट्रक्चर को बूस्ट करने के जरिए इसे बढ़ा रहा है. पहले चीन की खपत ज्यादा थी जिसमें अभी तक रिकवरी नहीं हुई थी.

चीन में घरेलू बचत दर पिछले 10 साल के ऐतिहासिक स्तर से भी ऊपर चल रही है. जोशी के मुताबिक, ऐसे में ग्रोथ की वजह चीन में खपत में बढ़ोतरी नहीं है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं कि चीन ने महामारी के दौरान अपने यहां खपत पर काफी फोकस किया है. वे कहते हैं, “दूसरे देशों में बेरोजगारी बढ़ने से खपत भी कम हो गई. ऐसे में चीन ने जो नीतियां अपनाईं, उससे चीन को तेजी से उबरने में मदद मिली.”

 

चीन को अलग-थलग करने की मुहिम फीकी पड़ी

कोविड-19 के चरम के वक्त दुनियाभर में चीन को लेकर जो ग़ुस्सा था वो भी अब दिखाई नहीं देता और हर देश चीन से सामान मंगा रहा है. फार्मा, मेडिकल और दूसरी सभी डिमांड चीन के पास जा रही है.

प्रो. डे कहते हैं चीन के आइसोलेशन की बातें बेमानी साबित हुई हैं. इसके अलावा, ऐसा भी हल्ला खूब मचा था कि कंपनियां चीन छोड़कर जाना चाहती हैं, लेकिन 30-35 कंपनियों को छोड़कर सारी कंपनियां वहीं रुकी हुई हैं. इसकी वजह यह है कि चीन निवेश करने वालों को हर मुमकिन सुविधा और सुरक्षा देता है.

प्रो. अरुण कुमार कहते हैं, “चीन से सप्लाई पर कुछ प्रतिबंध लगाने के चलते भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर में दिक्कतें आ रही हैं. इसका नुकसान हमें ही हो रहा है.”

कंपनियों का अचानक चीन छोड़कर जाना आसान काम भी नहीं है. सप्लाई चेन जैसी चीजों को एक दिन में बदला नहीं जा सकता है. चीन की सप्लाई चेन बेहद मजबूत है और अगर कोई डायवर्सिफाई करना भी चाहता है तो उसमें वक्त भी लगता है और उसका खर्च भी बैठता है.

विदेशी कंपनियों के चीन छोड़कर जाने के सवाल पर क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं, “ऐसा पहले से हो रहा है. चीन से लेबर इंटेंसिव कारोबार पहले से दूसरे देशों में जा रहे हैं. मसलन, टेक्सटाइल का कामकाज बांग्लादेश शिफ्ट हो चुका है. महामारी के वक्त इस तरह के कम मार्जिन वाले कामों के चीन से दूसरे देशों में शिफ्ट होने में तेजी आ गई है.”

वे कहते हैं, “चीन अब महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स आइटमों जैसे सेक्टरों पर ही फोकस कर रहा है.”

 

चीन का आरसीईपी की अगुवाई करना

चीन समेत एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र के 15 देशों ने नवंबर 2020 में ‘दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार संधि’ पर दस्तख़त किए हैं.

जो देश इस व्यापारिक संधि में शामिल हुए हैं, वो वैश्विक अर्थव्यवस्था में क़रीब एक-तिहाई के हिस्सेदार हैं.

‘द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप’ यानी आरसीईपी में दस दक्षिण-पूर्व एशिया के देश हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी इसमें शामिल हुए हैं.

प्रो. डे कहते हैं कि इस एग्रीमेंट के लिए 12 साल से बातचीत चल रही थी. इसमें चीन का एक ही इंटरेस्ट है- कारोबार और ट्रेडिंग. ये एग्रीमेंट इसी रणनीति का हिस्सा है. आरसीईपी में चीन को छोड़कर जो 14 देश हैं उन सब के साथ चीन का ट्रेड सरप्लस है.

 

ईयू के साथ कारोबारी समझौता

इसके अलावा यूरोपीय यूनियन और चीन के बीच एक बड़ी इनवेस्टमेंट डील पर भी सहमति बन गई है. अमरीका के नए बनने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन के ईयू को इस डील पर जल्दबाज़ी न करने की सलाह देने के बावजूद ईयू और चीन इस समझौते पर सैद्धांतिक रूप से राज़ी हो गए हैं.

इस डील को कॉम्प्रिहैंसिव एग्रीमेंट ऑन इनवेस्टमेंट (सीएआई) का नाम दिया गया है और इसके शुरुआती ड्राफ्ट को दोनों पक्षों की मंज़ूरी दिसंबर के आख़िर में मिल चुकी है.

डी के जोशी कहते हैं, “चीन के यूरोपीय यूनियन के साथ इनवेस्टमेंट डील और आरसीईपी समझौते ये दिखाते हैं कि महामारी का चीन के ऊपर कोई ख़ास असर नहीं हुआ है. यहां तक कि ईयू के साथ समझौते में तो चीन कई तरह की रियायतें और शर्तों को मानने के लिए भी राज़ी हो गया है.”

इस एग्रीमेंट के तहत यूरोपीय कंपनियों को चीन के बाज़ार में दाख़िल होने के ज्यादा मौक़े मिलेंगे और वे इलेक्ट्रिक कारों, निजी अस्पतालों, रियल एस्टेट, टेलीकाॉम क्लाउड सर्विसेज समेत कई सेक्टरों में निवेश कर पाएंगी.

चीन विदेशी कंपनियों से टेक्नोलाॉजी ट्रांसफ़र की ज़रूरत को भी ख़त्म करेगा और अपने यहां पारदर्शिता बढ़ाएगा.

माना जा रहा है कि इस डील के ज़रिए चीन यूरोपीय देशों का बड़ा निवेश अपने यहां हासिल करने में सफल रहेगा.

प्रो. डे कहते हैं कि यूरोप में भी चीन का तगड़ा निवेश है और हर तरह का सामान चीन मुहैया करा रहा है.

 

अमरीका, भारत और दूसरी अर्थव्यवस्थाएं क्यों पिछड़ीं?

बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत उन देशों में शामिल है जहां इकनॉमी को सबसे बड़ा झटका लगा है. इसके अलावा, अमरीका और दूसरे देश भी पहले से सुस्ती के दौर में बने हुए थे और कोविड-19 ने इन हालातों को और बुरा बना दिया.

प्रो. कुमार कहते हैं, “चीन के मुक़ाबले भारत को देखा जाए तो मेरे हिसाब से इस साल देश की इकनॉमी क़रीब 25 फ़ीसद संकुचित होगी. हमारे यहां असंगठित क्षेत्र को ग्रोथ के आंकड़ों में शामिल ही नहीं किया जाता. इस वजह से सही आंकड़े नज़र नहीं आते.”

प्रो. कुमार कहते हैं, “अमरीका में लोगों ने कोरोना को लेकर ज्यादा सतर्कता नहीं दिखाई. इन वजहों से वहां बार-बार लॉकडाउन लगाना पड़ा. इसके चलते यूएस में इकनॉमी रिकवर नहीं पाई. दूसरी ओर, चीन ने अपने यहां इसे सख्ती से कंट्रोल कर लिया, जबकि जिस तरह से चीन से यह वायरस फैलना शुरू हुआ था वहां सबसे ज्यादा मौतें होनी चाहिए थीं. लेकिन, चीन इसे रोकने में सफल रहा. अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने में उन्हें इससे मदद मिली.”

हालांकि, क्रिसिल के चीफ़ इकनॉमिस्ट डी के जोशी कहते हैं कि ग्रोथ के लिहाज़ से भारत की तुलना चीन से नहीं की जा सकती है. चीन एक अलग उदाहरण है. कोरोना को रोकने में भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले अच्छा काम किया है.

जोशी कहते हैं कि शुरुआत में भारत की ग्रोथ तेज़ी से गिरी, लेकिन बाद में इसमें उम्मीद से तेज़ रिकवरी भी हुई है.

 

पिछले 2-3 दशकों में चीन की ग्रोथ

चीन ने क़रीब 40 साल पहले आर्थिक सुधारों और कारोबारी उदारीकरण की नीतियां लागू कीं. उस वक़्त तक चीन एक बेहद ग़रीब, एक जगह रुका हुआ, केंद्रीय रूप से नियंत्रित और वैश्विक अर्थव्यवस्था से कटा हुआ देश था.

1979 में चीन ने अपने बाज़ारों को खोलने और विदेशी व्यापार को इजाज़त देने का फ़ैसला किया. इसके बाद देखते ही देखते चीन दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गया.

2018 तक चीन की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 9.5 फ़ीसदी के औसत से आगे बढ़ी है. विश्व बैंक ने इसे “इतिहास में किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था का सबसे तेज़ रफ्तार से टिकाऊ विस्तार” क़रार दिया था.

हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ कमज़ोर पड़ी है और यह 2007 में 14.2 फ़ीसद की रफ्तार से 2018 में घटकर 6.6 फ़ीसद पर आ गई है.

पिछले दो दशकों में चीन की औसत आर्थिक ग्रोथ क़रीब नौ फ़ीसद रही है. ऐतिहासिक तौर पर चीन एक मज़बूत ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ा है. 21वीं सदी के पहले दशक में चीन की ग्रोथ दहाई के अंक में रही है.




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